‘ये करेंगे तुम्हारी रक्षा! ये ही तुम्हारे वारिस हैं’ -सत्संगियों के अनुभव पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने की अपार रहमत
प्रे्रमी मास्टर गुरजंट सिंह इन्सां सुपुत्र सचखण्डवासी श्री सेवा सिंह जी गाँव संगत खुर्द, जिला भटिण्डा से पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने पर हुई अपार रहमत का वर्णन इस प्रकार करते हैं-
सन् 1975 में गाँव लेलेवाला, जिला भटिण्डा में पूजनीय परमपिता जी का सत्संग था। उन दिनों मैं सरकारी प्राईमरी स्कूल संगत खुर्द में पढ़ाता था। स्कूल के सामने रजबाहे के पुल पर लोगों का भारी इकट्ठ देखकर मैंने बच्चों से पूछा कि ये इकट्ठ क्यों है? बच्चों ने बताया कि आज गाँव लेलेवाला में सरसा वाले संतों का सत्संग है और उनके पावन दर्शनों के लिए ये भक्तजन (प्रेमी) यहाँ आए हैं। इतने में पूजनीय परमपिता जी की जीप आकर पुल पर रुकी।
सभी प्रेमीजनों की आँखों में आई चमक व बेइंतहा प्यार देखकर मुझे भी मालिक ने ख्याल दिया कि तू भी संतों के दर्शन करले। देखना तो चाहिए कि ऐसे कौन-से संत हैं, जिनके दर्शनों के लिए ये लोग इतने लालायित हैं। मैं स्कूल के गेट से पुल की तरफ जाने लगा तो मैंने देखा परमपिता जी की जीप मेरी ही ओर आ रही है। पूजनीय पिता जी को देखते ही मेरा सर अपने आप श्रद्धापूर्वक सजदे में झुक गया और मैंने अपने दोनों हाथ जोड़कर पूजनीय परमपिता जी को नमस्कार किया। परमपिता जी ने मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान किया तो मेरे हृदय में ऐसी खुशी की लहर दौड़ गई, जो वर्णन नहीं हो सकता। जैसे मेरी रूह ने अपने सच्चे रहबर को पहचान लिया हो।
मुझे अपने आप की होश न रही। गाड़ी दूर जा रही थी लेकिन मेरी नज़र हटने का नाम नहीं ले रही थी। इतने में प्रेमीजन मेरे पास आ गए। उन्होंने मेरे हृदय की भावना को भाँपते हुए मुझे प्रशाद देते हुए कहा कि मास्टर जी, ये लो प्रसाद! आज गाँव लेलेवाला में सत्संग है, वहाँ चलो और जी-भरकर दर्शन कर लेना। प्रेमियों की प्रेरणा व सतगुरु के प्रेम में खिंचा मैं गाँव लेलेवाला में पहुँच गया। मैंने परमपिता जी का रूहानी सत्संग पहली बार सुना था, जिससे मेरी रूह को बहुत ही आनंद मिला। मुझे सच्चे प्रेम की चिंगारी लग चुकी थी जो आज भी ज्यों की त्यों है। उसी वर्ष मुझे नाम की अनमोल दात भी मिल गई।
22 जून 1989 की बात है। उस दिन मैं अपने मित्र मास्टर लछमन दास जी के साथ पूजनीय परमपिता जी के दर्शन करने के लिए सच्चा सौदा दरबार आया हुआ था। वहीं मुझे जीएसएम भाई सुमेर इन्सां जी मिले व मेरे हाथ में 15 चिट्ठियाँ पकड़ाते हुए कहा कि ये चिट्ठियाँ अगले दो-चार दिनों में फलां-फलां गाँवों में पहुँचानी हैं और एक चिट्ठी आपकी भी है। आपने उन्हें कहना है कि पूजनीय परमपिता जी का हुक्म है कि 22 जुलाई 1989 को डेरे में पहुँचना है, ‘गुरु विद सेवादार (जीएसएस) सत्संग’ पर जरूर आएं। मैंंने घर आकर चिट्ठी पढ़ी तो मेरा दिल बहुत उदास हो गया। मैंने सोचा कि अब पूजनीय परमपिता जी गुरगद्दी बख्शेंगे और पता नहीं क्या होगा और कैसे होगा! ना कुछ खाया, ना पिया। मन में तरह-तरह के विचार आने लगे।
गलत बातें यानि नेगेटिव विचार सोच-सोचकर मैं सारी रात रोता रहा व परमपिता जी से अरदास करता रहा कि पिता जी, हमारा क्या बनेगा! आपके बिना हमारा कौन है! हम कहाँ जाएंगे! रोते-रोते सुबह तीन बजे मेरी आँख लग गई। स्वप्न में मैंने देखा कि पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज तथा जीएसएम भाई मोहन लाल जी इन्सां एक बहुत ही सुंदर अजनबी नौजवान के साथ खड़े हैं। पूजनीय परमपिता जी ने मुझे फरमाया, ‘बुद्घुआ! न सोवें, ना सौण देवें।’ परमपिता जी ने उन सुंदर नौजवान की तरफ इशारा करते हुए फरमाया, ‘ये तुम्हारी रक्षा करेंगे। ये तुम्हारे वारिस हैं।’ बालों की सुंदर-सी कटिंग, चेहरे पर छंटी हुई दाड़ी, मक्खन जैसा गोरा रंग और आयु 22-23 साल।
ऐसा बांका नौजवान मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा था। उस अति सुंदर नौजवान में अजीब-सी कशिश थी, जो मुझे अपनी ओर खींच रही थी, लेकिन मैं समझ नहीं पाया था कि ये कौन हैं और कैसे हमारी रक्षा करेंगे। इस दृष्टांत की समझ मुझे तब आई, जब पूजनीय परमपिता जी ने 23 सितम्बर 1990 को 23 वर्ष के उस नौजवान यानि पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को अपनी अपार बख्शिशों सहित डेरा सच्चा सौदा गुरगद्दी की बख्शिश की। वही डील-डौल, वही नूरानी चेहरा और वही सब कुछ ज्यों का त्यों जो मैंने स्वप्न में देखा था। इस तरह पूजनीय परमपिता जी ने मुझे लगभग पंद्रह महीने पहले ही सब कुछ ज्यों का त्यों दिखा दिया कि ये वो नौजवान हैं जिन्हें डेरा सच्चा सौदा की गुरगद्दी बख्शी जानी है।
मैं पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के परोपकारों का बदला क्या दे सकता हूँ। यह एक तुच्छा-सा भिखारी इतने बड़े शहनशाहों के शहनशाह, इतने महान बादशाह को क्या दे सकता है। बस धन्य-धन्य ही करता हूँ।
कीते उपकार जेहड़े, किंवे मैं भुलावां।
गुण तेरे साहिबा दिन-रात पेया गावां।
पूजनीय परमपिता जी के मौजूदा नौजवान स्वरूप हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पवित्र चरणों में मेरी विनती है कि मुझ पर इसी तरह ही अपनी अपार रहमत बनाए रखना जी तथा मुझे मेरे आखिरी स्वास तक अपने पवित्र चरण-कमलों में लगाकर मेरी ओड़ निभा देना जी।