Human Rights Day

मानवाधिकार का सार्वभौमिक घोषणा पत्र Human Rights Day -आज मानवाधिकार के क्षेत्र में निश्चित ही काफी तरक्की हुई है। जागरूकता बढ़ी है और जमीनी स्तर पर भी काम हुआ है, लेकिन आज भी मानवाधिकारों का हनन बदस्तूर जारी है। मानव मानव के रूप में जीने के अधिकार को लेकर संघर्षरत है। कहीं धनबल, बाहुबल, सामंतवाद अथवा राजनीतिक सत्ता का मद उसे उसके अधिकारों से वंचित कर रहा है तो कहीं सत्ता की अकर्मण्यता एवं अनिच्छा उसे इन अधिकारों से दूर रखे हुए है।

मानव रूप में जन्म लेने मात्र से आप और हम कुछ बुनियादी अधिकारों के पात्र बन जाते हैं। कोई सरकार, कोई हुकूमत भले ही हमें इन अधिकारों से वंचित करे, लेकिन इन पर हमारा दावा हमेशा कायम रहता है। ये ही हैं हमारे मानवाधिकार, जिनकी व्याख्या भले ही अलग-अलग तरह से की जाए, मगर मूल अवधारणा एक ही रहती है। द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिकाओं से आहत विश्व ने 1945 में संयुक्त राष्टÑ संघ का गठन किया और इसके 3 साल बाद 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्टÑ संघ महासभा ने मानवाधिकारों का सार्वभौमिक घोषणा पत्र पारित किया। इसमें अनेक मानवीय, नागरिक, आर्थिक तथा सामाजिक अधिकारों को शामिल किया गया है। हालांकि यह घोषणा पत्र कानूनन सदस्य देशों पर बंधनकारक नहीं है, लेकिन उनसे इस पर अमल करने की अपेक्षा की गई है।

तत्पश्चात् 4 दिसंबर 1950 को महासभा ने एक प्रस्ताव पारित कर तमाम राष्टÑों एवं संगठनों से अपील की कि वे प्रतिवर्ष 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाएं।

संयुक्त राष्टÑ संघ महासभा द्वारा जारी मानवाधिकार के सार्वभौमिक घोषणा पत्र में कुल 30 अनुच्छेद हैं, जिनकी सरलीकृत व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है: Human Rights Day

  • प्रत्येक मनुष्य स्वतंत्र है और उसके साथ स्वतंत्र मनुष्य की ही तरह व्यवहार किया जाना चाहिए।
  • रंग, नस्ल, भाषा, लिंग, धर्म, विचारधारा आदि की तमाम विभिन्नताओं के बावजूद सभी व्यक्ति समान हैं।
  • प्रत्येक व्यक्ति को जीवन का अधिकार प्राप्त है और स्वतंत्रता तथा सुरक्षा के साथ जीने का अधिकार है।
  • गुलामी के सभी रूप निषिद्ध हैं।
  • किसी को यातना देना निषिद्ध है।
  • कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान माने जाएंगे।
  • सभी लोगों पर एक समान कानून लागू किया जाएगा।
  • यदि किसी के अधिकारों का सम्मान नहीं किया जा रहा तो उसे कानूनी सहायता प्राप्त करने का अधिकार है।
  • किसी को अन्यायपूर्ण तरीके से कैद नहीं किया जा सकता और न ही अपने देश से निकाला जा सकता है।
  • सभी को निष्पक्ष तथा सार्वजनिक मुकदमे का सामना करने का अधिकार है।
  • दोषी सिद्ध होने तक प्रत्येक व्यक्ति को निर्दोष माना जाना चाहिए।
  • किसी ठोस कारण की अनुपस्थिति में किसी भी व्यक्ति की निजता भंग नहीं की जा सकती।
  • प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार आवागमन का अधिकार है।
  • अपने देश में सताए जाने पर प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे देश में जाकर पनाह मांगने का अधिकार है।
  • प्रत्येक व्यक्ति को एक देश का नागरिक होने का अधिकार है। यदि वह किसी दूसरे देश का नागरिक बनना चाहता है तो उसे ऐसा करने से रोकने का अधिकार किसी को नहीं है।
  • सभी को विवाह करने एवं परिवार पालने का हक है।
  • सभी को संपत्ति के स्वामित्व का अधिकार है।
  • व्यक्ति को अपने धर्म का पालन पूर्ण रूप से करने का अधिकार है। यदि वह चाहे तो उसे अपना धर्म परिवर्तित करने का भी अधिकार है।
  • सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है।
  • सभी लोगों को शांतिपूर्ण तरीके से सभाओं में भाग लेने और संगठनों में शामिल होने का अधिकार है।
  • सभी को अपनी सरकार चुनने और उसमें शामिल होने का अधिकार है।
  • सभी लोगों को सामाजिक सुरक्षा तथा अपने हुनर को विकसित करने का अवसर पाने का अधिकार है।
  • प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार है कि वह सुरक्षित वातावरण में, उचित पारिश्रमिक के बदले काम करे तथा मजदूर यूनियन की सदस्यता ग्रहण करें।
  • प्रत्येक व्यक्ति को अवकाश पाने एवं आराम करने का हक है।
  • प्रत्येक व्यक्ति को उचित जीवन स्तर प्राप्त करने एवं बीमारी में चिकित्सकीय सहायता पाने का अधिकार है।
  • सभी को शिक्षा पाने का अधिकार है।
  • सभी को सांस्कृतिक जीवन में सहभागिता का अधिकार है।
  • इन सभी अधिकारों की उपलब्धता के लिए आवश्यक सामाजिक व्यवस्था का सम्मान सभी द्वारा किया जाना चाहिए।
  • सभी लोगों को चाहिए कि वे दूसरे लोगों के अधिकारों, समुदाय तथा सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान करें।
  • ऊपर वर्णित अधिकार किसी से छीनने का अधिकार किसी को नहीं है।

आज मानवाधिकार के क्षेत्र में निश्चित ही काफी तरक्की हुई है। जागरूकता बढ़ी है और जमीनी स्तर पर भी काम हुआ है, लेकिन आज भी मानवाधिकारों का हनन बदस्तूर जारी है। मानव मानव के रूप में जीने के अधिकार को लेकर संघर्षरत है।

21वीं सदी की तमाम तकनीकी, आर्थिक तरक्की की चकाचौंध के बीच कई अंधेरे आज भी आदिम युग के अवशेषों के रूप में यत्र-तत्र पसरे हुए हैं। प्रतिदिन करोड़ों-अरबों का व्यापार करने वाले महानगर में आपको भूख भी आसपास ही कहीं दुबकी नजर आ जाएगी। नवीनतम चिकित्सकीय खोजों-आविष्कारों के लिए होने वाली बड़े-बड़े पुरस्कारों की घोषणाओं के बीच उपचार के अभाव में साधारण बीमारियों से होने वाली मौतों के किस्से भी कान में पड़ जाएंगे।

मानव नस्ल के अधिक परिष्कृत, अधिक सुसंस्कृत होने के खुशफहमी भरे दावों के बीच मानव द्वारा मानव पर वीभत्सतम यातनाओं-अत्याचारों के रोंगटे खड़े कर देने वाले मामले सामने आते रहते हैं। विकास और परिष्कार की सैंकड़ों साल की यात्रा के बाद आज भी हम प्रत्येक मानव को वे बुनियादी अधिकार दिलाने के लिए जूझ रहे हैं, जो सभ्यता की पहली चेतना के साथ ही सबको सहज उपलब्ध हो जाने चाहिए थे।
-नरेंद्र देवांगन

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