‘‘बेटा! जा घर नूं। तूं आॅप्रेशन नहीं करवौणा’’ -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
माता लाजवंती इन्सां पत्नी सचखण्डवासी प्रकाश राम कल्याण नगर सरसा से पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने पर हुई अपार रहमत का वर्णन करती है:-
करीब 1980 की बात है, मेरे बच्चेदानी में रसौली थी। मुझे बहुत तकलीफ थी। मैं सरकारी हस्पताल व कई प्राईवेट हस्पतालों के बड़े-बड़े डॉक्टरों से चैक-अप करवाया परन्तु प्रत्येक डॉक्टर ने मुझे यही कहा कि इसका इलाज केवल आॅप्रेशन है। इसका और कोई इलाज नहीं है। मैंने अपने मन में निश्चय किया कि मैंने आॅप्रेशन नहीं करवाना चाहे कुछ भी हो जाए। उस समय के दौरान परम पिता जी दूसरे हफ्ते का सत्संग डेरा सच्चा सौदा मलोट में किया करते थे।
मैं डेरा सच्चा सौदा मलोट आश्रम में परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का सत्संग सुनकर जब वापिस लौटने लगी तो आश्रम के गेट पर खड़े होकर अपने सतगुरु कुल मालिक परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का ध्यान करके मैंने अर्ज कर दी कि पिता जी! मैंने रसौली का आॅप्रेशन नहीं करवाना। आप चाहे तो क्या नहीं कर सकते? मेरा यह दु:ख किसी और रास्ते काट दो। परन्तु पिता जी! मैंने आॅप्रेशन नहीं करवाना, नहीं करवाना। मैं यह अरदास करके अपने घर लौट आई।
मैं रात को नाम का सुमिरन करके सो गई। तो परम पिता जी ने स्वप्न में मुझे दृष्टान्त दिखाया कि मैं हस्पताल में बैठी हूं। कुल मालिक परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने मुझे दर्शन दिए तथा आशीर्वाद दिया। उस समय परम पिता जी ने सफेद वस्त्र पहने हुए थे व हाथ में लाठी थी। पिता जी ने मुझे मुखातिब होकर फरमाया, ‘बेटा! जा घर नूं, तूं आॅपरेशन नहीं करवौणा। तूं केहा सी कि मेरा दु:ख किसे होर रास्ते कट देओ।’ इसके उपरांत परम पिता जी डॉक्टर के पास चले गए। परम पिता जी ने डॉक्टर को आदेश दिया कि उस बीबी का आॅप्रेशन नहीं करना, हम स्वयं ही ठीक करेंगे। उसी समय मेरी आंख खुल गई।
मेरा बायां कन्धा दर्द करने लगा तथा लाल हो गया। उसमें रेशा पड़ गया और गांठ बन गई। कुछ दिनों के बाद वह गांठ बैठ गई तथा कई दिनों तक पीक बहती रही। बहुत पीक (गंदगी) निकली। डॉक्टर ने दबा-दबा कर पीक निकाली। घाव बहुत गहरा था। जो मेरे कंधे के पीछे था। एक दिन फिर मुझे बहुत तकलीफ हुई। मैंने अपने सतगुरु परम पिता जी को याद किया और कष्ट निवारण के लिए विनती की तो परम पिता जी ने मुझे फिर दर्शन दिए और कहने लगे कि ‘बेटा! तूं कमली आं।’ मैंने कहा बताओ, पिता जी।
परम पिता जी ने फरमाया कि ‘बेटा! देसी घी तीन बार गुनगुना करके इस जख्म पर नचोड़ दे। अगर आप से नहीं होता तो किसी से करवा ले।’ मैंने उसी तरह किया तो मेरा जख्म उसी दिन ही ठीक हो गया। उसके उपरान्त मैं सिविल हस्पताल में चैक-अप करवाने के लिए गई तो मैं रसौली की रिपोर्ट भी साथ ले गई। हस्पताल की सबसे बड़ी डॉक्टर ने चैक-अप करने से इनकार कर दिया। वह मुझे कहने लगी कि माता, तुम्हारे इतनी बड़ी रसौली है। तू जिद करती है।
मैंने उसे खुशामद करके प्यार से मना लिया। उसने जब चैक-अप किया तो वह हैरान हो गई कि तेरी रसाौली किधर गई जबकि रिपोर्टाें में इतनी बड़ी रसौली है! तो मुझे अपने सतगुरु की याद में वैराग्य आ गया। मैंने अपने सतगुरु का लाख-लाख शुक्राना किया। उसके पश्चात आज तक मुझे वह तकलीफ नहीं हुई। अब मेरी परम पिता जी के स्वरूप हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के चरणों में यही विनती है कि मेरी ओड़ निभा देना जी।