must change with time -sachi shiksha hindi

वक्त के साथ बदलना चाहिए Change Time

गया वक्त लौटकर नहीं आता, वक्त रहते अगर आप मौके का सही फायदा नहीं उठाते, सही निर्णय नहीं ले पाते तो बाद में सिर्फ पश्चाताप ही करना रह जाता है। ऐसा घर, बाहर दोनों ही फ्रंट पर हो सकता है।

जहां रिश्तों की बात करें तो ये दांपत्य में दरार डाल सकता है। इसी तरह बढ़ते बच्चों को उनके ब्राह्य वातावरण उनकी कंपनी को ना समझते हुए अपने ही फिकस्ड पुराने विचारों पर अड़े रहना घर की सुख-शांति बिगाड़ सकता है। अत: समय पर सचेत रहते हुए अपने में उचित बदलाव लाकर तालमेल बिठाते हुए जिंदगी में आगे बढ़ें।

Change Time वक्त रहते संभल जाएं

ऐसा अक्सर होता है कि आप वक्त की नजाकत को आप पहचान नहीं पाते और बात बिगड़ती चली जाती हे। बढ़िया नौकरी का सुनहरी अवसर कशमकश में गवां देते हैं। बाद में आपका दुर्भाग्य किसी और का सौभाग्य बन जाता है।

Change Time व्यवहार में लचीलापन लाएं

माना कि अपने को बदल पाना आसान नहीं। जीवन में सब कुछ हमारे मनमुताबिक नहीं होता है, ये हमें मानकर चलना होगा। Change Time कई बार हमें ऐसे लोगों तथा परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है जो हमें बुरी तरह इरीटेट करती हैं, गुस्सा दिलाती हैं और जिन्हें हैंडल कर पाने में हम अपने को अक्षम पाते हैं, ऐसे में क्या किया जाए। अगर हम एक अड़ियल रवैय्या अपनाते रहेंगे तो स्थिति नहीं सुधरेगी। दरअसल ये हमारे लिए परीक्षा की घड़ी है। पास या फेल होना हमारे टैक्ट पर निर्भर है। हालात अगर हम ठीक से हैंडल कर लेते हैं तो समझो हमें काफी हद तक आर्ट आफ लिविंग आ गई है।

आज की पेरेंटिंग में बदलाव आना जरूरी था क्योंकि माहौल में जबर्दस्त बदलाव आ गया है। आज के बच्चे कंप्यूटर एज के बच्चे हैं। पेरेंटस से ज्यादा वे गूगल गुरू से सीखते हैं। उन्हें ज्यादा रोक टोक पसंद नहीं। वक्त को देखते हुए इसलिए पेरेंटस को बढ़ते बच्चों के प्रति खासकर अपना रवैय्या बदल उन्हें थोड़ी आजादी देनी चाहिए। थोड़ा आप बदलेंगे तभी बच्चों से भी थोड़ा बदलने की उम्मीद कर सकेंगे।

दमदार बनायें व्यक्तित्व

हर व्यक्ति में प्लस माइंस पाइंटस होते हैं जरूरत है अपनी कमियों को समझ उनसे निपटाने की। ढुलमुल व्यक्तित्व किसी को प्रभावित नहीं करता। व्यक्तित्व विकास में सबसे बड़ा बाधक है ढुलमुलपन। निर्णय न ले पाने की कमजोरी। इसी तरह जरा-जरा सी मुश्किलों से घबराना ये भी व्यक्तित्व की कमजोरी का सूचक है। कभी ना न कह पाने की आदत भी व्यक्तित्व कमजोर बनाती है। अपने को एडजस्ट करना असभ्यता नहीं। अच्छे बनें लेकिन एक हद तक क्योंकि आजकल लोग एक दूसरे का इस्तेमाल करने में माहिर हो गए हैं तो उसी हिसाब से आप उन्हें हैंडल करें। चैन से जीने के लिए ये बदलाव भी जरूरी है।

डरने और सावधान रहने में फर्क है

बदलाव लाने में डर सबसे अहम बाधक तत्व है। ज्यादातर लोग भीतर समाये डर के कारण खुद को बदल नहीं पाते कोई भी नया कदम उठाते हुए घबराते हैं। चाहे वो दूसरा जॉब या शहर बदलना हो। कोई वाहन सीखना हो या हवाई यात्रा करना हो। मन से डर निकलेगा तभी जिंदगी में कुछ कर पायेंगे। जमाना बहुत आगे बढ़ गया है और आपका भला इसी में है कि आप भी कदमताल करना सीख लें। तभी नई जनरेशन के साथ आप एडजस्ट कर पायेंगे। जिंदगी की दौड़ में आप ही पीछे क्यों रहें जब कि जमाना बेतहाशा दौड़ रहा है।
-उषा जैन शीरीं

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here
Captcha verification failed!
CAPTCHA user score failed. Please contact us!