let the lights of happiness lit - Sachi Shiksha

दीपावाली पर जगमग हो खुशियां ‘दीपावली’ प्रकाश का पर्व। अंधेरे से रोशनी की ओर बढ़ने का उत्सव।

सदियों से मनाई जा रही है मन-धन की संपन्नता के प्रतीक रूप में। दीपावली बेशक लक्ष्मी को पूजने का त्योहार है।

इसकी खुशियां मनाने में हमें कुछ बुनियादी बातों को भी याद रखने की आवश्यकता है। ताकि हर घर में मने खुशियों का त्योहार, बता रही हैं वीणा कुमारी-

दीपावली दीपों का पर्व है। एक नन्हा-सा दीप अंधेरे को मिटा देने के संकल्प और हौसले का प्रतीक। तूफानों से टकराने और उनसे जीतने के मिथक वाला दीया। एक महापर्व का सिंबल। मानों शुभ संकल्पों के मनोभव ही दीए में घी बनकर स्वर्णिम लौ को पोस रहे।

दीपोत्सव एक ऐसा सामूहिक प्रयास सदियों से होता चला आ रहा है दीवाली के नाम पर। शायद इंसान को इसका आभास बहुत पहले से था कि अंधेरे की नकारात्मकता को दूर करने के लिए सिर्फ एक दीया काफी नहीं बल्कि करोड़ों दीयों की जरूरत पड़ेगी। दीवाली उसी सामूहिक प्रयास का जीता-जागता उदाहरण है। कितना अच्छा लगता है रोशनी से नहाया समूचा वातावरण देखकर। दीयों की टिमटिमाहट में अच्छी लगती है अंधेरे की लुका-छिपी।

उस पर, आस्था और वैभव का पावन मेल। सुख-समृद्धि का धनतेरस, रंगोली के रंग और आपसी मेल मिलाप में अनवरत शुभकामनाओं का आदान-प्रदान। बाजार से लेकर गली का छोटा-सा नुक्कड़ भी लगता है एकदम बदला-बदला, जगमग-जगमग। दीवाली के नाम पर चकाचौंध की रोशनी ही काफी नहीं है, बल्कि घी के वे दीये भी जरूरी हैं, जो पर्यावरण को शुद्ध करने के साथ-साथ हमें भी आध्यात्मिक शुद्धता दे जाते हैं।

untitled-1दीपावली पर लोग नए कपड़े जरूर पहनें, पर उन्हें न भूले जिनके पास अपना शरीर ढकने को भी वस्त्र नहीं हैं। प्रकाश पर्व वैसे भी त्योहार से ज्यादा एक संस्कार है, इंसानियत को जागृत करने का। लिहाजा हमें चाहिए की हम अभावग्रस्तों दीन-हीनों की ओर इस प्रकाश को ले जाएं, तभी हमारी दीपावली भी उद्देश्यपरक होगी।

इस दीपावली पर इस तरह की समस्या से निपटने का संकल्प लेने की जरूरत है। जरूरत है खुद को भीतर-बाहर आलोकित करने की। ताकि हम मानव कल्याण की ओर अग्रसर हों। घर के अंधेरे के साथ मन का अंधेरा भी तभी दूर होगा। कार्तिक की अंधेरी रात पूर्णिमा से भी ज्यादा प्रकाशयुक्त तभी नजर आएगी। दीपावली का पर्व हमें इन्हें संस्कारों से जोड़ने का सबक देता है। हमें इस सबक को भूलना नहीं चाहिए।

दीपों की पंक्ति जलाने का उद्देश्य ही अपने आसपास और दुनिया को प्रकाशवान करने का है। ऐसा प्रकाश, जहां हर व्यक्ति के जीवन का तिमिर खत्म हो! महज खुद के जीवन के लिए रोशनी का बंदोवस्त कभी इसके उद्देश्यों में शामिल नहीं रहा। तभी तो दीवाली को लेकर जितने विश्वास जताए जाते रहे हैं उनमें सत्य की सदा जीत की बात होती है। ‘जलाओ दीए पर रहे ध्यान इतना, अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए!’ किसी कवि की इन पंक्तियों में प्रकाश पर्व का असली मकसद छिपा हुआ है। यानी दीपावली कुछ यूं मनाई जाए कि वह मानवता को सही अर्थों में जीवंत करे।

पूरे मानव समाज को अंधेरे से प्रकाश की ओर ले जाने के ईमानदार प्रयास। वैसे भी इस पर्व को लेकर जितनी भी मान्यताएं जुड़ी हुई हैं, वे सभी कहीं न कहीं मन के अंधकार को दूर करने को प्रेरित करती हैं। अंधेरे से रोशनी की तरफ बढ़ने का सबक समाहित होता है।

‘‘अस्तो मा सदगमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।’’ हे परमात्मा, मुझे असत्य रूपी अंधेरे से सत्य रूपी प्रकाश की ओर ले चलो। वैसा प्रकाश, जहां बुराइयों का कोई नामोनिशान न हो। जहां मानव की अज्ञान, दारिद्रय एवं दुष्कर्मों से लड़ने की प्रेरणा मिले। प्रकाश पर्व की वही आत्मा है और इसी को आत्मसात कर सदियों से प्रकाशोत्सव के संस्कार को जिंदा रखने की कोशिश की जाती रही है।

ज्योतिपर्व के बारे में कहा जाता है कि अयोध्या नरेश श्रीरामचंद्र के 14 वर्षों के वनवास से लौटने पर अयोध्यावासियों ने अपने परमप्रिय राजा के सम्मान में पूरे नगर में घी के दीए जलाए थे। वहीं एक पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु जी ने नरसिंह रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था और इसी दिन समुद्र मंथन के पश्चात लक्ष्मी और धन्वंतरि प्रकट हुए। जैन धर्मावलंबियों के लिए यह 24 वें तीर्थंकर महावीर लक्ष्मी का निर्वास दिवस है।

इसी दिन 1619 में सिखों के छटे गुरु हरगोविंद जी को जेल से रिहा किया गया था।

कार्तिक मास की उस घनघोर काली अमावस्या की रात तब दीयों की रोशनी से जगमगा उठी थी। इसके बाद से आज तक यह एक त्यौहार की तरह लगातार मनाया जा रहा है। चूंकि श्रीराम जी सत्य के प्रतीक के रूप में देखे गए हैं और लंकानरेश असत्य के उपासक, इसलिए इसे असत्य पर सत्य की विजय के तौर पर देखा गया। और दीपावली इस विजय के उल्लास का पर्व है।
deepawali 01 - Sachi Shikshaखुशी के साथ मनाएं दीपावली

  • पारिवारिक रिश्तों में उलझनें बनती रहती हैं, लेकिन दीपावली ऐसा पर्व है, जो रिश्तों में बनी कड़वाहट में मिठास भर सकता है। इसलिए इस पर्व पर सभी गिले-शिकवे मिटाकर एक-दूसरे को गले लगाएं व फिर से रिश्तों में मिठास भरें।
  • छोटे अपने से बड़ों के पांव को हाथ लगाकर आशीर्वाद लें, व बड़े अपने से छोटों को तोहफे देकर उनकी दीपावली की खुशियां बड़ा सकते हैं।
  • त्यौहार की खुशियां बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप किसी गरीब के घर में खुशियों का दीपक जलाएं। मतलब कि गरीब लोग, जो मिठाइयां, कपड़े, खिलौने, पटाखे इत्यादि नहीं खरीद पाते, आप उनके लिए ये सभी सामग्री लेकर जाएं व उनके साथ दीपावली मनाएं।
  • इस त्यौहार पर गिफ्ट का लेन-देन काफी होता है, लेकिन आप ध्यान रखें कि त्यौहार के दिनों में कुछ लोग घटिया किस्म के गिफ्ट भी रखते हैं, जो देखने में तो सुंदर लगते हैं, मगर गुणवत्ता की कसौटी पर खरे नहीं होते। इसलिए खरीददारी करते वक्त सावधान रहें।
  • पटाखें चलाते समय बड़े लोग, छोटों के पास रहें, ताकि कोई अनहोनी न हो।
  • आजकल मिलावट का दौर है। ऐसे में कोशिश करें कि घर पर बनी मिठाइयां व पकवान ही खाएं। अगर बाहर से कुछ मिठाइयां खरीदनी पड़ें, तो विश्वासजनक दुकानों से ही खरीदें।
  • दीपावली एक धार्मिक पर्व है, अत: कोई भी अधार्मिक कार्य न करें। जैसे कुछ लोग जुआ इत्यादि खेलते हैं, जोकि गलत है। ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।

अगर आप उक्त सभी बातों को ध्यान में रखकर दीपावली पर्व मनाएंगे, तो निश्चित ही खुशियां आपके दरवाजे पर होंगी और हषोल्लास के साथ यह पर्व मना पाएंगे। सभी को दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं!

deepawali 02 - Sachi Shikshaदीपावली पर रंगोली सजाने की परम्परा

भारतीय संस्कृति में तीज-त्यौहारों के पावन अवसरों पर घरों में रंगोली सजाने की परम्परा प्रचलित है। लक्ष्मी के स्वागत में दीपावली पर हजारों वर्षों में रंगोली सजती आ रही है। इन रंगोलियों में चित्रकला की भारतीय परम्परा की अमिट छाप है। यही वजह है कि हर अंचल की कला शैली इनके डिजाइनों में देखी जा सकती है।

पुराणों में कुल 64 तरह की कलाएं मानी गयी हैं। इनमें से ‘रंगोली’ भी एक है। पौराणिक काल में रंगों की अल्पना बनाकर स्वागत करने की भारतीय परिपाटी के भी संकेत मिलते हैं। पौराणिक काल में तो रंगोली कलाकारों को जहां विशेष सम्मान मिलता था, वहीं राज्याश्रय भी उन्हें मिलता था अत: वे वर्ष भर इसी कला साधना में जुटे रह कर नित नये-नये डिजाइन बनाते थे।

दीपावली और आतिशबाजी

क्या बच्चे, क्या बूढ़े सभी को पसंद है आतिशबाजी। लेकिन उत्साह उस समय ठंड़ा पड़ जाता है जब थोड़ी सी असावधानी से आपको नुकसान पहुंचता है। इसलिए आतिशबाजी करते समय कुछ सावधानी बरती जाए, तो आप पूरा इंजाव्य करेंगे दीपावली को। पटाखे चलाते समय थोड़े से रहें सावधान, क्योंकि हुई ज़रा सी चूक और कहीं हो जाए अनर्थ।

इसलिए जरूरी हैं टिप्स

  •  इस बात का खास ख्याल रखें कि जहां आतिशबाजी करनी है, वह पूरा इलाका खुला हो। भले ही आपको थोड़े समय के लिए यह अच्छा नहीं लगेगा, लेकिन बाद में आपको यही इंज्वाय देगा।
  • जहां आतिशबाजी कर रहे हैं, वहां पानी भरी बाल्टी अवश्य रखे जिससे की जहां फुलझरी को बुझा सकें, वहीं कुछ भी अनहोनी पर पानी का भी इस्तेमाल कर सकेंगे।
  • कभी भी फुलझरी-बम को हाथ में लेकर ना सुलगाएं। क्योंकि अक्सर यह फुलझरी-बम फट जाता है, जिससे आपको नुकसान पहुंच जाता है। खासकर युवा इसे उत्साही होकर हाथ में ही लेकर सुलगाते हैं, जो खतरनाक है। इस तरह के तरीके से बचिए।
  • यदि आपने पटाखा या बम में आग लगा दी है और वह न चला हो, तो उसमें दोबारा आग लगाने की कोशिश ना करें, इससे खतरा हो सकता है। अगर वह नहीं चल रहा है तो साथ में रखें टब से पानी निकालकर उसपर डालें, जिससे कि उसमें आग बची ना रह जाए।
  • अक्सर ऐसा देखा गया है कि आतिशबाजी घरों में या तंग गलियों में की जाती है, जिससे कई तरह के नुकसान तो होते हैं, खासकर ऐसे समय में गली में गैस भी भर जाता है जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है।
  • आतिशबाजी करते वक्त छोटे बच्चों को दूर रखें क्योंकि उनकी त्वचा नाजुक होती है और इससे आंख और कान को खतरा हो सकता है।
  • अगर आपने आतिशबाजी का मन बना ही लिया है, तो इस बात का खास ख्याल रखें कि आप कपड़े कैसे धारण किए हुए हैं। ऐसे समय में लुंगी, धोती, लहंगा आदि न पहनें, तो अच्छा रहेगा।
  • जहां आप आतिशबाजी कर रहे हैं, वहां अगर आसपास स्कूटर, मोटरसाइकिल, कार आदि है तो ध्यान रखें कि यह खतरनाक हो सकता है, इसके लिए ऐसे जगह का चुनाव ठीक नहीं है।
  • पालतु जानवर आतिशबाजी से डरता है। इसलिए इस बात का भी खास ख्याल रखें कि पालतु जानवरों को पहले सुरक्षित स्थान पर रखें, ताकि इसपर कोई खास असर नहीं हो।
  • तेज रोशनी से बच्चों की आंखों पर असर पड़ सकता है, इसलिए इससे बचाव आवश्यक है। खासकर बच्चों का रखें ख्याल, तभी दीपावली का पूरा उत्साह लिया जा सकता है।
  • तेज आवाज भी बच्चों को नुकसान करती है। बच्चे ही नहीं, बूढ़ों को भी तेज आवाज से रखें दूर।
  • अगर बुजुर्ग को सांस की बीमारी है तो ऐसे समय में खासकर जब पटाखे चल रहे हों, उन्हें घर में ही रहना ज्यादा उचित है, नहीं तो पटाखे से निकले बारुद के धुएं नुकसान पैदा करते हैं।

बहरहाल आतिशबाजी करते वक्त अगर थोड़ी सी सावधानी बरती गई तो आप दीपावली को पूरा इंज्वाय कर सकेंगे। और आपकी सावधानी से पड़ोसी भी खुश रहेंगे। इसलिए आतिशबाजी करते वक्त कोई चूक ना करें। -अरूणिमा

सावधानी बरतें मिठाई खरीदते समय

त्यौहार बिना मिठाई और पकवान के फीके से लगते हैं। हर परिवार, हर घर में त्यौहारों पर मिठाई आती है। अब तो मिठाइयों का प्रचलन लेन-देन में भी बढ़ता जा रहा है। कुछ खुशी होने पर मुंह मीठा करने की रस्म तो बहुत पुरानी है। बड़े त्यौहारों पर हलवाई लोग कुछ दिन पहले से तैयारी करनी शुरू कर देते हैं।

अधिकतर मिठाइयां दूध से तैयार की जाती है। दूध को खूब पका कर मावा, पनीर तैयार किया जाता है, जिससे मिठाइयां बनाई जाती हैं। दूध की मिठाई थोड़ी भी पुरानी हो जाये, तो उसका स्वाद खराब हो जाता है जिसके सेवन से मजा किरकिरा हो जाता है। कभी कभी तो मजे के स्थान पर पेट में तेजाब बनना, जी मिचलाना, पेट में अफारा, उल्टी-दस्त लगने की शिकायतें अलग से होने लगती है।

इसलिए मिठाई खरीदते समय निम्न बातों का ध्यान रखें

  • दूध से बनी मिठाइयां 3-4 दिन में खराब हो जाती हैं। खरीदते समय यह ध्यान रखें कि मिठाई यदि आप अपने घर के लिए खरीद रहे हैं तो दूध से बनी मिठाई को एक या दो दिन में खा कर खत्म कर दें और हलवाई से लाने पर डिब्बा खोलकर जांच कर लें कि सब ठीक-ठाक है, फिर उसे फ्रिज में रख दें।
  • अगर आप किसी और के लिए मिठाई खरीद रहे हैं तो कोशिश करें कि खोये, छैने या पनीर से बनी मिठाई न लें। मिठाई लेने से पूर्व हलवाई से उस मिठाई के छोटे टुकड़े को चख कर खरीदें। दूध से बनी मिठाई खरीदते समय विशेष सावधानी बरतें।
  • दूध से बनी मिठाईयां जैसे रसगुल्ला, चमचम, राजभोग आदि पुरानी पड़ने पर अपना रंग खो देती हैं। इनका रंग पीला या हल्का भूरा हो जाता है। ऐसी मिठाई कभी न खरीदें।
  • खोए से बनी मिठाई यदि पुरानी होगी तो अंगुली से छूते ही भुर जायेगी। ऐसी मिठाई कभी न खरीदें।
  • खट्टे या कड़वे स्वाद की मिठाई भी न खरीदें क्योंकि इसका सेवन खतरनाक हो सकता है। – नीतू गुप्ता

deepawali 03 - Sachi Shiksha

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