it is important to have a goal in life

जीवन में लक्ष्य का होना जरूरी

लक्ष्यहीन जीवन बिना पता लिखे लिफाफे की तरह होता है जो कहीं भी नहीं पहुँच सकता। उसे बस रद्दी की टोकरी में फैंक दिया जाता है। उसे भेजने वाला और पाने वाला दोनों ही उसके लिए प्रतीक्षारत रहते हैं।

मनुष्य को अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए, तभी वह अपने जीवनकाल में सफलता की ऊँचाइयों को छू सकता है। लक्ष्य को पाने की कामना करने वाले के लिए आत्मानुशासन की बहुत आवश्यकता होती है। जब वह अपने लक्ष्य को पाने के प्रयास में परिश्रम करता है, दिन-रात एक कर देता है, तभी अपने अनथक श्रम से वह लक्ष्य पाकर ही चैन लेता है।

दूसरे शब्दों में कहें तो वह मनुष्य भाग्यशाली है, जो एक निश्चित लक्ष्य की ओर अपने कदम बढ़ाता है। उसका जीवन किसी विशेष उद्देश्य के लिए होता है। ऐसे ही अनुशासित लोग घर-परिवार, देश, धर्म और समाज के लिए कुछ गुजरने का माद्दा रखते हैं।

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लक्ष्यहीन व्यक्ति कटी हुई पतंग की तरह केवल इधर-उधर भटकता रहता है। जब तक मनुष्य यह निर्धारित नहीं करेगा कि वह जीवन में क्या बनना चाहता है अथवा क्या करना चाहता है? तब तक वह अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच सकता।

यदि हमें कहीं जाना हो तो पहले हम स्थान निर्धारित करते हैं। फिर वहाँ तक पहुँचने का मार्ग सुनिश्चित करते हैं। जब हम पूरी तरह से सन्तुष्ट हो जाते हैं, तभी यात्रा के लिए निकलते हैं और निश्चित ठिकाने पर पहुँच जाते हैं। उसी प्रकार जीवन की यात्रा भी करनी होती है। वहाँ किन्तु अथवा परन्तु से काम नहीं चलता। एक स्पष्ट रूपरेखा की आवश्यकता होती है। तब जाकर मनुष्य अपने लक्ष्य तक पहुँचता है। अन्यथा मानव जन्म पाकर भी वह उस जीवन को वृथा गँवा देता है।

मनीषी कहते हैं कि लक्ष्यहीन जीवन बिना पता लिखे लिफाफे की तरह होता है जो कहीं भी नहीं पहुँच सकता। उसे बस रद्दी की टोकरी में फैंक दिया जाता है। उसे भेजने वाला और पाने वाला दोनों ही उसके लिए प्रतीक्षारत रहते हैं। यदि मनुष्य अपने जीवन में लक्ष्य पाने के लिए यदि दूसरों का मुँह ताकता रहेगा तो वह जीवन की इस रेस में पिछड़ जाएगा। हर किसी के कहने पर चलेगा तो वह थाली के बैंगन की तरह इधर-उधर लुड़कता रहता है। सभी भागमभाग में लगे हुए हैं, इसलिए किसी की ओर देखने का समय उनके पास नहीं है। जब तक मनुष्य स्वयं भागकर उन भागने वालों के साथ कदम नहीं मिलाएगा, तब तक वह बस निराशा का सामना ही करता रहेगा। फिर ऐसे पिछड़े हुए व्यक्ति का साथ देना कौन चाहेगा?

हमारे पूर्व राष्टÑपति डा. कलाम ने कहा था, इन्तजार करने वालों को उतना ही मिलता है जितना कोशिश करने वाले छोड़ देते है। विवेकानन्द का कथन है, ‘आप जैसे विचार रखोगे, वैसे ही बन जाओगे। अगर अपने आपको को निर्बल मानोगे तो निर्बल बन जाओगे। यदि अपने आपको समर्थ मानोगे तभी तो समर्थ बन पाओगे।‘

अब यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि आखिर वह अपने जीवन में क्या चाहता है? क्या सोचने वाला वह मनुष्य दूसरों को हसरत भरी निगाहों से निहारता रहना चाहता है? इसलिए विवेकपूर्वक मनन करते हुए जीवन को सही दिशा की ओर ले जाना ही समझदारी है।

नदी में प्राय:

वही किश्तियाँ डूबती हैं जो बिना योग्य मल्लाह के केवल आनन्द के लिए बस यूँ ही दिशाहीन दौड़ाई जाती हैं।
उसी प्रकार जिनके जीवन लक्ष्यहीन होकर डगमगाते हैं, वे इस संसार सागर में डूब जाते हैं। जिनके दिल में कुछ कर गुजरने की सामर्थ्य होती है वे ही हरदम झूमते हैं, गाते हैं और मस्त रहते हैं। सफलता इन्हीं महानुभावों के चरण चूमती है। दुनिया भी इन लोगों को अपनी सिर आँखों पर बिठाती है। ऐसे उद्यमी समाज को दिशा देते हैं।
अत: जीवन को लक्ष्यहीन होकर नहीं भटकने देना चाहिए, अपने लक्ष्य का निर्धारण करके ही बाण का अनुसन्धान करना चाहिए। -चन्द्र प्रभा सूद

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