Experiences of Satsangis -sachi shiksha hindi

बेटा! इसका आॅपरेशन कर दे -सत्संगियों के अनुभव
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
माता लाजवंती इन्सां पत्नी सचखण्ड वासी प्रकाश राम कल्याण नगर सरसा से परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपने पर हुई अपार रहमत का वर्णन करती है:-

करीब 2006 की बात है कि मेरे पित्ते में पत्थरी हो गई। कभी दर्द होता था तथा कभी हट जाता था। इसके ईलाज के लिए सरकारी हस्पताल और प्राईवेट हस्पतालों के बड़े-बड़े डाक्टरों से चैक-अप करवाया, हर एक ने यही कहा कि इसका ईलाज आॅपरेशन ही है। डॉक्टर मुझे दवाई देते परन्तु मैंने कभी भी दवाई नहीं खाई। इस तरह पूरा साल चलता रहा। एक रात को मैंने सुमिरन के दौरान अपने सतगुरु के स्वरूप हजूर पिता जी को अरदास की कि पिता जी, डॉक्टर पत्थरी का आॅपरेशन करवाने के लिए कहते हैं, परन्तु मैंने आॅपरेशन नहीं करवाना।

पिता जी जो करना है, आपने ही करना है। आप क्या नहीं कर सकते। मैंने आॅपरेशन नहीं करवाना। अगली रात को मैं घर में अकेली थी। मुझे पत्थरी का दर्द होने लगा। सारी रात दर्द होता रहा। मैं पिता जी (परम पूजनीय हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) को अर्ज करती रही कि आप मुझे ठीक करो, और कौन करेगा। और मेरा कौन है। रात का समय है मैं किसे कहूं। सुबह चार बजे जब दर्द कम हुआ तो मुझे नींद आ गई। मुझे स्वप्न में पूजनीय हजूर पिता जी ने दर्शन दिए, उस समय पिता जी के साथ एक लेडी डॉक्टर भी थी। हजूर पिता जी दिवार की ओट में खड़े हो गए और पिता जी ने लेडी डॉक्टर को आदेश दिया कि बेटा! इसका आॅपरेशन कर दे।

लेडी डॉक्टर मेरे पास आ गई तथा उसने मेरा आॅपरेशन करना शुरू कर दिया। मुझे महसूस होता था कि वह पत्थरी भोर-भोर कर निकालती गई तथा मेरे हाथ पर रखती गई। उसने पिता जी को आवाज दी कि पिता जी, आॅपरेशन हो गया है। पिता जी ने जवाब में कहा कि बेटा! एक कंकर और है। ध्यान से देख। उसने दोबारा फिर देखा तथा एक कंकर निकाल कर मेरे हाथ पर रख दिया और कहने लगी कि पिता जी, एक कंकर और निकल आई है। फिर पिता जी ने मुझे आशीर्वाद दिया तथा वचन किए कि बेटा, सुबह एक बार दर्द होगा व फिर दर्द नहीं होगा।

इतना कह कर पिता जी चले गए। जब मैं सुबह उठी तो एक बार बहुत जोर का दर्द हुआ। फिर मुझे याद आ गया कि पिता जी कह कर गए हैं कि एक बार दर्द होगा। फिर मुझे दर्द नहीं हुआ और कभी भी नहीं हुआ। पिता जी मैं आप जी के उपकारों का बदला कैसे भी नहीं चुका सकती। जैसा कि लिखा है:-
‘इक जे अहसान होवे, हो सकदा मैं भुल्ल वी जावां। लखां ने अहसान कीते, दाता दस खां किवें मैं भुलावां। मेहर कर ऐसी दातेआ, तेरे बचनां ते अमल कमावां।’

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