लंगर पकता रहा, पीपे में आटा ज्यों का त्यों रहा… -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
माता प्रकाश इन्सां पत्नी श्री गुलजारी लाल जी निवासी मंडी डबवाली, जिला सरसा (हरि.) से पूजनीय सतगुरु बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की दया-मेहर, रहमत का एक प्रत्यक्ष अनुभव, बेपरवाही रहमत का आंखों देखा कमाल, एक अद्भुत करिश्मा इस प्रकार ब्यां करती हैं:-
माता बताती हैं कि यह 1958 की बात है। दिन-महीना तो मुझे पक्के तौर पर ख्याल में नहीं है, उस दिन पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज मलोट में सत्संग करने के लिए पधारे थे। पूजनीय सार्इं जी के सत्संग में जाने को मेरा भी बहुत दिल करता था। मेरे तीन छोटे-छोटे बच्चे थे कि पीछे उनकी कौन संभाल करेगा और साथ ले जाऊंगी तो वो कैसे रह पाएंगे, इसी मुश्किल के कारण मैं सत्संग में नहीं जा सकी। लेकिन अपने सतगुरु सार्इं जी के दर्शनों की तड़प बहुत बनी हुई थी। जब हमें यह सूचना मिली कि पूजनीय सार्इं जी मलोट में सत्संग फरमाने के बाद डबवाली में हमारे घर पर आएंगे, तो यह शुभ समाचार सुनकर दिल बागो-बाग हो गया।
यह सुखद समाचार मेरे जेठ (मेरे पति के बड़े भाई) बनवारी लाल ने खुद हमारे घर पर आकर बताया था। हम उसी समय ही पूजनीय सार्इं जी के स्वागत की तैयारी में जुट गए। सार्इं जी अपने कुछ सेवादारों के साथ सुबह करीब चार बजे जीप में हमारे घर पर पधारे। हमने पूजनीय बेपरवाह जी तथा सेवादारों के आराम करने के लिए पहले से ही इंतजाम कर रखा था। तीन-चार घंटे तक विश्राम करने के बाद पूजनीय बेपरवाह जी ने करीब सात-आठ बजे हमें परिवार वालों को अपने पास बुलाया। सार्इं जी ने हम सबको अपनी रहमत का पावन प्रशाद दिया और अपने वचनों व पवित्र दर्शनों से बेअंत खुशियां प्रदान की। उपरांत साई जी ने सेवादारों को अपना यह पवित्र आदेश फरमाया कि आस-पास की साध-संगत को सूचना दे दो कि हम यहां पर रुकेंगे और रात को यहीं पर सत्संग करेंगे।
जैसे ही साध-संगत को सूचना मिली, संगत सार्इं जी के पावन दर्शनों के लिए आना शुरु हो गई। सार्इं जी सभी साध-संगत को मिलते और उनके साथ बातचीत, वचन-बिलास करते। लंगर का इंतजाम करना भी जरूरी था। पूजनीय बेपरवाह जी के हुक्म से हमने चार बजे संगत के लिए लंगर का इंतजाम किया। लंगर का सारा प्रबंध केवल, हमारे परिवार की तरफ से ही था। हमारे पास उस समय केवल एक पीपे में ही आटा था। हमारे पड़ोसियों ने लंगर में अपना हिस्सा डलवा लेने का बहुत जोर लगाया, लेकिन मैंने उन्हें यह कहकर संतुष्ट किया कि जब हमारा आटा खत्म हो जाएगा, तो आप लोगों से हिस्सा डालने के लिए कह दूंगी।
सतगुरु जी की मेहर से ‘धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ का नारा बोलकर पीपे से आटा निकाल-निकालकर गूंथते रहे। लंगर पकता रहा, संगत आती रही और लंगर खाती रही। इस तरह संगत के सैकड़ों लोग लंगर-भोजन खा गए। सच्चे सतगुरु सार्इं पूजनीय बेपरवाह जी की दया-मेहर को हमने प्रत्यक्ष रूप से देखा कि इतनी बरकत हुई कि पीपे में आटा फिर भी खत्म नहीं हुआ। यह स्वयं सतगुरु जी का ही करिश्मा था। उनकी दया-मेहर थी और सभी लोगों ने अपनी आंखों से देखा था। सभी देखने-सुनने वाले दंग रह गए।
सतगुरु प्यारे दाता सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने स्वयं हमारी लाज रखी। यह भी सार्इं सतगुरु जी की ही रहमत है कि सार्इं जी ने मुझे अपने पवित्र चरणों से जोड़ा हुआ है। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पवित्र चरणों में हमारी यही विनती है कि हमें हमेशा अपने पवित्र चरणों से जोड़कर हमारा विश्वास सतगुरु, दाता-रहबर एमएसजी डेरा सच्चा सौदा के प्रति ज्यों का त्यों बनाए रखना जी और समय आने पर अपने पवित्र चरणों में ही मेरी ओड़ निभा देना जी।