बख्शिशें जो गिनाई नहीं जा सकती -सत्संगियों के अनुभव
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
सूबेदार बलबीर सिंह इन्सां सुपुत्र श्री अर्जुन सिंह जी गांव मुन्ना माजरा, जिला अम्बाला से पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपने पर हुई रहमतों का वर्णन इस प्रकार करते हैं:
मेरी शादी 31 अक्तूबर 1993 को पूज्य हजूर पिता जी की पावन हजूरी में दिलजोड़ माला पहनाकर हुई। उस समय हमारे घर कोई लड़का नहीं था। मेरे बड़े भाई के पास भी केवल लड़कियां ही थी। पूज्य हजूर पिता जी ने अपनी रहमत से सन् 1994 में पहले एक, फिर 1996 में दूसरे लड़के की दात बख्शी। उस समय दाता जी ने इस प्रकार अपनी दया-मेहर बख्श के हमारे पूरे परिवार को सुकून दिया, क्योंकि परिवार में पहले दो बेटियां थी और अब दो बेटे आ गए।
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ईमानदारी का खेल:
सन् 1996 में मैं जालन्धर से सिकन्दराबाद कोर्स के लिए जा रहा था। मेरी यूनिट ने मुझे फ्री रूट पास (मुफ्त किराया पास) दिया हुआ था, जो कोर्स में जाते वक्त हर फौजी को मिलता है। जब मैं कोर्स में जाने लगा तो मुझे कैजुअल लीव (आकस्मिक अवकाश) की जरूरत पड़ गई। उपरांत मैं चार दिन की छुट्टी काटकर ड्यूटी के लिए चल पड़ा। ज्यादातर साथी जो अलग-अलग यूनिट से थे, कोर्स के लिए (ड्यूटी पर) जाते समय मुझे दिल्ली में मिल गए और हम सभी इकट्ठे सफर करने लगे। विजयवाड़ा में एक टीटी (टिकट चैकर) ने मेरा रूट-पास चैक किया, तो कहने लगा कि आपके रूट की तारीख और सफर की तारीख में चार दिन का अंतर आ रहा है।
मैंने कहा कि मेरी यूनिट ने मुझे रूट दिया है, मैं तो उनके ही कानून से चल (सफर कर) रहा हूं। अगर आपका कानून इस रूट-पास से सफर करना गलत कह रहा है, तो बताओ अब क्या करना है? कहने लगा कि जुर्माना लगेगा। मैंने कहा कि तो लगाओ और मुझे पर्ची काट कर दे दो। तो उसने मेरा किराया जुर्माने सहित 950 रुपए बताया। तो मेरे साथी कहने लगे कि यार, उसको दो सौ रुपए दे दो। तो मैंने उन्हें धीरे (सहज मते) से कहा कि इसे दो सौ रुपए देंगे तो उसकी जेब में जाएंगे। मैंने टीटी साहब से कहा कि भाई कानून रेल का आप जानते हैं, हम नहीं, पर्ची काटो। जब उसने मेरी तरफ थोड़ा गौर से देखा तो सोचने लगा कि भला इन्सान है, तो उसने कहा कि क्यों न मैं आपका स्लीपर क्लास विजयवाड़ा से सिकन्दराबाद तक जुर्माना लगाऊं।
मैंने कहा कि रेल के कानून आप जानते हैं, हम नहीं। तो उसने 450 रुपए मेरा किराया बनाया। 950 रुपए पहले शायद जालन्धर से सिकन्दराबाद तक का बनाया था। मैंने फिर कहा कि पर्ची काट दो। वह जब पर्ची काटने लगा तो मेरी तरफ देखकर कहने लगा कि क्यों न भाई मैं आपसे जनरल क्लास का किराया चार्ज करूं। मैंने फिर कहा कि रेल के कानून आप जानते हैं, बम्ब चलाना हम जानते हैं। एक दूसरे की कला कोई नहीं जानता। उसने मेरा जनरल क्लास का किराया/जुर्माना सिर्फ 90 रुपए वसूल किया और कहने लगा कि पच्चीस वर्ष की ड्यूटी में मैंने पहला ऐसा ईमानदार इन्सान देखा है, जो बिल्कुल ईमानदारी से सफर कर रहा है। मेरे दोस्त मुझे कहने लगे कि यार, तूने सिर्फ नब्बे रुपए में ही काम चला लिया और टीटी भी डर गया। मैं अंदर ही अंदर कहने लगा कि यह तो सतगुरु के ईमानदारी के पढ़ाए पाठ का खेल है। मैंने कभी एक पैसे की हेराफेरी नहीं की और मेरा एक पैसा भी कभी चोरी नहीं हुआ। यह सब सतगुरु की रहमत का ही कमाल है।
सतगुरु जी ने नहीं रुकने दिया कोई काम:
सन् 1997 में मैंने सुमिरन के दौरान पूज्य हजूर पिता जी के चरणों में अरदास की कि पिता जी, फौज की तरफ से मुझे पढ़ने के लिए भेज दो। उन्हीं दिनों मेरी यूनिट में 11वीं कक्षा के लिए एक फौजी सीट आई। अफसर साहिबानों ने मुझे अपने पास बुलाकर कहा कि आप बड़े मेहनती व लगन वाले सैनिक हो। आप ही इस सीट पर पढ़ने जाओगे। अफसर साहिबानों का तो मात्र बहाना था, सब कुछ तो पूज्य हजूर पिता जी ही कर रहे थे। वरना एक सीट के लिए लड़कों की लाईन लग जाती और असफर साहिबानों को किसी एक को चुनना मुश्किल हो जाता। मैं 11वीं कक्षा के लिए गया, दिन-रात पढ़ा और पूज्य हजूर पिता जी की कृपा से बहुत अच्छे नम्बरों से पास हुआ। धन्य हैं मेरे दाता सतगुरु जी, जिन्होंने मेरी पढ़ाई तक की जिम्मेवारी ली।
पूज्य हजूर पिता जी की रहमत से तरक्की का यह कारवां चल रहा था। मैं भी बड़ा खुश था। एक बार फिर पूज्य पिता जी की रहमत हुई। हुआ यह कि एक मेरा साथी जो अच्छा पढ़ा-लिखा था, उसने एससीओ-7 में अफसर बनने के लिए अपने कागज तैयार किए। वह अपनी ऐप्लीकेशन (अर्जी) अफसर साहिबान के पास ले गया। उस अफसर ने उसकी वह अर्जी फैंक दी और गुस्से में कहा कि तू अपनी ट्रेड का काम तो पूरा करता नहीं और अफसर बनकर फौज का माहौल खराब करेगा। मैं पूज्य पिता जी की रहमत से हमेशा मस्त और मजाकिया टाइप था। उस साथी ने ईर्ष्यावश अपने अन्य साथियों से मिलकर योजना बनाई कि बलबीर सिंह की अफसर बनने के लिए अर्जी बनाते हैं और अफसर साहिबान के पास भेज देते हैं। जब बलबीर सिंह अपनी अर्जी लेकर जाएगा तो वह अफसर उसकी अर्जी भी फैंक देगा।
फिर हम बलबीर सिंह का मजाक उड़ाएंगे। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं अफसर बनूंगा। जब मैं अपनी अर्जी लेकर उस अफसर के पास गया तो उसने बड़ी खुशी से मेरी वह अर्जी यह कहकर अपने पास रख ली कि तू पक्का अफसर बनेगा और अपनी तरफ से रिकमेंड करके अपने ऊपर के अधिकारियों को भेज दी। जैसे ही उस सख्त (कड़क) अफसर ने मेरी अर्जी अपनी तरफ से रिकमेंड कर दी, तो पूज्य पिता जी की याद और आभार में मेरी आंखों में खुशी के आंसू बहने लगे। पूज्य पिता जी ने इस अनहोनी को होनी में बदल दिया। वहां से दो ब्रिगेडियर रैंक के तथा मेजर जनरल रैंक के अफसरों ने मेरा इंटरव्यू लेकर मेरी अर्जी पास करनी थी। मेरा काम कहीं भी नहीं रुका। क्योंकि खुद कुल मालिक पिता जी सब कर रहे थे। अंत में मेरी अर्जी पास हो गई। सब आश्चर्य में थे कि इस साधारण से इन्सान के काम कैसे हो जाते हैं! ये कहां से कहां पहुंच गया! ई-ट्रेड से ए-ट्रेड में आ गया और ऊपर ही ऊपर जा रहा है! जो साथी मेरा मजाक उड़ाना चाहते थे, वो भी सोचने लगे कि इसके पीछे जरूर कोई न कोई अलौकिक शक्ति है।
‘इह ऐडा भोला खसम नहीं,
जेहड़ा मकर चलित्र ना जाणे’:
सन 1998 में तरक्की का यह कारवां चलते-चलते मुझे घमंड हो गया कि मैं इतना पढ़-लिख गया! सतगुरु जी के परोपकारों को भूल गया, कि ये सब मैंने अपनी मेहनत तथा बुद्धि से किया है, इसमें मालिक की रहमत वाली कौन सी बात है। एक दिन मैं वचनों से भी हारने वाला था। क्योंकि वो देता भी है और आजमाता भी है। मैं पास नहीं हो पाया। कोई वचन भी नहीं तोड़ा और मौला की परीक्षा में पास भी नहीं हुआ। फेल हो गया परीक्षा में।
कहां तो अफसर बनने के लिए इलाहाबाद जाना था और कहां यह हो गया कि बिना किसी बीमारी के, बिना किसी झगड़े के और बिना किसी कारण यानि अकारण ही डॉक्टर ने मुझे पागलखाने भेजा ही नहीं, बल्कि सवा महीने तक वहां रखा भी। मेरा मेडिकल डाउन कर दिया और मेडिकल डाउन कोई भी फौजी ऊपर के रैंक यानि अफसर बनने के लिए नहीं जा सकता। लेकिन फिर भी मैं खुश था कि स्वयं कुल मालिक पिता जी ने ही अपनी रहमत से मुझे यहां तक भिजवाया था।
एक दिन मैंने पूज्य पिता जी से अरदास कर दी कि हे मेरे सतगुरु पिता जी, मुझे हवलदार रैंक में आठ साल हो गए हैं, मुझे नायब सूबेदार बना दो जी। मेरी फरियाद पूरी करने के लिए पूज्य पिता जी ने मेरी कोर का इतिहास ही नहीं बदला बल्कि पूरी आर्मी का इतिहास बदल दिया। सन् 2006 में मेडिकल डाउन सभी फौजियों को फौज से आउट करके मेरे लिए आसामी (पोस्ट) बन गई। नवम्बर 2007 में जैसे ही दास जेसीओ बना, उसी वक्त फिर मेडिकल डाउन कैटेगरी वाले फौजी-भाई वापिस आ गए। इस प्रकार मुझे दो साल पहले ही आर्मी का जेसीओ का परमोशन लग गया।
धन्य हैं मैं मेरे मालिक सतगुरु, सच्चे रूहानी रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां, जिन्होंने मेरे लिए संसार का इतिहास ही बदल दिया। मैं 31 मार्च 2016 को सेना से बतौर सूबेदार सेवामुक्त हुआ हूं। मुझ पर पूजनीय सतगुरु जी ने इतनी रहमतें की हैं और कर रहे हैं, जिनका वर्णन करना भी संभव नहीं है। मैं पूज्य हजूर पिता जी से यही अरदास करता हूं कि सेवा, सुमिरन, परमार्थ का बल बख्शना जी तथा अपनी दया-मेहर इसी तरह बनाए रखना जी तथा हमारा पूरा परिवार आपजी के पवित्र चरण-कमलों से ही लगा रहे और यह भी विनती है कि दास की अपने पवित्र चरणों में ओड़ निभा देना जी।