परमार्थी सेवा करने से संवरे काम -सत्संगियों के अनुभव
पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
प्रेमी मिस्त्री बिगला सिंह इन्सां पुत्र श्री गुरदेव सिंह गांव झाड़ों तहसील सुनाम जिला संगरूर (पंजाब) हाल आबाद उपकार कॉलोनी गांव शाह सतनाम जी पुरा जिला सरसा से परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपने पर हुई अपार रहमतों का वर्णन करता है:-
मेरी लड़की इन्द्रजीत कौर गांव काहने के जिला बरनाला में विवाहित है। उसका पति गुजर गया था। उसका लड़का यानि कि मेरा दोहता 6-7 साल का हो गया था। उसके पांव काम नहीं करते थे, वह रुढ़ता था। तीन साल तक उसको मिर्गी का दौरा पड़ता रहा। मैंने अपने दोहते को सरकारी हस्पताल बरनाला से चैक-अप करवाया। उन्होंने एक एक्सरे तो करवा लिया था, फिर मैडम डाक्टरनी कहने लगी कि पटियाला से रंगीन एक्सरे करवा कर लाओ। मैंने उनसे पूछा कि इस बच्चे के इलाज पर कितना खर्चा आएगा? उन्होंने पचास हजार रुपये खर्चा बताया। मैंने कहा कि मैं इतना खर्चा नहीं कर सकता। मैं अपने घर आ गया।
मैंने सुमिरन के दौरान अपने सतगुरु परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के चरणों में अरदास कर दी कि पिता जी! आप मेरा दोहता ठीक कर दो। आप सब कुछ करने के सामर्थ हो। मैं आप जी के वचनोंनुसार किसी गरीब जरूरतमंद का घर बना दूंगा। पिता जी ने मुझे ख्याल दिया कि फिर तेरा दोहता भी ठीक हो जाएगा। मैंने उन दिनों में ही तपा ब्लॉक के जिम्मेवार सत्संगियों से मिलकर काहनेके गांव में एक विधवा गरीब जरूरतमंद बहन का घर बना कर दिया। परमार्थ भी किया और हाथों से सेवा भी की। उस बहन का मकान बनते-बनते मेरा दोहता बिल्कुल ठीक हो गया। जबकि उसको देखकर हर कोई कहता था कि यह ठीक नहीं होगा। उससे पहले उसे निरंतर तीन साल दवाइयां खिलाई, उसे जरा भी फर्क नहीं पड़ा था। इस तरह मेरी सच्ची पुकार सुनकर सतगुरु जी ने उसे नौ-बर-नौ भाव बिल्कुल तंदुरुस्त कर दिया।
सन् 2013 की बात है, मैं अपनी लडकी के पास गांव काहनेके में था। मैं खेत को पानी लगाने गया तो मेरी दार्इं टांग खेत में मेरी जांघ तक धंस गई। मैंने टांग को बाहर खींचने की कोशिश की, बहुत जोर लगाया, परन्तु टांग बाहर न निकली। मैंने अपने हाथों से मिट्टी खोद-खोद कर हटाई, फिर मैंने टांग खींची तो टांग बाहर निकल आई। मैंने टांग पर भार देने की कोशिश की, चलने की कोशिश की, परन्तु मुझसे चला नहीं गया। फिर मैंने अपने सतगुरु द्वारा बख्शे नाम का सुमिरन करना शुरू कर दिया। एक घंटे के सुमिरन के उपरांत टांग में हिल जुल हुई। मैं बड़ी मुश्किल से वहां से धीरे-धीरे चलता हुआ, रास्ते में बार-बार सांस लेता, ठहरता हुआ दो किलोमीटर पर अपने घर पहुंचा। चलते समय मुझे इतना दर्द होता था, ऐसे लगता था कि आज प्राण निकल जाएंगे। उसके उपरांत मैंने बठिंडा में डाक्टर को टांग दिखाई तो उसने पूरा चैक-अप करके कहा कि दार्इं टांग का चूकणा बदलना पडेÞगा।
मैं अपने घर की गरीबी के कारण चूकणा नहीं बदलवा सका। मैंने छ: महीने अलग-अलग डॉक्टरों तथा वैदों से दवाइयां खाई परन्तु टांग को कोई फर्क नहीं पड़ा। जब मैं टांग पर भार देता था तो दर्द होता था। मैं डेरा सच्चा सौदा सरसा मेें दिसम्बर में लगने वाले आॅखों के मुफ्त जांच तथा आप्रेशन कैम्प पर सेवा करने के ख्याल से पहुंच गया। जब परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां कैम्प में आए तो हजूर पिता जी ने सेवादारों तथा मरीजों को सम्बोधित होते हुए वचन फरमाया, ‘जो मरीज हैं, वह एक तरफ खडेÞ हो जाओ।’ मैं आया तो सेवा करने के लिए था परन्तु मैं भी मरीजों के साथ खड़ा हो गया।
पिता जी ने वचन फरमाया, ‘भाई! कोई दु:ख तकलीफ है तो बताओ।’ सभी मरीज कहने लगे कि ठीक हूं पिता जी। मैंने अपने हृदय में पिता जी को प्रार्थना की कि पिता जी! मेरा चूकणा ठीक कर दो। मुझे यह बदलना ना पड़े। मैं पक्का सेवा में आया करूंगा तथा आप जी के दिशा निर्देश के अनुसार मानवता की सेवा किया करूंगा। बस! मुझे ठीक कर दो जी। कुल मालिक सतगुरु हजूर पिता जी ने सभी मरीजों को आशीर्वाद दिया और वचन फरमाया, ‘भाई! दवाई लै के जाइओ।’ मैंने पिता जी के वचनोनुसार कैम्प में अपना चैक-अप करवा कर मुफ्त दवाई भी ले ली।
मेरी टांग में तो उसी दिन दर्द कम हो गया। मैंने वचनोनुसार वह दवाई सुमिरन करके खाई। मेरा दर्द घटता-घटता बिल्कुल ही खत्म हो गया। उसके बाद मुझे याद ही नहीं रहा कि कभी मेरी टांग में दर्द था। सतगुरु जी ने अपनी दया- दृष्टि और वचनों से मेरा चूकणा ठीक कर दिया। इस तरह हम मालिक सतगुरु के हुक्मानुसार जो भी करते हैं, मालिक हमारी पल-पल मदद करता है।