गऊ को रोटी खिलाना हमारी पुरातन संस्कृति, गायों की संभाल के लिए बने नैचुरली वातावरण : पूज्य गुरु जी
गाय को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बताते हुए पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि वर्तमान दौर में गायों के लिए राम राज्य जैसा माहौल बनाने की सख्त जरूरत है। आजकल देखते हैं कि गऊएं रोड पर बड़ी घूमती हैं।
कहीं सांड भिड़ रहे हैं। गौचर भूमि, एक भूमि होती है, जो हमने बागड़ी में सुना उधर राजस्थान में, यानि गऊ के लिए स्पेशल जगह, रहने के लिए, खाने के लिए दी जाती थी। राजा-महाराजा होते थे या आज भी हो सकता है वैसा ही हो। तो वो स्पेशली जमीन होती तो अगर वो लीज पर मिले, उस पर आप ट्यूबवेल लगाएं, उस पर खुले शैड वगैरहा हों, बड़े-बड़े पेड़ हों और जो गऊएं हैं या सांड हैं वो वहां विचरण करें तो नैचुरली एक वो वातावरण मिले, जो मान लेते हैं कभी सतयुग में होता होगा, कि खुले वातावरण में वो घूम रही हैं, उनके गले में रस्सा नहीं है, वो चर रही हैं, कहीं खा रही हैं। तो ये एक फर्ज बनता है कि हमें भी अपनी विरासत संभालनी चाहिए।
हमारी संस्कृति संभालनी चाहिए। पूज्य गुरु जी ने गत 15 जुलाई को बरनावा आश्रम से आॅनलाइन रूहानी मजलिस कार्यक्रम के दौरान गाय के दूध, गोबर, गौमूत्र और स्पर्श के वैज्ञानिक व लाभदायक पहलूओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि गऊ का बहुत बड़ा महत्व है, इसलिए हम इसे गऊ माता कहते हैं। गऊ का दूध सर्वोत्तम है बहुत सारी चीजों में। ये जो भी खाती है उसे बहुत तेजी से दूध में बदल देती है। गऊ के ऊपर आप हाथ फेरोगे तो आपको पॉजीटिव एनर्जी जरूर आएगी। किसी पशु पर हाथ फेर लो और गऊ पर हाथ फेर लो उसमें आपको अंतर जरूर महसूस होगा। दूसरी बात गऊ के मल मूत्र में एंटी बैक्टीरिया तत्व होते हैं।
आपजी ने फरमाया कि हम राजस्थान के वासी हैं और 1972-73 में हमारे जो चूल्हे-चौके होते थे, उसमें गऊ का गोबर व पेशाब मिट्टी में मथकर वहां पोंछा जरूर लगाया जाता था और बाल्टी में भिगोकर वो रख दिया जाता था। बाद में उससे पोंछा सब जगह लगाया जाता था। यही नहीं, किसी के बच्चा होता था तो उस कच्चे मकान में भी गऊ के मल मूत्र को मिलाकर मिट्टी का पोंछा लगता था। गौमूत्र और गोबर मिली मिट्टी का पोंछा लगाने से बीमारियां नहीं आती। पूज्य गुरू जी ने बताया कि अब आप लोग अपने आप को हाईटैक मानते हैं, हम कहते हैं हम लोग हाईटैक थे उस टाइम में, बहुत सारी चीजों में। आप एंटी बैक्टीरियां, एंटी वायरस के लिए पता नहीं कितना खर्च करते हो और हम सिर्फ गऊ के गोबर और मूत्र से एंटी बैक्टीरिया और एंटी वायरस बना लेते थे। नीम बांध लिया एंटी बैक्टीरिया हो गया। कहने का मतलब हमारे पवित्र वेद बहुत ज्यादा हाईटैक थे और हैं, उनमें ये चीजें थी।
पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि हम लोग घर में खाना खाते थे तो एक रोटी जरूर निकालते थे, खाना खाने से पहले, और उस रोटी को गऊ माता को खिलाया करते थे। हमारी माता जी, आटा निकाला करती थी, वो जीव-जंतुओं के लिए आटा रखती थी। तो ये थी हमारी संस्कृति। लेकिन आज पशुओं की तो पूछो मत, आप किसी भी रोड़ पर देख लो बहुत सारे आवारा पशु घूमते हुए मिल जाएंगे। इतने मतलबी हो गए हैं आज के लोग, हद से ज्यादा स्वार्थी हैं। जब तक दूध दिया तो ठीक है, वरना मारा डंडा और बाहर।
आप जी ने फरमाया कि हमने ऐसा दौर भी देखा, जब मां-बाप तो क्या, पशुओं की भी घर में पूजा करते थे। हमारे बापू जी ने हमें बताया। घर में गऊ थी, बुजुर्ग हो गई थी, तो हमने कहा कि बुजुर्ग है अब इसका क्या होगा? दूध तो ये देती नहीं, अब तो ये शायद काम की नहीं। तो बापू जी बोले, ऐसा नहीं है बेटा! ये गऊ हमारी माता है। हमने इसका दूध पिया है। हालांकि ये दूध अपने बछड़े के लिए देती थी, लेकिन हमने भी लिया तो, इसने इंकार नहीं किया। इसका दूध पीते हैं तो नैचुरली ये हमारी माता होती है। इसका बछड़ा हैं उसके पीछे हम हल जोतते हैं, वो भी काम देता है।
और गऊ माता का मलमूत्र हम खेतों में डालते हैं, खाद के रूप में इस्तेमाल करते हैं, जिससे फसल बहुत ज्यादा अच्छी हो जाती है। इतना ही नहीं, हम इसके गोबर में मिट्टी डालकर पोंछा बना लेते थे राजस्थान में, और फिर उसको चूल्हे-चौके के चारों ओर पोछे की तरह लगाया जाता था। तो हमने कहा, इससे क्या होता है, क्योंकि हम बहुत छोटे थे, बापू जी कहने लगे बेटा! इससे जो बीमारी के कण हैं, वो खत्म हो जाते हैं। कहने लगे इसने हमें सारी उम्र दूध पिलाया है। इसको घर से कैसे बाहर निकाल दें। और जब गऊ बीमार हो गई, फादर साहब ने इलाज भी करवाया, लेकिन वो ठीक नहीं हो सकी। तो उन्होंने पानी का एक सर्कल बनाया और उस समय हमारे घर में पवित्र गीता थी, उसका पाठ पढ़ा।
और हमारे देखते ही देखते गऊ ने शरीर छोड़ दिया। हम पांच साल के थे, तो हमने फादर साहब से पूछा ये क्या किया आपने और ये क्या हुआ? बापू जी कहने लगे बेटा! ये मां की तरह थी हमारी, तो मैंने इसको रामनाम सुनाया है, भगवान का नाम सुनाया है ताकि जब ये शरीर छोड़कर जाए तो मोक्ष मिले इसको, मुक्ति मिले। हमें बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ और उसके बाद हमने भी उसे फॉलो किया।