‘तू ज्योंदा ही मत्थे लग गया…’ -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज की दया-मेहर
प्रेमी शगुन लाल इन्सां पुत्र सचखण्डवासी श्री पाली राम जी, निवासी श्री गंगानगर (राज.) से पूजनीय बेपरवाह सार्इं शहनशाह मस्ताना जी महाराज की अपने पिता श्री पाली राम पर हुई रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है:
लगभग सन् 1956-57 की बात है। एक बार पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज श्री गंगानगर के नजदीक गांव चक नारायण सिंहवाला पधारे हुए थे। तब उन दिनों पूजनीय शहनशाह जी काफी दिन तक वहां पर ठहरे थे। पूजनीय सार्इं जी ने वहां पर अपने कई रूहानी सत्संग फरमाए। सत्संग सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे और रात को 8 बजे से प्रात: 2-3 बजे तक चलता था। उसके बाद दाता जी अधिकारी जीवों को नाम की अनमोल दात बख्श देते और कई बार ये वचन कर देते कि नाम बाद में मिलेगा। मेरे पिता के बिना हमारा बाकी पूरा परिवार सत्संग में जाया करता था।
सत्संग की समाप्ति के बाद रात को करीब 3-4 बजे जब हम सभी परिवार के सदस्य वापिस घर आते, तो मेरे पिता सारे परिवार को डांटते कि तुम्हारे बाबे (सार्इं मस्ताना जी महाराज) ने बहुत परेशान कर रखा है। लेकिन हम सभी परिवार वाले और हमारे पड़ोसी भी मेरे पिता जी को समझाते कि तुम भी सत्संग में जाया करो। बार-बार कहने पर एक दिन वह भी सत्संग में चले गये। सत्संग की समाप्ति पर पूजनीय बेपरवाह सार्इं जी ने वचन फरमाए कि अब नाम मिलेगा। परिवार के हम सभी लोग उन्हें कहने लगे कि आप भी नाम ले लो। लेकिन वह गुस्से में भड़क गये और हमसे लड़ने लगे कि ऐसे बाबे दे ज्योंदे-जी मत्थे ना लग्गां। और ऐसा बोलकर वह वापिस अपने घर श्री गंगानगर आ गए।
उक्त घटना के एक-दो दिन बाद पूजनीय शहनशाह जी अपनी जीप में गांव चक नारायण सिंह वाला से गांव बुधरवाली जा रहे थे। जब जीप गांव लायलपुर बाग के पास पहुंची तो आगे से मेरा छोटा भाई जग्गू शहनशाह जी के दर्शन करने के लिए गांव चकनारायण सिंहवाला जा रहा था। जग्गू ने पूजनीय शहनशाह जी को नमन किया। पूजनीय शहनशाह जी ने जीप को रुकवा लिया। आप जी ने जग्गू से पूछा कि ‘तू बुधरवाली चलेगा?’ वह बोला कि जी, सार्इं जी, ले चलो जी और वह शहनशाह जी के साथ बुधरवाली पहुंच गया। परंतु घर में किसी को भी पता नहीं था। स्कूल-टाईम के बाद जग्गू घर नहीं पहुंचा तो पूरा परिवार परेशान हो गया। चिंता में सभी ने जग्गू की हर जगह तलाश की, मगर वह कहीं भी नहीं मिला।
अचानक सतगुरु जी ने परिवानजनों को ख्याल दिया कि सार्इं जी आज बुधरवाली गए हैं, शायद जग्गू भी वहीं चला गया हो! यह ख्याल आने के बाद कुछ राहत महसूस हुई, लेकिन पूर्ण जानकारी ना मिल पाने के कारण वह पूरी रात चिंता में गुजर गई। सुबह होते ही पहली ट्रेन से मेरे पिता जी बुधरवाली के लिए चले गए। ट्रेन तब बनवाली रेलवे स्टेशन पर रुकती थी और वहां से बुधरवाली तक पैदल ही जाना पड़ता था। काफी संख्या में साध-संगत बुधरवाली दरबार में जा रही थी और मेरे पिता जी भी उन्हीं (साध-संगत) के साथ दरबार की तरफ चल दिये।
वो पूजनीय सार्इं जी के दर्शनों के लिए नहीं, बल्कि अपने बेटे की तड़प और उसकी खोज में जा रहा था। वह अन्य साध-संगत से पहले ही बुधरवाली पहुंच गए। पूजनीय शहनशाह जी उस समय रेलवे लाइन के साथ-साथ चहल-कदमी कर रहे थे। पूजनीय शहनशाह जी ने मेरे पिता जी को देखते ही वचन फरमाया कि ‘तू तां ज्योंदा ही मत्थे लग गया!’ अंतर्यामी सतगुरु जी के पवित्र मुख से वो ही बात जो उसने (मेरे पिता जी ने) खुद ही कही थी, सुनकर व पूजनीय शहनशाह जी की दया-दृष्टि से उनका मन अहंकारी मोम की तरह पिघल गया और वह बहुत शर्मिंदा हुए।
उन्होंने पूजनीय बेपरवाह शहनशाह जी को नमन किया और दोनों हाथ जोड़कर बड़ी ही नम्रता से पूछा कि बाबा जी, जग्गू यहीं पर है? इस पर सार्इं जी ने फरमाया कि हां, यहीं पर है। पूजनीय बेपरवाह जी के पावन वचनों में इतनी जबरदस्त कशिश थी कि मेरे पिता जी को पूजनीय बेपरवाह जी पर दृढ़ विश्वास हो गया। वहां पर मेरे पिता जी ने पूजनीय शहनशाह जी का मस्ती भरा रूहानी सत्संग भी सुना और नाम की अनमोल दात भी ग्रहण कर ली। वह शहनशाह जी की मधुर वाणी व पावन दर्शनों से ऐसा निहाल हुआ कि मानो उसे इस जहान की कोई होश ही नहीं थी।
सत्संग की समाप्ति के बाद अपने घर आने पर मैंने अपने पिता (पाली राम जी) से जग्गू के बारे में पूछा कि जग्गू मिल गया क्या? इस पर वह बोला कि ‘वो तो रब्ब है!’ मैंने फिर पूछा कि जग्गू कहां है, वह कहीं मिला क्या? तब वह बोला कि मुझे नाम मिल गया है। मैंने तीसरी बार थोड़ा गुस्से में तेज आवाज में पूछा कि मैं आपसे जग्गू का पूछ रहा हूं कि वो कहां है? तब उन्होंने (मेरे पिता ने) कहा कि हां! जग्गू बुधरवाली में ही है। वह बाद में आएगा।
इस प्रकार सच्चे पातशाह बेपरवाह सार्इं शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने भाग्यहीन यानि अभाग्यशाली उस जीव को अपनी अपार दया-मेहर से भाग्यशाली बना दिया। मेरा पिता (पाली राम जी) ताउम्र यानि जब तक वह जीवित रहे, डेरा सच्चा सौदा का दृढ़ विश्वासी श्रद्धालु बना रहा। अब तो वह अपने सतगुरु जी से ओढ़ निभा गए हैं। पूजनीय बेपरवाह जी के तीसरे स्वरूप यानि पूज्य मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां (डॉ. एमएमजी) के पावन चरण-कमलों में अरदास है कि अपनी दया-मेहर रहमत इसी तरह हम पर बनाए रखें और हमारे पूरे परिवार का आप जी में तथा डेरा सच्चा सौदा के प्रति दृढ़ विश्वास बना रहे जी।































































