समाज का ऋण भी लौटाएं
असम्भव-सा प्रतीत होने वाला कोई भी कार्य, सामर्थ्यवान के लिए बाएँ हाथ के खेल जैसा होता है। शक्तिशाली व्यक्ति किसी भी साहसिक कार्य को चुटकी बजाते ही सम्पन्न कर देता है। यह उसकी व्यवहारगत कुशलता का प्रमाण होता है। शक्ति का उपयोग वह परोपकार के लिए करता है, तब वह पूजनीय बन जाता है। उसके समक्ष कोई किसी असहाय पर अत्याचार करे, वह किसी भी शर्त पर इसे सहन नहीं कर सकता।
Also Read :-
- …अगर चाहिए समाज का सम्मान
- बेटी को आत्मनिर्भर बनाइए
- संस्कारी बच्चा ही भावी पीढ़ी का निर्माता
- जीवन साथी का आदर करें
- बहुत जरूरी है बच्चों के साथ मिल-बैठना
महाभारत के उद्योग पर्व में महर्षि वेद व्यास ने निम्न श्लोक में बताया है कि तीन प्रकार के लोगों को यह पृथ्वी धन-धान्य देती है-
सुवर्णपुष्पां पृथिवीं चिन्वन्ति पुरुषास्त्रयरू।
शूरश्च कृतविद्यश्च यश्च जानाति सेवितुम।।
अर्थात् इस धरती पर तीन तरह के व्यक्ति सुवर्ण पुष्पों को चुनते हैं – शूरवीर, विद्वान और शक्ति को सेवार्थ लगाने वाले।
महर्षि वेद व्यास समझाते हैं कि कठिन से कठिन कार्य करने वाले यानी सुवर्ण पुष्प जो आम इन्सान की पहुँच से बहुत दूर होते हैं, उनको चुनने वाले विरले ही लोग होते हैं। यदि हर किसी को वे फूल सरलता से प्राप्त हो जाएँ, तो उनका मूल्य ही नहीं रह जाएगा। हम सब लोगों ने तो शायद उनके विषय में केवल किस्से कहानियों में ही पढ़ा है, उन्हें कभी देखा नहीं है। हम सब उनसे अनजान हैं।
जो शूरवीर व्यक्ति हैं वे अपने शौर्य को कार्यान्वित करते हैं। उनकी वीरता देश, धर्म, घर-परिवार और समाज के लिए होती है। समय आने पर अपने इस दायित्व से वे मुँह नहीं मोड़ते, बल्कि डटकर सामना करते हैं। ऐसे लोग देश और समाज के लिए रत्न होते हैं। लोग आवश्यकता पड़ने पर इनकी ओर बड़ी आशा से देखते हैं। ये लोग भी उनकी अपेक्षाओं पर खरे उतरकर दिखाते हैं।
विद्वान अपने ज्ञान को कार्य के रूप में परिवर्तित करते हैं। वे अपने ज्ञान के बल पर बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं। उनके ज्ञान की परीक्षा यही होती है कि वे अपने ज्ञान का उपयोग समाज के हितार्थ करें। अनावश्यक वाद-विवाद नहीं करें। तभी उनके ज्ञान की सार्थकता होती है। यदि वे अपने ज्ञान से लोगों को विपरीत दिशा देते हैं, तो उनका ज्ञान निरर्थक हो जाता है। बहुत कठिनता से अर्जित किए गए ज्ञान का जीवन में क्रि यान्वयन ही उसकी वास्तविक कसौटी होती है, जिसमें उनको खरा उतरना होता है।
अपनी शक्ति को जो मनुष्य सेवार्थ लगाते हैं, वे उसका सदुपयोग करते हैं। अपनी शक्ति का उपयोग परोपकार के लिए करते हैं। अपनी शक्ति का प्रयोग वे दूसरों को सताने के लिए नहीं करते। असहायों और निर्बलों के सहायक बनकर वे समाज के दीनबन्धु बन जाते हैं। उनके जीवन का लक्ष्य यही होता है कि वे अपनी शक्ति का दुरूपयोग नहीं करेंगे। उसका उपयोग वे सदा सकारात्मक कार्यों के लिए करके महान बनते हैं।
प्रत्येक मनुष्य पर समाज का कुछ ऋण होता है। वह समाज में रहते हुए उससे बहुत कुछ लेता है, इसलिए हर मनुष्य का दायित्व बनता है कि जो भी उसकी सामर्थ्य है, उसके अनुसार वह समाज को बदले में कुछ लौटाए। शूरवीर अपने शौर्य के बल पर देश की सुरक्षा कर सकता है। विद्वान अपने ज्ञान को अन्य लोगों में बाँटने का कार्य कर सकता है। शक्ति का उपयोग मनुष्य समाज के असहाय वर्ग को सहायता देकर उपयोग कर सकते है।
कहने का तात्पर्य यह है कि जो भी मनुष्य के पास है, उसे देश और समाज के हितार्थ उपयोग करना चाहिए। तभी मानव जीवन की सार्थकता होती है। अन्यथा मनुष्य का यह जीवन निष्फल या व्यर्थ हो जाता है। ऐसे सत्कार्य करने वाले ये महा मानव अपने कार्यों से कठिन फलों को चुनते हैं या प्राप्त करते हैं। हर व्यक्ति के वश की बात यह नहीं हो सकती। अत: मनुष्य को सदा जीवन उपयोगी इन बातों को स्मरण रखना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद