सत्संगियों के अनुभव : पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
सुमिरन के लिए अलसुबह आकर उठाते प्यारे मुर्शिद
प्रेमी राम गोपाल इन्सां पुत्र सचखण्डवासी कृष्ण चन्द रिटायर्ड एस.ई. सिंचाई विभाग (हरियाणा) निवासी शाह सतनाम जी नगर सरसा ने अपने जीवन से जुड़ी अनमोल यादों एवं सतगुरु की रहमत का इस प्रकार बखान करते हुए बताया कि सन् 1990 की बात है। उस समय हम सपरिवार भाखड़ा ब्यास मैनेजमैंट बोर्ड की कालोनी हिसार में रहते थे।
उस समय मेरे पिता जी एक्सीयन के पद पर थे। हमारा सभी का पूज्य परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज से नाम-शब्द लिया हुआ था। पूरा परिवार बाकायदा सत्संग में जाया करता था। मेरे डैडी व मुझ पर परमपिता जी की इतनी रहमत थी कि परमपिता जी हमें सुबह तीन बजे नाम सुमिरन करने के लिए उठा दिया करते। हम लॉबी में आकर आपस में पूछते कि पिता जी ने उठाया है? अब चाय पीकर सुमिरन में बैठते हैं।
जब हम चाय बनाते, थोड़ा-बहुत शोर हो ही जाता। चाय पीकर हम अपने-अपने कमरे में सुमिरन करने बैठ जाते। मेरी माता जी, कई दिनों तक यह सब कुछ देखती रही कि ये दोनों क्या करते हैं? मैं हर रोज माता जी को बताता कि पिता जी(परम पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) स्वयं अपने घर आते हैं। इसलिए हम बाप-बेटा रात को सफाई करके ही सोते थे।
एक दिन मेरे मम्मी कहती कि मुझे क्यों नहीं उठाते पिता जी? अगले दिन मैंने परमपिता जी को अरदास की कि मेरी मम्मी जी को भी दर्शन दो, वह भी उठे और सुमिरन करे। उससे अगले दिन सुबह तीन बजे हम तीनों को ही परमपिता जी ने नींद से उठा दिया। फिर हमने आपस में पूछा कि आज कैसे उठे? मेरे मम्मी जी कहने लगे कि घंटी बज रही है। पता करो, बाहर कोई आया है। मैं समझ गया कि पिता जी आए हैं।
घर के बाहर सुबह तीन बजे कौन हो सकता है? फिर भी हमने बाहर जाकर देखा, वहां कोई नहीं था। अपने पहरेदार से पूछा कि आज हमारे घर सुबह कौन आया था। पहरेदार कहने लगा कि साहब यहाँ पर बिना परमिशन के कोई कालोनी के अन्दर नहीं आ सकता। उससे अगले दिन सुबह तीन बजे जोर का धमाका सा हुआ।
हमने बाहर जाकर देखा तो वहां पानी वाला खाली टब था जो मेरे कमरे के साथ टेढ़ा पड़ा हुआ था, वह टब तीस फुट की दूरी पर मम्मी जी के कमरे के पास जा गिरा। मुझे तुरन्त बात की समझ आ गई कि पिता जी ने आज घंटी नहीं, घण्टा बजाया है।
हमने पूज्य परमपिता जी का लाख-लाख धन्यवाद किया। पूज्य परमपिता जी के प्रकट स्वरूप पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के चरणों में हमारी यही विनती है कि हम पर ऐसे ही दया-मेहर-रहमत बनाए रखना जी।
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