पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
सत्संगियों के अनुभव
प्रेमी चरण दास इन्सां सुपुत्र स. गंगा सिंह जी गांव ढण्डी कदीम तहसील जलालाबाद जिला फिरोजपुर (पंजाब)। प्रेमी जी बताते हैं कि पहले हम गांव कबरवाला तहसील मलोट जिला श्री मुक्तसर साहिब में रहा करते थे।
सन् 1960 से पहले की बात है, मैं पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज के सत्संग में अक्सर ही जाया करता था। मेरे सत्संग में जाने पर, मेरे गांव वाले मुझे बहुत चिढ़ाया करते कि यह रोजाना ही सत्संग में चला जाता है, घर का कोई काम नहीं करता। और मेरे परिवार वाले खुद भी मुझे सत्संग में जाने से रोका करते थे। उन्हीं दिनों की बात है, एक दिन मैं खेत में पानी लगाने गया हुआ था। पानी की हमारी रात की बारी थी। रात-भर मैं खेत में ही रहा।
सुबह जब मैं घर पर आया तो घर वालों ने बताया कि अपनी भैंस पता नहीं कहां चली गई है? रात को या तो वह अपने आप खूंटे से खुल गई है या कोई चोर उसे खोल कर ले गया है। मैं उसी समय ही अपनी भैंस की खोज में निकल पड़ा। मैंने आस-पास के खेतों में तथा साथ लगते दो चार गांवों में भी दौड़-धूप की लेकिन भैंस का कहीं भी खुरा खोज (सुराग) नहीं मिला। आखिर यही बात सामने आई कि भैंस को तो रात के अधेंरे में कोई चोर खोल कर (चोरी करके) ले गया है, क्योंकि भैंस अगर अपने आप खूंटे से संगल तुड़ा कर निकलती तो आस-पास के खेत वाले या कोई न कोई गांव का आदमी बता देता। भैंस चोरी हो जाने वाली बात सारे गांव में फैल गई। लोग हमारे घर पर इकट्ठे हो गए।
प्रेमी जी बताते हैं कि मेरे पिता जी खुद एक खोजी थे। उसने उसी समय अपने एक और खोजी साथी बापू गुरमेज सिंह को भी बुला लिया, जो कि उनका ही चेला था। इस प्रकार उन्होंने भैंस की पैड़ की खोज, पैड़ का पीछा करना शुरू कर दिया। इधर हमारे घर पर एकत्रित लोगों में तथा पूरे गांव में तरह-तरह की चर्चाएं चलने लगी। कोई भैंस चोरी होने की बात कह रहा था और कोई मेरे सरसा जाने पर किन्तु-परन्तु कर रहा था।
उनमें एक आदमी थोड़ा मेरे नज़दीक आकर कहने लगा, ‘तू हर रोज सच्चा सौदा जाता है, अब कह सच्चे सौदे वाले बाबा को, वो तेरी भैंस ढूंढ कर दें!’ इस प्रकार तरह-तरह की बातें, यानि जितने मुंह उतनी बातें कि मेरे कान पक गए उनके ताने आदि सुन-सुनकर। भैंस खो जाने का मुझे इतना दु:ख नहीं था, जितना उन लोगों द्वारा डेरा सच्चा सौदा के नाम पर दिए गए तानों को सुनकर हो रहा था। बाथरूम जाने के बहाने, उन लोगों की भीड़ से मैंने अपने आप को अलग कर लिया। एकान्त में होकर मैंने पूज्य बेपरवाह जी के पवित्र चरण-कमलों में बड़े ही दुखी मन से अर्ज की कि ऐ दया के सागर, सर्व सामर्थ सतगुरु जी, आप जी की महान रूहानी हस्ती से ये बेखबर ईर्ष्यालु लोग डेरा सच्चा सौदा के नाम पर और आप जी के नाम पर ऐसे ताने देते, ऐसे टोंट कसते हैं कि मेरे से सहन नहीं हो पाता।
दयालु-दातार जी, आप जी रहमत बख्शो और मेरी भैंस को ढूंढ कर दे दो। आप जी ही काल का मुंह बंद कर सकते हो। वरना ये लोग ताने दे-दे कर मेरा जीना हराम कर देंगे। मेरे अंतर-हृदय में बार-बार यही अर्ज-विनती थी और साथ में पूरे जोर-शोर से सुमिरन चल रहा था। अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि अन्तर्यामी सतगुरु, दीन-दयाल सार्इं जी ने मुझे अंदर से ख्याल दिया। जिसमें प्यारे सार्इं जी ने मुझे आदेश फरमाया कि ‘चरणदास पुट्टर! तू एक व्यापारी बन जा और अपने पास के शहर में भैंसों के नौहरे में भैंस खरीदने के बहाने चला जा और वहां जाकर ऊंची आवाज में बोलना कि किसी ने भैंस बेचनी है! भैंस तेरी आवाज सुनकर बोल पड़ेगी। तब तू जाकर अपनी भैंस को पहचान लेना।
’ उधर मेरे पिता जी व उनका चेला खोजी पैड़ों का पीछा करते हुए अबोहर शहर तक तो पहुंच गए। अब आगे सड़क या पक्की गलियां आदि होने के कारण पैड़ का पता न चले कि किस गली-मुहल्ले में लेकर गए हैं। इधर मैं भी भैंसों के व्यापारी के रूप में, जहां-जहां भैंसों के नौहरे थे, एक-एक के पास जाकर ऊंची-ऊंची आवाज में, आवाज लगाऊं कि किसी ने भैंस बेचनी है! दो-तीन नौहरों से तो हमारी भैंस की कोई आवाज नहीं सुनाई दी। लेकिन जब मैंने एक और नौहरे के पास ऊंची आवाज लगाकर कहा, किसी ने भैंस बेचनी है, तो उस नौहरे से मुझे हमारी भैंस के रम्भाने (बोलने) की आवाज सुनाई दी। वह बेचारी जोर-जोर से रम्भा रही थी।
मैं उसी समय छल्लांग मार कर दीवार पर चढ़ गया और इस तरह उस नौहरे में चला गया। मैंने अपनी भैंस को पहचान लिया और भैंस ने मुझे पहचान लिया। वह मेरे पास आने के लिए संगल तुड़वाए, जोर लगाए। मैंने नौहरे के मालिक से कहा कि तुम हमारी भैंस को चुरा कर लाए हो! इतने में मेरे साथ वाले भी वहां नौहरे में पहुंच गए। हमने उससे कहा कि हम थाने में जाकर भैंस चोरी की रपट दर्ज करवाते हैं। हमें वहां देखकर वह पहले ही भयभीत हो गया था, और थाने का नाम सुनकर वह और भी ज्यादा डर गया। उसने अनुनय-विनय करते हुए, हाथ जोड़कर क्षमा मांगी और कहा कि आप थाने मत जाएं, शहर में मेरी मिट्टी-पलीत हो जाएगी।
आप अपनी भैंस भी ले जाएं और जो दण्ड (जुर्माना-या हर्जाना) भी आप लगाएंगे मैं वह भी अदा करने को तैयार हूं, पर आप थाने न जाएं। मेरे साथ कुछ सयाने बुद्धिमान लोग भी थे, उन्होंने मेरे साथ राय की कि अपनी भैंस मिल गई है, फिर अपने को क्या जरूरत है थाने वगैरह जाने की! इसने चोरी की है इसका जुर्माना इसको जरूर लगना चाहिए, अपने को जो इतनी परेशानी हुई है। इस तरह जो भी मेरे साथियों ने उसे दण्ड निश्चित किया, उसने बगैर क्यों-किन्तु के वहन किया और हमें, सब को जलपान आदि करवा कर यह वायदा करके विदा किया कि आगे से वह ऐसी चोरी-चकारी का काम कभी नहीं करेगा।
सर्व-सामर्थ सतगुरु सच्चे सार्इं जी ने मुझे स्वयं ही रास्ता बताया, स्वयं ही भैंस ढूंढ कर दी और अपने इस निमाणे सेवक की लाज रखी। जो लोग तरह-तरह के मेरे पर टोंट कसते थे, सार्इं जी की कृपा से सबकी बोलती बंद हो गई। सच्चे सतगुरु सार्इं मस्ताना जी बेपरवाह ने सबके मुंह पे जैसे ताले लगा दिए हो! हां, यार, इसका बाबा, सच्चे सौदा वाला तो ‘करनीवाला बाबा’ है! बड़ा जानीजान है। इस तरह वो ही लोग पूज्य सार्इं जी की सिμत करते हुए सुने गए। सतगुरु जी के उपकार कभी भुलाए नहीं जा सकते।