‘‘…नलका टीले पर लगाओ’’ -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
प्रेमी चौ. वरियाम चन्द पुत्र श्री कर्म चन्द ढाणी वरियाम चन्द वाली तहसील व जिला सरसा से अपने पर हुई बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की अपार रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है :-
पाकिस्तान-हिन्दूस्तान (भारत) बंटवारे से पहले हमारा सारा परिवार मिंटगुमरी के पास एक गांव में रहा करता था। मैंने हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज से नाम-शब्द लिया हुआ है। इस लिए मैं अक्सर ही डेरा ब्यास में सत्संग पर जाया करता था। मैं शहनशाह मस्ताना जी बिलोचिस्तानी को वहां सत्संग पर देखा करता था। उस समय शहनशाह मस्ताना जी के पांवों और कमर पर बड़े-बड़े घुंघरू बंधे हुआ करते थे।
शहनशाह मस्ताना जी हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज के सत्संग में खूब नाचा करते थे। पूज्य बाबा जी शहनशाह मस्ताना जी को अपने पावन कर-कमलों से आशीर्वाद देते और इशारा करके रोका करते और वचन फरमाते, ‘हजम कर मस्तानेआ! हजम कर। तैनूं बागड़ दा बादशाह बणाया। तैनूं मालवे दा बादशाह बणाया।’ एक दफा तो बेपरवाह जी हुक्म मानकर नाचने से रुक जाते तथा बैठ जाते परन्तु कुछ समय बाद फिर नाचने लग जाते।
शहनशाह मस्ताना जी ने उस समय डेरा ब्यास की उत्तरी दिशा में दरिया ब्यास के किनारे डेरे से अढ़ाई मील दूर एक कीकर के नीचे अपनी कच्ची गुफा बनाई हुई थी। बाकी साधुओं की गुफाएं डेरे के नजदीक थी। मैं भी वहां पर शहनशाह जी के दर्शन करने के लिए चला जाया करता था। उस गुफा में पांच-छ: आदमी मुश्किल से बैठ सकते थे। जो आदमी भी मैंने शहनशाह जी के पास बैठे देखे उनसे वहां पर मैंने केवल मालिक-सतगुरु की बातें ही सुनी। शहनशाह जी सत्संग के प्रोग्राम की समाप्ति के तुरन्त बाद अपनी गुफा में पहुंच जाया करते थे।
उसके बाद मुझे पता चला कि हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज ने बेपरवाह मस्ताना जी को रूहानी ताकत देकर सरसा भेज दिया है। उसी समय के दौरान हमें भी इधर हिसार जिले में जमीन अलाट हो गई। पहले हमें डबवाली गांव फिर सरसा के नजदीक हिसार रोड पर जमीन अलाट हो गई जहां पर अब हम ढाणी वरियाम चन्द में रहते हैं। यह इलाका पहले हिसार जिला में पड़ता था।
हमारा सारा परिवार बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के सत्संग में आने लगा। हमारे सारे परिवार पर बेपरवाह जी की अपार कृपा हो गई और है। जहां भी सत्संग होता हम अवश्य वहीं पहुंचते। मैं तो अक्सर डेरा सच्चा सौदा में आता-जाता ही रहता था।
करीब 1958 की बात है, तब तक हम तालाब का पानी पिया करते थे। हमारे परिवार ने पानी के लिए एक नलका लगाने की योजना बनाई। पहले हमने अपने घर वाले टीले पर नलका लगाने की कोशिश की पर नलका ठीक से सैट न आया। क्योंकि नीचे पत्थर आ गए। फिर हमने टीले के नीचे दोबारा लगाने की कोशिश की, नलका वहां पर भी सैट न आया। हमारा सारा परिवार बहुत परेशान हो गया। मेरे लड़के मुझे कहने लगे कि तू रोज सच्चा सौदा जाता है, बाबा मस्ताना जी से अर्ज कर कि हमारा नलका ठीक नहीं लगता, नलका ठीक लग जाए।
मैं अगले दिन ही शहनशाह मस्ताना जी के चरणों में अर्ज करने के लिए साइकिल पर डेरा सच्चा सौदा-सरसा में पहुंच गया। यहां आकर मुझे पता चला कि सच्चे पातशाह जी रानियां गए हुए हैं। अगले दिन जब मैं डेरा सच्चा सौदा, रानियां में पहुंचा तो उसी समय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज गुफा से बाहर आए। मैंने शहनशाह जी के चरणों में ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ का नारा लगाया। बेपरवाह जी ने मेरे से सारे परिवार और पशु-डंगरों की कुशलता पूछी। फिर मैंने दयालु सतगुरु जी के चरणों में अर्ज की कि साईं जी! हमारा नलका ठीक नहीं लगता।
शहनशाह मस्ताना जी ने वचन फरमाया, ‘भट्टठ पड़े नलका!’ सेवादारों की तरफ इशारा करके वचन फरमाया, ‘इसे गेट पर लिखा दिखाओ।’ एक सेवादार मुझे डेरे के गेट की तरफ ले गया। मैंने उसे कहा कि मुझे सब पता है जो लिखा है। असल में शहनशाह जी डेरा सच्चा सौदा में सभी प्रेमियों को दुनियावी बातें करने से रोकते थे। इसलिए शहनशाह जी ने डेरों में लिखवा रखा था कि यहां पर केवल राम-नाम की ही बात की जाए नहीं तो डेरे से निकाली मिलेगी यानि डेरे से बाहर निकाला जाएगा। मुझे इन बातों का सब पता था फिर भी मेरा मन क्रोधित हो उठा।
पर शहनशाह जी टीले पर जाकर विराजमान हो गए और सेवादारों को, हुक्म फरमाया कि किसी को भी हमारे पास नहीं आने दें। जब वहां पर मेरा कोई चारा न चला तो मैं गुस्से से भरा हुआ वापिस घर की तरफ चल पड़ा। रास्ते में मेरे मन ने मुझे अनेको दलीलें दी। मेरा मन कहने लगा कि जो तेरी यहां की समस्या हल नहीं करता वो आगे की क्या कर देगा। मैं आज के बाद सच्चे सौदे नहीं जाऊंगा। मैंने घर आकर सारे परिवार को कह दिया कि आपां सच्चे सौदे नहीं जाना। वहां पर क्या रखा है। न मैं जावां न किसी ने और जाना है। अपने छप्पड़ का पानी पी लिया करेंगे।
उपरोक्त घटना के आठ दिन बाद की बात है, मैं अर्द्ध-निद्रा अवस्था में पड़ा हुआ था। मेरे मन में ख्याल आ रहा था कि कोई बादशाह से रूठ जाए तो बादशाह का क्या बिगाड़ देगा। अगर कोई फकीर से नाराज हो जाए तो फकीर का क्या बिगाड़ेगा। इन ख्यालों के साथ ही मुझे डेरा सच्चा सौदा, सरसा में बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के दर्शन हुए। शहनशाह जी ने मुझे वचन किए, ‘तू यहां आ।’ इतना कहकर शहनशाह जी देखते ही देखते ओझल हो गए। मुझे बेपरवाह जी के दर्शन से असीम अलौकिक खुशी मिली जिसका मैं शब्दों में वर्णन नहीं कर सकता।
मैंने उसी समय उठ कर अपने सारे परिवार को उपरोक्त दृष्टांत वाली बात बताई और कहा कि आपां सारे परिवार ने आज डेरा सच्चा सौदा में जाना है, बेपरवाह मस्ताना जी ने बुलाया है। सारे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। हम सभी बहुत ही खुश थे कि हमें खुद-खुदा ने बुलाया है। हम सुचान कोटली रेलवे स्टेशन से रेल गाड़ी पर चढ़ कर डेरा सच्चा सौदा, सरसा में पहुंच गए। उस समय डेरा सच्चा सौदा (सरसा) में सच्चे पातशाह जी सत्संग फरमा रहे थे। जब मैं संगत के पीछे जाकर खड़ा हुआ तो शहनशाह जी की दया-दृष्टि मेरे पर पड़ गई। सच्चे पातशाह जी ने फरमाया, ‘आगे आने दो, चौधरी को रास्ता दो।’, सेवादार मुझे आगे शहनशाह जी के बिल्कुल पास ले गए।
दयालु दातार जी ने मेरे से पूछा, ‘सुना बई! क्या हाल है नलके का।’ मैंने कहा साईं जी! नलके की नालियां उखाड़ कर दीवारों के साथ लगा दी हैं। नलका टीले के नीचे लगाते हैं तो एक पाइप ज्यादा लगती है, ऊपर लगाते हैं तो कम लगती है। नलका ठीक नहीं लगता। बेपरवाह जी ने उसी समय मलोट के सेवादार मिस्त्री को अपने पास बुलाया और उसे हुक्म फरमाया, ‘डेरे का सामान ले जाकर चौधरी का नलका लगाकर आ और टीले पर लगाओ।’ हमने शहनशाह जी के वचनानुसार नलका लगाया जो अभी तक चलता रहा है।
पानी बहुत मीठा था जो अब तक आस-पास की सभी ढाणियों वाले भी पीते रहे हैं।
हमारे सारे परिवार पर बेपरवाह मस्ताना जी महाराज, परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज और परम पूजनीय हजूर महाराज जी की अपार दया-मेहर है। हमारा सारा परिवार मालिक का शुक्राना करता है। मेरी परम पूजनीय हजूर महाराज जी के चरणों में अर्ज है कि हमारे सारे परिवार को अपने चरणों से लगाए रखें।