बेटा! असीं तैनूं आपणे हत्थां नाल सेब दिन्ने आं,वंड के खा लेओ। -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की दया-मेहर
प्रेमी जगराज सिंह इन्सां टेलर मास्टर पुत्र श्री मैंगल सिंह गुरु नानकपुरा भटिंडा से लिखते हैं:-
करीब 1973 की बात है। मेरे मन में ख्याल आया कि अपने सतगुरु पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के दर्शन करके आएं। मेरे माता जी तथा मेरी पत्नी भी मेरे साथ जाने के लिए तैयार हो गई। हम डेरा सच्चा सौदा सरसा में पहुंच गए। उस समय परम पिता जी लुधियाना गए हुए थे। हमने सोचा कि शाम तक परम पिता जी की इन्तजार करेंगे। फिर हम तीनों दरबार में सेवा करने लग गए। थोड़ी देर बाद पूजनीय परम पिता जी आश्रम में पधारे। परम पिता जी ने आते ही संगत को तेरावास में बुला लिया तथा सेवादारों से संगत को देने के लिए प्रशाद मंगवा लिया। प्रशाद में एक पेटी सेबों की तथा एक पेटी लड्डुओं की थी।
मेरी माता ने परम पिता जी को अर्ज कर दी कि पिता जी! मेरी टांगों में बहुत दर्द है। परम पिता जी हँस पड़े तथा फरमाने लगे, ‘बेटा! तू तुरके तां आई है, तैनूं कुझ नहीं होइआ।’ परम पिता जी के इन वचनों से मेरी मां की टांगों का दर्द हट गया तथा उसके उपरान्त कभी भी यह तकलीफ नहीं हुई।
उसके बाद परम पिता जी ने साध-संगत पर अपनी पावन दया दृष्टि डालते हुए फरमाया, ‘बीबियां ज्यादा हन ते प्रेमी भाई घट हन।’ सेवादार लछमन को हुक्म दिया, ‘प्रेमियां नूं इक-इक सेब ते बीबियां नूं इक-इक लड्डू दे देवो।’ जब भाई लछमन ने मेरे हाथ पर सेब रखा तो मेरे मन से इच्छा जाहिर की कि अगर यही सेब प्यारे सतगुरु जी खुद अपने कर-कमलों से देते तो कोहेनूर ही बन जाता।
फिर परम पिता जी फरमाने लगे, ‘भाई! नमक वाले चावल बणदे हन, तुसीं सारेयां ने खा के जाणा।’ अंतर्यामी सतगुरु परम पिता जी जब सीढियां चढ़ने लगे तो मुझे आवाज दी तथा मुझे सेब देते हुए वचन फरमाया, ‘लओ बेटा! असीं तैनूं अपणे हत्थां नाल सेब दिन्ने आं, वंड के खा लेओ।’ परन्तु मैैं तो वह इलाही प्रशाद वाला सेब अकेला ही खा गया।
उसके उपरांत पूरे तेरह वर्ष मेरे पेट में दर्द होता रहा। बहुत डाक्टरों, वैद्यों से दवाइयां ली, परन्तु किसी भी दवाई ने असर न किया अर्थात् दर्द होता रहा। मुझे परम पिता जी से बहुत डर लगता था कि माफी कैसे लूं। फिर मैंने प्रेमी राम किशन गहरीभागी वाले को साथ ले जा कर पूजनीय परम पिता जी से अपनी गलती की माफी मांगी। परम पिता जी ने हँसते हुए फरमाया, ‘भाई! धनी राम प्रेमी तों दवाई लै लेओ, ठीक हो जावेगा।’ माफी के बाद मेरे कभी दर्द नहीं हुआ।
अब मेरी सतगुरु जी के पवित्र चरणों में यही विनती है कि मेरे सारे परिवार को सेवा, सुमिरन तथा परमार्थ का बल बख्शो जी। सारे परिवार की आप जी से ओड़ निभ जाए जी।