बच्चे को खरोंच तक भी नहीं लगने दी -सत्संगियों के अनुभव पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने की अपार रहमत
सचखण्डवासी प्रेमी केहर सिंह हवलदार सुपुत्र श्री फुम्मण सिंह जी, निवासी गांव पक्का कलां जिला भटिण्डा (पंजाब) से पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज जी की अपने परिवार पर हुई रहमत का वर्णन एक पत्र द्वारा इस प्रकार करता है। उनके द्वारा पूज्य गुरु जी के नाम दरबार में भेजा यह पत्र सन् 1992 में पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पावन हजूरी में साध-संगत को पढ़कर सुनाया गया था, जोकि इस प्रकार है:-
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से नाम-दीक्षा लेने के बाद मैं रोजाना सुबह-शाम सुमिरन करता था। मुझे नाम जपने में बहुत रस आता था। पूरा दिन ऐसे लगता कि जैसे मैं मस्ती में घूम रहा हूं। मेरे दिल में सभी जीवों के लिए नि:स्वार्थ प्रेम का भाव पैदा हो गया था। मेरे अन्दर की आत्मिक ताकत भी मुझे बढ़ी हुई महसूस होती थी, जिस वजह से मुझे किसी की कही कोई बात बुरी नहीं लगती थी। हर समय दिल करता कि इस सारी सृष्टि के सिरजनहार को देखंू। प्राय: मैं अकेले में सुमिरन करता था। उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ।
पत्र में यह लिखा था कि सन् 1969 में गर्मियों के दिन थे। मेरा बेटा गुरचरण सिंह मेरे साथ घर की छत पर सोया हुआ था। उस समय वह करीब पांच वर्ष का था। मैं अपनी आदत के अनुसार निश्चित समय पर सुबह उठा और बच्चे से थोड़ा दूर चौबारे के पास बैठकर सतगु़़रु के नाम का सुमिरन करने लगा। मेरी पत्नी नीचे आंगन में सोई हुई थी। उस समय काफी अंधेरा था। अचानक मेरा बेटा गुरचरण पीछे से जाग गया। वह अपने-आपको अकेला देखकर सहम-सा गया था। वह चारों तरफ हमें (यानि अपने मां-बाप को) ढूंढने लगा। जैसे ही वह छत की मुंडेर के नजदीक खड़ा होकर नीचे देखने लगा तो उसके शरीर का भार आगे को हो गया तथा वह धड़ाम से नीचे गिर गया।
बच्चे के ऊपर से गिरने की आवाज आई, तो उसको गिरा देखकर मेरी पत्नी के पैरों तले से जमीन खिसक गई। वह गुस्से में शोर मचाकर मुझे ऊंचा-ऊंचा बोलने लगी कि प्रेमी को सुमिरन करने की पड़ी है और बच्चा मरने वाला है। पत्नी का शोर सुनकर मैं नीचे उतर आया और भाग कर बच्चे को उठा लिया। मैंने बच्चे के सभी अंगों को हाथ लगाकर देखा और पूछा कि बेटा! कहां चोट लगी है? कहां दर्द हो रहा है? हैरानी तो तब हुई जब बच्चे ने बताया, ‘बापू जी, जब मैं गिरा तो पिता जी (पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) ने मुझे नीचे गिरने से पहले ही अपने हाथों में उठा लिया था।’ पूछने पर बच्चे ने बताया कि पिता जी ने सफेद कपड़े पहने हुए थे और सिर पर लाल परना बांधा हुआ था।
बच्चे से सारी वार्ता सुनकर मुझे वैराग्य आ गया कि पूज्य पिताजी अपने बच्चों की कितनी संभाल करते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि बच्चे कोे खरोंच तक भी नहीं आई थी, जबकि बच्चा छत से पक्के आंगन में गिरा था। ये देख मेरी पत्नी की आंखों में भी आंसू आ गए कि हम इन्सान हैं जो मिनट-मिनट में ताने मारते रहते हैं और वो मेरा पालनहार सतगुरु, जो हर पल हमारी संभाल करता है, फिर भी अहसान नहीं जताता। ऐसे सतगुरु का हम देन नहीं दे सकते।
मेरी पत्नी भी मुझे सुमिरन के बारे में भला-बुरा बोलने के लिए पिता जी से माफी मांगने लगी और कहने लगी कि इनके सुमिरन पर बैठे होने की वजह से ही आपजी ने स्वयं मेरे बेटे की रक्षा की है। आगे से मैं इनकोे तो क्या, किसी को भी सुमिरन के लिए नहीं टोकूंगी और मैं खुद भी ज्यादा से ज्यादा सुमिरन किया करूंगी। ये सुमिरन की ही ताकत है कि जिस वजह से मेरे बच्चे का मौत जैसा भयानक कर्म सतगुरु ने इस तरह से काट दिया कि उसे एक खरोंच भी नहीं आई।
पूजनीय सतगुरु जी के वचन भी हैं कि जो प्रेमी वचनों पर पक्का रहते हुए सेवा, सुमिरन करते हैं, सतगुरु उनकी व उनके परिवारों की पल-पल खुद संभाल करते हैं। पूजनीय परमपिता जी ने अपने इन वचनों को स्वयं प्रत्यक्ष करके दिखा दिया। मेरी पूज्य पिता जी के पवित्र चरणों में यही विनती है कि आप जी की रहमत हम सब परहमेशा सभी पर बरसती रहे जी!