मन में उमंग हो तो हर पड़ाव पर रंगीन है जिंदगी
7% से अधिक है भारत की आबादी में 60 साल से अधिक उम्र के लोगों की संख्या। 2013 तक यह आंकड़ा 15 करोड़ तक पहुंचने का अंदेशा था। 2030 तक यह 23 करोड़ के लगभग हो जायेगी।
बढ़ती उम्र की एक बड़ी समस्या अकेलेपन और उदासी की है। जो लोग बढ़ती उम्र में भी सक्रिय रहते हैं, वे कहीं ज्यादा स्वस्थ रहते हैं। उनमे जिंदगी के प्रति नीरसता का जज्बा भी पैदा नहीं हो पाता।
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आज संयुक्त परिवार्रों का विघटन हो रहा है। संतानें पढ़ाई और करियर के सिलसिले में घर से दूर प्रवास कर रही है। इस स्थिति में अकेलेपन की समस्या बढ़ती उम्र के अभिभावकों को झेलनी पड़ती है। इस स्थिति से बचने का एक ही कारगर उपाय है कि आप स्वयं को शरीर के सामर्थ्य के अनुसार सक्रिय रहें। बुढ़ापे की सभी समस्याओं का हल है अपने को अधिक से अधिक सक्रिय रखें। किसी शौक में अपने मन को लगाना। खासकर वे शौक जिन्हें घर गृहस्थी के दबाव तले आप जिंदगी भर पूरा नहीं कर सकें हैं।
प्रसन्नता:
यदि आप प्रसन्न हैं तो हर गम कम है। जीवन में उल्हास को बनाये रखना होगा। जियो और जीने दो की नीति में समझदारी है और इसे सभी को समझना होगा। प्रसन्नता संग रहने वाले को अपने आगोश में जरूर लेती है। आप प्रसन्न हैं तो आपके आस पास का माहौल स्वयमेव प्रसन्न हो जाएगा।
जिंदगी बहुत ही खूबसूरत है: बढ़ती उम्र के साथ सुंदरता चेहरे से ह्रदय में उतर जाती है। कुछ सालों से जीवन के सन्दर्भ में वरिष्ठ नागरिकों की सोच व दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव दिख रहे है। अब वे जिंदगी को इसकी समग्रता व गर्मजोशी के साथ बसर करना चाहते हैं। चिकित्सा विद्या में हुई प्रगति से स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक शिकायतों को नियंत्रित कर लेने के बाद औसत आयु में वृद्धि हुई है। जीवन स्तर में भी सुधार हुआ है। आंकड़ों से पता चलता है कि देश में वरिष्ठ नागरिकों व बुजुर्गों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है.
यह हमेंशा याद रखें कि जिंदगी में कोई भी ऐसा गम नहीं है जिसे न भुलाया जा सके। स्त्रियों के लिए 60 पार की जिंदगी जीना थोड़ा आसान रहता है। चूंकि यह तथ्य मानने लायक है कि जिंदगी में थोड़ी बहुत कहा-सुनी व लड़ाई-झगड़े भी जरूरी हैं। रात को सास बहु का झगड़ा हुआ सुबह दोनों फिर उसी रसोई में। पंजाबी में कहते हैं- सास-बहु लड़ियां ते इको चौके चड़ियां। कहने का मतलब है कि चाहे कितना भी झगड़ा हो सुबह होते-होते तक सब ठीक होने लगता है।
कोशिश हो कि सुबह बेड से उठने के बाद आप बेड पर बैठें जरूर पर लेटे नहीं। आराम की इच्छा हो तो सोफे या बेड पर अधलेटे आराम करें व कोई भी पुस्तक आदि पढ़नी हो तो उसी तरह पढ़े।
यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि आप जितना मानसिक रूप से सक्षम होते जाएंगे, जिंदगी उतनी ही बेहतर होती जायेगी। मनुष्य का स्वभाव स्वधर्म एक ही होना चाहिए। किसी परिस्थिति में अगर स्वभाव के अनुरूप काम न भी मिले, तो अपना स्वभाव काम के अनुरूप बना लेना चाहिए।
श्रीमती मधु सिधवानी जो कि इमोशनल प्रोब्लेम्स आॅफ कॉलेज स्टूडेंट्स पर काम कर चुकी हैं, कहती हैं आज जब वह कॉलेज के बच्चों को इन समस्याओं से जुझते देखती हैं, तो नेपथ्य में टूटते बिखरते परिवार, न्युक्लीअर परिवार, जहां बिखरता बचपन व घुटता वृद्ध दिखाई पड़ता है। उनका कहना है कि हम क्यों कौंसलर्स आदि के चक्कर लगाते फिरें। क्यों न हम दादी दादा व पोते पोती के संबंधों में सामंजस्य बिठायें। जब इनके रिश्तों में मधुरता आने लगेगी तो बचपन बिखरने व प्रौढ़ावस्था टूटने से बच जायेगी।
ठीक है जब आप माता पिता थे तो बच्चों की परवरिश, में इतना समय बीत जाता था कि अपने लिए सोचने का समय ही नहीं मिलता था। मैंने ऐसी माताओं को भी देखा है, गर्म बर्तन से हाथ जल गया, फूंक मारने का भी समय नहीं है। अगले ही क्षण अगले काम पर।
आज यदि आपके पास कुछ क्षण है, थोड़ा ठहरिये। शीशे के आगे अपने आप को निहारिये। बालों की सफेदी को निराशा से नहीं हंस कर देखिये। ग्रे हेयर आपकी पूंजी हैं अनुभवों की।
सही है प्रौढ़ अवस्था अपनी गरिमा के साथ बड़प्पन के साथ जी जानी चाहिए। जिसमें तनाव कम हो और स्वत् ही सब आसानी से होना चाहिए।
-शील वधवा