पावन भण्डारा (25 नवम्बर 2015) (डेरा सच्चा सौदा शाह सतनाम जी धाम सरसा)
मालिक की साजी-नवाजी प्यारी साध-संगत जीओ! सबसे पहले, आज सब जैसे सज-धज कर आए हैं और जो आपके चेहरों पे असली सजावट करने वाला आया है आज…! क्योंकि आपके चेहरों पे एक अलग तरह का नूर है और उस नूर के भण्डार को हम ‘शाह सतनाम’, ‘शाह मस्तान जी’ कहते हैं!
तो आज वो नूर-ए-जलाल, दोनों जहान का मालिक शाह मस्ताना जी दाता रहबर इस धरा पे आए। वो दिन कैसा रहा होगा, जब एक कमरे में प्रकाश ही प्रकाश हो गया! वो बहन (पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की आदरणीय बहन, जिसने वो साक्षात् नजारा खुद अपनी आंखों से देखा।)
कैसी होगी, जिसकी आंखें उस प्रकाश को देखकर अचंभे से खुली की खुली रह गई! और जो नजारा लिया होगा, वो वर्णन से परे है! …सो, सार्इं मस्ताना जी कहें, दाता मस्ताना जी कहें, बहुत नाम हैं…! कहने का मतलब कि उस सच्चे दाता, रहबर का आज अवतार दिन है। आप सबको इस अवतार दिवस भण्डारे की बहुत-बहुत बधाइयां हों! बहुत-बहुत मुबारकबाद! बहुत-बहुत खुशियां हों!!
ऐसे-ऐसे वचन बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने किए हैं, करवाएं हैं सच्चे सौदे के लिए, जो अपने-आपमें बेमिसाल कहें, या जिनकी बराबरी नहीं हो सकती, या यूं कहिये कि रूहानियत में ‘अनोखे’, ‘आश्चर्यजनक’ आदि कोई भी शब्द इस्तेमाल में लाएं, वो छोटे ही पड़ते नजर आ रहे हैं! जब इतिहास को पढ़ते हैं…, वेदों में पवित्र वेद, गीता, रामायण, महाभारत, पवित्र गुरुबाणी, पवित्र कुरान शरीफ, पवित्र बाईबल, शेख फरीद, धन्ना भक्त, कबीर दास जी, रविदास जी तथा और भी कई संतों की वाणी को जब पढ़ा, उसमें ज्यादातर आता है…, जैसे वेदों की बात करें, तो उसमें आता है कि ‘कलियुग में होगा तो राम-नाम प्रधान, लेकिन नाम लेना बड़ा मुश्किल होगा।
’लेकिन सार्इं मस्ताना जी कमाल का तोड़ लेकर आए! तीन ही शब्द और छूट ये कि आप चलते जपो, लेट कर जपो, बैठकर जपो, खाते हुए जपो, काम-धंधा करते हुए जपो, जो जुबान से गुरुमंत्र का जाप आपने कर लिया, दरगाह में मंजूर करवाकर छोड़ेंगे। फिर भी अगर आप न जपो, तो लाहनत है! आप पैदल जा रहे हैं, सुबह-सुबह वाकिंग कीजिए, …चलो, खेतों में जा रहे हैं, स्कूल, कॉलेज जा रहे हो, दुकान खोलने जा रहे हो, तो चलते जाईएगा और देखते जाईएगा और जीभा-ख्यालों से मालिक का नाम लेते जाइये। काम-धंधा भी नहीं छूटा और मालिक की भक्ति-इबादत भी हो रही है। बताइये, इससे आसान क्या हो सकता है? तो है न कमाल की छूट!
क्या आपको पता है कि यही भक्ति करने के लिए पिछले युगों में एक ही स्थान पे सैकड़ों साल लोग खड़े रहते थे! उम्र लंबी होती थी, तो क्या हुआ! क्योंकि मालिक से मिलने का समय भी बहुत लंबा था! अब अंगूठे पे खड़े हैं, पंजों के बल, तो उसी पे खड़े हैं। सब कुछ त्याग देते थे!
हवा ही खाते, हवा ही पीते थे और वो भी इतनी कि मार्इंड में, फेफड़ों में आॅक्सीजन भरकर रख लेते और पता नहीं कब स्वास लेते। इसीलिए उनकी आयु का टाईम पीरियड हजारों साल चला जाता था। एक मिनट में 16-18 स्वास मिलेंगे, जो नॉर्मली लेते हैं, आज कलियुग के अनुसार बता रहे हैं। अगर प्राणायाम के द्वारा स्वास को ऊपर अटका लिया, तो वो अटक गया। अब बातें करते रहें, कुछ भी करते रहें, ऐसा संत कर सकते हैं, तो वो अटका हुआ स्वास 4-5 मिनट तक वहीं अटका रहता था और फिर कहीं जाकर वो स्वास लेते थे।
तो ये अपने-आपमें बहुत बड़ी बात थी। कहां तो एक मिनट में 16 और वो लेते 10 मिनट में एक स्वास। अब आप कैलकुलेट कर लो कि उनकी आयु कितनी बढ़ गई। यानि हजारों साल उनकी आयु होती थी। ऐसे करते थे संत, पीर-फकीर, लेकिन फिर भी भगवान की प्राप्ति में बहुत समय लग जाता था। …और अब आप देखो, खुर्राटे मारने की तैयारी में हैं, नाम जप रहे हैं और मालिक की दरगाह में मंजूर हो रहा है! है न कमाल! आप नहा रहे हैं…, नहाते-नहाते ही सही! कुछ भी कर रहे हैं दैनिक कार्य, जैसे खाना खा रहे हैं, खाना बना रहे हैं, दफ्तर में काम-धंधा करने के बाद थोड़ा सुस्ता रहे हैं, उसमें भक्ति कर रहे हैं, बस में बैठे सफर रहे हैं, तब भक्ति कर रहे हैं, क्योंकि आपने कौन सा बस चलानी है? अगर चला भी रहे हो, तो जीभा से तो ब्रेक नहीं दबानी? ये तो फ्री है!
हालांकि मार्इंड फ्री नहीं होता। यहां बैठे हैं, इसको देख लिया, उसको देख लिया! कई तो उचका-उचका कर देखते हैं! मतलब कि टिकते नहीं आप! मार्इंड वाला पुर्जा तो चलता ही रहता है। और चलता रहना भी चाहिए, क्योंकि ये बंद हो गया, तो मतलब आप भी बंद हो गए। लेकिन इसी पुर्जे को कन्वर्ट करना है कि बजाए दुनिया में खोने के, क्यों न राम, अल्लाह, मालिक में खोया जाए। …तो सार्इं जी ने कितना आसान तरीका दिया! तीन शब्द दोहराते रहो, ध्यान उधर जाएगा, मालिक से लग जाएगा, इससे तमाम कर्म कटेंगे और खुशियों से झोलियां भरती जाएंगी।
ऐसे थे मस्ताना शाह। ऐसा उन्होंने देखा था कि लोग समाधि में बैठ गए! बोलना नहीं होता था। हिलना नहीं! आंखें बंद होती। एक ही तरफ ध्यान होता। लेकिन सार्इं जी नाचते रहते थे। कहते कि जी, हमारा तो मस्तो-मस्त ही मंजूर कर दो! उन्होंने कहा कि ठीक है। तो आज जो सच्चे मालिक के इश्क में नाचते हो…, किसी और चीज में नाचते हो, तो बात अलग होती है, लेकिन यहां जो आप मालिक के इश्क में नाचते हैं, वो दरगाह में ज्यों का त्यों मंजूर होता है, सार्इं जी ने ये वचन किए हुए हैं। ‘मुजरा’ उसको बोला करते। तो ये है ‘रूहानी मुजरा’।
किसी ने कहा कि सार्इं जी, आपने तो यह बहुत गलत काम कर दिया! साडे लई तां डरना गड्डता! तुसीं नचौने ओं, नचदे ऐ बहुत लोग, साडे धर्मां आले तां औणगे ई नहीं। सार्इं जी कहते कि अरे…रे…रे…रे, पढ़ो! पवित्र गुरुओं के वचन क्या हैं! ‘नाच रे मन नाच गुर कै आगै नाच’! साफ लिखा हुआ। तो वो हैरान रह गए कि ये तो हमने कभी पढ़ा ही नहीं! लेकिन पढ़ा तो बहुत बार है, लेकिन अंदर में कढ़ा नहीं! अंदर तो कभी जाता ही नहीं।
बस सुन लिया, इंतजाम कर दिया, बल्ले-बल्ले!
एक सज्जन ने हमें वीडियो दिखाई कि लोग भक्ति कर रहे हैं, मालिक का नाम ले रहे हैं! सामने वालों को लगता है कि यार, भक्ति कर रहे हैं! और पता तब चला कि वो टैप पे गोलियां सी फोड़ रहा हैं। हमने कहा कि वाह…! यहां भी नहीं हटा! हालांकि दिखने में वो भक्ति कर रहा है, मालिक का नाम ले रहा है। …तो ये घोर कलियुग है। कविराज जो होते हैं, वो लिखते हैं। कई बार उनसे भी सही लिखा जाता है, चाहे वो दुनियावी लिखें। ‘रब नाल ठग्गियां क्यूं मारें बंदेआ, दिन-रात पापां ’च गुजारें बंदेआ।’ आज कलियुग की लाईन है ये कि दिन-रात पापों में गुजारता है और रब नाल ठग्गियां, मतलब कि एक तरफ गेम खेल रहा है और दिखाता है कि मैं तो रब का नाम लेने वाला हूं।
ऐसा काम जो आप करते हो, ये अपने पांव पे कुल्हाड़ा मारते हो आप।
…तो सार्इं जी ने बड़ा आसान तरीका दिया। फिर भी आप नाम न जपो…, तो क्या किया जाए! बहुत से कहा हमने कि बेटा, नाम जपा करो। वो कहता कि जी, जपा नहीं जाता। बताओ…, तेरे पलाऊ जोड़ेया ए मगर, जेहड़ा तैथों तुरेआ नहीं जांदा! कोई पूछने वाला हो उनसे कि जब गालियां देता है, कोई परवाह नहीं! बुरा सोचता है, वो भी सोच लेता है! गालियां देनी हैं, वो भी दे देता है! खाता नहीं भूलता, पेट में हाथी कूदने लगते हैं! कई सज्जन ऐसे होते हैं, पहले हुआ करते थे, आज शायद छोड़ गए होंगे ये आदत कि अगर थोड़ा भी खाना लेट हो जाता, तो समेत थाली सब बाहर! देखा है हमने ऐसा कई घरों में!
…तो कहने का मतलब है कि लोग नाम नहीं जपते। कहते हैं कि जी, आदत नहीं पड़ती। चलो ठीक है, आदत नहीं पड़ती…, तो सुबह-सवेरे जाते हो बोतल लेकर, तो दस दिन मत जाओ! लेकिन नहीं, एक दिन भी न जाओ, तो दस लोगों को सुनाते हो कि आज मेरे पेट में थोड़ा प्रोब्लम है! लोगों को टेंशन हो जाती है!
कभी आपने ऐसा सोचा है कि आज अल्लाह, वाहेगुरु, राम का नाम नहीं जपा, बहुत मुश्किल हुई पड़ी है! जी नहीं, कभी नहीं सोचा ऐसा। क्योंकि बड़ी फिजूल की चीज है न ये राम-नाम तो…! ये तो एक उदाहरण दिया है आपको। आप कोई भी उदाहरण ले लो, जैसे आप शीशे के सामने खड़े होकर पता नहीं कितना पोचा लगाते हो। बुरा न मानना बच्चो, लेकिन होता है ऐसा!
पहले समय में बहनें मेकअप बहुत ज्यादा करती थीं, अब भी करती हैं! भाई भी करते हैं, लेकिन पहले ज्यादा करती थीं। तो एक ने ऐसे ही बहुत ज्यादा मेकअप कर लिया और अचानक बरसात हो गई। वो छाता ले जाना भूल गए। पैदल जा रहे थे। उस समय हो सकता है कि क्वालिटी अच्छी न हो, …तो उस औरत का बुरा हाल हो गया। उसका बच्चा देखे कि मम्मी कहां चली गई! थोड़ी देर बाद वो गया और अपनी मम्मी का हाथ पकड़कर कहने लगा कि डायन आंटी, डायन आंटी! मेरी मम्मी कहां है? क्योंकि उस बच्चे ने सुन रखी थी कहानियां। उसको लगा कि ये डायन है!
वो कहती कि मारूंगी कान पे! मैं ही तेरी मां हूं। वो कहता कि हो ही नहीं सकता। …सो, बड़ी मुश्किल से वो बच्चा माना।
कहने का मतलब कि आपका चेहरा है, इसको डायन बनाओ या जैसा मर्जी, हमने क्या लेना भाई। लेकिन हमारा कहने का मतलब है कि तब तो आप नहीं चूकते। चुगली-निंदा करनी हो, तब तो… ओए होए…होए…होए…! गांव में बुजुर्ग तो…, वो कहते हैं पंजाबी में कि ‘झुट्टियां लै लै के ओंदे आ’! हैं…, फेर की होया…! ऐसे लगता है कि इसने ना पूछा, तो जो हुआ है, उसका मजा ही नहीं आएगा। बहनें तो चुप होती ही नहीं! सत्संग में बैठी गाजर-मूली काटती रहती हैं।
हालांकि सत्संग में चुपचाप रहना होता है। वैसे आप कहीं देख लो, ‘चुगली-निंदा पुराण’ तो चलता ही रहता है। विष्णु पुराण लिखा, शिव पुराण लिखा, रामायण लिखी, महाभारत लिखा, लेकिन लोग उसको नहीं पढ़ते, लेकिन ये चुगली पुराण कहीं नहीं लिखा, फिर भी इसको सारा दिन पढ़ते हैं! कमाल की बात है! लोग दूसरों को देखकर खुश होते ही नहीं! दूसरों के अंदर कमियां निकालना आदमी की आदत सी पड़ गई है।
…तो सार्इं मस्ताना जी महाराज ने ये बताया कि आपने गीत ही गाना है, तो गुरुमंत्र का गाओ! अंदर ही अंदर गाते रहो, या कमरे में ऐसी जगह जहां से आवाज बाहर न जाती हो और नाम को गीत की तरह गाते रहो। साथ में दरगाह में हाजिरी भी लग जाएगी और साथ ही आप बाथरूम-सिंगर बन गए। दोनों बातें पूरी हो जाएंगी। जरा सोचो, गुरुमंत्र का जाप करना कितना आसान है! अरे रोटी खाने से भी आसान है गुरुमंत्र का जाप करना।
क्योंकि रोटी खाने में तो पहले कोर तोड़ो, फिर लगाओ, फिर खाओ, फिर चबाओ, फिर निगलो, फिर आंतड़ियों का काम शुरू हो जाता है, फिर जाकर हजम होता है। लेकिन राम-नाम जपो, अंदर जाए या न जाए, बस मालिक की दरगाह में मंजूर हो गया। इससे अच्छा और आसान तरीका क्या हो सकता है, बताइये! …तो ऐसे सतगुरु को अरबों बार नमन् न कहें, सेल्यूट न करें, तो क्या करें! ऐसे हैं सार्इं मस्ताना जी महाराज!
सार्इं मस्ताना जी ने सच्चे सौदे के लिए ऐसे वचन लिए कि कोई एक कदम उठाएगा, तो सतगुरु मौला उसकी तरफ सैकड़ों कदम, और अब तो हजारों-लाखों कदम चलकर आएगा! …और यहां का खाएगा, तो वो लोहे के चने हैं। न उल्टी होगी और न दूसरे रास्ते से आएंगे। अंदर ही अंदर जख्म बनाएंगे। और यही देखा लोगों ने। …सो उनके वचन हुए, यहां से चलते हुए वचन हुए, जैसे कि ‘यहां सचखंड का नमूना बनेगा।’ शाह मस्तान, शाह सतनाम जी ने दो बॉडियों में वचन किए और आज आप यहां देख रहे हैं! जो भी कोई आता है, वो दंग रह जाता है कि इतने टीलों में काजू, बादाम, आम, सेब लगे हुए हैं! या कौन सा पौधा है वनस्पति का, जो यहां नहीं लगा हुआ! जड़ी-बुटियां तक यहां हैं। हर चीज आश्रम में लगी हुई है। जबकि आसपास देखो आप, रेत ही उड़ता है।
यह नहीं है कि फसल नहीं है, वो छ: महीने वाला सौदा है। और वो भी जो किसान मेहनत करते हैं। पहले तो कुछ भी नहीं था। जैसे-जैसे आश्रम आया, उनको समझ आई, तो वो भी खेती करने लगे। फिर उनका भी फायदा हुआ, भला हुआ। अब जमींदार अच्छी खेती कर लेते हैं। …सो, सार्इं मस्ताना जी महाराज के वचनों से ये सब संभव है।
कोई बुद्धिजीव-इन्सान सार्इं जी के वचनों को समझ नहीं सकता। ये तो मालिक के इश्क में जो डूब जाता है, ये तो उसी की समझ में आता है। जितने भी सत्संगी हैं…, पहले हम सैक्ट्री होते थे, जिसे आज भंगीदास कहा जाता है, हम पूछा करते थे उनसे, जिन्होंने गुरुमंत्र लिया होता, कहीं कुरान शरीफ चलती, कोई हिंदी में पढ़ता होता, तो उसका मतलब समझते। कोई बाईबल पढ़ रहा है, तो उसका मतलब समझते।
गरुड़ पुराण या जो ऐसे पुराण पढ़ते, उनका अर्थ हम उनसे पूछा करते। …तो सत्संगियों को उनका अर्थ जल्दी समझ में आ जाता बजाये दूसरों के! ये हमने सौ प्रसेंट आजमाया। ऐसा इसलिए, क्योंकि जिसकी उस मालिक के साथ लिव लगी हुई है, उसको समझते देर नहीं लगती कि ये इशारा किसकी तरफ है। वो समझ जाता है कि भाषा से क्या लेना-देना, बात तो परमात्मा की ही हो रही है। …तो सार्इं मस्ताना जी महाराज ने ऐसा गुरुमंत्र दिया है, जिससे आपके रूहानी काज तो संवरते ही हैं, दुनियावी काज भी संवरते चले जाते हैं।
इसलिए अमल किया करो। ‘बिन अमलां दे आलमा इल्म निक्कमे सारे। कोई अमल कमा लै तूं जे जस लैणा सतगुरु द्वारे।।’ आप सुनते हो, फिर माना भी करो। गुरु को मानते हो बढ़िया है, लेकिन गुरु की नहीं मानते, ये सही नहीं है। गुरु को मानो, लेकिन गुरु की बात को भी मानो।
‘प्रेम करो तुम भाई, सबसे प्रेम करो तुम भाई…’, आपस में बेगर्ज, नि:स्वार्थ भावना से प्यार करो, लेकिन आप इस चक्कर में पड़ जाते हैं कि यार, ये स्टेज के पास खड़ा था, ये तो पहुंचा हुआ है! लेकिन भाई, इसका आपको क्या पता? पीर-फकीर सिर्फ एक होता है। गुरु जिसको चुन दे, वो गुरु है। आप हर किसी को गुरु मत बनाया करो! बंदा सिर्फ बंदा है, ये हमेशा ध्यान रखा करो। कोई कैसा भी क्यों न हो, बंदा सिर्फ बंदा है और गुरु एक ही है और वचन सिर्फ गुरु के होते हैं, बंदे के वचन नहीं होते। क्योंकि वो वचन उस गुरु के भी नहीं होते, बल्कि वो तो वाहेगुरु, राम की बात सुनाते हैं और वो वचन बन जाते हैं।
सार्इं मस्ताना जी महाराज के पवित्र वचन जो होते चले गए, वो पूरे हो रहे हैं ज्यों के त्यों। शाह सतनाम जी, शाह मस्तान जी दाता के वो वचन कि ‘हम लिखा करेंगे, हम गाया करेंगे, हम बजवाया करेंगे, हम बजाया करेंगे। ऐसा किया करेंगे, जो आपने कभी सोचा भी नहीं होगा।’ तो क्या आपने कभी सोचा था कि हम गाएंगे? फिल्म बनाएंगे? नहीं ना! तो वो वचन थे कि ऐसा समय आएगा। मस्ताना जी महाराज के वचन थे कि ऐसा कुछ कौतुक दिखाया करेंगे कि आप देखकर दंग रह जाया करोगे! लेकिन आप तो कल्पना भी नहीं कर सकते, और आज पूरी दुनिया में फिल्म ने नई क्रांति सी पैदा कर दी है। नौजवानों को बहुत पसंद आ रही है वो चीज। साथ ही गुरुमंत्र, नाम लेने वाले बढ़ते ही जा रहे हैं और बुराइयां छोड़ते जा रहे हैं। तो सार्इं मस्ताना जी के वचनों से ही यह सब कुछ हो रहा है। लेकिन कई बार इन्सान की बुद्धि तंग होती है, उसे समझ नहीं आता।
समय ज्यों-ज्यों बीतता है, फकीर वैसा ही राग सुनाते हैं। अब आपको पिछले राग सुनाएं…, जो भी जितने भी राग हैं, जैसे राग मल्हार है…, ऐसे ही बहुत से राग हैं, जो अलग-अलग समय पर गाए जाते थे, वो गाएं तो हमें नहीं लगता कि वो ज्यादा देर कोई सुनेगा। एक ने राग छेड़ा, बड़ी ऊंची तान छेड़ी, और ऊंची ले गया, और ऊंची ले गया, तो सामने बैठी एक माता रोने लगी! ये भी सच है, उसने देखा कि माता रो रही है, तो उसने राग को थोड़ा धीमा किया, लेकिन वो माता नहीं हटी। वो चुप हो गया और पूछा कि मां, आप रो क्यों रही हो? वो कहने लगी कि बेटा, मुझे दु:ख है। उसने पूछा कि किस बात का दु:ख है? वो पंजाबी थी, कहने लगी कि ‘जिवें तूं अरड़ा रिआ एं, रात साडा कट्टा अरड़ई गया, ते तड़के नूं पूरा हो गया। मैनूं ऐं डर ए कि किते तूं…’ बस आगे आप समझ ही गए।
…सो मतलब, कई बार ऐसे राग होते हैं कि लोगों को कुछ का, कुछ और ही संदेश मिल जाता है। हालांकि कभी इसकी कद्र भी होती थी कि आप कितना पिच हाई पे ले गए! कैसे वहां जाकर मुरकियां लगाई! कैसे गले के अंदाज को वहां फील दे दिया! वो भी टाईम होता था। लेकिन आज टाईम कुछ बदल गया है ना! अब वो वाले राग गाएंगे, तो कोई सुनेगा नहीं। आज तो आज वाले राग ही चलेंगे, तभी बात बनेगी ना! …तो समय-समय के अनुसार पीर-फकीर क्यों बदलते हैं, किसलिए करते हैं ये सब? समाज में अच्छाई लाने के लिए और बुराई को भगाने के लिए। और कोई उनका मुद्दा नहीं होता! कोई मकसद नहीं होता।
..तो, सार्इं मस्ताना जी ने हमें एक रास्ता बताया, जिसमें ना कंकर है, ना पत्थर, ना खड्डे हैं, ना कांटें हैं! मखमल की तरह रास्ता है, पांव फिसलते नहीं! आप चलते जाएंगे, एक आनन्दमय, शांतिमय भावना आपके दिलो-दिमाग में आती जाएगी! चेहरे पे नूर आएगा, अंदर सरुर आएगा! एक अलग तरह की खुशी का अनुभव होगा! ऐसी कल्पना भी आप नहीं कर सकते। वो नजारे इस कलियुग में आप कुछ सैकेंड में ले सकते हैं, अगर वचनों पे अमल करो! अगर वचनों पे चलना सीख लो। आशीर्वाद! आशीर्वाद!!
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