सत्संगियों के अनुभव पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की रहमत
प्रेमी चरणदास इन्सां सुपुत्र श्री गंगा सिंह गांव ढण्डी कदीम जिला फाजिल्का (पंजाब)। प्रेमी जी ने अपने सतगुरु मुर्शिदे-कामिल का रहमत भरा एक करिश्मा कुछ समय पहले, अपने जीते-जी, लिखित में इस प्रकार बताया है। अब तो ये प्रेमी जी अपने सतगुरु से अपनी ओड़ निभा गया है।
लगभग सन् 1957 की बात है। उस दिन पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने मलोट मंडी में सत्संग फरमाया। सत्संग के बाद शहनशाह जी नामाभिलाषी नए जीवों को नाम-शब्द प्रदान कर रहे थे और साथ में ये वचन भी फरमाया कि ‘नाम जपना है।’ उस दिन नाम लेने वाले हम लोग सात व्यक्ति थे।
पूज्य सतगुरु सार्इं जी के वचनानुसार, मैंने उसी दिन से नाम जपना शुरू कर दिया और लगातार दिन रात ज्यादा से ज्यादा समय नाम जपने में लगा दिया करता था। नाम सुमिरन की ऐसी लगन लगी कि खाना भी छोड़ दिया, केवल पानी ही पी लिया करता।
हालांकि घर का काम-धंधा भी बराबर करता रहता, लेकिन काम- कार्य करते समय भी सुमिरन जारी रहता था। सतगुरु जी ने अपनी दया-मेहर बख्शी, मुझे सतगुरु सार्इं बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के दर्शन होने लगे।
मेरे सपनों, ख्यालों में भी तथा नाम सुमिरन के दौरान भी पूज्य शहनशाह जी का नूरी स्वरूप पल-पल मेरा सहाई होता। मैंने अपने सतगुरु जी से यही एक अर्ज की कि सार्इं जी मुझे तो बस अपने पवित्र चरणों से हमेशा-हमेशा जोड़े रखना जी। एक दिन सच्चे पातशाह जी ने मुझे सुमिरन के दौरान यह वचन फरमाया, ‘अपने गुरु का दर नहीं छोड़ना।’ और मैंने भी उसी समय अपने दाता प्यारे के सामने वादा किया कि सार्इं जी, दुनिया चाहे पलट जाए, भूख-नंग भी हो मैं आपका दर नहीं छोडूंगा। ग्रन्थों में दर्ज है कि सतगुरु जिसे अपने प्यार के अनमोल खजाने बख्शता है, कभी-कभी उसे आजमाता भी है।
मेरे मां-बाप, बहन-भाई आदि सारा परिवार ही मेरे उलट हो गया जब उन्हें पता चला कि मैंने डेरा सच्चा सौदा वाले बाबा शाह मस्ताना जी महाराज को अपना गुरु बना लिया है। मेरा उन्होंने बहिष्कार (बायकाट) कर दिया और मुझे बहुत बुरा-भला भी कहते। मैंने इस चीज की कोई परवाह नहीं की। मेरे बाप ने एक दिन मुझसे कहा कि तू अपने गुरु मस्ताना जी को छोड़ देगा तो ही जमीन मिलेगी, नहीं, तो नहीं मिलेगी।
सतगुरु जी की दया-मेहर से मैंने इस बात की परवाह नहीं की। मैं अपने सतगुरु का दर नहीं छोडूंगा चाहे कुछ भी हो जाए। जिसने पैदा किया है, मेरा पेट भरने का भी उसी को ही फिक्र है, कि कोई बात नहीं मजदूरी कर लूंगा। मालिक की दया से नैन-प्राण (हाथ पांव शरीर) सही सलामत है, तो घबराने की क्या बात है! उन्होंने मुझे 8-9 साल तक न जमीन दी और न ही पैदावार का मेरा हिस्सा दिया। मैं मजदूरी करके अपना गुजारा करता रहा। उपरान्त मुझे उन्होंने जमीन मेरे हिस्से की दे दी।
उपरोक्त घटना सन् 1978 की है। मेरे बापू की मृत्यु के बाद मेरे भाईयों ने जमीन की बांट की, मुझे गांव अरनीवाला में जमीन दी गई। लेकिन किसी कारण (झगड़े आदि) मैंने अपने हिस्से की वह जमीन बेच दी। ढण्डी कदीम में मैंने अपने छोटे भाई हरनाम सिंह से कोई अच्छी जमीन दिलाने की बात कही। वह उस समय गांव का नम्बरदार भी था। उसने मुझे जो जमीन दिखाई मुझे पसंद आई और संबंधित जमीदार से चार हजार प्रति एकड़ के हिसाब से सौदा करके जमीन की रजिस्ट्री, इंतकाल आदि पक्के तौर पर अपने नाम करवा लिया।
उस जमीन पर किसी और जमीदार ने नाजायज कब्जा कर रखा था यह बात न तो उस जमींदार भाई ने बताई जिससे मैंने जमीन ली थी और न ही मेरे भाई ने कुछ बताया शायद उसे पता भी न हो। वह जमीदार भी ऐसा धाकड़ और सरकारे-दरबारे इतना शक्तिशाली था कि पुलिस भी उससे कतराती थी। मैं जमीन का कब्जा लेने गया, पक्के कागज भी उसे दिखाए, लेकिन वह तो उल्टा मेरे ही गले पड़ गया।
उसने मुझे बहुत बुरा भला भी बोला कि तेरे को पता नहीं कि जमीन पर किस शख्स का कब्जा है? जमीन में फिर कभी पैर रखा तो…? मैं तो जी बहुत डर गया पैसे भी गए और जमीन भी गई। बड़े मुसीबत में फंसे। मैंने अपने भाई से कहा कि तुझे पता तो था मुझे क्यों फंसाया है? उसने भी यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि मुझे क्या पता था कि कब्जा नहीं छोड़ेगा।
मुझे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। उस मुसीबत में मैंने दिन रात मालिक सतगुरु के नाम की रट लगाना, सुमिरन करना शुरू कर दिया कि अब सिवाय सतगुरु के और कोई रास्ता नहीं है। केवल सतगुरु ही इस समस्या का समाधान कर सकते हैं। पूज्य परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज डेरा सच्चा सौदा में दूसरे पातशाह जी को पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज का हाजर नाजर स्वरूप मान कर मैंने मन ही मन अर्ज-विनती की कि सच्चे पातशाह सार्इं शाह मस्ताना जी, मैं तो एक अनपढ़, ना-समझ जीव हूं।
मैं बुरी तरह फंस गया हूं, आप जी ही कुछ करो, निकालो इस मुसीबत से, मेरी समस्या का समाधान करो जी।
पूज्य सार्इं मस्ताना शाह दाता जी ने अपने प्रकट स्वरूप पूज्य परम पिता जी के स्वरूप में मुझे प्रत्यक्ष दर्शन दिए और वचन फरमाया कि ‘बेटा, नारा लगाकर (धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा) अपनी जमीन में जाना और उनकी (उस व्यक्ति की) ढाणी के पास से नहीं गुजरना।
पूज्य सतगुरु सच्चे सार्इं जी के वचनानुसार, अगले दिन ही मैं उस व्यक्ति की ढाणी से डेढ़ एकड़ परे से होता हुआ, नारा ‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ गुनगुनाता, बोलता हुआ धीरे-धीरे अपनी जमीन में एक जगह खड़े कीकर के वृक्ष की छाया में जाकर खड़ा हो गया और वहां भी जितनी देर तक मैं रहा, नारा धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा बोलता रहा। मुझे अत्यंत भय आ रहा था इस बात का कि वह व्यक्ति मुझे यहां खड़ा देखेगा तो पता नहीं क्या-क्या करेगा? लेकिन सतगुरु जी की दया से ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उपरान्त मैं वहां से चार-पांच एकड़ की दूरी पर अपने भाई हरनाम की ढाणी पर चला गया।
अगले दिन वही व्यक्ति, जो उस जमीन पर काबिज था, मेरे पास आकर कहने लगा कि (बहुत ही अधीनगी, बहुत ही नम्रता पूर्वक) भाई, तुम अपनी जमीन को संभाल लो। वह मेरे पांवों के हाथ लगाने तक जाए। मैंने उसका हाथ पकड़ लिया कि नहीं, आप बड़े हैं, ऐसा नहीं करें, मैं तो आपके बच्चों के समान हूं। फिर उसने मुझे अपने कलावे में ले लिया। (प्यार और सत्कार की भावना से) और यह कहता हुआ चला गया कि भाई, अपनी जमीन संभाल ले। मैं हैरान कि इसके अंदर रातो-रात एकदम इतनी तब्दीली कैसे आई। मैंने मालिक का शुक्राना किया और नारा लगाकर अपनी जमीन अपने कब्जे में ले ली।
कुछ दिनों के बाद वह व्यक्ति अचानक मुझे रास्ते में मिल गया। मैं तो पहले ही उससे डर गया कि पता नहीं क्या कह दे! लेकिन वह मेरे साथ बहुत ही नरमाई से पेश आया। कहने लगा कि वो इतने सारे आदमी कौन थे जो उस दिन तेरे साथ आए थे? उनके कईयों के हाथों में कृपानें थी, कईयों के हाथ में बंदूकें और कईयों के पास लाठियां थी। उसकी बात सुनकर मुझे वैराग्य आ गया। मेरा गला भर गया। आंखों से आंसू रुक नहीं रहे थे, कि मेरे सतगुरु सार्इं मस्ताना जी महाराज ने ये सब मेरे लिए किया।
मेरे सतगुरु दाता सार्इं मस्ताना जी महाराज के मौजूदा प्रकट स्वरूप पूज्य तीसरे पातशाह पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां से भी यही दुआ है कि मेरे अंदर की तार आप जी के पवित्र चरणों में हर पल जुडी रहे जी।