बेपरवाह सार्इं जी ने प्रेमी की जान बचायी -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय बेपरवाह सार्इं मस्ताना जी महाराज का पावन रहमो-करम
प्रेमी मोहन लाल इन्सां पुत्र श्री भगवान दास गांव रामगढ़ सेठां वाला जिला सीकर(राज.) हाल आबाद सी-458 बृज विहार जिला गाजियाबाद(यू.पी) से बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के एक अलौकिक करिश्मे का वर्णन इस तरह करता है:-
मेरे दो बड़े भाई मनीराम और भंवर लाल डेरा सच्चा सौदा सरसा में बेपरवाह मस्ताना जी महाराज की हजूरी में चिनाई की सेवा करते थे और आज भी करते हैं। मैंने उनसे शहनशाह मस्ताना जी महाराज के वचन सुने तो मुझे बहुत अच्छे लगे। मेरे दिल में मस्ताना जी महाराज के दर्शन करने की प्रबल इच्छा बन गई। उन दिनों सन् 1958 में शहनशाह मस्ताना जी महाराज का रोहतक शहर में सत्संग था। सौभाग्य से मैं भी उन दिनों रोहतक शहर में ही चिनाई का काम कर रहा था। बेपरवाह जी उस समय आठ दिन तक रोहतक में रहे।
मैं रात के समय शहनशाह जी का सत्संग सुनता और दिन के समय अपने काम पर चला जाता। सतगुरु के दर्शन कर व वचन सुनकर मुझे बेअंत खुशी मिली। बेपरवाह जी ने मुझे अनाज मंडी रोहतक के सत्संग में नाम की अनमोल दात बख्श दी। जिस सत्संग पर मुझे नाम मिला उसमें बेपरवाह जी ने वचन किए थे, ‘लक्कड़मंडी के संढे, खाते हो, सो जाते हो, भजन करोगे तो काल तुम्हारे पास नहीं आएगा।’
नाम शब्द लेने के बाद मैं दिल्ली बिजली बोर्ड में नौकरी पर लग गया। सन् 1965 की बात है कि केवल-पार्क जो आजादपुर मंडी और आदर्श नगर ए-दिल्ली के नजदीक है, से बिजली की कम्पलेंट मिली। रात का समय था। वहां पहुंच कर महकमे की एमरजैंसी टीम ने आरजी तार जोड़ दी। अगले दिन सुबह हमें फिर वही कम्पलेंट मिली कि तार को पक्के तौर पर जोड़ कर रैगुलर कर दो। हम चार आदमी उस कम्पलेन्ट को लेकर केवल-पार्क में गए। उनमें एक मैं जूनियर मिस्त्री, दूसरा श्री तेजा सिंह सीनियर मिस्त्री और दो मजदूर थे।
मैं नीचे देखकर अपने शरीर की सेफ्टी करके व साथ रस्सा लेकर खम्भे पर चढ़ गया। जो टेंपरेरी तार जोड़ा हुआ था, मैंने उसे खोल दिया। दोनों तरफ के सिरों को एक-एक तार करके अपने पास रस्से में अटका कर रख दिया। रस्सा नीचे तक लटका हुआ था। मैं झोली(सेफ्टी) लेकर खड़ा हो गया। उस तार का आधा हिस्सा जमीन पर गिरा हुआ था और आधा खम्भे पर था। दूसरे पोल से एक कनैक्शन एक मकान में गया हुआ था। उस मकान के मीटर से बैक करंट आ रहा था। जब मैंने दोनों तारों को पकड़ कर आपस में मिलाया तो करंट आ गया क्योंकि नीचे वाला तार जो जमीन पर लगा हुआ था वो अर्थ बन गया और दूसरा फेस बन गया। जिसके कारण मुझे करंट लग गया। मैं बिजली की तार के साथ चिपट गया। मेरी गर्दन झुकते-झुकते खम्भे की तरफ आने लगी।
मेरी जान खत्म होने वाली थी। दयालु सतगुरु जी की कृपा से मुझे ख्याल आया तो मैंने अपने सतगुरु पूज्य मस्ताना जी महाराज को याद किया, हे सार्इं जी मैं तो अब मर आऊंगा। मेरे भाई की पढ़ाई रह जाएगी, आप आकर मुझे बचाओ, मेरे पर कृपा करो। मेरा बाप मर चुका था और मेरा छोटा भाई नौंवीं कक्षा में पढ़ता था। उसी समय शहनशाह मस्ताना जी महाराज मालूम नहीं किधर से मेरे सामने प्रकट हो गए।
शहनशाह जी के बाल खुले थे और उन्होंने नेहरु जाकेट पहनी हुई थी। सतगुरु जी के दर्शन करके मेरे मुंह से बहुत जोर की आवाज निकली तब मेरे साथियों ने मेरी तरफ ऊपर देखा जब कि उससे पहले वे आपस में बातें कर रहे थे, उन्हें पता ही नहीं चला था कि मुझे करंट लग गया है। तब मेरे साथियों ने रस्सा हिलाया। रस्सा हिलाने से मेरे हाथ से तार छूट गया और मेरी जान बच गई। इस प्रकार शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने मुझे मौत के पंजे से छुड़ा कर मेरी जान बचा ली।
पूर्ण सतगुरु सर्व सामर्थ होता है। वह जो चाहे सो कर सकता है। उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं। वह संकट की घड़ी में अपने शिष्य की मदद करता है। अगर शिष्य सतगुरु को सच्चे हृदय(पूरी तड़प) से पुकारता है तो सतगुरु को अपने शिष्य की मदद के लिए आना ही पड़ता है। सतगुरु का हाथ बहुत लम्बा है, चाहे शिष्य सात समुद्र पार क्यों न हो।