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रातों-रात दौलतमंद बनने की चाह में ज़िंदगी बन रही तनावग्रस्त

आधुनिक सुख-सुविधाओं की दौड़ इस कदर बढ़ रही है कि हर इंसान रातों- रात सब कुछ पाना चाहता है। यहीं वह अति व्यस्तता एवं अनिमितताओं का शिकार हो जाता है और अच्छी खासी जिंदगी तनावग्रस्त बना लेता है। हमारी यह दिनचर्या ही रोगों को आमंत्रण देती है। ब्लडप्रेशर, डायबिटिज एवं हार्ट के रोगी बढ़ रहे हैं। साथ ही बढ़ रहे हैं लिवर और किडनी की समस्याएं। शरीर के अन्य अंग भी किसी न किसी रोग से पीड़ित हो रहे हैं और शुरू है अस्पतालों की दौड़…।

टी. वी. ने हमारी जिंदगी और जीवन शैली को सबसे अधिक प्रभावित किया है। उपभोक्तावादी संस्कृति का बढ़ता हुआ प्रभाव यदि समय रहते नहीं रोका गया तो आने वाला समय बहुत ही भयावह होगा। भौतिकतावाद के वशीभूत हर कोई आज सिर्फ एक ही दौड़ में सम्मिलित है, वह है भौतिक सुख-सुविधाओं को जुटाने की होड़। इस अंधी दौड़ में हर कोई चाहता है कि एक शानदार जिंदगी की सारी सुख-सुविधाएँ रातों-रात जुट जाएं। अधिक से अधिक दौलत पाने की इच्छा अब महत्त्वाकांक्षा बनती जा रही है।

रातों-रात सब कुछ हासिल कर लेने की ललक ने हमसे हमारी आत्मिक एवं मानसिक शांति छीन ली है। शारीरिक सुख जरूर खरीदा जा सकता है किन्तु मानसिक सुख-शांति नहीं। सुख सुविधाएं जुटाने के पीछे आज हर कोई दीवाना सा हो गया है और यही दीवानगी जिंदगी को तनावग्रस्त भी बना रही है।

हर इंसान सुख-सुविधाएँ जुटाने में सब कुछ भुलाकर व्यस्त हो गया है। इस अंधी दौड़ का दुष्परिणाम यह है कि हमारी आवश्यकताएं तेजी से बढ़ रही हैं और बढ़ रहे हैं अनाप-शनाप खर्चे जिनकी पूर्ति कर पाना आसान नहीं। चूंकि किश्तों में सब कुछ मिल रहा है मकान, दुकान, गाड़ी और यहां तक कि देश-विदेश के टूर भी किश्तों में अदायगी के द्वारा उपलब्ध हैं।

जैसे-तैसे लोग तमाम सुविधाएं तो जुटा लेते हैं किंतु इस अंधी दौड़ में कर्जग्रस्तता से त्रस्त हो जाते हैं और बढ़ा लेते हैं अनावश्यक तनाव। एक समस्या से इंसान उबरता नहीं तो दूसरी से जूझने लगता है। आपाधापी की इस जिंदगी में अनियमिताएं बढ़ रही हैं।

असंतुलित जिंदगी में खान-पान भी अव्यवस्थित हो गया है, यहीं रोगों को हम आमंत्रण दे देते हैं। धूम्रपान, शराब आज फैशन बन गया है। ब्लडप्रेशर, डायबिटिज़ रोग बढ़ रहे हैं। ऐसी बीमारियों से हार्ट, लिवर और किडनी अधिक प्रभावित हो रही है। धीरे-धीरे शरीर के अन्य अंगों को नुकसान पहुंच रहा है। हमारी सारी कमाई दवाखानों के चक्कर लगाने में खर्च होना शुरू हो जाती है।

क्या फायदा ऐसी दौड़ का जिसमें सम्मिलित होकर सारा परिवार ही तनावग्रस्त जिन्दगी जीने को बाध्य हो जाए और फिर एक समय यह भी आ जाए कि सब कुछ होते हुए भी इंसान कुछ भी उपभोग करने लायक न रह पाए। आज की भागदौड़ की जिन्दगी में अनियमिताएं बढ़ रही हैं। न तो हम समय से सोते हैं और न ही उठते हैं। खाने-पीने का भी कोई निश्चित समय नहीं होता। जब समय मिला, खा लिया। जिसे देखो उसी के सिर पर भूत सवार है सफलता के शिखर को चूमने का, दुनिया का सबसे बड़ा दौलतमंद इंसान बनने का। इसी उधेड़बुन में हमने अपनी जिंदगी तनावग्रस्त बना डाली है।

अन्य रोगों के साथ-साथ दिल के रोग भी बड़ी तेजी से बढ़ रहे हैं। व्यक्ति शारीरिक रूप से कमजोर होता चला जा रहा है। हर पल थकान रहती है, आलस्य बना रहता है, दिल तेजी से धड़कने लगता है। ज्यादा काम करने पर सांस फूलने लगती है। सिर में दर्द होने लगता है। बेचैनी सताने लगती है। भूख भी नहीं लगती। नींद तो गायब ही हो जाती है।

परिणामत: व्यक्ति अनीमिया का मरीज बन जाता है।

हृदय रोगियों की जिस तेजी से हमारे देश में संख्या बढ़ रही है, यह सचमुच ही चिन्तन का विषय है। अभी कुछ दिनों पूर्व ही एक अनुसंधान में यह तथ्य उजागर भी हुआ है कि हृदय रोग से पीड़ितों की सर्वाधिक संख्या भारत में होगी।

करीब 27 प्रतिशत मौतें हृदय-रोग की वजह से हो रही है। जीवनशैली में बदलाव की हम आलोचना नहीं कर रहे हैं। बदलाव तो प्रकृति का नियम है किंतु प्रकृति के साथ खिलवाड़ समझदारी नहीं। दिन और रात की क्रियाओं का प्रकृति से सीधा संबंध है लेकिन आजकल इन संबंधों में कटुता पैदा हो रही है। बड़े-बुजुर्ग ही यदि जीवन शैली में आए बदलावों से बेफिक्र हो जाएं तो उसका खमियाजा नई पीढ़ी को तो भुगतना ही है और ऐसा हो भी रहा है।

असंतुलन बढ़ रहा है। लोग घरों में जागते हैं और दफ्तरों में ऊंघते हैं। जीवन को शांति से जीने की बजाए हम फास्ट जीना चाहते हैं। ‘फास्ट-फूड संस्कृति’ ने हमारी मानसिकता तक को दूषित कर रखा है। अनावश्यक जिम्मेदारियों को बढ़ाने के साथ-साथ ही हमने अपनी महत्त्वाकांक्षाएं भी बढ़ा ली है किंतु उनकी पूर्ति के लिए निर्धारित समयावधि को घटा लिया और स्वयं ही तनावग्रस्त जिन्दगी जीने को बाध्य हो गए।

आप चाहे किसी भी पेशे से जुड़े हों, उसमें सफल होने के लिए आपका शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना निहायत ही जरूरी होता है। तन के साथ ही साथ मन भी प्रफुल्लित रहना चाहिए। मांसपेशियों की ताकत बढ़ने के साथ ही उनके बीच बेहतर सामंजस्य और संतुलन भी स्थापित होना जरूरी है। तभी नर्वस सिस्टम सही रहेगा।

फेफड़े और रक्त संचार की व्यवस्था दुरुस्त होने से शरीर में चुस्ती और फुर्ती का विकास होता है। कैलोरी की भी अच्छी खासी खपत हो जाती है लेकिन यह तब संभव होगा जब आप नियमित व्यायाम करेंगे। सुबह की सैर करेंगे। रस्सी कूदना भी एक व्यायाम है। कुछ लोग स्वीमिंग को महत्त्व देते हैं तो कुछ बैडमिंटन को और कुछ सिर्फ खाने और सोने में ही जीवन का सच्चा सुख खोजते हैं। सच यह भी है कि जो जरूरत से ज्यादा सोता है, वह खोता है और जो जरूरत के अनुरूप भी नहीं सोते, वे भी खोते हैं।

तनावमुक्त रहने के लिए ध्यान योग, प्राणायाम जरूरी हैं जिसके लिए हमारे पास समय नहीं है। यही वजह है कि हमारे लिए समय भी सिकुड़ता जा रहा है। नियमित समय पर संतुलित आहार लेना तभी संभव होगा जब हम अपनी अनावश्यक आवश्यकताओं पर काबू पाने हेतु प्रयत्नशील होंगे। इसके साथ-साथ हमें समय समय पर हेल्थ चेकअप भी कराना होगा, तभी रोगों से बचाव होगा।

आज जरूरत है डिप्रेशन से बचने की न कि उसे गले लगाने की। यदि हम संयम एवं धैर्य के साथ धीरे-धीरे अपने जीवन स्तर को सुधारने की आदत डालें और उतनी ही सुख-सुविधाएं जुटाने का प्रयास करें जितनी एक अच्छी जिंदगी के लिये जरूरी हैं तो हम स्वयं एवं अपने परिवार को अनावश्यक तनावों से दूर रख सकते हैं। समझदारी इसी में है कि हम अपनी आवश्यकताओं का मूल्यांकन करें और अनावश्यक जरूरतों को कम करने का प्रयास करें।

बुजुर्गों ने ठीक ही कहा है ‘जितनी चादर, उतने ही पैर फैलाएं’ किंतु आज की इस आधुनिक संस्कृति में हर कोई पैर फैलाता जाता है और उसके बाद चादर लंबी करने की कोशिशों में जुटता है। यहीं हर किसी से चूक होती है और अच्छी-खासी जिंदगी तनावग्रस्त हो जाती है। अच्छा होगा यदि हम आत्मिक एवं मानसिक सुख-शांति को महत्त्व दें, न कि भौतिकतावाद को। जरूरी है मानसिक तनाव से स्वयं को मुक्त रखने की और वह संभव है ईश्वर के नाम का स्मरण करने से।
-दीपक लालवानी

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