हममें से कितने ऐसे लोग हैं जो अपने हिसाब से जिन्दगी जीने में सक्षम हैं ? हम हमेशा दूसरे क्या सोचेंगे, इस चिन्ता
के साथ जीते हैं और बदले में अपना सुख-चैन हंसी-खुशी सब खो बैठते हैं जबकि हमारे पास इतना कुछ होता है कि
हम जिन्दगी बहुत बेहतर तरीके से जी सकते हैं।
आपको अगर अच्छे बुरे का फर्क मालूम है, इतना विवेक आपके पास है तो आपके सुसंस्कार आपको जीवन पथ पर
गाइड करेंगे। दूसरे का सहारा मत खोजिए। कोई किसी का कितनी देर सहारा बन सकता है? अपने पर विश्वास रखना
ही अहम बात है। तब किसी के लिये आपको तोड़ना आसान न होगा क्योंकि इस जीवन में हर जगह यही खेल चलता
है। शायद इसी का नाम जीवन है।
यहां हर चीज हर बात आपस में संबंधित है
ऐसे लोग गिनती के होंगे जो अपने में अच्छाइयां पैदा करने, प्रतिभा को चमकाने और जितना बन पड़े, औरों का भला
करने जैसी सकारात्मक बातों की ओर ध्यान देते हैं वर्ना नकारात्मक ताकत ही उन पर ज्यादा हावी रहती है। बदला
लेना, दूसरे को नीचा दिखाने के लिए छल प्रपंच बुनना, दूसरे के दुख में सुख संतोष खोजना, यही जैसे उनके जीवन का
खास ध्येय रहता है।
प्रगति वे भी करते हैं लेकिन यह केवल सांसारिक प्रगति ही हो सकती है। रूहानी तौर पर वे पिछड़े रह जाते हैं जबकि
मानव जीवन का अंतिम सच उसका नैतिक विकास ही है। कई लोग स्वभाव से शुरू से ही अच्छे होते हैं। शायद कुदरत उन्हें ऐसा ही बनाती है। वे भाग्यशाली हैं। उन्हें चाहिए कि वे अपनी अच्छाई को कायम रखें लेकिन दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों को चाहिए कि अपनी कमी को समझें, उसका अहसास करें और उसे दूर करने का प्रयत्न करें क्योंकि ईष्यालु व दुष्ट प्रकृति के लोग कभी सच्ची खुशी हासिल नहीं करते हैं। यह खुशी तो नेक व सरल हृदय वाले लोगों को ही मिल सकती है।
-उषा जैन ‘शीरीं’
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