102वें पावन अवतार दिवस (25 जनवरी) पर विशेष , भागां भरी ये 25 जनवरी सतगुरु शाह सतनाम जी पधारे
शाही स्टेज सजाई गई थी। बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज ने पवित्र मुख से वचन फरमाया, ‘आज से असीं सरदार सतनाम सिंह जी को अपना स्वरूप बना लिया है। ये वोही सतनाम है जिसे दुनिया जपदी-जपदी मर गई। असीं इन्हें अपने दाता सावण शाह सार्इं के हुक्म से अर्शांे से लाकर तुम्हारे सामने बिठा दिया है। जो इनके पीठ पीछे से भी दर्शन कर लेगा वो नर्काें में नहीं जाएगा। उसका भी उद्धार ये अपनी रहमत से करेंगे।’
संतों का सृष्टि पर आगमन अति सुखकारी है। संत परम पिता परमेश्वर का हुक्म लेकर सृष्टि-उद्धार के लिए जगत में आते हैं। रूहानी फिलासफी के अनुसार संतों का सृष्टि पर आगमन परम पिता परमेश्वर की रजा में होता है वैसे बाहरी तौर पर देखने में वो हमारी तरह एक इन्सान ही हैं लेकिन अंतर्मुख में वो परमेश्वर स्वरूप होते हैं और कोई भागों वाली आंख ही होती है जो उन्हें पहचान पाती है। संत अपना भेद जाहरा तौरप र किसी के आगे नहीं बताते। कोई अंधा व्यक्ति किसी सुजाखे(आंखों वाले) को कैसे देख सकता है जब तक कि वो खुद उसे बताए ना या अहसास न करा दे कि मैं तो तेरे सामने हूं। यही स्थिति एक आम इन्सान और पूर्ण संतों के दरमियान होती है।
उदाहरण के तौर पर एक पागल खाना है, वहां पागल लोग अपने इलाज के लिए रहते हैं और डाक्टर भी जाते हैं जो उनका इलाज करते हैं यानि दोनों एक ही जगह पर रहते हैं। इसी के अनुरूप संत-महापुरुष भी मन-माया, विषय-वासनाओं में पागल हुए जीवों को सदमार्ग पर लाने के लिए संसारी जीवों में विचरते हैं। एक अन्य स्टीक उदाहरण के द्वारा हम जीव और सतगुरु के दरमियान की स्थिति को और भी भली प्रकार समझ सकते हैं। पीटर राजा अपने देश रूस से निष्कासित किए लोगों को वापस अपने देश लाने के लिए हालैण्ड मुल्क में जहाजरानी का काम सीखने के बहाने चला गया, जहां वे लोग वहां पर मजदूरी का काम करते थे। राजा ने भी उन्हीं की तरह मजदूर का रूप धारण किया हुआ था। राजा उनसे अपने देश की उपमा करे, अपने देश की उनसे बातें करे।
सुनकर उनका दिल भी अपने वत्न जाने को कर आया लेकिन कहने लगे कि हमें तो देश-निकाला मिला हुआ है, हमें तो देश से निष्कासित किया गया है, हम कैसे वहां जा सकते हैं? राजा ने उन्हें यकीन दिलाया कि वहां का राजा मेरा गहरा मित्र है। मुझे यकीन है कि वह मेरी बात मान लेगा और तुम्हें वहां रहने की आज्ञा प्रदान कर देगा। जिन्हें उसकी बात पर यकीन आया वे उनके साथ चल दिए और जिन्हें यकीन नहीं आया कि यह हमारी तरह मजदूर है, इसकी राजा से कैसे दोस्ती हो सकती है, वे इन्हीं बातों में ही उलझे रहे। राजा अपनी राजधानी में दाखिल हुआ, सभी लोग सत्कार करें। देखकर उन मजदूरों का हौसला बढ़ गया कि वाकई यह व्यक्ति राजा का घनिष्ट मित्र हो सकता है।
राजा जब सामने तख्त पर विराजमान हो गया, ये देखकर मजदूर राजा का कोटि-कोटि धन्यवाद करें कि हमें वापस लाने के लिए हमारी तरह मजदूर बन कर रहा। दिल वैराग्य से भर गया कि हमें क्या पता था कि ये खुद ही हमारा बादशाह है। यही स्थिति संत-सतगुरु की संसारी जीवों के दरमियान है जो अधिकारी रूहें संतों पर भरोसा करके उनके अनुसार आचरण करती हैं, सतगुरु उन्हें सचखण्ड-सतलोक निजधाम ले जाते हैं। बात है संतों के वचनों पर दृढ़ विश्वास लाने की। संत-सतगुरु मनुष्य चोला धारण करके संसारी जीवों में विचरते हैं। वे सतलोक-सचखण्ड-अनामी के वैद्य-डाक्टर होते हैं जो मन-माया में पगलाए जीवों का पक्का इलाज करते हैं, जीवों के अधिकार के अनुसार उन्हें मन-माया के बन्धन से मुक्त करते हैं। जो कोई उन पर अपना विश्वास लाते हैं पीटर राजा की तरह वो उन्हें अपने वत्न-निजमुकाम पर ले जाते हैं।
पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने जीवोद्धार के लिए अपने-आप को मानवता, समाज के समर्पित किया। पूज्य परम पिता जी ने अपने एक भजन में लिखा है ‘चाहे कुछ भी करें यत्न वापस तुम्हें ले जाएंगे, काल से तुम्हें छुड़ाएंगे।’ उपरोक्त उदाहरण के अनुरूप पूज्य परम पिता जी ने जीवों को समझाने के लिए दिन-रात एक किया, कभी अपने सुख-आराम की परवाह नहीं की। सर्दी है या गर्मी, वर्षा है या आंधी, जीवोंद्धार के लिए आप जी का अपार रहमो-करम, हमदर्दी व दया-भावना का दरिया निरंतर बहता रहा और ज्यों का त्यों अब भी डेरा सच्चा सौदा में बह रहा है। अति नसीबों, भागों वाले जीव हैं जो आज भी आप जी के अपार दया व रहमो-करम के सागर में डुबकियां लगा रहे हैं। आप जी के अपार रहमो-करम की खुशियां हासिल कर रहे हैं।
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पावन जीवन चरित्र
रूहों के सिरताज परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज श्री जलालआणा साहिब जिला सरसा के रहने वाले थे। आप जी के पूजनीय पिता जी का नाम जैलदार सरदार वरियाम सिंह जी सिद्धू और पूजनीय माता जी का नाम परम पूजनीय माता आस कौर जी था। आप जी के पूजनीय दादा सरदार हीरा सिंह जी सिद्धू गांव के जैलदार थे। आप जी के पूज्य पिता जी गांव के बहुत बड़े जमींदार(जमीन-जायदाद के मालिक) थे। पूज्य माता-पिता जी बहुत धार्मिक ख्यालों वाले थे। वे साधु, संत-महात्माओं की अत्याधिक सेवा किया करते थे और मालिक परम पिता परमात्मा की भक्ति में लीन रहते थे। किसी भी सांसारिक वस्तु की घर में कमी नहीं थी, परन्तु संतान-प्राप्ति की कामना पूज्य माता-पिता जी को हर समय सताती रहती। समस्त गांववासी भी इस परिवार की मालिक के प्रति अगाध-श्रद्धा व दीन-दुखियों के प्रति दया, हमदर्दी की सच्ची भावना से भली प्रकार वाकिफ थे और इस परिवार के प्रति हमदर्दी भी रखते थे।
उन्हीं दिनों में एक मस्त-मौला फकीर बाबा का गांव श्री जलालआणा साहिब में आना हुआ। वह मालिक का सच्चा फकीर था जो लोगों को मालिक की भक्ति के लिए प्रेरित करता था। पूज्य माता-पिता जी ने उस फकीर-बाबा को अपने घर पर आमंत्रित किया। पूज्य माता-पिता जी ने उस फकीर-बाबा का सच्चे दिल से स्वागत किया। वह फकीर-बाबा कई दिनों तक गांव श्री जलालआणा साहिब में रहे। जितने दिन भी वो गांव में रहे, दूध, भोजन-पानी वो पूजनीय सरदार वरियाम सिंह जी के यहां ही लिया करते थे। पूजनीय माता-पिता जी उस फकीर बाबा को सम्मान पूर्वक बिठाते और अपने हाथों से उन्हें भोजन-पानी करवाते, सच्चे दिल से उनकी सेवा करते। एक दिन उस फकीर बाबा ने प्रसन्न होकर पूज्य माता-पिता जी से कहा, भाई भक्तो! आप का मालिक के प्रति भक्ति भाव प्रेम, सेवा-सत्कार बहुत ही सराहनीय है।
आपकी संतान प्राप्ति की कामना परमेश्वर जरूर पूरी करेंगे। आप के घर कोई महापुरुष जन्म लेगा। उपरान्त फकीर-बाबा कुछ दिनों के बाद गांव से प्रस्थान कर गए। परम पिता परमाप्ता की अपार रहमत और फकीर बाबा की दुआओं से पूजनीय माता-पिता जी को 18वर्षाें के लम्बे इंतजार के बाद पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी के रूप में अपने खानदान का वारिस, संतान-सुख की प्राप्ति हुई। पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का जन्म 25 जनवरी 1919 को हुआ। आप जी अपने पूज्य-माता पिता जी की इकलौती संतान थे। आप जी सिद्धू वंश से सम्बंध रखते थे। पूजनीय माता-पिता जी ने आप जी का नाम सरदार हरबंस सिंह जी रखा था। उपरान्त पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज ने आप जी का नाम बदल कर सरदार सतनाम सिंह जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) रख दिया।
जैसे ही यह शुभ संदेश गांव वासियों, रिश्तेदारों, संबंधियों को मिला, सब कहीं खुशी की लहर दौड़ गई। हर प्राणी, हर जीव-जन्तु, हर व्यक्ति खुशियों से भर गया। ऐसा मनोरम दृश्य बना कि जैसे पूरी प्रकृति स्वर लहरियों में झूम उठी हो, जैसे चहुं ओर ईश्वरीय-मस्ती छा गई हो। ऐसा हो भी क्यों न! कुल मालिक परम पिता परमात्मा खुद पूज्य परम पिता शाह सतनाम जी के रूप में धुरधाम से जो उतर कर धरत पर पधारे हैं। आप जी के अवतार धारण करने पर शहनशाही परिवार को हर तरफ से बधाईयां, शुभकामनाएं मिलने लगी। प्रचलित रीति-रिवाज के अनुसार पूरे गांव में थाल भर-भर कर शक्कर, गुड़, मिठाईयां, बतासे, अनाज, जैसा भी उस समय का रिवाज था, खुशियां बांटी गई। गरीबों की झोलियां अनाज से भर दी गई। जन-जन ने, गांव के हर प्राणी ने आप जी के अवतार धारण करने पर वाहेगुरु, परमात्मा को कोटि-कोटि नमन धन्यवाद किया।
ईश्वरीय बाल स्वरूप
ईश्वरीय बाल स्वरूप में पूजनीय परम पिता जी-कुल मालिक के धरती पर प्रकटीकरण का शुभ समाचार पाके वो फकीर बाबा भी पूज्य पिता सरदार वरियाम सिंह जी से मिला और शुभकामनाएं, बधाईयां दी। फकीर बाबा ने रहस्योद्घाटन करते हुए पूज्य माता-पिता जी से कहा कि ये आपके पास चालीस वर्ष तक रहेंगे और उसके बाद परमेश्वर के कार्य, सृष्टि-उद्धार के जिस कार्य के लिए ये आए हैं, अपने उसी उद्देश्य के लिए उन्हीं के पास चले जाएंगे जिन्होंने इन्हें आपकी संतान बनाकर भेजा है। पूत के पांव पालने में ही पहचाने जाते हैं। जो भी देखता, बस देखता ही रह जाता। नूरानी बाल मुख से नजरें हटाने को दिल न करता।
वो झींवर भाई जो घर में पीने का पानी भरा करता था, एक दिन पानी भर कर जब वापस जाने लगा, अचानक उसकी निगाह जैसे ही वहां पालने में लेटे बालरूप पूज्य परम पिता जी के मुस्कुराते चेहरे पर पड़ी तो वह अपनी सुध-बुध खोकर बिना पलक झपकाए पूज्य परम पिता जी को निहारने लगा। अचानक पूजनीय माता जी की निगाह उस झींवर भाई पर पड़ी कि ये ऐसे मेरे लाल को क्यों देख रहा है! कहीं इसकी नियत में कोई खोट तो नहीं! कहीं मेरे लाल को नजर ही न लगा दे! दौड़कर अपने लाल को गोद में ले लिया। माता का अपने लाल के प्रति यह स्नेह देखकर वो भाई मुस्कुराते हुए कहने लगा, मां जी, मैं एकटक आपके लाल को इसलिए निहार रहा था, क्योंकि इनमें मुझे हमारे महापुरुषों के दर्शन हो रहे थे। मुझे हमारे पूजनीय अवतार की झलक आपके लाल में दिख रही थी। पूज्य माता जी ने झट से एक काला टीका अपने लाल के लगाते हुए कहा, मेरा बच्चा भी आम बच्चों की तरह ही तो है! ऐसे ही लोग कहते हैं। कहीं किसी की बुरी नजर ही न लग जाए!
दयालुता भाव
पूजनीय परम पिता जी बचपन से ही दयालुता के समुद्र थे। यह सच्चाई पूरे इलाके भर में प्रसिद्ध है कि जो भी कोेई गरीब या जरूरतमंद दर पर आया, आप जी ने उसे कभी खाली नहीं लौटाया था। समय व स्थिति के अनुसार आप जी उनकी झोलियां उनकी मनोकामनाओं के अनुरूप अपने रहमो-करम, अपने परोपकार से भर दिया करते। एक बार इलाके में जबरदस्त सूखा पड़ा। उस स्थिति में जब हर कोई मजबूर था, कौन किसी की मदद करे! ऐसे समय में भी इस शहनशाही परिवार ने हर जरूरतमंद की मदद की जो भी सवाली बन कर आया।
ऐसी ही स्थिति में एक परिवार पूज्य माता जी के पास कुछ आर्थिक मदद पाने के लिए आया। उनकी बेटी की शादी में मात्र कुछ दिन ही बाकी थे। आप जी बाल्यावस्था में अपने पूज्य माता जी के पास बैठे हुए थे उनकी मजबूरी की व्यथा सुनकर आप जी ने पूज्य माता जी से कहा, माता जी, उनकी मदद जरूर करें। पैसे का तब बड़ा मोल था। आप जी ने कहा, माता जी, इन्हें सौ रुपए की जरूरत है तो डेढ़ सौ दे दीजिए, दो सौ दे दीजिए, जान लो, यह मेरी बहन की ही शादी है।
भूखे को भोजन, प्यासे को पानी मान लेते हैं यह आम बात है लोगों की नजर में लेकिन ऐसा पुण्य कार्य करता कौन है? आम देखने को मिलता है कि बहुत से लोग दरवाजे पर आए किसी जरूरतमंद को दुत्कार देते हैं, पानी का घूंट भी नहीं दे सकते, परन्तु आप जी ने किसी पशु को भी अपने खेत से नहीं हटाया था। बल्कि अपनी पावन मौजूदगी में भी अगर कभी कोई पशु खेत में घुसकर फसल चर रहा होता तो भी आपने उसे कभी बाहर नहीं निकाला था।
एक बार ऐसा ही हुआ। आप जी अपने खेत में निगरानी में बैठे हुए थे। रोजाना एक भैंसा आता और फसल चरने लग जाता। उस समय खेतों में चने की फसल लहलहा रही थी। आप जी ने उसे नहीं हटाया। वह भैंसा पेट भरने पर आप जी के पास आकर बैठ जाता। इस बात की पूज्य माता जी के पास शिकायत हुई। अगले दिन आप जी ने उस भैंसे की पीठ को थपथपाते हुए कहा, ‘भगता, अब तो अपनी शिकयत हो गई है, अब तू हिस्सेवार तुर-फिर के चर लिया कर।’ और सच में ही, उस मौके के सभी गांववासी भी इस सच्चाई के गवाह हैं, कि उस दिन के बाद किसी भी व्यक्ति ने उस भैंसे को एक खेत में खड़े होकर चरता नहीं देखा था। बल्कि ठीक उसी तरह जैसा कि आप जी ने उसे समझाया था कि तुर-फिर के चर लिया कर, जब तक वह जीवित रहा, आप जी के आदेशानुसार तुर-फिर के ही चर लिया करता। इस प्रकार आप जी के परोपकारों की अनेक मिसालें वर्णनयोग्य हैं।
बड़े होने पर आप जी के परोपकारों का दायरा भी और बड़ा हो गया। आप जी गांव व समाज भलाई हित गांव के सांझे कार्याें में बढ़-चढ़ कर सहयोग करते। आप जी गांव के हर भले कार्य में हमेशा आगे रहकर उसे पूरा करवाते। गांव में श्री गुरुद्वारा साहिब के निर्माण की पवित्र सेवा का निर्णय पंचायत में हुआ, जिसे आप जी ने प्रमुखता से आगे रहकर इस कार्य को अपने हर तरह के सहयोग (तन-मन-धन) से पूरा करवाया।
ईश्वरीय भक्ति पावन संस्कारों में सार्इं, शाह मस्ताना जी का मिलाप
पूजनीय माता जी के पवित्र संस्कारों के कारण आप जी बचपन से ही परम पिता परमात्मा की भक्ति से जुड़े हुए थे। आप जी सुबह-शाम पांच वाणियों का पाठ करते, पवित्र गुरुवाणी को पूर्ण एकाग्रता से सुनते। ‘धुर की वाणी आई।। जिनि सगली चिंत मिटाई’, बार-बार इस वाणी को पढ़ते, गहराई से इस पर विचार भी करते कि वो ऐसी कौन-सी वाणी है जो सभी गम-फिकरों को मिटा दे। आप जी ने अनेक साधु-महापुरुषों से सम्पर्क किया, उनके प्रवचनों को सुना। इस दौरान आप जी कई, महात्माओं से भी मिले। आप जी जिन्हें भी मिलते उनकी भली प्रकार जांच करते, उन्हें परखते। लेकिन आप जी के उद्देश्य की पूर्ति न हो पाई। आप जी की पूर्ण तसल्ली नहीं हो पाई।
सच की तलाश में आप जी लगातार लगे रहे। इसी दौरान आप जी का मिलाप पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज से हुआ। आप जी ने डेरा सच्चा सौदा व पूजनीय बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज के बारे में जो सुन रखा था, पूज्य सार्इं जी के रूहानी सत्संग को सुनकर और हर सच्चाई को परख के आप जी उसी पल से पूज्य सार्इं जी को अपना तन-मन अर्पित कर के उनके मुरीद हो गए। जिस सच्चाई की आप जी को तलाश थी, सब कुछ आप जी के रू-ब-रू था। अन्दर-बाहर से आप जी की पूरी तसल्ली हो गई थी।
आप जी तीन साल तक लगातार पूज्य सार्इं जी का सत्संग सुनते रहे। हालांकि आप जी ने इस दौरान नाम शब्द लेने की भी कई बार कोशिश की, परन्तु बेपरवाह सार्इं जी हर बार यह कह कर उठा दिया करते कि अभी आप को नाम लेने का हुक्म नहीं है, जब समय आया खुद बुलाकर, आवाज देकर नाम देंगे, तब तक आप सत्संग करते रहो, संगत में आते रहो। आपको काल नहीं बुलाएगा। हम आप के खुद जिम्मेवार हैं।
ये रब्ब की पैड़ है
एक बार सार्इं मस्ताना जी महाराज ने एक पैड़(पांव के निशान) को अपनी डंगोरी से घेरा बनाकर अपने साथ चल रहे सेवादारों से कहा, ‘आओ भई तुम्हें रब्ब की पैड़ दिखाएं।’ उनमें एक सेवादार भाई ने कहा, (वह जानता था कि पांव का यह निशान पूजनीय परम पिता जी का है) ये पैड़ तो श्री जलालआणा साहिब के जैलदार सरदार हरबन्स सिंह जी (पूजनीय परम पिता जी का बचपन का नाम) की है। इस पर सार्इं मस्ताना जी महाराज ने डंगोरी को जमीन पर ठोक कर कहा कि ‘असीं किसी जैलदार को नहीं जानते। असीं तो ये जानते हैं कि ये पैड़ रब्ब की है।’
जिन्दाराम (रूहानियत) का लीडर
पूजनीय बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज ने 14 मार्च 1954 को घूकांवाली दरबार में सत्संग फरमाया। सत्संग के बाद पूज्य सार्इं जी ने आप जी को आवाज लगाई, बुलाकर फरमााया, आज आप जी को नाम-शब्द लेने का हुक्म हुआ है। आप अंदर चल कर हमारे मूढे के पास बैठें, हम भी अभी आ रहे हैं। आप जी ने अंदर जा कर देखा, नाम लेने वाले काफी जीव बैठे हुए थे। मूढे के पास जगह खाली नहीं थी।
इसलिए आप जी नाम वालों में पीछे ही बैठ गए। पूज्य साइँ जी जब अंदर आए और आप जी को बुलाकर अपने मुढे के पास बिठाया। बेपरवाह जी ने फरमाया कि ‘आप को इसलिए पास बिठाकर नाम देते हैं कि आपसे कोई काम लेना है। आपको जिंदाराम (रूहानियत) का लीडर बनाएंगे जो दुनिया को नाम जपाएगा।’ पूज्य बेपरवाह जी ने घूकांवाली में नाम-शब्द के बहाने मालिक की असल सच्चाई को जाहिर किया कि आप जी(पूज्य परम पिता जी) स्वयं कुल मालिक खुद-खुदा के रूप में जीव-सृष्टि के उद्धार हित मानवता का सहारा बन कर आए हैं।
परीक्षा पर परीक्षा
पूजनीय परम पिता जी जब से पूजनीय सार्इं मस्ताना जी महाराज की पावन दृष्टि में आए उसी दिन से ही बेपरवाह सार्इं जी आप जी की परीक्षा पर परीक्षा भी साथ-साथ लेते रहे। इन्हीं रूहानी परीक्षाओें के चलते एक बार पूज्य सार्इं जी लगातार 18 दिन तक श्री जलालआणा साहिब दरबार में रहे। इसी दौरान कभी गदराना का डेरा गिरवा दिया और कभी चोरमार का डेरा गिरवा दिया। इधर डेरों को गिरवाया जा रहा था, उधर गिराए गए डेरों का मलबा, लकड़, बाला, शतीर, लोहे के गार्डर, जंगले, दरवाजे आदि सामान श्री जलालआणा साहिब डेरे में इकट्ठा करने का हुक्म फरमाया। पूज्य सार्इं जी ने आप जी की ड्यूटी गदराना डेरे का मलबा ढोने की लगाई हुई थी।
इधर गिराए गए डेरों का सामान ढोया जा रहा था तो उधर इकट्ठा किया गया सामान घूकांवाली के सेवादारों के द्वारा उठवा दिया। आप जी अभी गदराना डेरे का सामान उठवाने में लगे हुए थे, इसी दौरान साइँ जी ने गदराना का डेरा फिर से बनाने की सेवादारों को मंजूरी दे दी। कुल मालिक का यह अजब-गजब खेल आम इन्सान की समझ से बाहर की बात थी। कुल मालिक का यह अलौकिक खेल वास्तव में आप जी की परीक्षाओं में ही शुमार था, आप जी की ही परीक्षा थी। लेकिन आप जी तो पहले दिन से ही अपने-आप को पूर्ण तौर पर अपने पीरो-मुर्शिद के अर्पण कर चुके थे। आप जी ने अपने मुर्शिद प्यारे के हर हुक्म को सत्वचन कह कर माना। इस तरह इन परीक्षाओं की लड़ी के द्वारा पूज्य सार्इं जी ने आप जी को हर तरह से योग्य पाकर एक दिन वास्तविकता को प्रकट करते हुए फरमाया, असीं सरदार हरबंस सिंह जी का इम्तिहान लिया पर उन्हें पता तक नहीं चलने दिया।
और सख्त परीक्षा (मकान गिराया)
और फिर एक दिन बेपरवाह सार्इं जी ने आप जी के लिए अपनी हवेली नुमा मकान को ढहाने, मकान को तोड़ने और हवेली का सारा सामान एक छोटी सूई से बड़ी से बड़ी चीज तक दरबार में लाने का आदेश फरमाया। बाहरी निगाह, दुनियादारी के हिसाब से बेशक यह सख्त इम्तिहान था, लेकिन आप जी ने दुनिया की लोेकलाज की जरा भी परवाह नहीं की। आप जी ने अपने खुदा के वचन पर फूल चढ़ाते हुए अपनी हवेली को स्वयं अपने हाथों से तोड़ दिया, र्इंट-र्इंट कर दिया और बेपरवाही हुक्मानुसार हवेली का सारा मलवा र्इंटें, एक-एक कंकर, गार्डर, शतीर, लकड़ बाला और घर का सारा सामान ट्रकों, ट्रैक्टर-ट्रालियों में भरकर अपने प्यारे खुदा की हजूरी में डेरा सच्चा सौदा सरसा में लाकर रख दिया।
दरबार में माहवारी सत्संग का दिन था। शनिवार आधी रात को पूज्य सार्इं जी बाहर आए। सामान का बहुत बड़ा ढेर दरबार में देखकर हुक्म फरमाया, ‘ये सामान किस का है? अभी बाहर निकालें। कोई हमसे आकर पूछे तो असीं क्या जवाब देंगे? जिसका भी सामान है अपने सामान की आप ही रखवाली करे।’ सख्त सर्दी का मौसम था और ऊपर से बूंदा-बांदी और शीतलहर भी चल रही थी। जिससे पूरा वातावरण एकदम शीतमयी बना हुआ था। इतनी जबरदस्त ठण्ड थी कि शरीर सुन्न हो रहा था। आप जी अपने प्यारे सतगुरु के हुक्म में पूरी रात-भर खुले आसमान के नीचे अपने सामान के पास बैठ के बेपरवाही आलौकिक आनन्द का लुत्फ लेते रहे। सुबह होते ही सारा सामान एक-एक करके आई हुई संगत में अपने हाथों से बांट दिया और अपने मुर्शिद प्यारे की पावन हजूरी में आकर बैठ गए और शहनशाही खुशियों को हासिल किया।
गुरगद्दी बख्शिश-सतनाम (अपना स्वरूप) बनाया
दिनांक 28 फरवरी 1960 को पूजनीय बेपरवाह जी के हुक्मानुसार आप जी को सिर से पैरों तक नए-नए नोटों के लम्बे-लम्बे हार पहनाए गए। उपरान्त आप जी को एक जीप में सवार करके पूरे सरसा शहर में शहनशाही जुलूस निकाला गया जिसमें आश्रम का बच्चा-बच्चा शामिल था। ताकि दुनिया को भी पता चले कि पूज्य सार्इं जी ने श्री जलालआणा साहिब के जैलदार सरदार हरबन्स सिंह जी को अपना उत्तराधिकारी बना लिया है।
शाही जुलूस वापस अभी आश्रम के गेट पर ही पहुंचा था कि पूज्य सार्इं जी ने स्वयं आप जी का स्वागत किया। बेपरवाह जी ने शरेआम वचन फरमाया, ‘आज से सरदार हरबंस सिंह जी को सतनाम-कुल मालिक, आत्मा से परमात्मा कर दिया है। ये वो सतनाम है जिसके सहारे सब खण्ड, ब्रह्मण्ड खड़े हैं।’ शाही स्टेज सजाई गई थी। बेपरवाह सार्इं जी ने शाही गुफा (तेरावास) जो विशेष तौर पर आप जी के लिए तैयार करवाई गई थी, से आप जी को बुलवाकर अपने साथ शाही स्टेज पर विराजमान किया और संगत में अपने पवित्र मुख से वचन फरमाया, ‘आज से असीं सरदार सतनाम सिंह जी को अपना स्वरूप बना लिया है। ये वोही सतनाम है जिसे दुनिया जपदी-जपदी मर गई। असीं इन्हें अपने दाता सावण शाह सार्इं के हुक्म से अर्शांे से लाकर तुम्हारे सामने बिठा दिया है। जो इनके पीठ पीछे से भी दर्शन कर लेगा वो नर्काें में नहीं जाएगा। उसका भी उद्धार ये अपनी रहमत से करेंगे।’
पूज्य पिता जी डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरी पातशाही
पूजनीय परम पिता जी डेरा सच्चा सौदा में बतौर दूसरे पातशाह 28 फरवरी 1960 को विराजमान हुए। आप जी ने 30-31 वर्ष तक डेरा सच्चा सौदा रूपी फुलवाड़ी को अपने अंतर-हृदय का बेइन्तहा प्यार बख्शा। आप जी के अपार रहमो-करम के अमृत को पान करके साध-संगत तन-मन-धन से डेरा सच्चा सौदा की पावन शिक्षाओं को समर्पित है।
जो साध-संगत पहले सैकडों में थी आप जी के अपार प्यार को पाकर बढ़ कर हजारों तथा हजारों से बढ़कर लाखों में डेरा सच्चा सौदा में आने लगी। आप जी ने अपना रहमो करम बख्शते हुए पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यू.पी. आदि राज्यों में दिन-रात एक करते हुए हजारों सत्संग किए। आप जी की रहमत राम-नाम का जिक्र घर-घर में होने लगा।
आप जी ने 11 लाख से ज्यादा जीवों को राम-नाम के द्वारा उन्हें बुराइयों से मुक्त कर मालिक के दर्श-दीदार के काबिल बनाया। आप जी ने अति सरल भाषा में सैकड़ों भजन-शब्दों की रचना की जो आज भी साध-संगत को पावन शिक्षाओं से जोड़े हुए हैं।
पूजनीय परम पिता जी का रहमो-करम
पूजनीय परम पिता जी ने 23 सितम्बर 1990 को पूजनीय मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को स्वयं डेरा सच्चा सौदा में बतौर तीसरे पातशाह गुरगद्दी पर विराजमान किया। आप जी का यह अपार रहमो-करम साध-संगत कभी भुला नहीं सकती। आप जी की पावन शिक्षाओं का प्रसार करते हुए पूज्य गुरु जी ने रूहानियत के साथ-साथ समाज व मानवता भलाई के कार्याें से डेरा सच्चा सौदा को बुलंदियों पर पहुंचाया।
पूज्य गुरु जी की पावन परमार्थी शिक्षाओं को आज देश व दुनिया के करोड़ों श्रद्धालु अपना ध्येय मानते हैं। आप जी ने डेरा सच्चा सौदा में मानवता व समाज-भलाई के 134 कार्य चलाए हुए हैं। साध-संगत व सेवादार इन कार्याें के माध्यम से दीन-दुखियों की मदद करने में लगे हुए हैं। पूज्य गुरु जी की पावन-प्रेरणाओं से डेरा सच्चा सौदा का नाम पूरे विश्व-भर में जाना जाता है।
पावन अवतार दिवस की लख-लख बधाई हो जी।