'Sacha Sauda and Nejia will unite!' Dera Sacha Sauda Satlokpur Dham Nejia Kheda District Sirsa

‘सच्चा सौदा और नेजिया एक करेंगे!’
डेरा सच्चा सौदा सतलोकपुर धाम नेजिया खेड़ा,जिला सरसा

पूज्य सार्इं बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज, उन दिनों नेजिया खेड़ा में सत्संग करने पधारे हुए थे। एक दिन पूज्य सार्इं जी गांव के पास से गुजरते रजबाहे से बाजेकां गांव की ओर जाते रास्ते पर घूमने को निकल पड़े। थोड़ी दूर चलने के बाद पूज्य साईं जी एकाएक थम गए और रेत के बड़े-बड़े टीलों की ओर निहारते हुए वचन फरमाया, ‘सच्चा सौदा और नेजिया एक करेंगे और यहां पर डेरे का गेट रखेंगे।’ नेजिया खेड़ा के गुरमुख सिंह बताते हैं कि उस समय पूज्य सार्इं जी के साथ चल रहे सेवादारों को यह बात समझ नहीं आई कि डेरा यहां से करीब 6 किलोमीटर दूर है और यहां दूर तलक रेत के बड़े-बड़े टीले हैं।

Also Read :-

समय ने करवट बदली, सन् 1975 की बात है, पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज जीप में सवार होकर वर्तमान में स्थापित शाह सतनाम जी धाम के आगे से गुजर रहे थे। यहां टिब्बों के पास आकर जीप रुकवा ली और नीचे उतर आए। शहनशाह जी ने सेवादारों को हुक्म फरमाया, ‘यहां जमीन खरीदो, यहां पर डेरा बनाएंगे, पर अभी किसी को बताना नहीं।’ उसके उपरांत जीप में सवार होकर आगे को रवाना हो गए। पूज्य सार्इं जी के नूरानी मुखारबिंद से निकले वचनों का सच तब सामने आया जब पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने सन् 1993 में उन्हीं रेत के टीलों को उठवाकर यहां शाह सतनाम जी धाम की नींव रखी और डेरा सच्चा सौदा का विस्तार नेजिया गांव तक आ पहुंचा।

‘वरी! नेजा वाले लोग दरबार के आगे से मुँह दूसरी तरफ करके गुजर जाते हैं। न कभी नारा बुलाते हैं और ना ही कभी डेरा में सत्संग सुनने आते हैं। लगता है वे लोग माया के नशे में हैं, उन्हें दिखाएंगे कि सच्चा सौदा क्या है?’ अन्यास ही यह वचन फरमाते हुए पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज ने दादू बागड़ी को अपने पास बुलाया, फिर फरमाया, ‘वैसे तो हमें सच्चा सौदा का एक डेरा ही काफी है, मगर जहां कहीं डेरा बनाया जाता है वहां सतगुरु का कोई न कोई राज होता है। इसरार सब कुछ जानता है, वहां पुरानी संस्कारी रूहें होती हैं उनको पकड़ना होता है।

इसलिए वहाँ डेरा बनाया जाता है।’ शाही हुक्म पाकर दादू बागड़ी व धर्मदास नेजिया खेड़ा में राम नाम की अलख जगाने के लिए चल दिए। पूज्य सार्इं जी ने आदेश दिया था कि गांव में नामचर्चा लगाओ, लोगों को राम नाम की चर्चा सुनाओ और उनको डेरा सच्चा सौदा के बारे में बताओ। बताते हैं कि दोनों सेवादार पहले दिन नंबरदार जोत राम के घर पहुंचे और वहां नामचर्चा लगाई। अगले दिन नंबरदार तेजा राम के घर भजन वाणी सुनाई। इस प्रकार गांव के लोगों का ध्यान डेरा सच्चा सौदा की ओर खींचा। ज्यों-ज्यों लोगों को डेरा की महिमा के बारे में पता चला, त्यों-त्यों उनमें भक्ति की मस्ती का रंग चढ़ने लगा। उनमें इस कद्र जिज्ञासा बढ़ने लगी कि वे अब पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज के दर्शनों को लालायित हो उठे।


78 वर्षीय नंबरदार ओमप्रकाश बुढ़ानिया बताते हैं कि सन् 1950 के आस-पास की बात है, उन दिनों शाह मस्ताना जी धाम का निर्माण कार्य अभी चल रहा था। उस समय डेरे का मुख्य गेट पूर्व दिशा में हुआ करता था और उस साइड से ही आम रास्ता गुजरता था। सर्दी का समय था, पूज्य सार्इं जी दरबार की बाहरवाली साइड में बैठे हुए थे। गांव के कुछ लोग ऊंटों पर सवार होकर वहां से गुजर रहे थे। इसी दरमियान उन लोगों ने आपसी गुफ्तगू करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि ये डेरे वाला बाबा कोई जासूस है। हमारे मुल्क का भेद दे रहा है।

यह बाबा बड़े पाखंड करता है। पता नहीं इसके पास इतना धन (माया) कहाँ से आता है? ऐसी बातें करते हुए वे आगे की ओर बढ़ गए। वे अभी डेरा से थोड़ी दूर ही गए होंगे कि पूज्य सार्इं जी ने सेवादारों को अचानक सख्त अंदाज में हुक्म फरमाया ‘दौड़ कर जाओ वरी! जो अभी ऊंटों पर जा रहे हैं उन पुरुषों को वापिस बुलाकर लाओ। ’ यह सुनते ही सेवादार सरपट दौड़ पड़े। थोड़े समय बाद ही सेवादार उन लोगों को अपने साथ लेकर शाही हजूरी में पेश हो गए। पूज्य सार्इं जी ने उनसे पूछा, ‘ क्या बातें करते जा रहे थे तुम? ’ यह सुनते ही वे आदमी पहले तो डर गए, उनके चेहरे पर घबराहट के भाव उमड़ आए।

दयालु दातार जी ने यह देखकर उन्हें प्रेम से समझाते हुए फरमाया, ‘डरो मत! जो कुछ भी आपने कहा है सच-सच बता दो। हम तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे।’ इस आश्वासन के बाद वह बताने लगे कि हम लोग तो आपस में चर्चा कर रहे थे कि सच्चे सौदे वाला कोई जासूस है, सब पाखंड करता है। बेपरवाह जी ने पूछा, ‘क्या आप कभी डेरा सच्चा सौदा में आए हो? कभी सत्संग सुना है?’ उन्होंने ना में सिर हिलाते हुए कहा कि नहीं बाबा जी! आज से पहले न तो कभी डेरे में आए हैं और न ही कभी सत्संग सुना है। ‘तो तुम्हें क्या पता कि ये ठग्गी है, पाखण्ड या सच है?’ दोनों व्यक्ति हाथ जोड़कर याचना की मुद्रा में कहने लगे, जी! हमने तो जो आज तक लोगों के मुंह से सुना था, वही कहते जा रहे थे, हमने तो आपजी के दर्शन आज पहली बार ही किए हैं।


पूज्य मस्ताना जी महाराज ने उन्हें बड़े प्यार से समझाते हुए फरमाया, ‘ बेटा, आगे से हर बात सोच समझकर मुँह से निकालना। बिना देखे, परखे किसी को अच्छा, बुरा, ठग्ग, चोर नहीं कहना चाहिए। ये बहुत पाप व गुनाह है।’ फिर फरमाया, ‘भाई! आपका कोई कसूर नहीं है। मन जो त्रिलोकी का वकील है, ये सबके अंदर बैठा है। सन्तों की बात सुनने ही नहीं देता। न हम कोई चोर हैं, न ठग्ग हैं। हम तो अन्दर वाले जिन्दाराम की बात बताते हैं कि तुम्हारा मालिक, सतगुरु तुम्हारे अंदर ही बैठा है उसको पकड़ो।’ ऐसे वचनों के द्वारा उन्हें समझाते हुए पूज्य सार्इं जी ने सेवादारों को हुक्म देकर बून्दी मंगवाई और उन्हें अंजुली भर-भरकर प्रसाद दिया।

उस प्रसाद को खाकर वे लोग कहने लगे कि बाबा जी, हमें तो बड़ा आनन्द आ रहा है, बड़ी शांति मिल रही है। चेहरे पर छाई घबराहट कुछ पलों के बाद ही खुशी के भाव में बदल गई। दोनों व्यक्ति इस कदर दर्शनों का आनन्द उठाने लगे जैसे चिरकाल से प्यासी रूहें नूरानी नूर से उमड़ रहे समुंद्र में गोते लगाने लगी हों। कहने लगे-बाबा जी, अब तो यहां से जाने को दिल ही नहीं कर रहा। ‘पुट्टर! सत्संग पर आना, फिर तुम्हें नाम देंगे।’ यह सुनकर उनको आत्मग्लानी हुई कि वे तो पहले वैसे ही निंदा करते फिर रहे थे, ये तो कोई संत-महात्मा, अवतार लगते हैं।

नंबरदार बुढ़ानिया आगे बताते हैं कि इस घटनाक्रम के बाद पूज्य सार्इं जी ने सेवादार दादू बागड़ी व धर्मदास को नेजिया गांव में डेरा सच्चा सौदा का प्रचार करने के लिए भेजा। दादू बागड़ी की गांव के चौधरी परिवार में रिश्तेदारी थी, उसका भरपूर फायदा भी मिला। उस दौरान गांव में 60 ही घर थे, दोनों सेवादारों ने हर गली, उगाड़ व चौपाल में सुबह-शाम नामचर्चा लगाई। धीरे-धीरे लोगों के दिलोदिमाग में डेरा सच्चा सौदा के प्रति सकारात्मक भाव पैदा होने लगा। उन्हीं दिनों डेरा सच्चा सौदा में महीनेवार सत्संग होना था, गांववालों की तड़प अब पूज्य सार्इं जी के दर्शनों तक जा पहुंची थी। रविवार का दिन था, गांव के नंबरदार श्री जोतराम, श्री तेजाराम, श्री सिरीराम, श्री गुरमुख, चौ. दीपा, चौ. खियाली राम, चौ. सन्तु राम, चौ. मोतीराम, श्री बनवारी राम कलेरा, श्री गोबिन्द राम कलेरा, श्री तेजा राम सरपंच, श्री नंद राम सहित काफी संख्या में ग्रामीण डेरा सच्चा सौदा दरबार जा पहुंचे।

जब पूज्य सार्इं जी को पता चला कि आज नेजिया गांव की संगत आई है, तो यह देखकर पूज्य सार्इं जी बहुत खुश हुए। संगत ने सजदा किया और पवित्र नारा लगाया। पूज्य सार्इं जी ने अपनी दया-दृष्टि का आशीर्वाद देकर उन्हें खुशियों से मालामाल करते हुए फरमाया- ‘आज तुमको सतगुर, दादू का रूप धार करके पकड़ कर लाया है और आप से धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा का नारा भी लगवाया है।’ सभी को बड़ा प्यार-सत्कार दिया, जिससे संगत के चेहरे खुशियों से चहक उठे। ‘आओ, चलो बाहर चलते हैं। ’ यह फरमाते हुए पूज्य सार्इं जी संगत को डेरे की बाहर की तरफ ले आए। उन दिनों दरबार की पूर्व दिशा में गेट के आस-पास मिठाई की दुकानें लगा करती थी।

पूज्य सार्इं जी ने मिठाई की दुकान पर जाकर हलवाई से पूछा, ‘आपके पास मिठाई है?’ तो उसने स्टूल के नीचे से पूरा कनस्तर उठाकर सामने कर दिया। पूज्य सार्इं जी ने उस मिठाई के पैसे हलवाई को दिए और उस कनस्तर में से एक लड्डू उठाकर स्वयं खाया। इसके बाद सारी मिठाई प्रसाद के रूप में नेजिया की साध-संगत को बांट दी। सभी को भरपेट मिठाई खिलाई, जिसके बाद संगत मस्ती में आकर नाचने लगी। मस्ती का यह दौर काफी देर तक चलता रहा। गांव के मौजिज लोगों ने हाथ जोड़कर शाही चरणों में अर्ज की कि बाबा जी, हमारे गांव में भी सत्संग करो जी। संगत के श्रद्धाभाव को देखते हुए दयालु दातार जी ने फरमाया, ‘पहले आप जगह बनाओ, फिर सत्संग करेंगे।’ यानि पहले गांव में डेरा बनाओ, फिर वहां सत्संग लगाएंगे। यह सुनकर गांव वालों की खुशियों का कोई ठिकाना न रहा।

Table of Contents

जब संगत ने ढहा दिया ‘कुंभकरण’!

शाही चोज बड़े निराले होते हैं, जो इन्सान की समझ से परे की बात है। पूज्य सार्इं जी उस दिन पहली बार सतलोकपुर धाम में पधारे और सीधा गुफा में जा विराजे। गुफा की पूर्व दिशा में तब एक बड़ा सा जाल (बण) का पेड़ था। बताते हैं कि उस वृक्ष की उम्र 100-150 वर्ष के करीब रही होगी, क्योंकि उसकी विशालता एक बहुत बड़ा एरिया घेरे हुए थी। उस पेड़ के नीचे बड़े-बड़े रेवड़ (भेड़-बकरियों के झुंड) समा जाते थे।

उसके आगोस में जो भी आता था, सुस्ती के आलम में डूब जाता था। पूज्य सार्इं जी उस दिन गुफा (तेरा वास) से जैसे ही बाहर निकले तो उस पेड़ की ओर काफी देर निहारते रहे। एकाएक संगत को अपनी ओर बुला लिया और वचन फरमाया- वरी! यह तो कुंभकरण है, ढहाओ इसको। शाही हुक्म को संगत ने सर-माथे लिया और शुरू हो गई सेवा। धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा के जयकारों के बीच उस कुंभकरण को संगत ने कुछ ही समय में ढहा दिया। इससे दरबार का क्षेत्रफल काफी खुल गया। उस जगह पर आज संगत की सुविधा के लिए बड़ा हाल बना हुआ है।

10 दिन में तैयार हो गया था डेरा

डेरा बनाने के शाही हुक्म ने मानो गांववालों में नए जोश का संचार कर दिया था। उस दिन डेरा से लौटने से पूर्व गांव के मौजिज लोगों ने शाही हजूरी में अर्ज की कि सतगुरु जी! हमारे साथ कोई सेवादार भेजो जो जगह पास करे। पूज्य सार्इं जी ने दादू बागड़ी को ही फिर से जगह पास करने के लिए संगत के साथ नेजिया खेड़ा भेज दिया। उधर जैसे ही यह खबर गांव में पहुंची कि यहां सच्चा सौदा का डेरा बनाया जाएगा, तो गांववासियों में बड़ी खुशी देखने को मिली। मौजिज लोगों ने डेरा से वापिस लौटकर गांव में एक सर्वसम्मति बनाई।

उन दिनों गांव का रिहाइशी एरिया बहुत छोटा था, यही वजह थी कि शामलाट भूमि को लोग कुरड़ी इत्यादि कामों के लिए प्रयोग कर रहे थे। गांववासियों ने आपसी सहमति से 10 कनाल सांझी जगह को डेरा बनाने के लिए चिन्हित कर लिया। सेवादार दादू बागड़ी ने भी गांववालों की सहमति का समर्थन कर दिया। पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज से हुक्म लेकर इस चिन्हित भूमि पर धन धन सतगुरु तेरा ही आसरा का नारा लगाते हुए डेरा निर्माण का कार्य शुरू कर दिया गया।

80 वर्षीय राम कुमार दून अतीत के दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि उस समय वह 15 साल का था, गांव में डेरा बनाने के लिए सर्व सांझी जगह को चुना गया था। गांव के काफी युवा इस सेवा कार्य में आगे आए और र्इंटें तैयार करने में जुट गए। उन दिनों गांव में ज्यादातर मकान भी कच्चे बने हुए थे। दरबार के लिए कच्ची इंटें बनाने व लाने की सेवा शुरू हो गई। हालांकि अधिकतर र्इंटें बेगू गांव से ऊंट-गाड़ी में लादकर लाई गई। गुफा (तेरावास) बनाने के लिए पहले जमीन में खुदाई की गई।

दरअसल पूज्य सार्इं जी के समय में हर दरबार में जमीन की गहराई में गुफा बनाई जाती थी। नेजिया गांव में भी उसी तर्ज पर गुफा तैयार की गई, दो कमरों को इस तरह एक-दूसरे से जोड़ा गया, जो अंदर गुफा तक जाते थे। पहले कच्ची गुफा तैयार की गई, उसके साथ दो कमरे बनाए व एक छोटी चारदीवारी भी तैयार की गई। वहीं डेरे के चारों तरफ कांटेदार झाड़ियों की बाड़ कर दी गई। यह सारा कार्य साध-संगत ने मात्र 8-10 दिन में ही पूरा कर दिया। डेरा बनने के बाद शहनशाह जी ने इसका नाम ‘सतलोकपुर धाम’ रख दिया। गांववासियों ने फैसला किया कि अब डेरा बन चुका है, पूज्य सार्इं जी से दरबार में आने की अर्ज की जाए।

पूज्य सार्इं जी 27 दिसंबर 1957 को पहली बार पधारे नेजिया दरबार, फरमाया रूहानी सत्संग

‘वैसे तो हमें सच्चा सौदा का एक डेरा ही काफी है, मगर जहां कहीं डेरा बनाया जाता है वहां सतगुरु का कोई राज होता है।’ अपने इन्हीं रहस्यमई वचनों को सार्थक करते हुए पूज्य सार्इं जी ने पहले नेजिया गांव में डेरा तैयार करवाया और फिर यहां सत्संग करने के लिए पधारे।


रूहों की पुकार सुन पूज्य सार्इं जी ने नेजिया गांव में पधारने का कार्यक्रम तय कर लिया। शाही आगमन की भनक मिलते ही गांव में भी खुशी का खुमार सा चढ़ गया। 27 दिसंबर 1957 का वक्त, उस दिन चारों ओर ठंड का आवरण बना हुआ था। जैसे ही पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज का गांव में आगमन हुआ तो मानो पूरा गांव ही जोश में आ गया। ढोल की थाप पर नाचते, मंगलगीत गाते लोग शाही कारवां की अगुवाई कर रहे थे।

पूज्य सार्इं जी दरबार में पधारे, तो धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा के जयकारों से आसमां गुंजायमान हो उठा। उधर गांव वालों ने इस शुभ घड़ी में नजदीकी गांवों में बसे अपने रिश्तेदारों को भी आमंत्रित किया हुआ था, जिसके चलते डेरा में साध-संगत का काफी इकट्ठ देखने को मिल रहा था। पूज्य सार्इं जी ने उस रात नवनिर्मित गुफा (तेरावास) में विश्राम किया। रामकुमार दून बताते हैं कि कुछ दिन पहले ही गुफा तैयार की गई थी, जिस कारण उसमें नमी व्याप्त थी।

ऊपर से सर्दी का मौसम था। पूज्य सार्इं जी ने गुफा में ही अलाव जलवाई, जिसके चलते पूरा कमरा धुएं से भर गया था। सेवादारों का उस धुएं से दम घुटने को था, लेकिन पूज्य सार्इं जी आराम से विराजमान थे। जब सेवादारों ने इस बारे में पूछा तो पूज्य सार्इं जी ने इस बारे में कुछ ज्यादा बात नहीं की। शायद यह कोई रहस्य ही था, जिसे किसी से भी सांझा नहीं किया।

अगली सुबह से सत्संग का दौर शुरू हो गया। पूज्य सार्इं जी सुबह और रात को दो समय सत्संग लगाते। 28 दिसंबर के सत्संग दौरान पूज्य सार्इं जी ने गुरुमंत्र भी प्रदान किया। उसी सत्संग में गुरुमंत्र लेने वाले रामकुमार बताते हैं कि रात का सत्संग बहुत लेट तक चलता था। कई बार तो पूरी रात ही सत्संग चलता रहता। पूज्य सार्इं जी उस समय करीब 9 दिन तक नेजिया गांव के दरबार में विराजमान रहे। दिन में कई कौतुक दिखाते, जिसे देखकर लोग खूब चर्चा करते कि डेरा सच्चा सौदा वाला बाबा जी तो कमाल का है।

दरअसल अपने प्रवास के दौरान पूज्य सार्इं जी ने कई बार लोगों की कुश्ती भी करवाई। अकसर हारने वाले को जीतने वाले से ज्यादा ईनाम दिया जाता, यह देखकर लोग बड़े हैरान होते। हर रोज लोगों को कंबल, वस्त्र, चादर इत्यादि चीजें मुफ्त में बांटते। इन चीजों को पाकर लोग जहां खुश होते, वहीं यह सोच कर हैरान भी होते कि बाबा जी के पास इतना पैसा आता कहां से है! यह विचार ही लोगों को डेरा सच्चा सौदा की चर्चा करने के लिए विवश कर देते, उधर जो भी व्यक्ति ऐसी बातें सुनता उसका भी दिल होता कि वह भी ऐसे संत-महात्मा के अवश्य दर्शन करे। इस प्रकार नेजिया ही नहीं, आस-पास के गांवों के अधिकतर लोग डेरा सच्चा सौदा से जुड़ते चले गए।


एक वर्ष के अंतराल के बाद पूज्य सार्इं जी फिर से नेजिया दरबार में पधारे। उस दिन पूज्य सार्इं जी रामपुरिया बागड़िया गांव से यहां पहुंचे थे। कई दिनों तक राजस्थान एरिया में सत्संग करते हुए पूज्य सार्इं जी वापिस सरसा दरबार आते समय यहां रुके थे। हालांकि कुछ गांववालों का मानना है कि पूज्य सार्इं जी दूसरी बार सन् 1959 में आए थे। पूज्य सार्इं जी ने एक सप्ताह के अपने प्रवास के दौरान भी यहां बड़ा सत्संग लगाकर लोगों को गुरुमंत्र की दात प्रदान की।

बिना पैसे ही आपने गरीब मस्ताने की मशहूरी कर दी

नेजिया में पहली सत्संग हुई, तब पूज्य सार्इं जी ने सत्संग सुनने आए एक पत्रकार को बुलाकर फरमाया ‘आओ बई! आप को कुछ इनाम दें। क्योंकि आप ने मस्ताना गरीब की बिना पैसे सारे भारत में मशहूरी की है। अपने अखबारों में खबर दी है।’ सच्चे पातशाह जी ने सेवादारों को हुक्म दिया कि उस के गले में हार (माला) डालो। सेवादारों ने उस के गले में हार पहनाए। उसके दोनों कानों व चोटी के साथ भी एक-एक हार बांधकर उसे हारों से लाद दिया। बेपरवाह जी के इस अद्भुत खेल को देखकर उसने कहा कि मुझे 8-10 वर्ष हो चुके हैं जी आपके इस खेल (सोना-चाँदी, नोट बाँटते) को देखते हुए, पर अभी तक पता नहीं चला कि माया कहां से आती है। इस पर शहनशाह जी ने फरमाया, ‘यह सतगुरु जी का अटूट गैबी खजाना कभी खुटेगा नहीं।’

वरी! यह तो दरगाह में लिखा गया

जब गांव में डेरा बनाने की चर्चा शुरू हुई, तब यहां दो गांवों नेजिया व अरनियांवाली की सांझी पंचायत हुआ करती थी। सरपंच सेठ हरचंद सहित दोनों गांवों के मौजिज लोगों ने आपसी सहमति से डेरा बनाने के लिए जगह का चयन किया। पूज्य सार्इं जी जब पहली बार दरबार में पधारे तो डेरे के चारों तरफ की गई बाड़ के इर्द-गिर्द चक्कर लगाया। इस दौरान गांव के काफी संख्या में लोग मौजूद थे।

वे कहने लगे कि बाबा जी! हमने कई गांवों की पंचायतें बुलवाकर इस जगह की (जहाँ डेरा बना है) पक्की लिखित कर दी है। पंचायतों के हस्ताक्षर, अंगूठे करवाकर पक्का काम कर दिया है। इस पर शहनशाह जी ने फरमाया, ‘तुम्हारी लिखित कुछ नहीं करेगी। यह तो दरगाह में लिखा गया है। मालिक को मन्जूर है इसको कोई बदल नहीं सकेगा।’ पूज्य सार्इं जी ने डेरे में घूमते हुए वचन फरमाए ‘यहाँ पर बाग बहारें लग जायेंगी। बेर, निम्बू, संतरे, केले, आम, पपीते, अमरूद, अनार आदि के फल लगेेंगे।’ शाही वचनों की बानगी आज डेरे में देखने को मिल रही है। चारदीवारी में सजी इस फुलवारी में हरियाली की आभा देखते ही बनती है।

‘जिन पर नाम की मोहर लग गई, वे सीधे सचखण्ड जाएंगे’

पूज्य सार्इं जी ने सतलोकपुर धाम में सत्संग के बाद नाम लेने के इच्छुक जीवों को बैठा लिया। पूज्य सार्इं जी इन अभिलाषी जीवों को अभी समझा ही रहे थे कि तभी बीच में दादू बागड़ी बोल पड़ा कि शहनशाह जी, जो नाम लेने वाले पीछे बैठे हैं, उन्हें आपजी की आवाज पूरी सुनाई नहीं दे रही। इस पर पूज्य सार्इं जी ने फरमाया, ‘तुम्हें क्या पता है? इनका फोटो सचखण्ड में पहुंच गया है। तूं चिन्ता न कर, यह महाघोर कलियुग है। आज जिन पर नाम की मोहर लग गई है वह सीधे सचखण्ड जाएंगे। नाम इनको खुद-ब-खुद याद आ जाएगा और जपने लग जाएंगे।’

जब बकरी खा गई नोट, खूब हंसे शहनशाह जी

दिन के समय मेंं रूहानी महफिल सजती तो पूज्य सार्इं जी बड़े विचित्र खेल दिखाते और संगत को खूब हंसाते। एक दिन पूज्य सार्इं ने दो बकरियों के गले में, पूछों व सीगों पर नोटों के हार पहनाने का हुक्म फरमाया। सेवादारों ने उन बकरियों को हार पहनाकर खुला छोड़ दिया। थोड़ी देर बाद ही उनमें से एक बकरी कुछ नोट खा गई। यह देखकर पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज बहुत हंसे और फरमाया, ‘यह अजीब नमूना देखा कि बकरी नोट खा गई।’ यह सब देखकर संगत भी खूब हंसती रही।

बाद में पूज्य सार्इं जी ने उनमें से एक बकरी प्रेमी मिढू राम को व दूसरी शाम मदान को दे दी। रामकुमार बताते हैं कि इस घटनाक्रम के अगले दिन सुबह जिस बकरी ने नोट खाया तो उसने वही नोट मिंगनियों में सही-सलामत निकाल दिया, जो अपने आप में हैरानी वाली बात थी। पूज्य सार्इं जी इसी तरह कुत्ते के गले में नोटों का हार डलवाते और उसे वहां से भगा देते। संगत के प्रेम को देखने के लिए वचन भी फरमाते- ‘जो चाहे इस कुत्ते के नोट उतार सकता है।’ यह सुनते ही संगत उस कुत्ते के पीछे भागने लगती। यह नजारा देखकर फिर वचन फरमाते, ‘सब माया के यार हैं। इस गरीब मस्ताने का तो कोई कोई है।’

दमपुरा धाम से भी है इस दरबार की पहचान

दुनियाभर में अपनी ख्याति पाने वाले नेजिया गांव में बना डेरा भी अपनी अनूठी पहचान लिए हुए है। डेरा सच्चा सौदा के इतिहास में यह ऐसा पहला डेरा है जिसे दो नामों से जाना जाता है। पूज्य सार्इं जी ने इस दरबार को सतलोक पुर धाम व दमपुरा धाम के नाम से नवाजा है।

पूज्य सार्इं जी 1957 में पहली बार नेजिया गांव में पधारे तो उससे पहले ही शाही हुक्म से यहां दरबार बन चुका था। पूज्य सार्इं जी ने इसका सतलोकपुर धाम के रूप में नामकरण किया। यहां रूहानी सत्संग फरमाया, जिसके बाद इस डेरे की चर्चा दूर-दराज तक होने लगी। उन दिनों पूज्य सार्इं जी बागड़ एरिया में सत्संगें करते हुए बीकानेर एरिया तक जा पहुंचे। गांव-दर-गांव राम नाम की अलख जगाते हुए जब पूज्य सार्इं जी वापिस सरसा दरबार आए तो काफी जगहों पर रास्ते में भी ठहराव किया। सन्1958 में, उस दिन पूज्य सार्इं जी रामपुरिया बागड़ियां गांव से नेजिया दरबार आ पधारे। यह दूसरा अवसर था जब पूज्य सार्इं जी ने इस दरबार में अपने पावन चरण-कमल टिकाए थे। पूज्य शहनशाह जी ने इस धाम की आभा को और निखारते हुए वचन फरमाए, ‘यह दमपुरा है।

जब दूसरे धामों में सत्संग करके आया करेंगे तो इस जगह पर दम कढेंगे, यानि आराम किया करेंगे।’ उस दिन सत्संग भी किया। पूज्य सार्इं जी उस दिन बेहद प्रसन्न थे और घूमते हुए उस हलवाई के पास आ गए जो देसी घी की जलेबियाँ बना रहा था। चोजी दातार जी ने स्वयं अपने कर-कमलों से तीन बड़ी-बड़ी जलेबियां बनाई। उनमें से एक जलेबी प्रेमी खेमचन्द को देते हुए हुक्म फरमाया कि इसे आप सरसा शहर के सारे सेवादारों में बांट दो। दूसरी जलेबी दादू बागड़ी को देते हुए फरमाया, ‘तूं यहाँ (नेजिया) का मुखिया है, तू इनको जानता है, जिस-जिस ने सेवा की है उनमें बांट दो।’ वहीं तीसरी जलेबी बाकी सेवादारों को प्रसाद के रूप में बांट दी।

मस्ती के इस दौर में पूज्य सार्इं जी ने दादू बागड़ी, प्रेमी सिरीचन्द व रामेश्वर को अपने पास बुलाकर वचन फरमाया, ‘तुम्हें एक बात बताते हैं उसकी गांठ बांध लेना। नाम तो मस्ताने से लाखों लोग लेंगे और अधिकारी बना देंगे। लेकिन जिसका मौज ने इसी जन्म में उद्धार करना है उससे तन-मन-धन की सेवा लेते हैं। जो यहां साध-संगत में एक पैसा भी खर्च करता है, दरगाह में उसको लाखों गुणा फल मिलता है।’

जब गाय खरीदने पहुंचे पूज्य सार्इं जी

पूज्य सार्इं जी जीव-जंतुओं के साथ-साथ जानवरों से भी गहरा लगाव रखते थे। पुराने सेवादार बताते हैं कि पूज्य सार्इं जी देशी गाय और उसके दूध को बेहद पसंद करते थे। उन दिनों सरसा दरबार बने अभी थोड़ा समय ही हुआ था, एक दिन पूज्य सार्इं जी टहलते-टहलते नेजिया गांव में आ पहुंचे। बताते हैं कि उस समय रामरक्खू व दूल्ला भक्त साथ ही थे। हुक्म फरमाया- ‘वरी! चलो अज्ज नेजा से गाय खरीद कर लाते हैं’ और पहुंच गए नेजिया गांव। उस समय गांव में एक-दो लोग ही डेरा सच्चा सौदा के भक्त थे। सीधे श्योकरण खाती के घर जा पधारे, क्योंकि उसके घर देशी गाय थी, जो बिकाऊ भी थी।

पूज्य सार्इं जी ने उस गाय को निहारते हुए फरमाया- ‘वरी! गाय बेचनी है?’ श्योकरण ने सोचा कि इतने बड़े बाबाजी, मेरी गाय लेने आए हैं, गाय में कोई खास बात होगी। इसी उधेड़बुन के बीच उसके मन में लालच का भाव पैदा हो गया। उसने कहा, हां बाबा जी, गाय तो बेचनी है। ‘बोलो, फिर क्या लोगे?’ उसने गाय की 400 रूपये कीमत मांगी, जो उस समय के हिसाब से बहुत ज्यादा थी। संत-फकीर भी तो घट-घट की जानने वाले होते हैं।

पूज्य सार्इं जी ने बात को घुमाते हुए फरमाया- वरी, गाय तो हमें पसंद है और कीमत भी, लेकिन पहले अपने घरवालों से भी पूछ लो। दरअसल सार्इं जी परिवारवालों के मन में पैदा हुए लालच को भली-भांति देख रहे थे। जब उसने अपनी पत्नी से इस बारे में बात की तो उसके मन में भी विचार आया कि हमने तो गाय के जितने पैसे मांगे थे, बाबा जी तो उतने पैसे देने को तैयार हो गए। गर गाय की ज्यादा कीमत मांगते तो और भी ठीक रहता। यह विचार करते हुए उन्होंने कहा कि बाबा जी, अभी गाय बेचने का हमारा मन नहीं है, तो सार्इं जी ने भी फरमा दिया कि अगर आपका मन नहीं है, तो हमारा भी नहीं है। इसके बाद पूज्य सार्इं जी सत्संगी रामरक्खू के घर जा पधारे, उनके घर भी गाय बंधी हुई थी। वहां वचन फरमाया कि ‘लाओ वरी! गाय का दूध लेकर आओ।’ वहां दूध पीकर वापिस दरबार की ओर रवाना हो गए।

प्यार से बुलाते थे ‘नेजा’

पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज से जो भी कोई मिलता या दर्शन कर लेता वह मुरीद बन जाता। नेजिया गांव के प्रति पूज्य सार्इं जी का प्रेम अपने आप में निराला था। बेशक शुरूआती दिनों में पूज्य सार्इं जी को सेवादार भेजकर नेजिया गांव में राम नाम की अलख जगानी पड़ी, लेकिन पूज्य सार्इं जी हमेशा इस गांव को प्यार से ‘नेजा’ कहकर बुलाते। बताते हैं कि पूज्य सार्इं जी के मुखारबिंद से नेजा शब्द सुनने में बड़ा प्यारा लगता था।

वैसे भी नेजिया गांव से बेहद प्यार था, शायद यही वजह थी कि स्वयं वचन फरमाकर गांव में डेरा बनवाया और यहां दो बार पधारे तो सप्ताह से अधिक समय तक ठहराव भी किया। प्रेम-प्यार का यह दौर पूज्य हजूर पिता जी के समय भी निरंतर चलता रहा है। पूज्य गुरु जी, यहां की संगत को बेहद प्यार करते हैं, गांव के बहुत से परिवारों को उनके घर जाकर खुशियां लुटाते रहे हैं। यही वजह है कि वर्तमान में इस गांव का डेरा सच्चा सौदा के प्रति प्यार मुखर होकर बोलता है।

हमें ऐसा आशीर्वाद दो जो आने वाली पीढ़ियों के काम आए

बात उन दिनों की है, जब नेजियाखेड़ा के लोग पहली बार डेरा सच्चा सौदा दरबार में सत्संग सुनने पहुंचे थे। पूज्य सार्इं जी सत्संग में आने वाले हर जीव पर अपनी रहमतों के खजाने खुले दिल से लुटाते थे। जब नेजिया गांव की संगत की बारी आई तो मौजिज व्यक्तियों ने फैसला किया कि पूज्य सार्इं जी संगत को चीजें बांटते हैं, लेकिन हमने कुछ भी लेना नहीं है। थोड़ी देर बाद ही पूज्य सार्इं जी ने आवाज लगाई कि ‘आओ वरी! तुम्हें दात देते हैं।’ यह सुनकर मौजिज लोग हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बोले- बाबा जी, हमें इन दातों की जरूरत नहीं है, पैसा पाई हम खर्च कर देंगे, कपड़े समय पाकर फट जाएंगे, आप हमें ऐसा आशीर्वाद दें जो आने वाली पीढ़ियों के काम आए। यह सुनकर पूज्य सार्इं जी बहुत प्रसन्न हुए और फरमाया- ‘अच्छा वरी! तुमने मस्ताना की नाभी मांगी है।

नाभी के अंदर जो चीज है वो मांगी है। चलो तुमको आज स्पेशल निशानी देंगे।’ बताते हैं कि उस दौरान पूज्य सार्इं जी ने किसी को शाही कोट, स्वेटर, रूमाल जैसी बहुमूल्य निशानियां प्रदान की। उस दिन पूज्य सार्इं जी ने नेजिया गांव की पूरी संगत को अपने आशीर्वाद से लबरेज कर बेअंत खुशियां प्रदान की। उस दिन नंबरदार जोत राम को मिली शाही दात रूमाल को दिखाते हुए उनके पुत्र ओमप्र्रकाश इन्सां बताते हैं कि यह शाही दात हमारे लिए अनमोल है। पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने एक बार घर आगमन दौरान यह शाही दात अपने हाथ में लेते हुए फरमाया था कि वाह भई! बहुत संभाल कर रखा है आपने। इस दात को ऐसे ही आगे भी संभाल कर रखना।

इस धरती को रंग-भाग लग जाएंगे,नसीबों वाले ही देखेंगे

करीब 1957-58 की बात है, शहनशाह सार्इं मस्ताना जी महाराज जीप पर सवार होकर गांव नेजिया खेड़ा की तरफ जा रहे थे। उस समय शाहपुर बेगू गाँव के पास मौजूदा बिजली घर वाली जगह से नेजिया गाँव को सीधा रास्ता जाता था। शहनशाह मस्ताना जी महाराज इसी रास्ते से जा रहे थे। तब डेरा सच्चा सौदा शाह सतनाम जी धाम वाली जगह पर रेत के बहुत बड़े-बड़े टीले हुआ करते थे। तेरावास वाली जगह तो और भी बहुत बड़ा रेत का टीला था। उसी टीले के पीछे यानि पूर्वी दिशा से रास्ता गुजरता था। शहनशाह जी की जीप इस टीले के बराबर आकर रेत में फँस गई। ड्राईवर के काफी प्रयास के बाद भी जब जीप नहीं निकली तो शहनशाह जी जीप से उतरकर उस टीले पर चढ़ने लगे। सेवादार भी पीछे-पीछे चल पड़े। शहनशाह जी इस टीले के ऊपर चढ़कर एक साफ जगह पर रुक गए।

सेवादार ने बैठने के लिए एक छोटा सा कपड़ा बिछा दिया। शहनशाह जी वहाँ विराजमान हो गए, साथ ही सेवादार भी सामने बैठ गए। इसी दरमियान वहां पास के खेतों में काम कर रहा बेगू गांव का एक जमींदार भी पास आकर बैठ गया। पूज्य सार्इं जी ने सभी को कुछ समय के लिए सुमिरन करने का आदेश फरमाया और स्वयं भी अंतर्ध्यान हो गए। कुछ अंतराल के बाद शहनशाह जी एकदम ताली बजाने लगे और जोर-जोर से हँसते हुए वचन फरमाया, ‘बले! बले! बले! बई यहाँ पर बहुत कुछ बनेगा। यहाँ बाग बगीचे लग जाएंगे।’ जमींदार भाई बोला कि बाबा जी! यहाँ पर क्या बाग लगने हैं। वर्षों से देख रहे हैं, यहां पर तो भैंसों के लिए घास भी नहीं होता।

पूज्य सार्इं जी ने फरमाया, ‘यहां पर बहुत कुछ बनेगा। बाग-बगीचे लगेंगे। यहाँ पर लाखों दुनिया सजदा करेगी। इस धरती को रंग भाग लग जाएंगे, पर नसीबों वाले देखेंगे।’ शहनशाह जी इतने वचन फरमाकर जीप के पास आ गए। इतने में सेवादारों ने धक्का लगाकर जीप को निकाल लिया था। शहनशाह जी यहाँ से नेजिया के लिए रवाना हो गए। इस पूरे घटनाक्रम के साक्षी रहे प्रेमी हंसराज गांव शाहपुर बेगू ने बताया कि जब 1993 में उक्त जगह पर पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां डेरा सच्चा सौदा शाह सतनाम जी धाम का निर्माण कार्य शुरू करवा रहे थे तो उक्त बेपरवाही वचनों की याद एकदम ताजा हो गई। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने भी कई बार वचन फरमाए कि जब इस डेरे (शाह मस्ताना जी धाम) में संगत पूरी नहीं आएगी तो हमें सत्संग करने के लिए टीलों वाली जगह पर जाना पडेÞेगा।

‘वरी! मक्खियां उड़ गई’

एक बार पूज्य सार्इं जी देर रात तक गुफा (तेरावास) से बाहर नहीं आए। जबकि हर सायं नेजिया दरबार में सत्संग का कार्यक्रम शुरू हो जाता था। उस दिन ठंड भी बहुत कड़ाके की थी। बड़ी संख्या में साध-संगत दरबार में पहुंची हुई थी। समय धीरे-धीरे गुजरता गया, लेकिन गुफा के दरवाजे की ओर टकटकी लगाए बैठी संगत की आशा अब निराशा में बदलने लगी थी, क्योंकि आधी रात के करीब का समय हो चुका था। कुछ एक के मन में विचार आया कि बाबा जी अब तो शायद ही आएं, रात तो गुजरने को आई है। ऐसे विचार आहिस्ता-आहिस्ता अधिकतर लोगों के मनों में आने लगे और वे एक-एक कर वहां से उठकर घरों की ओर चल दिए।

उधर ठंडी हवाओं ने सबको कंपकंपी चढ़ा दी थी। मौसम की इन यातनाओं को सहते हुए भी काफी सत्संगी अभी भी पंडाल में डटे हुए थे। तभी धीरे से दरवाजे का एक गेट खुला। चंद मिनटों बाद ही पूज्य सार्इं जी गुफा से बाहर आ गए और पंडाल में बैठी संगत की ओर इशारा करते हुए फरमाने लगे- ‘देखो वरी! वह बेचारे कितनी सर्दी में बैठे हैं। किस ताकत के आसरे बैठे हैं। सतगुरु ने बैठा रखा है। किसी के ऊपर कपड़ा नहीं है। इनकी कुर्बानी है जो आज यहां बैठे हैं सारे सचखण्ड में जाएंगे।’ फिर फरमाया, ‘वरी! अब तो शहद खाने वाले ही बचे हैं, मक्खियां तो उड़ गई।’ पूज्य सार्इं जी के ऐसे द्विअर्थी वचन सुनकर संगत खुशी में झूम उठी और सत्संग का कार्यक्रम शुरू हो गया।

पूजनीय परमपिता जी की रहनुमाई में निखरी दरबार की भव्यता

डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही के रूप में पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज गद्दीनशीन हुए तो सतलोकपुर धाम में भी कुछ समय के बाद यह जरूरत महसूस होने लगी कि अब यहां के दरबार को पक्का बनाया जाए, क्योंकि इससे पूर्व डेरे में जो कुछ भी बनाया गया था, वह कच्ची र्इंटों से ही बना था। बारिश के चलते अब दीवारों की मिट्टी खिसकने लगी थी। गांववासी भी यही चाहते थे कि अब दरबार को पक्का बनाया जाए, दरकार थी तो बस शाही हुक्म की। सन् 1970 के आस-पास पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने इस दरबार को पक्का बनाने की आज्ञा प्रदान कर दी। सेवा के इस नए कार्य के प्रति संगत में बड़ा उत्साह था।

वृद्धजन बताते हैं कि उस दौरान काफी समय तक सेवा कार्य चलता रहा। राजमिस्त्री बलबीर व अभिमन्यू ने इस सेवा में अग्रणी भूमिका निभाई। साध-संगत ने डेरे के अन्दर 25 कमरे, उनके आगे बरामदे, पक्का लंगर घर (रसोई), चार मंजिली शहनशाही गुफा, डेरे की चार दीवारी आदि सब कुछ पक्का बना दिया। वहीं नहर के पानी को संग्रह करने के लिए एक पक्की डिग्गी भी बनाई गई और उसपर दो नल (हैंड पंप) भी लगा दिए ताकि गांव की माता-बहनों को पानी भरने में कोई दिक्कत महसूस न हो। इस प्रकार दरबार को बहुत ही सुन्दर व आलीशान बना दिया। सन् 1990 के बाद पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की रहमत से दरबार की सुंदरता को और चार चांद लग गए। वर्तमान में यहां संगत की सुविधा के लिए बड़ा हाल बनाया गया है, वहीं पक्के आंगन और फूलों की खुशबू से महकती बगिया हर किसी का मन मोह लेती है। सेवादार पाल सिंह इन्सां के अनुसार, दरबार में नेजिया के साथ-साथ ब्लॉक कल्याण नगर के सेवादार बढ़-चढ़कर भागीदारी करते हैं।

जब पूजनीय परमपिता जी सुबह 4 बजे पधारे नेजिया

बात उन दिनों की है, जब पूजनीय परमपिता जी 28 फरवरी 1960 को दूसरी पातशाही के रूप में विराजमान हुए थे। करीब 3 वर्ष तक पूजनीय परमपिता जी एकांतवास में रहे, यह ऐसा समय था जब पूजनीय परमपिता जी दिन के समय तेरा वास में रहते और देर रात्रि को बाहर घूमने के लिए निकलते। पूजनीय परमपिता जी के साथ एक लंबा समय बीताने वाले सेवादार अर्जन सिंह इन्सां बताते हैं कि पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज सन् 1960 से 1963 तक संगत में विराजमान नहीं हुए। दिन के समय तेरा वास में ध्यानमुद्रा में रहते और रात्रि के समय कभी-कभार बाहर घूमने निकलते। सन् 1962 के आस-पास की बात है, एक दिन अलसुबह अचानक नेजिया दरबार जाने का कार्यक्रम बना। सेवादार हजारा सिंह जी के पास उस समय जीप हुआ करती थी।

शाही हुक्म के बाद सेवादार हजारा सिंह जी अपनी जीप दरबार के गेट पर ले आया। पूजनीय परमपिता जी उस जीप में सवार हो गए और मुझे भी साथ चलने का हुक्म फरमाया। इस तरह पूजनीय परमपिता जी के साथ हम दोनों सुबह 4 बजे नेजिया डेरा में आ पहुंचे। खास बात यह भी थी कि उस समय पूजनीय परमपिता जी जब भी रात को घूमने निकलते तो मुझे हमेशा बिस्तर साथ ले चलने का हुक्म अवश्य देते। उस दिन भी मैं बोरी में बिस्तर लपेट कर साथ लेकर आया था। यहां दरबार में आकर पूजनीय परमपिता जी के विश्राम के लिए चारपाई ढूंढनी चाही तो वह नहीं मिली। पूजनीय परमपिता जी ने फरमाया कि बेटा, आस-पड़ोस में जाकर चारपाई ले आ, लेकिन जब मैं आस-पड़ोस के घरों में गया तो एक घर ने चारपाई की जगह मूढ़ा दे दिया।

वापिस आकर मैंने सारी बात बताई, पूजनीय परमपिता जी ने फरमाया- बेटा! बोरी जमीन पर बिछा लो और उस पर बिस्तरा लगा दो। कुछ देर आराम फरमाने के बाद पूजनीय परमपिता जी पूरा दिन तेरा वास में विराजमान रहे। सायं 4 बजे सेवादार हजारा सिंह जी जीप लेकर फिर आ गया, जिसके बाद वापिस शाह मस्ताना जी धाम में आ गए। पूजनीय परमपिता जी करीब 12 घंटे तक नेजिया डेरा में रहे, लेकिन गांववासियों को कानों कान खबर नहीं हुई। हालांकि इससे पहले भी पूजनीय परमपिता जी गांव में एक रात रहे थे। नंबरदार ओमप्रकाश बुढ़ानिया बताते हैं कि पूज्य सार्इं मस्ताना जी महाराज जब गांव में दूसरी बार सत्संग करने पधारे थे, तो उस समय पूजनीय परमपिता जी भी सत्संग सुनने आए थे और उनके घर रात्रि विश्राम किया था।

पूज्य गुरु जी ने दरबार में लगाई मजलिस

यह दरबार समय-समय पर तीनों रूहानी पातशाहियों की सोहब्बत से महकता रहा है। पूज्य हजूर पिता संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां इस दरबार में अब तक 3 बार पधार चुके हैं, जिसमें एक बार तो मजलिस का कार्यक्रम भी हुआ। इस बात की पुष्टि करते हुए ओमप्रकाश बुढ़ानिया बताते हैं कि जिस दिन यहां दरबार में मजलिस लगाई गई, उससे पहले पूज्य गुरु जी ने मुख्य दरबार (शाह सतनाम जी धाम) में मजलिस लगाई थी, ताकि शहर की साध-संगत वहां से ही वापिस घरों को लौट जाए, अन्यथा नेजिया दरबार का पंडाल इतना बड़ा नहीं था कि वह सारी साध-संगत को संभाल पाए। पूज्य गुरु जी पहली बार 2002 के करीब यहां पधारे थे, उसके कुछ समय बाद ही दूसरी बार यहां आए तो तब डेरा में 3 कविराजों से भजन बुलवाकर साध-संगत को खुशियों से नवाजा था।

यहां ताकत पूरा रंग दिखाएगी

नेजिया खेड़ा बहुत ही सौभाग्यशाली गांव है यहां की धरती पर पूज्य साईं मस्ताना जी महाराज की अपार रहमत बरसी और आज भी बरस रही है। रेत के बड़े-बड़े टीलो की ओट में बसे इस गांव को लेकर पूज्य सार्इं जी ने तब कई रहस्यमई वचन फरमाए जो शायद तब के सेवादार या संगत को समझ नहीं आए लेकिन समय ने उन वचनों को साक्षात सच साबित कर दिखाया। उस दिन नेजिया गांव में सत्संग था, संगत ऊंटों, घोड़ों, साइकिलों व बड़ी संख्या में पैदल चलकर दरबार में पहुंची थी। सत्संग करने के बाद पूज्य सार्इं जी गांव की उत्तर दिशा में बने बड़े-बड़े टीलों की ओर चल पड़े। बता दें कि जहां आज शाह सतनाम जी धाम बना हुआ है, यह वही जगह थी।

कुछ सेवादार भाई आगे-आगे ढोल बजाते हुए चल रहे थे। पूज्य सार्इं जी सबसे बड़े टीले के शिखर पर जा पहुंचे। हाथ में डंगोरी लिए पूज्य सार्इं जी ने यहां से चारों दिशाओं में पावन दृष्टि घुमाई और कुछ देर बाद वचन फरमाया- किसी रोज यहां शाही दरबार बनेगा। यह सुनकर साथ आए सेवादार रूपा बिश्नोई गांव महमदपुर रोही बोला कि सार्इं जी, यहां इतनी रेत है, इसको उठाते-उठाते संगत की सारी उम्र बीत जाएगी, एक कोना भी नहीं उठ पाएगा। इस पर पूज्य सार्इं जी ने फरमाया, ‘तो फिर बनेगा, जरूर बनेगा, यहां ताकत पूरा रंग दिखाएगी।’

यहां संगत डट कर डटेगी

सर्दी का मौसम था, उस दिन सूर्य घनी धुंध के बीच थोड़ा टिमटिमा रहा था। पूज्य सार्इं जी सतलोक पुर धाम से टहलते हुए सरसा-चोपटा सड़कनुमा रास्ते पर आ गए। एकाएक सेवादारों को हुक्म फरमाया- जाओ नेजिया डेरा से कपड़े सिलने वाली मशीन तथा दर्जी को बुलाकर लाओ। उन दिनों नेजिया गांव के पास से गुजरने वाली नहर बने कुछ ही समय हुआ था। उसी सड़कनुमा रास्ते पर उत्तर दिशा की ओर चलते हुए शहनशाह जी रजबाहे को पार करते हुए अचानक रुक गए और कुछ दूर हटकर एक साफ जगह पर डेरा जमा लिया।

सेवादारों ने वहां शाही उतारे के लिए बोरियां बिछा दी। सेवादार भी दरबार से मशीन व दर्जी को साथ लेकर वहां आ पहुंचा। शाही हुक्म से दर्जी रंग-बिरंगे कपड़े जोड़कर कुर्ता-पायजामे की सिलाई करने लगा। धूप खिली तो पूज्य सार्इं जी पल्ली पर आराम से लेट गए। इतने समय में ही वहां करीब 50-60 लोग एकत्रित हो गए जो रूहानी दर्शनों का आनन्द लेने लगे। पूज्य सार्इं जी लेटे-लेटे अचानक एक दम से बैठे हो गए। उत्तर-पूर्व दिशा में रेत के बड़े-बड़े टीलों की ओर इशारा करते हुए वचन फरमाया, ‘यहां पर डेरे की मशीनें चलेंगी।

यहां पर साध-संगत डट कर डटेगी।’ यह सुनकर सभी लोग आश्चर्यचकित से हो गए, कि ऐसा भला कैसे हो सकता है। यहां तो चारों ओर रेत के अंबार लगे हुए हैं। कहिबे की शोभा नहिं, देखा ही परमाणु।। करीब 64 वर्ष के इस अंतराल में डेरा सच्चा सौदा की करोड़ों की साध-संगत ही नहीं, अपितु पूरी दुनिया ने इन वचनों को सच साबित होते प्रत्यक्ष देखा है। वर्ष 2017 के घटनाक्रम के बाद भी संगत की आस्था में लेशमात्र भी कमी नहीं आई। संगत आज भी डट कर डेरा सच्चा सौदा के साथ डटी खड़ी है।

कोई जवाब दें

Please enter your comment!
Please enter your name here
Captcha verification failed!
CAPTCHA user score failed. Please contact us!