Why have you forgotten the work you took - Spiritual satsang - Dera Sacha Sauda - Sachi Shiksha

रूहानी सत्संग: पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी धाम, डेरा सच्चा सौदा सरसा

मालिक की साजी नवाजी प्यारी साध-संगत जीओ! मन रूपी मौसम का तो मिजाज हमेशा बिगड़ा ही रहता है। वो तो अल्लाह, वाहेगुरु, खुदा, रब्ब की याद में आने ही नहीं देता। इन सभी का सामना करते हुए आप लोग दूर दराज से आस-पास से रूहानी सत्संग में चलकर आए हैं। अपने समय में से समय निकाला है और कई बार इंसान को दुनियावी लोगों के उलाहने भी सहने पड़ते हैं इस सब का सामना करते हुए जो भी साध-संगत यहां पर पधारी है आप सभी का सत्संग में, आश्रम में पधारने का तहेदिल से बहुत-बहुत स्वागत करते हैं, जी आया नूं, खुशामदीद कहते हैं, मोस्ट वैल्कम।

आज जो आपकी सेवा में सत्संग होने जा रहा है। यह सत्संग जिस भजन पर होगा, वह भजन है:

जिस काम लिए आए,
वो काम भूल गए हो तुम।

हे इंसान! तेरा करने वाला काम कौन-सा है और तू क्या कर रहा है, ये दो पहलू ऐसे हैं जिस पर प्रत्येक इंसान को जरूर सोचना चाहिए, विचार करना चाहिए और सोच-विचार जो परिणाम सामने आता है उस पर अमल करना चाहिए। रूहानी संत, सूफी-फकीर इस बारे कहते रहते हैं, अपने वो अनुभव लिखते रहते हैं। सभी रूहानी पीर-फकीरों का एक ही अनुभव है, चाहे वो किसी भी धर्म से संबंध रखते हैं, उन्होंने बिल्कुल स्पष्ट किया है कि इंसान का करने वाला कार्य, पहला कर्तव्य, फर्ज, उद्देश्य, लक्ष्य अगर कोई है तो वह है आत्मा को आवागमन से आजाद करवाना।

यहां रहते हुए सुप्रीम पॉवर, जिसे ओ३म, हरि, अल्लाह, खुदा, रब्ब के नाम से अलग-अलग धर्मों में बुलाया जाता है, उस ताकत के रूबरू होना, उसकी दया-मेहर, रहमत का एहसास करना, अनुभव करना यह इंसान का पहला कर्तव्य है। चौरासी लाख शरीर जिनमें वनस्पति है, जिसकी लाखों जूनें हैं। कीड़े-मकौड़े, पक्षी, जानवर और इन्सान हैं, ये चौरासी लाख शरीर हैं। इन शरीरों में आत्मा आती है, एक शरीर छोड़ती है दूसरे शरीर में चली जाती है। क्योंकि यह भी काल का मालिक से लिया हुआ वचन है कि आत्मा को अपने पिछले जीवन का कुछ भी याद नहीं रहता कि उसके साथ क्या हुआ। कौन-सा शरीर था, और उस शरीर में कैसे कर्म किए हैं! इस तरह चौरासी लाख शरीरों में चक्कर लगाने के बाद या लगाते-लगाते इंसान का शरीर मिलता है। इस बारे में सभी धर्मों में लिखा हुआ मिलता है।

यह भी पढ़ें: संत जगत विच औंदे, है रूहां दी पुकार सुन के जी।। पावन भण्डारा

हिन्दू रूहानी फकीर लिखते हैं कि आत्मा एक शरीर को छोड़ती है तो दूसरे वाले में प्रवेश कर जाती है। उस शरीर को छोड़ती है तो फिर अगले वाले शरीर में प्रवेश कर जाती है। यह जन्म-मरण का चक्कर आत्मा के साथ तब तक चलता रहता है जब तक इंसान का शरीर न मिल जाए और उसमें भी ओ३म, हरि,अल्लाह, ईश्वर की भक्ति, उसकी याद में समय लगाया हो, सुमिरन किया हो तो आवागमन से, जन्म-मरण के चक्कर से, आत्मा को मोक्ष-मुक्ति मिल सकती है। अगर इस शरीर में भी ईश्वर को भुला दिया तो आत्मा को फिर से चौरासी लाख, जन्म-मरण के चक्कर में जाना पड़ता है। ऐसी ही बात सिक्ख धर्म में लिखी हुई मिलती है:

लख चउरासीह भ्रमतिआ दुलभ जनमु पाइओइ।।
नानक नामु समालि तूं सो दिनु नेड़ा आइओइ।।

चौरासी लाख शरीरों में भ्रमने, चक्कर लगाने के बाद यह दुर्लभ शरीर आपको मिला है। ‘नानक नाम समालि तू’, ईश्वर, वाहेगुरु, राम का नाम जप, सुमिरन कर वरन् ‘सो दिन नेड़ा आइओइ’, तेरी आखरी तबदीली जिसे मौत, मृत्यु कहते हैं, वह दिन दिन-ब-दिन नजदीक आता जा रहा है। वह दिन कब आएगा, किस जगह पर आएगा, किस रूप में आएगा, यह किसी को पता नहीं है। यह सभी को पता है कि वह दिन हर किसी पर जरूर आता है, जिसे ‘मौत’ कहते हैं लेकिन मानता कोई नहीं है, यह बहुत हैरानी की बात है। यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा, दुनिया में सबसे आश्चर्यजनक बात क्या है, सबसे बड़ा अजूबा कौन सा है? तो युधिष्ठिर ने जवाब दिया, जो कि बिल्कुल सत्य है कि एक इंसान जीवन की राह में यह देखता है कि इस दुनिया से उससे छोटी उम्र वाले मर रहे हैं, उससे बड़ी उम्र के मर रहे हैं, उसके हमउम्र भी जा रहे हैं पर वह इंसान कभी यह नहीं मानता कि उसने भी एक दिन मरना है, दुनिया का यह सबसे बड़ा अजूबा है।

जिस काम लिए आए,
वो काम क्यों भूल गए हो तुम।

जिस कार्य के लिए आए हो वह काम भुला दिया है और मन-माया में उलझे हुए हो। काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार में फंसे हुए हो। इनसे निकलिए। आप का ईश्वर, मालिक आपके अन्दर है। हमारे धर्माें मे लिखा है कि वह कण-कण, जर्रे-जर्रे में है। इसका मतलब हमारा शरीर भी उसी कण में आ गया। तो वो हमारे अन्दर है। हमारे अन्दर उसकी आवाज चल रही है। ये वास्तव में सुनी हुई, देखी, महसूस की हुई बात है। तो वो आवाज को अगर आप सुन पाओ तो भाई सौ प्रतिशत आपके गम, चिंता, बिना वजह का भय जड़ से खत्म हो सकते हैं। आत्मिक-शक्तियां आपकी जागृत हो सकती हैं जिसके द्वारा नेकी भलाई में आप चरम सीमा को छू कर भगवान की दया-मेहर के दर्शन-दीदार कर सकते हैं। ऐसा सम्भव है अगर आप हिम्मत करें।

हिन्दू धर्म में लिखा है:

‘हिम्मत करे अगर इंसान
तो सहायता करे भगवान।
हिम्मते-मर्दां मददे खुदा।’

दोनों का मतलब एक ही है कि आप हिम्मत कीजिए, मेहनत कीजिए, ईश्वर, भगवान आपकी मदद जरूर करेंगे। तो, साथ-साथ सेवादार भाई भजन सुनाएंगे और साथ-साथ आपकी सेवा में अर्ज करते चलेंगे।

टेक:- जिस काम लिए आए,
वो काम क्यों भूल गए हो तुम।।

1. जन्म अमोलक मिला है तुझको,
प्रभु मिलने की वार।।
अपना काम तूं करता नाहीं,
ढोता काल वगार, क्यों ढोता काल वगार,
विषयों और नशों में,
क्यों करता जीवन अपना गुम। जिस काम…

2. माया पीछे लग कर भाई,
कितने पाप कमाता है।
अंत समय कुछ साथ ना जाए,
यहीं पड़ा रह जाता है,
यहीं पड़ा रह जाता है।
अज्ञान की नींद्र में,
पड़ा क्यों पैर पसार के सम। जिस काम…

3. मोह का संगल पांवों में डाला,
कभी सके ना छूट।
पांच चोर हैं पीछे लगे, पंूजी रहे हैं लूट,
पूंजी रहे हैं लूट
पिता भाई पुत्र माता,
ना आएं अंत समय कोई कम्म। जिस काम…

4. स्वासों का धन खर्च रहा है,
चौबीस हजार है रोज।
जिस काम को मिली थी पंूजी,
वो काम रहा ना खोज, काम रहा ना खोज।
कितना नुक्सान होए,
ना सोचे ना करता है गम। जिस काम…

भजन के शुरू में आया है:

जन्म अमोलक मिला है तुझको,
प्रभु मिलने की वार।।
अपना काम तूं करता नाहीं,
ढोता काल वगार, क्यों ढोता काल वगार,
विषयों और नशों में,
क्यों करता जीवन अपना गुम।

प्रभु, ओ३म, हरि, अल्लाह, खुदा, रब्ब, वाहेगुरु जिसके लाखों नाम हैं, क्या वो है? कई बार इंसान के अन्दर ऐसे विचार आते हैं। महाराष्टÑ में सत्संग हो रहा था, वहां एक नौजवान बच्चे ने यह सवाल किया कि गुरु जी! हमने बुजुर्गाें से सुना है कि ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु है, हमने ग्रन्थों में पढ़ा भी कि ओ३म, हरि, अल्लाह, मालिक है पर वो नजर नहीं आता इसलिए मैं भगवान को बिल्कुल नहीं मानता। हमने उससे कहा कि हमारा तो काम ही भगवान के नाम की चर्चा करना है। हमने कहा, मानना चाहिए बाकी तू अपनी मर्जी का मालिक है। वो कहने लगा, भगवान होता ही नहीं। हमने कहा, ये गड़बड़ हो गई। तू मानता नहीं तेरी मर्जी, अब होता नहीं है, हमारे संत, पीर-पैगम्बरों ने इतने पाक-पवित्र ग्रन्थ बनाए हैं, पढ़ कर देखा, मालिक की दया-मेहर से खुद अनुभव करके देखा तो जिन्होंने अनुभव किया है वो इंकार कैसे कर दे कि वो नहीं होता। कहने लगा, अगर है तो बताओ, कहां है? हमने कहा, वो खिलौना तो नहीं है जो आपके हाथ में रख दें पर आपसे कुछ बातों का उत्तर चाहेंगे फिर बताएंगे वो है और वह कहां है।

कहने लगा, ठीक है। हमने उससे पूछा, आप कितना पढ़े लिखे हैं? उस नौजवान बच्चे ने कहा, मैंने पीएचडी की है। हमने कहा, डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने में कितना समय लगा? उसने बताया शायद जिन्दगी के पच्चीस साल। हमने कहा, इस पच्चीस साल में कभी आपने भगवान अभी इतना ही कहा था कि उसने बात बीच में ही काट दी कि इसका नाम मत लो, मैंने तो कभी इसका जिक्र तक नहीं किया। हमने कहा, भाई! अब तेरे अनुसार जवाब देते हैं। तूने एक पीएचडी की डिग्री लेने के लिए जिन्दगी के पच्चीस साल लगा दिए। कहने लगा, जी बिल्कुल। जो भगवान कण-कण, जर्रे-जर्रे में है उसके लिए तूने एक मिनट भी नहीं लगाया। कहता, सही है। जो डिग्री पच्चीस साल में हासिल हो सकती है तो क्या भगवान के लिए पांच-चार साल लगाने नहीं चाहिए? एक साल के बिना तो बच्चा एक कक्षा पार नहीं करता है।

क्या भगवान एक कक्षा से भी छोटा है? क्या उसके लिए समय नहीं देना चाहिए? कहता, ये तो मैंने कभी सोचा ही नहीं। तो अब सोच ले भाई। जो गुजर गया सो गुजर गया। दुनिया का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं होगा जिसमें मेहनत न करनी पड़ती हो। हमारे ख्याल से पहले कर्म करना पड़ता है, मेहनत करनी पड़ती है, समय देना पड़ता है, परिणाम बाद में आता है पर लोगों का भगवान की तरफ ख्याल थोड़ा उल्टा है। क्या कहने हैं, कोई हमें भगवान दिखा दे हम मान लेंगे कि ये भक्त पूरा है, बाद में भक्ति करेंगे। है न कमाल! पहले भगवान फिर भक्ति किस बात की? कहते फल पहले मिले, मेहनत बाद में जबकि दुनिया का हर क्षेत्र पहले मेहनत फल बाद में इसी थ्योरी पर टिका हुआ है। ये हैरानी होती है और जो ऐसे चमत्कार चाहते हैं उनको चमत्कार दिखाने वाले भी बहुत मिल जाते हैं।

अंदर के विचारों को पाक-पवित्र कर डालिए तो आपका प्रभु आपसे दूर नहीं है। वो तो बिल्कुल पास है। जब तक अन्दर के विचार पाक-पवित्र नहीं होंगे पास होते हुए भी वो आपसे दूर रहेगा। ईश्वर, मालिक है, उसे देखना चाहो तो मेहनत करके देखो, जरूर दिखेगा, कण-कण में नजर आएगा, ऐसा सम्भव हो सकता है परन्तु पैसे से, चढ़ावे से नहीं बल्कि आपको मेहनत, ख्यालों से की गई भक्ति के द्वारा नजर आएगा।

विषयों और नशों में
क्यों करता जीवन अपना गुम।।

विषय-विकार बुरी-बुरी सोच, बुरे विचार इंसान के अंदर चलते रहते हैं। वह बुरे विचार कभी भी इंसान को चैन नहीं लेने देते। बाहर से लगता है कि वो ठीक है लेकिन अंदर विचारों का ताना-बाना ऐसा उलझ जाता है कि इंसान उसे सुलझा नहीं पाता, उसे आधुनिक भाषा में टैंशन और पुरानी भाषा में कहें तो चिंता, परेशानी सताती है। वो धीरे-धीरे बढ़ती है। उसके बढ़ने से बहुत सी बीमारियां जुड़ती हैं और बीमारियों के जुड़ने से राम का नाम तो दूर, इंसान को ढंग से नींद भी नहीं आती क्योंकि चिंता सताती रहती है। इन सभी का इलाज ईश्वर का नाम है। उसे जपकर तो देखिए। कुछ भी नहीं देना, कोई धर्म नहीं छोड़ना, कोई पहनावा नहीं छोड़ना, ऐसा कुछ भी नहीं करना।

बस विचारों से मालिक के नाम का सुमिरन करके देखिए, विषय-विकारों को छोड़िए। नशों में मत पड़ो। नशा कोई भी है, चरस, हिरोईन, समैक, भांग, धतूरा, अफीम, शराब सब बर्बादी का घर हैं। ईश्वर, ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, ,राम ने आपको कंचन जैसा शरीर दिया है। अगर आप नशा करते हैं तो यह नशे का गुलाम हो जाता है, कोहड़ी बन जाता है। नशा करोगे तो चैन है, नशा नहीं करते तो बेचैन रहोगे। नशा बर्बादी का घर है, अब तो वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं और शराब नर्कों की नानी है। इसके बारे में पुराने समय में लिखा हुआ है। कौन से धर्म ने कहा है कि शराब पीनी चाहिए?
इसके बारे में हिन्दू महापुरुषों ने लिखा है:-

शराब नरकों में ले जाने के लिए मां की मां का काम करती है यानि नर्काें की नानी है।
शराब बहुत तरह के नर्क देती है।

आर्थिक नर्क:

नशे से खर्चा होता जाएगा। एक दशा ऐसी हो जाएगी सब खत्म हो जाएगा। पैसे-पैसे के लिए मोहताज हो जाता है।

शारीरिक नर्क:

नशे से शरीर को ताकत नहीं बल्कि बीमारियां ही लगती हैं।

पारिवारिक नर्क:

शराब पीते हैं फिर घर में आकर उल्टियां करते हैं। माता-बहिनों, बेटियों को उस गन्दी बदबू में रहना पड़ता है, उसे साफ करना पड़ता है। ये परिवार वालों के लिए नरक है।

सामाजिक नर्क:

समाज में नशेड़ी रहता है लोग उसका इज्जत सम्मान नहीं करते। पहले ही दरवाजा बन्द कर लेते हैं। ये आ रहा है पता नहीं गालियां बकना न शुरू कर दे। कुछ गलत कहना न शुरू कर दे। कहां इंसान का अदब होना चाहिए, इज्जत होनी चाहिए कि ये तो भगवान का रूप है, कहां समाज के लिए कलंक बन गया।

आत्मिक नर्क:

नशे करता है, बुरे कर्म करता है। कर्माें का फल आत्मा को कुम्भी नरक में भोगना पड़ता है।

इस बारे में इस्लाम धर्म में लिखा है:

शराब का अगर संधिविच्छेद कर दें तो बनता है शर+आब। उर्दू में ‘शर’ कहते हैं शरारत को या शैतान को और ‘आब’ पानी को कहते हैं। हे खुदा की इबादत करने वालो! शराब शैतान का पानी है, पीना मत, वरना की गई इबादत खाक में मिलेगी, दोजख में जलोगे।

ये बात सिक्ख धर्म में भी लिखी है:

पोस्त भंग अफीम मद नशा उतर जाए प्रभात।
नाम खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन-रात।।

पोस्त, भांग, अफीम, शराब ये नशे बेकार हैं। नरकों में ले जाने वाले हैं। सुबह पीओगे तो शाम को उतर जाएंगे और शाम को पीओगे तो सुबह उतर जाएंगे। अरे! नशा ही करना है तो वाहेगुरु, ओ३म, हरि, राम के नाम का करो जिसकी मस्ती कभी नहीं उतरती। उसका नशा करने से अंदर-बाहर की रूहानी तंदुरुस्ती-ताजगी मिलती है।

शायद सिक्ख धर्म को कोई इंसान सोचे, हमें तो मनाही नहीं है क्योंकि ठेके में निगाह मारोगे तो सभी तरह के लोग नजर आएंगे। सभी धर्माें में लगभग नशों पर पाबंदी है। फिर भी लोग नशा नहीं छोड़ते हैं। नशा बर्बादी का घर, बेइज्जती करवाता है।

‘मांस मछुरिया खात है, सुरा पान के हेत।
ते नर जड़ से जाएंगे, ज्यों मूरी का खेत।।’

धर्माें में सन्तों ने लिखा कि मांस-मछुरिया खात है सुरा (शराब) पान के हेत। ते नर संसार से चले जाएंगे कैसे, जैसे मूली-गाजर होती है खेत में से निकाल लो क्या रहता है, कुछ भी तो नहीं। जड़ से निकल जाता है वैसे ही वो जीवात्मा हमेशा काफी समय के लिए, बेअन्त समय के लिए नरकों में अड्डा लगा लेगी यहां पर नहीं आ पाएगी। इसलिए किसी को मत तड़पाओ, किसी को मत सताओ।

आगे आया है:-

माया पीछे लग कर भाई,
कितने पाप कमाता है।
अंत समय कुछ साथ ना जाए,
यहीं पड़ा रह जाता है,
यहीं पड़ा रह जाता है।
अज्ञान की नींद्र में,
पड़ा क्यों पैर पसार के सम।

इस बारे में लिखा है:

गुरु अर्जुन देव जी फरमाते हैं, यदि कोई हजार रुपया कमाता है तब वो लाखों की प्राप्ति की तरफ उठ भागता है उसकी कभी तृप्ति नहीं होती। सदा माया के पीछे मारा-मारा फिरता है अनेकों भोगों को भोग-भोग कर वो तृप्त नहीं हो सकता बल्कि खप-खप कर मरता है। ये सब मार-धाड़ स्वप्न की तरह गुजर जाती है, लाभ कुछ नहीं होेता।

माया के दो रूप हैं। एक तो प्रकट आप जानते ही हैं जाहिरा पैसा, जमीन-जायदाद, कोठियां-बंगले, बगीचे, गाड़ियां, ऐशो-आराम का सामान है। दूसरा सूक्ष्म पर्दा जो आंखों पर पड़ा हुआ है।

वैसे तो बताते हैं आंख भी उल्टा देखती है। सीधा दिखाती है पर वो माया के पर्दे ने बिल्कुल उल्टा बना रखा है। दुनिया में जो सच है उसको ये पर्दा उल्टा करके दिखाता है। माया का पर्दा यानि झूठ और जो झूठ है उसे सच की अनुभूति कराता है। हमने धर्मों में पढ़ा, हमारे धर्मों में लिखा है कि आंखों से आप जो भी बाहर देखते हैं सब नाशवान, तबाहकारी, फनाहकारी है यानि झूठ है, कुछ भी साथ जाने वाला नहीं है। किसी को भी देख लो इस सामान के पीछे पागल होकर घूम रहे हैं। सभी धर्मों में लिखा है कि ये सब झूठे हैं इससे प्यार मत करना वरन् आखिरी समय में तड़पोगे क्योंकि साथ कुछ नहीं जाएगा।

सच ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, खुदा-भगवान ये ऐसा सच है जो कभी भी झूठ नहीं हो सकता। तीनों कालों भूतकाल, वर्तमान, भविष्य में सच था, है और सच रहेगा। अगर कोई फकीर राम-नाम की चर्चा करे तो लोग कहते हैं ये तो फिजूल की लैक्चरबाजी चल रही है। राम-नाम में घण्टा, दो घण्टे बैठना ऐसा लगता है जैसे कैद में बैठे हों, बेचारे कभी पहलू बदलते हैं, कभी कोई बहाना बनाते हैं, कैसे समय पास होगा! बड़ा मुश्किल हो गया। दूसरी तरफ कहीं फिल्म में बैठे हों, सर्कस-सिनेमा, मेला-मुजरा हो, बुद्धू बनाया जा रहा है, पैसे देकर बुद्धू बनते हैं, पास से पैसा दिया साथ में कहते लो हम बुद्धू बनने को तैयार हैं। यानि वहां सच कुछ भी नहीं होता,

हकीकत तो कुछ भी नहीं, सब दिखावा होता है, मेहनत थोड़ी-बहुत मान सकते हैं लेकिन ये कोई मेहनत नहीं है। तो भाई उसे देखते हैं, साढे तीन घण्टे देते हैं। खाना भी खाना भूल जाते हैं, जहां कोर है कई बार तो वहीं रह जाती है, मुंह में नहीं डालते, क्या हुआ, किधर गया और दूसरा अगर उठ कर जाने लगे तो उसका बाजू पकड़ के बैठाते हैं अरे, बैठ! ये सीन चला गया तो मजा किरकिरा हो जाएगा। वो झट से बैठ जाता है और इधर राम-नाम में घण्टा, दो घण्टे बैठना पड़ जाए, जैसा आपको बताया, कभी कहता हवा तंग है, पानी पीना था, गला सूख रहा है गला तो सूखेगा ही क्योंकि हकीकत सुन रहा है, सच्चाई सुन रहा है। तो वहां परेशानी होती है।

तो भाई! इसी का नाम कलियुग है। काल का समय। यहां राम-नाम में बैठना फिजूल लगता है। वो ही माया का पर्दा फिजूल चीज दिखाता है और झूठी बातें देखना उसमें रुचि पैदा करता है। लोग उसमें खोए रहते हैं। वो सब झूठ है। ये माया के पर्दे का काम है। ये राम-नाम से उतर सकता है। दूसरी माया रुपया पैसा। आज अगर सही मायने में कहें तो दीन, ईमान, मजहब, धर्म अधिकतर लोगों का अगर कोई है वो रुपया-पैसा है। कुछ लोग होंगे जो वाकई धर्म को मानते हैं, अच्छे संस्कार हैं, मालिक को मानने वाले हैं उन पर दया-मेहर है पर अधिकतर लोगों को, आप देखो सोते पैसा, जागते पैसा, खाते पैसा, लेटते पैसा, बस पैसा ही पैसा। आखिर में वो ही चारपाई होगी, कपड़े तब उतार लेंगे जो बढ़िया-बढ़िया पहनता है। हमने कहा, ये क्यों नहला रहे हो ? कहते, जी ! ये तो एक रीत है कि मुर्दे को नहलाया जाता है।

हमने कहा कि हम भी देखते हैं कैसे नहलाते हैं। हमें क्या लगा वो आपको बताते हैं आपको क्या लगा ये आप जाने। हमने जो अपने ख्यालों से देखा, नहलाने के बहाने एक तो उनके गले से जो सोने के गहने थे वो उतार लिए, दूसरी बात, बढ़िया कीमती-कीमती कपड़े उतार लिए। अंगूठियां उतार ली, घड़ी उतार ली, बुजुर्गों के तागड़ी बंधी होती है, मोती से होते हैं, पुराने बुजुर्ग पहनते वो भी तोड़ दी। जब घड़ी उतारने लगे, हमने कहा, घड़ी क्यों उतार रहे हो ? कहते, इसमें पानी पढ़ जाएगा। अरे! मुर्दे ने टाईम देखना है क्या ? घड़ी में पानी पड़ गया तो क्या होगा।

वो तो बाद में पता चला घड़ी में पानी नहीं पड़ने देते। क्यों, बाद में खुद काम में लेनी है। मुर्दा तो काम में नहीं आ सकता जलाना ही जलाना है। कपड़े उतार लिए गए, फिर नहला दिया गया और एक सादा सा कपड़ा जिसे लट्ठा या खद्दर कहते हैं, सूती कपड़ा बिल्कुल सस्ता, वो भी पूरा सिला हुआ नहीं। अच्छी तरह से क्रीज नहीं किया हुआ। फिर एसी गाड़ी पर थोड़ा ही जाना, चार लोगों के कन्धों के ऊपर-नीचे होता हुआ वहां पहुंचता है जहां स्वागत के लिए तैयारियां हैं, आड़ी-तिरछी लकड़ियां वहां पड़ी हुई हैं। उसके ऊपर लिटा दिया जाता है। कोई मखमल के गद्दे नहीं बिछे होते। ऊपर लकड़ियां रख दी जाती हैं। फिर कोई घी डालता है ताकि किसी को ये न लगे कि हम बुजुर्गाें को कुछ देते नहीं थे। जीते-जीअ चाहे बेचारे को सूखी रोटी न मिली हो, ऊपर घी डालते हैं। कहते, आग अच्छी तरह से लग जाएगी। मिट्टी का तेल डाल देते हैं, कई पट्रोल डाल देते हैं अलग-अलग हैं, कुछ भी डालो और फिर वो जो सबसे प्यारा, आपका बड़ा जिसके लिए ढोल-ढमाके बजाए थे, वो वाला बेटा, वही चिता को आग लगाता है। रीत है।

पर हमने तो देखा भाई ! किसके लिए मोह किया, किसके लिए तड़पा ? अरे ! वो साजो-सामान सब धरा-धराया रह गया। वो सबसे ज्यादा जो प्यारा बेटा था उसने वो काम-तमाम कर दिया, धरती में दफना दिया या चिता को आग लगा दी। अजी ! और तो क्या जाना है, वो शरीर जो माता के गर्भ से सभी के साथ आता है, उसको भी जलाकर राख कर दिया जाता है या धरती में दफना दिया जाता है। फिर कौन-सी चीज है जो आपके साथ जाएगी जब ये शरीर ही नहीं जाएगा। ये सच है ये बात जो आपको बताई लेकिन फिर भी विश्वास नहीं है। माया के लिए इंसान पागल होकर घूमता है। यही वजह है कि लोग दु:खी, परेशान हैं। हम ये नहीं कहते कि पैसा नहीं कमाओ, जरूर कमाओ, जितना मर्जी कमाओ पर धर्मों के अनुसार मेहनत, शारीरिक या दिमागी मेहनत करके खाओ।

किसी का हक कभी न मारो। श्री गुरु नानक देव जी के समय हिन्दू और मुसलमान उनके शिष्य थे। दोनों बैठे हुए थे। श्री गुरु नानक देव जी से उन्होंने अर्ज कि गुरु जी, मेहनत, हक-हलाल पर सुनाओ। गुरु नानक देव जी महाराज ने कहा कि सुनाएंगे अमल करना। कहने लगे, जरूर करेंगे।

गुरू नानक देव जी महाराज हिन्दू भाइयों को, मुसलमान भाइयों को क्या कहते हैं:

हक पराया नानका उस सूअर उस गाय।।
गुर पीर हामा ता भरे जा मुरदार ना खाए।।

हक पराया हिन्दू के लिए ऐसा है जैसे गऊ का मांस और मुसलमान के लिए ऐसा जैसे सूअर का मांस है। जो किसी का हक मार के खाते हैं वो मुरदार खाते हैं। कोई गुरु, पीर यहां-वहां उसकी हामी नहीं भरेगा। मालिक की दरगाह में उसकी हाजिरी नहीं लगवाएगा। तो भाई! मेहनत से कमाइए, मालिक की दया-मेहर भी होगी और भगवान की याद भी आएगी। पाप-जुल्म की कमाई जितनी बढ़ती है घर से चैन, शांति, आनन्द, लज्जत, खुशियां, प्यार-मुहब्बत सब दौड़ते चले जाते हैं। निरोग काया रोगी बन जाती है।

माया होई नागनी, जगत रही डहकाय।
जो इसकी सेवा करे, उसको ही ये खाए।।

नाग को कोई दूध पिलाए क्या पता कब डंक चला दे। कुछ खिलाएं क्या पता कब डंक चला दे। वैसे ही पाप की कमाई है। संतों ने यही लिखा कि जैसे आती है वैसे ही चली जाती है। जाते समय पीड़ा छोड़ जाती है। लोग तड़पते रहते हैं। इसलिए किसी के मुंह का निवाला छीन कर अपना पेट मत भरो वरना वो अमृत, हरि-रस का काम नहीं, धीमे जहर का काम करेगा। जो खाएगा वो भरेगा जरूर।

आगे आया है:

मोह का संगल पांव में डाला,
कभी सके ना छूट।
पांच चोर हैं पीछे लगे, पूंजी रहे हैं लूट,
पूंजी रहे हैं लूट
पिता भाई पुत्र माता,
ना आए अंत समय कोई कम्म।

इस बारे में लिखा है

बाल-परिवार का मान करने वाले आंखें खोल कर देखें। बाल-बच्चों को देखकर उनके मोह में फंस जाएं और उनकी मीठी-मीठी बातों में मस्त होने की क्या कीमत है। वो एक रात के मेहमान की तरह है जिसने प्रभात होते ही चले जाना है।

संतों ने मोह-ममता किसे कहा है? अपने बच्चों को प्यार करना, सही रास्ता दिखाना, ये मोह की सीमा में नहीं है। ये तो आपका कर्तव्य है, फर्ज है पर उनके मोह-प्यार में उनकी गलतियों को नजरअंदाज करना, उनकी बुराइयों को नजरअंदाज करना, सबसे बड़ी बात उनके मोह-प्यार में फंस कर अपने ओ३म, हरि, वाहेगुरु, राम को नजरअंदाज करना ये मोह कहलाता है। ऐसे मोह में जो फंस जाते हैं वो निकल नहीं पाते, छूट नहीं पाते। मोह के इतने बारीक तंद, रस्सियां हैं, इंसान को इतने जबरदस्त तरीके से जकड़ लेती हैं कि वो छूट नहीं पाता पर ये रस्सियां नजर नहीं आती।

तो भाई, मोह-ममता में पड़कर समय बर्बाद करने का क्या फायदा! कई बार देखा है बुजुर्ग, अल्लाह, राम के नाम में समय नहीं लगाते। अपने पोते-नातियों को जब वो हँसा रहे होते हैं तो कोई कार्टून बनाने की जरूरत नहीं, उनको देख लें। आप कितनी तरह का मुंह बनाते हैं। बुरा मत मानें, बनाओ, हम रोकते नहीं। यहां हमारे कहने का तात्पर्य यह है कि कभी राम को रिझाने के लिए भी इतना समय लगा लिया करो। अल्लाह, वाहेगुरु को रिझाने के लिए भी समय लगा लिया करो। बच्चों के लिए मुंह को पता नहीं छत्तीस प्रकार का घुमाते रहते हैं ताकि वो बच्चा मुंह देखकर हँस पड़े। इतना जोर अगर राम के लिए लगा लो तो यकीन मानिए, राम की दया-मेहर आप पर जरूर बरसेगी। आप उसके लिए तो समय देते ही नहीं। इसको मोह कहा जाता है कि मोह में फंसे हुए आप अपने ईश्वर, मालिक को भुला देते हो।

आगे आया है:

स्वांसों का धन खर्च रहा है,
चौबीस हजार हैं रोज।
जिस काम को मिली थी पूंजी,
वो काम रहा न खोज, काम रहा न खोज
कितना नुक्सान होए,
ना सोचे ना करता है गम।

रोजाना के चौबीस हजार स्वास जाते हैं और चौबीस हजार रुपया रोज चला जाए तो शायद कोई पागल हो जाए। आधा पागल कोई पूरा पागल, किसी को हार्ट अटैक भी हो सकता है। कोई दुनिया से पार भी हो सकता है पर रोजाना चौबीस हजार स्वास जाते हैं कभी इस बारे में सोचा है? इसका मोल तभी पड़ेगा अगर आप इन स्वासों से कुछ न कुछ राम-नाम का वणज-व्यापार करेंगे।

पहले संस्कृति बहुत ही अच्छी थी। उसमें प्यार, मोहब्बत था आज तो मतलब से मतलब है। आपको गर्ज है तो आपको नमस्कार सुनने को मिलेगा। किसी बड़े महानगर में जाइए आपने नमस्कार कर दिया या कैसे भी तो वो पूछता है, बोल क्या चाहिए? नमस्कार का जवाब नमस्कार में नहीं देता क्योंकि उसे लगता है कि इसने नमस्कार किया है जरूर इसे कोई न कोई स्वार्थ होगा। तो इस का नाम कलियुग है। दिन-ब-बिन भयानक होता जा रहा है। बुराई बढ़ती जा रही है, हाथ को हाथ खाए जा रहा है। इसमें अच्छे नेक लोग बचे हैं जो भगवान को मानते हैं, जिन पर भगवान की दया-मेहर है। वरन् इस युग में बुराई का बोलबाला अधिक है, चाहे कहीं भी नजर मारें। तो भाई! स्वासों को इन फिजूल के धन्धोें में फिजूल की बातों में मत लगाइए बल्कि मालिक की याद में लगाइए ताकि आपको सच्चा सुख, आनन्द मिल सके।

स्वासों का धन खर्च रहा है,
चौबीस हजार हैं रोज।
जिस काम को मिली थी पूंजी,
वो काम रहा न खोज, काम रहा न खोज
कितना नुक्सान होए,
ना सोचे ना करता है गम।।

इन बातों का गम है पर मालिक की याद के बिना समय गुजार गया उसकी गम-चिंता किसी को नहीं है। जो उसका गम करता है वो हमेशा के लिए बे-गम हो जाता है। हमेशा के लिए शान्ति आत्मिक शान्ति को हासिल कर लेता है और जीवन को ऐसे गुजारता है जैसे स्वर्ग-जन्नत से बढ़ कर गुजार रहा हो।
भाई! थोड़ा-सा भजन रह रहा है उसके बाद फिर से आपको बताएंगे।

5. चला जाए जब जन्म हाथ से,
फिर मुश्किल से पाए।
नाम का सुमिरन करके भाई,
प्रभु को ले रिझाए, प्रभु को ले रिझाए।
’गर लाभ उठाया ना,
रोएगा फिर खड़ा छम-छम। जिस…..

6. किए कर्मों का हिसाब है होगा,
धर्मराज के पास।
धर्मराज का सुन के फैसला,
रोएगा मन उदास, रोएगा मन उदास।
फिर कोई छुड़ाए ना,
पकड़ ले जाए नरक में यम। जिस…

7. कहें ‘शाह सतनाम जी ’ऐसे जन्म का,
क्यों ना लाभ उठाए।
सत्संग आए नाम जपे
‘गर काल से है बच जाएं,
काल से है बच जाएं।
काम अपना कर जाता,
हो जाती चौरासी जेल खत्म।
जिस काम…

भजन के आखिर में आया है:

चला जाए जब जन्म हाथ से,
फिर मुश्किल से पाए।
नाम का सुमिरन करके भाई,
प्रभु को ले रिझाए।
‘गर लाभ उठाया ना,
रोएगा फिर खड़ा छम-छम।

शरीर इंसान का बहुत ही दुर्लभ है। एक बार अगर चला जाता है तो दोबारा ये वापिस नहीं आता।

कबीर जी ने लिखा है:

कबीर मानस जन्मु दुलंभु है होइ न बारैबार।
जिउ बन फल पाके भोइ गिरहि
बहुरि ना लागहि डार।।

जैसे वृक्ष की टहनी से फल पक कर धरती पर गिर जाता है वो पका हुआ फल दोबारा टहनी से नहीं लग सकता। उसी तरह से हे जीवात्मा ! इंसान का शरीर जो तुझे मिला है ये प्रभु को पाने के लिए पका हुआ फल है। अगर एक बार तेरे हाथ से ये शरीर चला गया तो यह बार-बार नहीं आएगा।

कई जगह पूर्नजन्म (दोबारा जन्म) की घटना होती है। ये कैसे सम्भव है? रूहानियत इस बात को मानती है कि ऐसा हो सकता है।

एक कारण वो इंसान जो प्रमु की सत्संग सुनता है और उसके अन्दर ख्याल हो जाता है कि मैंने भी प्रभु को पाना है, तड़पने लगता है पर उसे रास्ता नहीं मिल पाता। इतने में समय पूरा हो जाता है, उसकी मौत हो जाती है। वो प्रभु-की याद में तड़पता हुआ चला जाता है तो प्रभु दया का सागर, रहमत का दाता कहलाता- है, वो अपने मिलने का एक और अवसर यानि इंसान का शरीर उस आत्मा को दे देता है।

दूसरा कारण, कोई रूहानी पीर-फकीर जो मालिक से एक हो चुका है और उसका उस आदमी से सामना हो गया और उस आदमी के अंदर भी लगन जाग उठी कि मैंने मालिक को याद करना है तो इसकी वजह से भी प्रभु, भगवान उसे फिर से एक और मौका अपने मिलने का दे सकते हैं परन्तु यह अरबों-करोड़ों में कहीं एक-आध होता है। सबके साथ ऐसा नहीं होता। वैसे तो भाई चौरासी लाख शरीरों में भ्रमते ही यह शरीर मिलता है। यह अवसर बहुत ही अच्छा मिला है कि आप प्रभु का सुमिरन करके उसका दर्श-दीदार कर सके, अपने अन्दर की खोज कर सकें, बाहर तो इंसान बहुत खोज रहा है, अपने अंदर ध्यान के द्वारा चढ़ाई करके देखिए, जिसके करते समय शरीर पर कोई दबाव नहीं पड़ता। जितना आप राम-नाम में बैठोगे, उतना ही आपका शरीर तंदुरुस्त होगा, दिमाग ताजा होगा और मालिक की दया-मेहर से आपको अंदर से परमानंद की प्राप्ति होगी। ये आप पर निर्भर है, आप अमल करते हैं या नहीं। अगर लाभ न उठाया तो फिर से आत्मा को जन्म-मरण में जाना पड़ता है, फिर सिवाए पश्चाताप के कुछ हासिल नहीं होता।

फिर पछताए होत क्या,
जब चिड़िया चुग गई खेत।।

उदाहरण के तौर पर जैसे खेत में पहले रखवाली नहीं की तो चिड़ियां आती गर्इं वो खेत को खाती गर्इं आखिर में जब बिल्कुल खाली हो गया तो फिर रोता-पछताता है। पहले तो सम्भाल की नहीं। तो भाई! स्वास फालतू के धन्धों में लगा कर जब बर्बाद कर लेता है, जब मौत आती है फिर पछताता है कि मेरे साथ तो कुछ भी नहीं जा रहा, मैं क्या करूं, कैसे मेरे साथ कोई जा सकता है? फिर तो स्वास कम रह गए, शरीर साथ नहीं देता तो राम का नाम तो आप जप नहीं पाते, कैसे पार जाओगे। फिर पश्चाताप के अलावा कुछ भी हासिल नहीं होगा। इसलिए समय का पता नहीं, समय की कदर करो। आज जो समय है वो आपका अपना है आने वाला समय काल के गर्भ में छुपा हुआ है, पता नहीं आपके लिए कैसे? जो बीत गया उसके लिए रोने का कोई फायदा नहीं, बीत गया सो बीत गया। कम से कम जो रह रहा है उसमें तो प्रभु, मालिक को याद करो ताकि रहने वाला समय व्यर्थ में न चला जाए। तो भाई! जब भी चेता जाए, जपा जाए वो ही समझो समय बढ़िया है, ईश्वर को याद कीजिए।

किए कर्मों का हिसाब है होगा,
धर्मराज के पास।
धर्मराज का सुन के फैसला,
रोएगा मन उदास, रोएगा मन उदास।
फिर कोई छुड़ाए ना,
पकड़ ले जाए नरक में यम।

जैसे यहां कर्म करते हैं वैसा आगे हिसाब-किताब जरूर होगा। जो मरने के बाद जिन्दा हुए उन लोगों ने लगभग अधिकतर ने यही बताया कि हमें दो कुरूप आदमी वहां ले गए जहां एक आदमी बैठा था। उसने हिसाब-किताब करना अभी शुरू ही किया था कि जैसे ही नाम देखा तो वो कहने लगा नहीं, इसका तो अभी समय नहीं हुआ अभी चार साल और जीएगा, पांच साल जीएगा, इसे वापिस भेजो। ऐसा ही किसी दूसरे नाम वाला है, उसे लेकर आओ। वहां उसने देखा कि बहुत सारे ऐसे लोगों का हिसाब-किताब चल रहा है। ये बिल्कुल सच है।

हिन्दू धर्म और सिक्ख धर्म में लिखा है कि धर्मराज हिसाब-किताब लेता है। मुसलमान फकीर कहते हैं कि दरगाह में हिसाब-किताब लिया जाएगा। यह सच है मानो चाहे न मानो। वहां कोई अपील नहीं चलती, वहां जैसा आपने किया आपके सामने होगा। जैसे स्क्रीन पर सब कुछ दिखा देते हैं चित्रगुप्त वो ही जो आजकल ये सामने कैमरा मूवी बना रहा है तो वो भी सबकी मूवी बनाता है। बिल्कुल जीवित, ये तो कैसेट डालोगे चलेगा और उसी में बन्द है। वो जीवित बिल्कुल आप क्या कर रहे थे, कहां क्या-क्या चल रहा था, वो सारा मामला आपके सामने होगा। आपको दिखा दिया जाएगा कि ये देखें आप क्या कर रहे हैं। आप वहां बदल नहीं पाएंगे। आप जैसा करोगे वैसा भरना होगा, जैसा बोओगे वैसा काटना होगा। इसलिए कोई बुरा कर्म न करो ताकि इस जीवन में और आगे आपको शर्मिन्दगी न उठानी पड़े।

इस बारे में लिखा है:

मालिक के हुक्म अनुसार धर्मराज प्राणियों से उनके अच्छे और बुरे कर्मोें का मरने पर हिसाब-किताब मांगता है और उनके अनुसार फल देता है। पापियों के लिए नरक है और पुण्य-आत्मा, धर्मी-कर्मीं जीवों के लिए स्वर्ग है। इनकी मुनियाद जब पूरी हो जाती है तो जीव फिर चौरासी के चक्कर में जूनेें भोगने लग जाता है। उसका नाम धर्मराज है, क्यों जो वो धर्म का न्याय करता है।

भजन के आखिर में आया है:

कहें ‘शाह सतनाम जी’ ऐसे जन्म का,
क्यों ना लाभ उठाएं।
सत्संग आए नाम जपे
’गर काल से है बच जाएं,
काल से है बच जाएं
काम अपना कर जाता,
हो जाती चौरासी जेल खत्म।।

आखिर में वो तरीका, युक्ति के बारे में जिक्र आया है जिससे आप प्रभु-मालिक को पा सकते हैं। वो तरीका कौनसा है? मालिक सतगुरु की दया-मेहर से जो अजमाया बहुत लोगों ने करके देखा वो तरीका न कोई पैसा देना, न धर्म छोड़ना, न जंगलों में जाना, अपने घर-परिवार में रहते हुए आप उसे कर सकते हैं।

हिन्दू धर्म में लिखा है:

कलियुग में केवल नाम आधारा,
सुमिर-सुमिर नर उतरो पारा।।

कलियुग के भयानक समय में आत्मा का कोई आधार या उद्धार करने वाला है तो वो प्रभु का नाम है। न ढोंग, न दिखावा, न कुछ बाहरी लेप लगाने की जरूरत, शब्दों को दोहराइए ख्यालों से दोहराओ तो सर्वाेत्तम है। ‘सुमिर-सुमिर नर उतरो पारा।’ हे प्राणी! अगर उस नाम का सुमिरन करेगा, अभ्यास करेगा यहां-वहां दोनों जहान में गम, चिंता, परेशानियों, आवागमन से पार उतारा हो जाएगा।

सिक्ख धर्म में आता है:

अब कलू आईओ रे।।
इकु नामु बोवहु बोवहु।।
अन रूति नाही नाही।।
मतु भ्ररति भूलहु भूलहू।।

अब कलू आइओ रे, कलयुग का समय आ गया है, ऋतु आ गई है। इस ऋतु में शरीर रूपी धरती में कोई बीज डाल कर फल-फूल सकता है वो वह वाहेगुरु का नाम, राम का नाम है। ‘अन रूति नाही नाही’ और किसी चीज की ऋतु नहीं है भ्रम-भुलेखे में मत रह जाना।

मुसलमान फकीरों ने लिखा है:

अल्लाह के रहमो-करम के चाहवान बन्दे! अगर उसके रहमो-करम का हकदार बनना चाहता है तो सच्चे दिल से उसकी इबादत, कलमा अदा कर। अगर सच्चे दिल से उसकी इबादत, कलमा अदा करोगे तो उसकी रहमो-करम के हकदार जरूर बन पाओगे। यही बात इंग्लिश रूहानी फकीर लिखते हैं:-

इफ यू वान्ट टू सी द गॉड, इफ यू वान्ट टू टाल्क द गॉड, दैन रिपीट दी गॉडस् वर्डस्, ट्राई ऐण्ड ट्राई अगेन, दैन यू गोर्इंग वैरी डीप स्लीप प्वांर्इंट, दैन यू सी द गॉड, दैन यू टाल्क द गॉड।

भाषा का अन्तर है। कहने का अन्दाज अलग है, बात वो ही है कि अगर आप भगवान को देखना चाहते हैं तो उसके वर्डस् यानि शब्दों को दोहराइए, कोशिश जारी रखो फिर आप गहरी निंद्रा में पहुंच पाएंगे। जिसे हिन्दू और सिक्ख धर्म में दसवां द्वार, तिल कहा है। मुसलमान फकीर महराब कहते हैं कि आप वहां पहुंच पाएंगे जहां ध्यान आपका जम जाएगा, दुनिया की तरफ से शून्य हो जाएगा। वहां पहुंचते ही आपकी आत्मा जो है वो अन्दर ही अन्दर चढ़ाई करेगी और आप ईश्वर के दर्श-दीदार कर पाएंगे, दया-मेहर के काबिल बन पाएंगे।

यह आसान सा तरीका है कुछ भी करना नहीं, कोई लम्बी चौड़ी बात नहीं । वो नाम को दोहराइए तो मालिक की दया-मेहर के काबिल बन सकते हैं।

तुलसी जी ने भी लिखा है:

है घट में सूझे नहीं, लाहनत ऐसी जिन्द।
तुलसी इस संसार को, भया मातिया बिन्द।।

वो भगवान तो शरीर में है, कण-कण में है पर फिर भी समझ नहीं आती, दिखता नहीं। ‘तुलसी इस संसार को, भया मोतिया बिंद।।’ मोतिया बिंद का तो डाक्टर आॅप्रेशन कर देते हैं ठीक हो जाता है लेकिन ये जो मोतिया बिंद है राम-नाम की दवा से ही हटता है। तभी भगवान के दर्श-दीदार हो पाते हैं। बाहरी आॅप्रेशन से नहीं। तो भाई! ईश्वर को अगर आप पाना चाहें न पैसा दो, न दान-दक्षिणा दो क्योंकि वो तो देता है, आपको गारन्टी देते हैं, जिसे ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड कहते हैं वो दाता था, दाता है और दाता ही रहेगा। वो मंगता नहीं हो सकता। उसका नाम लेकर खाने वालों की कमी नहीं है।

अगर आप उसे पाना चाहते हैं, दया-दृष्टि हासिल करना चाहते हैं तो उसके नाम का सुमिरन करें तो उसकी दया-मेहर, रहमत के काबिल आप जरूर बन पाएंगे।

—-***—-

सच्ची शिक्षा हिंदी मैगज़ीन से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें FacebookTwitter, LinkedIn और InstagramYouTube  पर फॉलो करें।

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here
Captcha verification failed!
CAPTCHA user score failed. Please contact us!