रूहानी सत्संग: पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी धाम, डेरा सच्चा सौदा सरसा
कुछ भी ना सोचे, कुछ भी ना समझे, कैसा बना अनजान, जैसे नादान है जी।
जो भी साध-संगत अपने कीमती समय में से समय निकालकर, मन का सामना करते हुए ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम की याद में आकर बैठी है आप सभी का सत्संग में पधारने का तहदिल से बहुत-बहुत स्वागत करते हैं, जी आया नूं, खुशामदीद कहते हैं, मोस्ट वैल्कम।
आज आपकी सेवा में जिस भजन पर सत्संग होने जा रहा है वो भजन है :-
कुछ भी ना सोचे, कुछ भी ना समझे,
कैसा बना अनजान
जैसे नादान है जी।’
इस घोर कलयुग में इंसान सब कुछ समझते हुए भी ना समझ बना हुआ है। बहुत सी ऐसी बातें हैं जिन्हें इंसान अच्छी तरह से समझता है। जैसे हर कोई जानता है कि संसार में से कुछ भी साथ नहीं जाएगा। फिर भी हैरानी की बात है लोग धन-दौलत, जमीन-जायदाद, रुपए पैसे के लिए पाप-गुनाह करते नजर आते हैं और यह भी जानते हैं कि जब इस संसार से जाते हैं तो साथ यह शरीर भी नहीं जाता। कई लोगों ने अपने हाथों से अपने बुजुर्गों का दाह-संस्कार किया हुआ होता है फिर भी इंसान ये ही सोचता है, उसका मन यही कहलवाता है कि जाने वाले गए, तू दुनियावी धंधों में फंसा रह। अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, रब्ब उसकी चर्चा करने वाले पीर-फकीर किसी को कुछ भी समझाएं, अमल करने वाले दिन-ब-दिन कम होते जा रहे हैं।
सुनते हैं, सिर झुकाते हैं लेकिन जब मानने की बात आती है तो मानते वो हैं जो मन कहता है। लोग मन के कहे अनुसार चलते हैं और मन नैगेटिव पावर का एजेंट है, वकील है। यह बुरे ख्यालात देता है, बुरे विचार देता है, हमेशा बुरी दलील देता है और इंसान किसी न किसी बुराई में तो पड़ ही जाता है। सब कुछ जानते हुए, समझते हुए अनजान बनता है। बहुत से लोग सत्संग सुनते रहते हैं फिर भी बहानेबाजी से कोई न कोई तरीका सोचकर राम-नाम में समय लगाने की बजाए उसी समय को बुरी व गलत सोच में लगाना पसंद करते हैं और साथ वालों को बहाना कि हमें तो दु:ख, परेशानी है, हमें चिंता है, हम बीमार हैं, हम जा नहीं पाएंगे। ऐसा बहुत सी जगह पर हो रहा है कि वो बहाने से राम-नाम से टल जाते हैं और बुरे कर्मों में फंस जाते हैं।
राम-नाम की याद में बैठना, ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम की याद में बैठना उनको गवारा नहीं पर वो ही समय विषय-विकार, बुरे विचार, बुरी सोच में बैठना उन्हें अच्छा लगता है। बहुत से सत्संगी भी कई बार मनमते चलने वाले लोगों के हत्थे चढ़ जाते हैं। अच्छी भक्ति का मार्ग अपनाया होता है, राम-नाम के रास्ते पर चल भी रहे होते हैं पर मन के हत्थे मजबूर होकर राम-नाम का संग छोड़कर बुराई के संग में बैठना ज्यादा अच्छा समझते हैं।
किसी का कुछ भी नहीं जाता बल्कि ऐसा करने वाला खुद दुखी, परेशान, गमगीन होता है। ओ३म, हरि, अल्लाह, राम को मखौल समझ रखा है कि वह कुछ भी नहीं जानता। भाई! दुनिया को बुद्धू बनाया जा सकता है े ढोंग , बहानेबाजी , दिखावा करके पर वह जो मालिक, ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड है वह तो पल-पल की खबर रखता है कि आप कब क्या कर रहे हैं, कब कहां जा रहे हैं। हर क्षण, हर पल हर किसी के वो साथ है। पर फिर भी इंसान अनजान सा बन जाता है, नादान बन जाता है और उस पर संतों के वचनों का कोई असर नहीं पड़ता। भाई ! बुरा कर्म मत करो, जानते हुए ऐसा करते हैं बहुत बड़े गुनाहगार बनते हैं और आने वाले समय में आपको लेने के देने पड़ सकते हैं। यह सौ प्रतिशत सच है।
जैसे कर्म इंसान करता है, आने वाले समय में उनको भरता जरूर है। तो कोई भी ऐसा कर्म मत करो जिससे आपको दु:ख उठाना पड़े। पर फिर भी कई लोग बाज नहीं आते, मानते नहीं। तो हे इंसान ! तेरा करने वाला कार्य ईश्वर, अल्लाह की भक्ति-इबादत, उसकी बनाई सृष्टि की सेवा यही तेरा असली कर्त्तव्य था। हे भोले, नादान इंसान! इस लक्ष्य से भटक कर मन की गिरफ्त में कैद होकर क्यों गुमराह हो रहा है,क्यों अपने अल्लाह, राम, मालिक से दौड़ रहा है।
तो भाई! आप कभी भी बुरे कर्मों में मत पड़िए। आप जानते हैं, पहचानते हैं फिर भी कुएं में गिरते हो तो गलत बात है। कहीं अंधेरा है और आपके हाथ में लाइट है, बिना मुंडेर के कुआं है अगर आप उसमें गिर जाते हैं तो आप किसी और को दोष नहीं दे सकते। आप ये नहीं कह सकते कि मैं फलां आदमी की वजह से कुएं में गिरा हूँ। । ये बिल्कुल गलत है। आप किसी की वजह से नहीं बल्कि इंसान अपने खुद की वजह से दु:खी हैं, आप अपने खुद की वजह से कुएं में गिर रहे हैं। हाथ में दीपक यानि आपको ज्ञान है कि ये गलत बात है, ये बुरी बात है, ऐसा नहीं करना है ये आपके हाथ में दीपक है। सत्संग रूपी दीपक, संत, पीर-फकीरों का दिया ज्ञान रूपी दीपक आपके हाथ में है।
वो आपका मार्ग-दर्शन करता है फिर भी आप बुराई में, विषय-विकारों में, काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया में फंसते ही चले जाते हो तो जब आपका खुद का अकाज होता है तो फिर दोष संत-फकीरों को मत दीजिएगा। दोष आपका अपना है। ‘हाथ दीपक कुएं परे काहे की कुसलात’, किस बात की कुशलता है जो तू ये समझता है कि दुनिया की आंखों में धूल झोंक रहा है, बहाने से कि मुझे पता ही नहीं । किसी को कुछ ऐसा करने ही नही देता, किसी को अहसास होने ही नहीं देता। हे इंसान ! तू अपने पैरों पर कुल्हाड़ा मार रहा है। हे भोले इंसान ! ऐसा मत कर। जो ऐसा जानबूझकर करते हैं वह दु:खों के, परेशानियों के अधिकारी बनते चले जाते हैं । आने वाले समय में दु:ख, गम, चिंता, परेशानी उनका पीछा नहीं छोड़ती।
कुछ भी ना सोचे, कुछ भी ना समझे,
कैसा बना अनजान जैसे नादान है जी।
ऐसा लगता है कि ये तो बेचारा नादान है, इसे तो कुछ पता ही नहीं! जबकि सब कुछ पता होते हुए लोग बुरे कर्म करते है। तो वो लोग अपनी बेड़ी में बट्टे डालते हैं। वो खुद तो डूबेंगे और जो उनके संग में आएगा उसको भी डूबोएंगे। तो भाई! पीर-फकीरों के वचनों पर ध्यान दो, सोचो और अमल करो चाहे वो सख्त अलफाज हैं लेकिन उसको सोचो, विचारो, समझो कि वो सख्त अलफाज किसके लिए हैं और क्यों हैं, ताकि इंसानियत का भला हो। एक उदाहरण के तौर पर, जो गर्म पानी होता है वह कभी घरों को जलाता नहीं जबकि आग जला देती है।
पहले लोग गर्म पानी में नीम की पत्तियां डालकर घाव पर लगाते थे जिससे घाव ठीक हो जाया करता था। आज भी बहुत से लोग गर्म पानी से सकते हैं, गर्रारे करते हैं। इसलिए गर्म पानी अच्छा ही करता है बुरा नहीं करता लेकिन आग जलाने के ही काम आएगी। ये नहीं है कि आप उस पर बैठ जाएंगे और उससे कोई फायदा हो जाएगा। इतिहास गवाह है कि संत, पीर-फकीर जितने भी आए उन्होंने सख्त अलफाजों यानि गर्म पानी का इस्तेमाल किया ताकि इंसान समझ जाए,उसको अक्ल आ जाए और वो बुराइयां छोड़ दे।
जिसने भी मान लिया उसके जख्म भर गए और जिसने नहीं माना वो दु:खी होता रहता है। तो भाई! आप सोचो, विचारो, समझो। पीर-फकीर जो कहते हैं सभी के भले के लिए कहते हैं किसी के बुरे के लिए नहीं कहते। उनकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं होती, उनका किसी से कोई वैर-भाव नहीं होता। वह तो सभी को प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं, नेकी के मार्ग पर चलाना चाहते हैं और हर किसी का भला करने का उपदेश देते हैं। इस बारे में संत, पीर-फकीरों की बात बताई गई कि हर एक इलम के बारे में इंसान जानता है पर अपनी आत्मा के बारे में जिसके आधार करके सब इल्मों की प्राप्ति होती है और शरीर, मन और बुद्धि का सारा कार्य व्यवहार चल रहा है, हम कुछ नहीं जानते।
अपनी कीमत न जानने की वजह से इंसान बेवकूफ बना हुआ है। इंसान दुनिया के सब पदार्थों पर कब्जा भी कर ले पर यदि वो अपनी रूह के बारे कुछ नहीं जानता तो उसका सारा जीवन निष्फल चला जाता है।
साथ-साथ भजन, शब्द चलेगा साथ-साथ आपकी सेवा में अर्ज करते चलेंगे, चलो भाई।
टेक :- कुछ भी ना सोचे, कुछ भी ना समझे,
कैसा बना अनजान, जैसे नादान है जी।
1. दुर्लभ जन्म मिला है कैसा,
सारी चौरासी में नहीं कोई ऐसा।
हाथ से जाए फिर जल्दी न आए,
कोई ना इसको ज्ञान है जी। कुछ भी ना….
2. देवी-देवते इसको तरसें,
इसको पाने में लगते बरसें।
इसको पाएं और नाम ध्याएं,
हो जाए कल्याण है जी। कुछ भी ना….
3. पर जीव इसकी कदर न जाने,
मांस शराब लगा है ऐश उड़ाने।
पीओ और खाओ जी ऐश उड़ाओ,
दुनिया का यह फरमान है जी। कुछ भी ना….
4. सारी चौरासी में चक्कर लगाए,
जन्म-मरण दु:ख उठाए।
बैल बनाया, गड्डा हल वाहेया,
बोल सके न बेजुबान है जी।’ कुछ भी ना….
भजन में आया है:-
दुर्लभ जन्म मिला है कैसा,
सारी चौरासी में नहीं कोई ऐसा।
हाथ से जाए फिर जल्दी न आए,
कोई ना इसको ज्ञान है जी।
इसे दुर्लभ इसलिए कहा गया है कि ये किसी भी मोल पर, किसी भी बाजार से नहीं खरीदा जा सकता। शरीर तो सभी ऐसे हैं ज्यादातर एक बार खत्म होते हैं तो दोबारा वह सही नहीं हो पाते लेकिन इंसान को दुर्लभ इसलिए कहा गया है कि इंसान के शरीर में भगवान ने यह अधिकार दिए हैं कि इंसान अल्लाह, वाहेगुरु को इस जहां में रहता हुआ देख सकता है।
जो भी आत्मा इंसानी शरीर में आती है वह खुद-मुखत्यार है, उसको ये अधिकार है कि वह खंड-ब्रह्मण्ड पार करके जीते जी अपने निजमुकाम को देख सकती है, कैसे सृष्टि की रचना हुई इसे पहचान सकती है, मालिक ने क्या-क्या रच रखा है इसे जान सकती है और यह तभी संभव है जब बाकायदा सही ढंग से, सच्ची तड़प से अल्लाह, राम, वाहेगुरु की याद में समय लगाया जाए।
कितने दिनों में वह सब नजर आएगा वह आपकी भावना पर निर्भर है। कब आप एकाग्रता ला पाएंगे, कब आपके विचार केंद्र बिंदू पर जम पाएंगे, सही रास्ता हो, अभ्यास करो तो आप आत्मिक तरंगों के द्वारा वहां की सैर कर पाओगे, वहां पहुंच जाएंगे जहां मनोतरंग या अक्ल-चतुराई से नहीं जा सकते। दुर्लभ जन्म ऐसा जन्म चौरासी लाख शरीरों में आत्मा को और नहीं मिलता, इस शरीर का मुकाबला और किसी शरीर से नहीं हो सकता।
हाथ से जाए फिर जल्दी न आए,
कोई ना इसको ज्ञान है जी।
हाथ से यह चला जाता है तो फिर जल्दी से हासिल नहीं होता। पुनर्जन्म होता है लेकिन वह करोड़ों में कोई एक ही होता है और वह भी इसलिए कि उस इंसान के अंदर मालिक की याद थी, मालिक से मिलने की तड़प थी तथा वह तड़प पूरी नहीं हो पाई और इतने में मौत हो गई तो उसे मालिक अपने मिलने का एक और अवसर यानि मनुष्य का शरीर देते हैं या कोई ऐसे रूहानी पीर-पैगम्बर जो मालिक से एक हो चुके हैं, उसको देख लेता है और चाह पैदा होती है कि वह भी अल्लाह, राम से मिले और मौत हो जाती है, उस पर हो सकता है मालिक दया-मेहर, रहमत करे, उसे फिर से इंसान का जन्म दे दे ।
ऐसा कहीं करोड़ों में एक-आधा या दो-चार ही गिनती में आते हैं। ये नहीं है कि हर किसी के साथ ऐसा हो। जो आता है आत्मा रूपी जीव चौरासी लाख शरीरों में चक्कर लगाता है, भ्रमता है। भ्रमते-भ्रमते ही इंसान का शरीर मिलता है और उसमें अगर अल्लाह, वाहेगुरु, राम को याद करे तो आवागमन से मोक्ष-मुक्ति मिल सकती है अन्यथा फिर से जन्म- मरण के चक्कर में चला जाता है।
देवी-देवते इसको तरसें,
इसको पाने में लगते बरसें।
इसको पाएं और नाम ध्याए,
हो जाए कल्याण है जी।
इस बारे में कबीर साहिब की बाणी में बताया है :-
गुर सेवा ते भगति कमार्ई।।
तब इह मानस देही पाई ।।
इस देही कउ सिमरहि देव।।
सो देही भजु हरि की सेव।।
भजहु गुोबिंद भूलि मत जाहु॥
मानस जनम का एही लाहु।।
इस शरीर के लिए देवी-देवता सुमिरन करते हैं कि हमें ये शरीर जल्दी मिले क्योंकि उनको पता है कि आवागमन से मोक्ष- मुक्ति इंसानी शरीर में संभव है। कबीर जी कहते हैं कि ये शरीर आपको तो मिल गया, देवी-देवता तो इसके लिए सुमिरन करते हैं लेकिन आपने उल्टा काम चला रखा है, आप उनका सुमिरन करते हैं। वो आपके शरीर का सुमिरन करते हैं। तो भाई, ये उल्टे बांस बरेली को हैं। उल्टा ही काम चला हुआ है।
होना तो ये चाहिए कि आप उसको याद करें जिसके लिए शरीर बना है, जिसके लिए देवी-देवता भी तड़पते हैं। वह दोनों जहान का मालिक ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, खुदा, रब्ब है । उसकी याद में इंसानी शरीर में ही आत्मा मालिक को पा सकती है और किसी शरीर में नहीं पा सकती। ये ही कबीर जी ने बताया कि आप सुमिरन करें, मालिक की सृष्टि की सेवा करें, यही इंसानी शरीर का सबसे बड़ा लाभ है।
‘पर जीव इसकी कदर न जाने,
मांस शराब लगा है ऐश उड़ाने।
पीओ और खाओ जी, ऐश उड़ाओ,
दुनिया का यह फरमान है जी।
दुनिया वाले कहते हैं कि खाओ पीओ, ऐश उड़ाओ, यह जग मीठा है अगला किसने देखा है। कोई कहीं भी जाता है, मान लो कोई ससुराल जाता है, कहीं रिश्तेदारी में जाता है। खूब उसकी मेहमान नवाजी करते हैं हलवा बनाते हैं, खीर बनाई, दूध जो भी वो अपने हिसाब से कर सकते हैं वो करते हैं, खूब सेवा करते हैं लेकिन वह जाने वाला मेहमान शराब पीने वाला है, मांस-अंडा खाने वाला है।
जब लौटकर आता है तो यार-दोस्त पूछते हैं कि यार! सुना कैसी सेवा हुई? वह कहने लगा कि सेवा के बारे में, घास जैसी रसोई थी, मूंग की दाल खाने वाले थे वो खिला दी। इंसान मांस के बिना अन्य सब पदार्थों को तो घास समझता है। शराब को पीना बेहतर समझता है जबकि दूध, घी कुछ भी खिलाएं कहता है कि कुछ भी नहीं खिलाया। तो भाई! ये शराब इंसान का बहुत बुरा हश्र करती है। बेईज्जती करवाती है, नर्कों में लेकर जाती है। हर धर्म में इसको रोका गया है।
मांस मछुरिया खात है, सुरा पान के हेत॥ ते नर जड़ से जाएंगे, ज्यों मूरी का खेत।’अर्थात गाजर, मूली निकालते हैं तो वो जड़ से निकलती है। खेत में उसका कोई नामोनिशान नहीं रहता। वैसे ही ये जो काम करते हैं उनका हश्र भी वैसा ही होता है नर्को में अड्डा लग जाता है, तड़पते रहते हैं और मालिक की दया-मेहर को हासिल नहीं कर पाते। तो भाई ! ये बुराइयां हैं, इनसे दूर रहो वरना तड़पना पड़ेगा। मांस शराब कभी मत पीओ, नशों से परहेज करो।
भजन में आगे आया है :-
सारी चौरासी में चक्कर लगाए,
जन्म-मरण दुख उठाए,
बैल बनाया, गड्डा हल वाहेया,
बोल सके न बेजुबान है जी।
इस बारे में बताया है कि
जो रूहें नर्को में से निकलती हैं, वो पहले वृक्षों में प्रवेश करती हैं फिर कीड़े-मकौड़ों में, फिर वनस्पतियों में, फिर पशुओं में और फिर मनुष्य का जन्म लेती हैं।
‘लख चउरासीह भ्रमतिआ दुलभ जनम पाइओइ॥
नानक नामु समालि तूं सो दिनु नेड़ा आइओइ॥
चौरासी लाख शरीर में चक्कर लगाते-लगाते आखिर में ये मनुष्य का जन्म मिला है। इसमें अगर कोई प्रभु, अल्लाह, राम को याद करे तो आवागमन से आजादी है वरना जन्म-मरण में जाना पड़ता है। हिंदू फकीर भी यही कहते हैं कि आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है और इसी तरह चौरासी लाख शरीरों का चक्कर चलता रहता है। तो भाई ! ये आत्मा आज जो खुदमुखत्यार इंसानी शरीर में बैठी है एक दिन इसने गंदगी के कीड़े का भी शरीर धारण किया था। इसने बैल बनकर कहीं पर हल भी जोता होगा।
पता नहीं कौन-कौन शरीर जो आज लिखे भी नहीं जा सकते, उन चौरासी लाख शरीरों में से गुजर कर यह आत्मा आई है। तो अभी अगर नाम जपो तो बच सकते हो अन्यथा फिर से जन्म-मरण के चक्र में जाना पड़ेगा। जैसे बैल को डंडे भी पड़ते हैं लेकिन वह फिर भी बोल नहीं सकता। इसी तरह अन्य जूनियों में बड़े ही दु:ख उठाने पड़ते हैं। जन्म-मरण के दु:ख बेशुमार हैं। आवागमन से मोक्ष-मुक्ति इंसान ही हासिल कर सकता है, अल्लाह, राम के दर्श-दीदार कर सकता है। सारी सृष्टि को देख सकता है, पहचान सकता है, कैसे बनी ये जान सकता है। केवल एक ही तरीके से और वह तरीका है राम का नाम, अल्लाह की इबादत, वाहेगुरु की याद, सही ढंग से करे तो यह अपने आप की हस्ती को पहचान सकता है और अंदर- बाहर मालिक के दर्श-दीदार कर सकता है।
थोड़ा भजन रह रहा है, चलिए भाई!
5. पाई-पाई इकट्ठी कर माया जोड़ी,
तेड़ तागड़ी तेरी लेंगे तोड़ी।
साथ न जाए यहां रह जाए,
तुझे ले जाएँ शमशान है जी।
कुछ भी ना सोचे…
6. मानस जन्म का लाभ उठा ले,
स्वास-स्वास में नाम ध्याले।
नाम जिस ध्याया कदर है पाया,
जग में सफल फिर आन है जी।’ कुछ भी…
7. ‘शाह सतनाम जी’ ने बड़ा समझाया,
काल ने तुझको है बड़ा भुलाया,
अब भी जाग बना ले भाग,
फिर ना मनुष्य बन आन है जी। कुछ भी…
भजन के आखिर में आया है :-
पाई-पाईं इकट्ठी कर माया जोड़ी,
तेड़ तागड़ी तेरी लेंगे तोड़ी।
साथ न जाए यहां रह जाए,
तुझे ले जाएँ शमशान है जी।
पाई-पाई, एक-एक पैसा इंसान इकट्ठा करता है, तिगड़म लड़ाता है, ठग्गी मारता है, बेईमानी, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार से कमाता है, रातों-रात अमीर हो जाते हैं और लोग वाह-वाह करते हैं कि इसने बड़ा पैसा कमाया। मेहनत,हक-हलाल से ऐसा संभव नहीं है। जरूर वे ठग्गी, बेईमानी, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार या पाप से कमाते हैं। मेहनत इतनी जल्दी असर नहीं करती। हक-हलाल, मेहनत से लोग अमीर होते हैं पर उसके लिए बहुत समय चाहिए।
जिसके पास अपने बुजुर्गों द्वारा कमाई गई अच्छी जायदाद है, जमीन है वो मेहनत करता है उसे तो इकट्ठा करने में कुछ समय लगता है पर वो इकट्ठी की गई दौलत सुख, सुकून, चैन आराम देती है लेकिन जो ठग्गी बेईमानी से रातों-रात महल बना लेते हैं, बहुत कुछ इकट्ठा कर लेते हैं वो दुनिया की नजर में तो बड़ा हो जाता है लेकिन अल्लाह, राम, मालिक, परमात्मा से उसे सजा मिलती रहती है। इसलिए भाई! कभी भी ऐसा न करो और माया कमाने से मालिक नहीं मिलता। जब तू संसार से जाएगा तेरी तागड़ी भी तोड़ लेंगे। पुराने बुजुर्ग जो थे वो तागड़ी बांधा करते थे जिस पर घुंघरू से लगे होते थे, उनको शौक होता था जैसे आजकल कानों में रिंग डाला करते हैं।
पता ही नहीं चलता कि लड़का है या लड़की। ये रीत है। पहले तागड़ी बांधा करते थे, आजकल रिंग पहना करते हैं । तो जब मौत हो जाती है तो मुर्दे को नहलाते हैं। नहलाने का एक ही मतलब है कि इस बहाने मुंदरी, घड़ी, गले में डाली हुई चैन या तागड़ी आदि बांधी होती तो तोड़ लेते हैं, नहलाने से उन्हें तोड़ना आसान हो जाता है। हमने कई बुजुर्गों से पूछा कि आप इनकी घड़ी क्यों खोल रहे हैं? वे कहने लगे कि इसमें पानी डल जाएगा। हमने कहा कि मुर्दे में पानी पड़ गया तो इसमें पड़ जाएगा तो क्या हो जाएगा? मुर्दे ने कौन सा समय देखना है कि मैं 12 बजे शमशान में जाऊंगा? उसको तो आपने ही करना है। नहलाओगे तो भी आपके वश।
इधर हाथ छोड़ोगे तो उधर’ और उधर हाथ छोड़ो तो इधर हो जाएगा। वो तो आपके सहारे है लेकिन घड़ी में पानी नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि घर में काम लेंगे। थोड़े अमीर हो तो गरीबों को देकर धोंस जमाओगे, हमने देखा कि बुजुर्गों को मृत्युपरान्त कितना कुछ दान में दिया जाता है, जीते जीअ चाहे उन्हें सूखी रोटी न दी हो क्योंकि बुजुर्ग ज्यादा बड़बड़ करते थे। कहता है जब भी बात करता हूं अपने जमाने की बात लेकर बैठ जाता है। अरे आप पुराने जमाने के हैं और मैं नए जमाने का हूं। अरे! जन्मा तो उसी जमाने का है क्या हुआ अगर नया पुराना हो गया लेकिन कोई परवाह नहीं।
तो भाई! सब कुछ ले लेते हैं। बढ़िया से बढ़िया कपड़े भी उतार लेते हैं। सस्ता सा खादी या लट्ठा लाते हैं। कई जगह तो पूरा सिलते ही नहीं। कपड़े को एक जगह से काटकर गला बना लिया, साइडों से बाहें निकाल ली। ये भी नहीं कि कोई बढ़िया सा कपड़ा पहनाएंगे तथा एसी गाड़ी में नहीं, चार लोगों के कंधों पर ले जाया जाता है। वो दु:ख के मारे नहीं बल्कि उनका कंधा दर्द होने लगता है इसलिए बदलते हैं। ये रीत बनी हुई है। पहले शमशान दूर हुआ करते थे, तब ये रीत बना ली कि जिसको दु:ख है तो वो कंधा दे। दु:ख तो होता ही है ये बात मानी लेकिन वो दु:ख कुछ ही देर तक होता है पर कंधा तो सिर्फ इसलिए बदलते हैं क्योंकि वजन काफी होता है।
आजकल तो कैंटर भी बन गए हैं। ट्रैक्टर, गाड़ियां आदि में डाल देते हैं और शमशान में जाकर उतार लेते हैं। एक ही चबूतरे पर रखते हैं, जबकि पहले तो ढाई गज जगह होती थी लेकिन अब तो वो भी गई हाथ से। एक को जलाया साफ किया और दूसरे के लिए तैयार हो जाता है। सब कुछ चला गया, कुछ भी नहीं रहा। भाई ! वहां कोई मखमल के गद्दों पर नहीं ऐसी लकड़ियां जो किसी और काम नहीं आती वो तेरे काम आएंगी। अगर वो लकड़ियां किसी और काम आती तो तेरे लिए थोड़े ही थी। टूटी हुई, आड़ी, तिरछी और उस पर तेरे को लिटाकर फिर जला दिया जाएगा।
हां, जो थोड़े अमीर हैं वो चंदन की लकड़ी का इंतजाम कर लेंगे ताकि लोग उनकी वाह-वाही करें लेकिन जलाया तो शरीर ही जाएगा चाहे चंदन से जलाओ या मिट्टी के तेल से जलाओ और घी डालो या कुछ भी करो। हे इंसान ! तेरा ये हश्र होगा। फिर क्यों नहीं सोचता कि कुछ ऐसा बनाया जाए जिसे चिता की आग भी न जला सके, जिसे कोई तुझ से छीन नहीं सकता और वो एक ही धन है ओ३म, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु का नाम। वो ही एक ऐसा धन जिसे चोर-उचक्का नहीं चुराता, चिता की आग नहीं जलाती, पानी डुबो नहीं सकता। जितना धन कमाओगे, लगाओगे, खर्च करोगे उतना ही धन बढ़ता चला जाएगा। उतना ही आपको आनंद, चैन, सुकून मिलेगा। भजन में आगे आया है :-
‘मानस जन्म का लाभ उठा ले,
स्वास-स्वास में नाम ध्याले।
नाम जिस ध्याया कदर है पाया,
जग में सफल फिर आन है जी।
इस बारे में लिखा है :-
सफल बना ले जन्म मनुष्य का,
हरि का नाम ध्याले तू,
संतों के चरणों में अपना प्रेम-प्यार लगा ले तू।
कर अर्जोई मालिक के आगे,
माफ कसूर करा ले तू।
सत्संग कर संतों का भाई, नाम पदार्थ पा ले तू।
स्वास-स्वास में सुमिरन करके,
हृदय शुद्ध बना ले तू।
कई कहते हैं कि हम बचपन में नाम कैसे जप लें, कोई कहता है कि बुजुर्ग अवस्था में कलंक का टीका कैसे लगाएं। वो लोग राम-नाम को कलंक का टीका समझते हैं। एक फकीर ने लिखा है ‘विच्च जवानी ढग्गे चारे, वड्डा होके हल वाहेया। विच्च बुढ़ापे वड़ेआ मसीतीं, रब्बा तेरा उलांभा लाहेआ।’ कई ऐसे भी देखें हैं बिल्कुल जब सब कुछ हिलने लग जाता है, जब सब कुछ कंट्रोल से बाहर हो जाता है तब कहता है कि अब मैं भक्ति करने आया हूँ।
अरे! भक्ति क्या खाक करेगा, बोला तो ढंग से जाता नहीं। क्या नाम जपेगा? ऊपर से रोब अलग से मारते हैं कि मैं तो सब त्याग कर आया हूं। त्याग कर क्या खाक आया है। पैदा कर लिया, उनके लिए बना दिया और जब रिटायर हो गया तो कहता है कि मैं भक्त बन गया। ‘विच्च बुढ़ापे बड़ेआ मसीतीं, रब्बा तेरा उलांभा लाहेआ।’ ये दूसरों से फिर भी अच्छे हैं जो खुंड चर्चा करते हैं। पंजाब में या राजस्थान के गांव में हमने देखा कि बीच में सांझी जगह होती है वहां ये रिटायरमेंट वाले बैठे होते हैं और फिर ताश के पत्ते दे तेरे की, ले तेरे की, साथ में चुगली-निंदा करते रहते हैं।
इनसे तो वे ही अच्छे हैं जो मालिक की याद में तो आ गए। सुमिरन करें तो मालिक फिर भी दया-मेहर, रहमत करेंगे, आवागमन से मुक्ति भी मिलेगी लेकिन अपने आप को ये कहना कि मैं बहुत बड़ा भक्त बन गया, ये हो गया, वो हो गया। इंसान को ऐसा नहीं करना चाहिए। सारी उम्र क्या-क्या गुल खिलाए,क्या-क्या करते रहे वो पता नहीं क्यों भूल जाते हैं।
तो भाई! ये सच ही कहा फकीर ने कि सारी उम्र दुनियावी धंधे करता रहा, विषय-विकारों में पड़ा रहा और आखिर में मालिक की चौखट पर आकर थोड़ा सजदा किया कि मालिक, देख मैं तेरी चौखट पर आ गया हूँ तू नाराज न हो जाना। ये बड़ी ही अजीबो-गरीब बात है। कई लोग सारा दिन ठग्गियां मारते हैं और सवेरे नहा-धोकर मालिक के आगे घुटने टेक देते हैं कि ले मालिक, ये पैसे ले लेना और मुझे माफ कर देना। सारी उम्र ठग्गियां मारकर फिर कहीं न कहीं जाकर नहा आते हैें किसी तीर्थ स्थान पर या कई जगह पर जाते हैं। अपने-अपने सभी धर्मों में जगह है, वहां जाकर सिर झुका दिया और मैं ये बन गया, मैं वो बन गया आदि ये अहंकार आ गया और कुछ भी नहीं होता। पहले कम अहंकारी था अब अधिक अहंकारी हो गया। फायदा तो तब है जब आप अपने अंदर की मैल को धो डालें और यह राम-नाम, अल्लाह, गॉड, खुदा, रब्ब के सहारे, उसकी भक्ति-इबादत के सहारे ही संभव है।
‘मानस जन्म का लाभ उठा ले,
स्वास-स्वास में नाम ध्याले।
नाम जिस ध्याया, कदर है पाया,
जग में सफल फिर आन है जी।
उसी का जग में आना सफल हो जाता है जो मालिक का नाम लेते हैं, प्रभु की भक्ति करते हैं।
भजन के आखिर में आया है :-
‘शाह सतनाम जी’ ने बड़ा समझाया,
काल ने तुझको बड़ा है भुलाया,
अब भी जाग बना ले भाग,
फिर ना मनुष्य बन आन है जी।
इस बारे में लिखा है :-
काल का ये काम है कि वह किसी को भी अपने दायरे से बाहर नहीं जाने देता। इसने जीवों को एक तरह का जादू करके फरेब से काबू करके रखा हुआ है और हम अपने निज घर को भूल बैठे हैं और दर-ब-दरी हमारे भागों में लिखी गई है।
क्यों गाफिल होकर सोया है
आंखें मूंद कर ऐ इंसान।
जागकर अपना काम मुका ले
जिस लिए आया है जहान।
ये समय फिर हाथ नहीं आना
तू पछताएगा अंजान।
इस दुनिया के आंदर बंदे,
चार दिनों का तू मेहयान।
मनुष्य जन्म अमोलक पाया,
इसका मिलना नहीं आसान।
आगे भजन में आया है :-
‘शाह सतनाम जी ‘ ने बड़ा समझाया,
काल ने तुझको बड़ा है भुलाया।
अब भी जाग, बना ले भाग,
फिर न मनुष्य बन आन है जी।
सच्चे-मुर्शिदे-कामिल शाह सतनाम सिंह जी महाराज, जिन्होंने हमें रूहानियत का, इंसानियत का पाठ पढ़ाया, उन्हीं की दया-मेहर से हम आपकी सेवा में ये सब अर्ज करते हैं। हम तो सेवादार, चौकीदार हैं करने- करवाने वाले तो सच्चे मुर्शिदे-कामिल सतगुरु-मुर्शिद हैं, जिन्होंने ये राह दिखाया है जो इस राह पर चला रहे हैं और हमेशा चलाते रहेंगे। उन्हीं की दया-मेहर की बदौलत हम आपकी सेवा में अर्ज करते हैं कि काल, बुरे विचार आपको गुमराह करते हैं। आपको अपने रास्ते से हटा रहे हैं। अरे! जाग जाओ, फिर मत कहना कि होशियार नहीं किया।
हर तरह से तुझे जगा कर देख लिया, हर तरह से तुझे समझाकर देख लिया फिर भी अगर तू बाज नहीं आता तो अपने कर्मों की सजा भोगने के लिए तैयार हो जा। फिर मत कहना कि मैं पीर-फकीर वाला होते हुए भी मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ। ‘पीर-फकीर किसी की हामी कभी नहीं भरते जो उनके वचनों पर अमल नहीं करते। संत कहते हैं कि ठग्गी मत मार। कहते हैं कि ठग्गी तो मारुंगा पर एक लाख में से पांच हजार सेवा में लगा दूंगा, पिचानवे हजार खुद रगड़ जांऊगा। क्या फकीरों ने ये काम बताया है ? बीमार का इलाज करवाना, किसी भूखे को खाना खिलाना, प्यासे को पानी पिलाना, कोई बेघर है, तड़प रहे हैं, उसके बच्चे रो रहे हैं उनको घर बना कर देना। वो सोचता है कि कुछ इधर डाल देता हूं शायद कुछ फायदा होगा।
भाई! इससे तो अच्छा है कि तू पांच रुपए ही उनकी सेवा में लगा दे, जरूरी नहीं है कि पांच हजार लगाए पर वो पांच रुपए केवल मेहनत, हक-हलाल की रोजी-रोटी में से लगाना। देखना फिर वो पांच हजार तुझे कुछ भी नहीं दे पाएंगे और वो पांच रुपए तुझे माला-माल कर सकते हैं। तो दसां नहुंआं दी किरत कमाई, हक-हलाल, मेहनत, से जो कमाते हो उसमें से जो दान करते हो, उसमें से दान करोगे उसी का फायदा है।
जो किसी दूसरे के सहारे बैठ जाते हैं कि फलां आदमी से लूंगा, फलां आदमी दे देगा, ऐसा कब तक चलेगा। कब तक कोई देगा, कब तक कोई लेगा। एक दिन सब रास्ते बंद हो जाएंगे। मेहनत करो, हक- हलाल से खाओ, किरत कमाई करो, शेख-चिल्ली मत बनो। शेख-चिल्ली की तरह सपने देखते हैं। ऊंची दुकान फीका पकवान। सपने बड़े-बड़े लेकिन करना-करवाना कुछ भी नहीं। दुकान बहुत बड़ी, उसके अंदर बहुत कुछ सामान बना लेकिन जब खाकर देखा तो उसमें न चीनी, न घी, कुछ भी नहीं बिल्कुल फीका।
तो वही बात है कि न कोई मेहनत करे, न ही कोई हिम्मत करता है और जब सफल नहीं होता तो फिर मालिक को दोष देता है। दोष तो देगा ही क्योंकि मालिक ने कौन सा तुझे आकर कह देना है कि मुझे दोष क्यों देता है। किसी आदमी को कहकर देख, तुझे पता चल जाएगा। लड़ाई न हो जाए तो कहना। पर किसी आदमी को नहीं कहता। मालिक को कहना आसान है क्योंकि वो किसी को कुछ कहता नहीं लेकिन आप अपने लिए अकाज करते हैं ऐसा कह-कहकर। तो आप मालिक का नाम जपें, मेहनत, हक-हलाल की रोजी-रोटी खाएं, बुरे कर्मों से परहेज करें तो आप मालिक की दया मेहर के काबिल बनोगे।