Meditation कोविड-19 के बाद कभी-कभी ऐसा महसूस होता कि दुनिया में हमारा जीवन किसी तंग सुरंग में चलने जितना मुश्किल हो गया है। रोगाणु तो पहले भी हमारे शरीर के अंदर और हमारे आस-पास रहते थे लेकिन हममें से अधिकांश लोगों को इससे किसी भी तरह के संक्रमण का इतना खतरा महसूस नहीं हुआ होगा।
इस महामारी की वजह से भी लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भारी बोझ पड़ा है। यह एक नया वायरस, नई बीमारी है जिसने हमारी स्वास्थ्य सेवाओं को किनारे पर धकेल दिया है। कोविड-19 नामक बीमारी से बचने के लिए हर वक्त सावधानी बरतना इन्सान के हक में है, इसलिए इसके चलते एक अहम सवाल हमारे सामने आ के खड़ा हो जाता है कि इन सारी चीजों, मानसिक तनाव आदि को संभालने, इससे छुटकारा पाने का तरीका क्या है? ऐसी तनावपूर्ण चुनौतियों का मुकाबला कैसे करें? अगर हम बहुत ज्यादा तनाव लेंगे या ज्यादा चिंता करेंगे तो हमारी स्थिति और भी बदतर हो सकती है। लेकिन मेडिटेशन के माध्यम से अपने मानसिक सहित हर तरह के तनावों से आसानी से छुटकारा पा सकते हैं।
वैज्ञानिकों का भी मानना है कि मेडिटेशन, कोई भी अक्षर ओम, हरि, अल्लाह, गॉड, खुदा, रब्ब के नाम का निरंतर जाप करना, किसी भी ईश्वरीय शक्ति, किसी बिंदू पर ध्यान केंद्रित करना शारीरिक और मानसिक तनाव को काफी हद तक कम करने में सक्ष्म है। लेकिन इसमें टाइम मैनेजमैंट, समय प्रबंंधन, रूटीन बनाना जरूरी है। मेडिटेशन, ध्यान परिक्रिया कभी भी की जा सकती है। ध्यान की क्रिया को पांच मिनट से शुरू करके जैसे-जैसे आप को खुशी मिले उसी के अनुरूप समय को बढ़ा सकते हैं।
ध्यान की परिक्रिया से मन से नेगेटिव विचार धीरे-धीरे से छंटते जाएंगे और पॉजिटिविटी आना शुरू हो जाएगी। शुरू-शुरू में मन भटकाव की तरफ इन्सान को ले जाएगा, लेकिन घबराइए नहीं, मन भटकता है तो भटकने दें, क्योंकि यह मन की आदत है, लेकिन तन को स्थिर रखना चाहिए। तन भी गया तो ध्यान की क्रिया ज्यादा फलदायक नहीं हो पाएगी। तन-मन को एकाग्र करने के लिए पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि गुरुमंत्र, नाम-शब्द जो आप को मिला है, उसका निरंतर जाप किया जाए। नाम का जाप भटकते मन को एकाग्र करने में सहायक साधन सिद्ध होता है।
‘गुर की मूरति मन महि धिआनु।।
गुर कै सबदि मंत्रु मनु मान।।’
मन की एकाग्रता के बारे गुरु-महापुरुषों ने भी अपनी वाणी में रिजल्ट निकाल कर बताया है। इसके अतिरिक्त पूज्य गुरु जी ने तो साध-संगत को एक विशेष नुक्ता भी दिया है कि आप एक दूसरे से पूछें सुमिरन किया, सेवा की, मालिक-सतगुरु से प्यार कितना है, बजाय दुनियादारी की बातें पूछने या कहने से, अगर गुरु जी के इस नुक्ते पर चला जाए तो मन को सुमिरन (राम-नाम के जाप) करने की भी धीरे-धीरे आदत बनेगी, क्योंकि इस प्रतिस्पर्धा की भावना, सुमिरन कम्पीटिशन की भावना से लोग एक-दूसरे से बढ़-चढ़कर सुमिरन करेंगे, सेवा करने का भी मन में शौंक पैदा होगा और अपने मालिक सतगुरु के प्रति प्यार, नाम और सतगुरु के नूरी स्वरूप में ध्यान लगाने, ध्यान को एकाग्र करने की भावना पैदा होगी।
इसी के अनुरूप इन्सान अपने किसी विश्वासपात्र मित्र की भी सहायता ले सकता है। समय कोई भी निश्चित करें जो दोनों के लिए अच्छा हो। आप सुमिरन की क्रिया के दौरान प्राप्त बाहरी आनंद का अपने मित्र के साथ अनुभव तो सांझा कर सकते हैं, लेकिन अंदरूनी खुशी यानि मेडिटेशन, ध्यान केंद्रित करने के दौरान प्राप्त अनुभवों को सांझा नहीं करना होता। खुशी छुपाए छुपती तो नहीं, लेकिन इस अंदरूनी खुशी को बाहर जाहिर करना इन्सान के हक में नहीं है।
ईश्वर के नाम सुमिरन, नाम शब्द के अभ्यास यानि ध्यान की परिक्रिया, मेडिटैशन के द्वारा ही हर तरह के तनावों से बहुत जल्द छुटकारा मिल जाता है। इसलिए पूज्य गुरु जी द्वारा बताए सफल सिद्धांत अर्थात् मेडिटेशन के उपरोक्त नुक्ते कि आज सुमिरन किया, सेवा की, मालिक-सतगुरु से प्यार कितना है, को अपनाएं और रूहानी खुशी के साथ-साथ हर तरह के तनाव से भी मुक्ति पाएं।