कुछ बातें बताना भी जरूरी हैं

कुछ बातें बताना भी जरूरी हैं

पड़ोस में शर्मा साहिब की हृदयाघात से अचानक मृत्यु हुई। बेटे-बेटी तथा अन्य रिश्तेदारों को सूचित करने हेतु श्रीमती शर्मा से उनके फोन नम्बर मांगे तो यह सुन कर हम स्तब्ध रह गए कि फोन नम्बर, पते आदि सब शर्मा साहिब को जबानी याद थे। वही पत्र लिखते थे, फोन मिलाते थे, इसीलिए कहीं नोट करके भी नहीं रखते थे।

इसी से मुझे अपने दूर के रिश्तेदार मेहताजी की याद हो आई। उन्होंने रिटायरमेंट के बाद कई धंधे फैला रखे थे, मगर पत्नी व बच्चों को कभी कुछ नहीं बताते थे, न कहीं लिख कर रखते थे। उन्हें अपनी स्मरणशक्ति पर गर्व था। अचानक चल बसे। देने वाला तो कोई सामने नहीं आया, लेकिन लेने वाले कई आ खड़े हुए।

परिवार के लिए बहुत कठिनाई की स्थिति बन गई। हम सोचते हैं कि अभी तो हम हैं, सब देखभाल कर रहे हैं, अभी क्या जल्दी है। हम सहज ही यह भूल जाते हैं कि मृत्यु का कुछ ठिकाना नहीं, कब आ जाए। यह भी देखने में आता है कि ऐसी
घटनाओं से प्रभावित होकर पति अपनी पत्नी को कुछ बताना या समझाना भी चाहता है तो पत्नी ही भावुक हो कर अवसर को टाल देती है। आप की पत्नी को ज्ञान होना चाहिए कि कौन से बैंक में, डाकघर में खाता है। कहां कितना पैसा है, मकान के कागजात कहां हैं, हम ने किस से कितना लेना है, किस को कितना देना है।

बीमा पालिसियां कितनी हैं, कितनी रकम की हैं, कहां रखी हैं, उन पर लोन लिया है तो कितना। यह कब परिपक्व होने वाली हैं। बैंक लॉकर में क्या-क्या रखा है, लॉकर का नम्बर तथा उस की चाबी का नम्बर भी उन्हें पता होना चाहिए। पत्नी को बताते रहने के साथ-साथ एक डायरी में भी साफ-साफ विस्तार से यह सब विवरण लिख कर रखें। उसे अप-डेट भी करते रहा करें। बैंक में पति-पत्नी का संयुक्त खाता होना अधिक अच्छा है। नामांकन भी बैंक, बीमा, डाकघर, प्राविडेंट फंड आदि के सभी कागजात में अवश्य करा लें। वसीयत बनवाने में भी टालमटोल न करें।

किसी अच्छे वकील द्वारा बनवाई गई स्पष्ट प्रावधान दर्शाती वसीयत आप के न रहने पर आप के परिवार के लिए अत्यन्त सुविधाजनक होती है और कोर्ट कचहरी और मुकदमेबाजी से बचाती है। वसीयत में बेटियों का भी हिस्सा रखें। सब से जरूरी बात यह है कि भावुकता में बह कर अपने जीते जी सब कुछ बेटे-बेटियों में बांटकर खाली हाथ न हो जाएं। बढ़ती आयु में कब कैसी, कितनी जरूरत पड़ जाए, इस बात का ध्यान जरूर  रखें। -ओमप्रकाश बजाज

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