Experiences of the satsangis

पावन वचन ज्यों के त्यों पूरे हुए -सत्संगियों के अनुभव -पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम

प्रेमी देसराज इन्सां (कविराज) सुपुत्र सचखंडवासी प्रेमी श्री लछमण दास जी निवासी शाह सतनाम जी नगर सरसा से पूजनीय बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज के अपने परिवार के प्रति अटल वचनों के बारे बताते हैं जोकि ज्यों के त्यों सौ फीसदी पूरे हुए हैं।

प्रेमी जी बताते हैं कि बात सन् 1957 की है। एक दिन मेरे पापा श्री लक्षमण दास जी व मेरे चाचा श्री हजारा लाल जी ने पूजनीय सार्इं जी की पावन हजूरी में प्रार्थना की, उस समय हमारे सारे चारों परिवार (हमारा और मेरे तीनों चाचा जी) मलोट (पंजाब) में रहते थे कि सार्इं जी मलोट में हमारा दिल नहीं लगता और हम आप जी की पवित्र हजूरी में यहाँ सरसा में रहना चाहते हैं। तो इस पर बेपरवाह जी ने फरमाया कि ‘असीं हुक्म लेकर आपको बताएंगे। बीस-पच्चीस दिन में बता देंगे।’ उपरांत बीस-पच्चीस दिन के मेरे पापा व चाचा जी ने पूजनीय सार्इं जी से फिर से अपनी विनती दोहराई। तो सर्व सामर्थ बेपरवाह सार्इं जी ने दरबार परिसर के बाहर पहले से ही निश्चित एक जगह पर अपनी पवित्र डंगोरी से लकीर लगा कर (एक तरह से निशानदेही भी कह सकते हैं) फरमाया कि ‘यहाँ पर आपको जगह दे दी है, आप यहाँ पर जाएं।’

अपने सतगुरु-मुर्शिद के हुक्मानुसार मेरे पापा और मेरे चाचा हजारा लाल जी मलोट से अपना घर-बार आदि बेच कर परिवार सहित सरसा दरबार (डेरा सच्चा सौदा) में पूजनीय शहनशाह जी की पावन शरण में आ गए। तो पूजनीय बेपरवाह जी ने स्वयं वहां पास खड़े रहकर हमारा मकान (रिहाइश के लिए) बनवा दिया और हुक्मानुसार हमारा और मेरे चाचा हजारा लाल जी का परिवार मकान के दो हिस्सों में अलग-अलग रहने लग गए। पूजनीय शहनशाह जी ने अपने पावन वचनों में आदेश फरमाया कि ‘पुट्टर, मिलजुल कर रहना है।’

मेरे दो चाचा प्रेमी श्री बिहारी लाल जी और प्रेमी श्री सरदारी लाल जी (मेरे पापा जी ही चारों भाइयों मेें बड़े थे) मलोट में ही रहते थे और सत्संग व सेवा पर अक्सर डेरा सच्चा सौदा में आया-जाया करते थे। त्रिकालदर्शी (तीनों कालों के ज्ञाता) सर्व-सामर्थ सतगुरु दाता जी ने अचानक किसी बात किसी विषय के चलते मेरे पापा जी, मेरे तीनों चाचा यानि चारो भाइयों को (उस दिन वे चारो इक्ट्ठे पूजनीय बेपरवाह जी की पावन हजूरी में मौजूद थे) ये अटल वचन फरमाया कि ‘पुट्टर! तुम चारों भाई यहीं (सरसा में) पर ही चोला छोड़ोगे, तुम्हारी कब्रें यहीं बनेंगी।’

समय व्यतीत होता रहा, सन् 1990 में मेरे चाचा बिहारी लाल जी परम पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज डेरा सच्चा सौदा के दूसरे पातशाह जी तथा मौजूदा तीसरे पातशाह पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां अर्थात् दोनों पावन बॉडियों की हजूरी में आज्ञा लेकर परिवार सहित मलोट से सरसा में ही आ गए थे। यहां पर यह भी बताना जरुरी है कि तब तक साध-संगत सैकड़ों-हजारों से बढ़कर लाखों में हो गई थी।

हमारा व मेरे चाचा हजारा लाल जी का परिवार शाह सतनाम जी नगर के अलग-अलग फ्लेटों में रहने लग गए थे, जो पूज्य गुरु जी ने अपने मुर्शिद-कामिल के पवित्र नाम पर सेवादारों के लिए विशेष तौर पर खुद अपनी पावन दया-दृष्टि व देख-रेख में पूरी दिलचस्पी से स्थापित किया है। क्योंकि दरबार में साध-संगत के लिए जगह दिनों-दिन कम पड़ती जा रही थी। जब समय आया तो मेरे चाचा बिहारी लाल जी ने भी यहीं सरसा में ही अपना चोला छोड़ा और उनका अंतिम संस्कार भी यहीं सरसा में ही हुआ। परंतु मेरे चाचा सरदारी लाल जी अपने परिवार सहित मलोट में ही रहते थे और उनका परिवार आज भी मलोट में ही रह रहा है।

वर्णननीय है कि जब उनका चोला छोड़ने का समय आया तो बीमारी का कोई बहाना बना। उन्हीं दिनों में वे पूजनीय दोनों पवित्र बॉडियों के दर्शन-दीदार करने के लिए सरसा दरबार में आए हुए थे। बीमारी के कारण उन्हें सरसा के एक अस्पताल में दाखिल करवा दिया गया था और समय आने पर उन्होंने बेपरवाही पवित्र (अटल) वचनों के अनुसार यहीं सरसा में ही अपना चोला छोड़ा और उनका अंतिम संस्कार भी यहीं सरसा में ही हुआ।

हैरानीजनक बात यह है कि वे (चाचा सरदारी लाल जी) अपने परिवार सहित मलोट में ही है। परंतु सतगुरु बेपरवाह सार्इं जी के जो अटल वचन थे, वो ज्यों के त्यों पूरे हुए कि पुट्टर! चारों भाई यहीं पर चोला छोड़ोगे और यहीं पर ही तुम्हारी कब्रें बनेंगी।

असल बात यह है पूजनीय बेपरवाही वचनों की, पूरे सतगुरु परमपिता परमेश्वर का प्रत्यक्ष स्वरूप होते हैं, उनके पवित्र मुख का हर वचन ज्यों का त्यों अवश्य पूरा होता ही होता है। वो बेपरवाही वचन हालांकि 1957-58 के थे और पूरे कब हुए। 33-34 वर्ष के बाद, जब पूजनीय बेपरवाही जोत को दोनों पवित्र बॉडियों की पावन मौजूदगी में और पावन दर्शन भी उन्होंने कर लिए। हालांकि वे परिवार सहित मलोट में ही रहते थे, परंतु बेपरवाही अटल वचनानुसार चोला मलोट से आकर सरसा में ही छोड़ा, बहाना चाहे किसी बीमारी का बना। लेकिन बात तो बेपरवाही उन अटल वचनों की है जो ज्यों की त्यों पूरे हुए और उनका अंतिम संस्कार भी यहीं पर ही हुआ।

रूहानी सच्चे रहबर मौजूदा तीसरी जोत पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के चरण-कमलों में करबध विनती है कि हमारे परिवार को हमेशा ही अपने पवित्र चरण-कमलों में लगाए रखना जी और आप जी और डेरा सच्चा सौदा के प्रति हमारा विश्वास और भी दृढ़ से दृढ़ बना रहे और हम अपने आखिरी स्वास तक आप जी के पावन दर्शनों व ईलाही खुशियों को हासिल करते रहें जी।

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