सत्संगियों के अनुभव सच्चे सतगुरु पूज्य परमपिता जी का रहमो-करम … बेटा, अभी बहुत सेवा लेनी है

प्रेमी सुखतेज सिंह सुपुत्र वैद्य आत्मा सिंह जी (डेरा सच्चा सौदा में सत् ब्रह्मचारी सेवादार रहते हुए वैद्य जी ओड़ निभा गए) निवासी गांव कोटगुरु ब्लॉक बांडी जिला भटिंडा (पंजाब)। प्रेमी जी सतगुरु कुल मालिक परम पिता शाह सतनाम जी दाता रहबर का अपने पर हुए अपार रहमो करम, एक बेपरवाही करिश्मे का वर्णन लिखित में इस प्रकार बताता है।
घटना 17 मई 1992 की है।

उस दिन अचानक मुझे इतनी ज्यादा घबाराहट हुई कि मुझे अपने आप की कोई सुध नहीं रही। क्या कुछ अच्छा-बुरा मेरी जुबान से निकला, मुझे खुद को तो नहीं पता था कि क्या बोले जा रहा हूं। और उसी दौरान मैं अपने बापू जी को भी बहुत कुछ बक गया था। ये सारी बातें मेरे बापू जी व बहन भाईयों ने बाद में मुझे बताई थी।

और क्रोध इतना कि कहने सुनने से परे! मेरे बापू जी मेरे इस व्यवहार से दुखी होकर एक कोने में जा बैठे थे। क्रोध भरी मेरी ऊंची-ऊंची आवाज को सुनकर हमारे पड़ौसी-परिवार भी बतौर हमदर्दी हमारे घर पर आ गए। कुछ सयाने लोगों ने मेरे शरीर को टटोला, नब्ज आदि देखी, उन्होंने मेरे बापू जी से कहा कि मुंडा ता ठंडा होया पेया है। तुसीं पिच्छे होके बैठ गए, कोई दवाई वगैरह देओ।

’ वर्णनयोग्य है कि मेरे बापू जी बहुत मशहूर वैद्य थे वो दवाई बूटी किया करते थे और लोगों का ेभी उन पर व उनके द्वारा दी गई दवाई पर बहुत भरोसा था।

बापू जी ने मेरी नब्ज परखी। नब्ज मेरी बिल्कुल रूक चुकी थी। शरीर में प्राण नहीं रहे थे और मैं मर चुका था। मेरे ऊपर कपड़ा डाल कर मेरा मुंह ढक दिया गया था कि यह अब डैड बाडी है। परिवार में रोना-पीटना शुरू हो गया था। इसी दौरान रोते-रोेते मेरी बहन ने मुझे अपनी बुक्कल (गोदी) में पा लिया।

वह बापू जी से कहने लगी कि यह ठीक हो जाएगा, आप इसे दवाई वगैरह दो। बापू जी मेरे बिल्कुल निराश हो चुके थे, कि मरे पड़े को क्या दवाई दंू।

लेकिन फिर भी मेरी बहन के कहने पर उन्होंने दवाई मेरे मुंह में डाली। दवाई की एक बूंद भी मेरे अंदर नहीं गई, ज्यों की त्यों दवाई सारी की सारी बाहर आ गई। लोगों के फिर जोर देकर कहने पर बापू जी ने एक बार फिर कोशिश की। दो बार, तीन बार जैसे ही वो दवाई मेरे मुंह में डालते, दवाई ज्यों की त्यों बाहर आ जाती।

उपरान्त मेरे बापू जी एकदम उठकर अपने सच्चे मुर्शिदे-कामिल परम पिता शाह सतनाम जी दाता रहबर के पावन स्वरूप के आगे जा खड़े हुए। उन्होंने हाथ जोड़ कर मेरी जान की भीख मांगते हुए विनती की कि ‘सच्चे पातशाह जी’, अब तो इसे आप जी ही मोड़ कर दे सकते हो, (मरे हुए को जिंदा कर सकते हो)! सच्चे दिल से व सच्ची तड़प से की हुई अरदास सर्व-सामर्थ सतगुरु जी की दरगाह में तुरंत मंजूर हुई।

उसके बाद जैसे ही दवाई नलकी से मेरे मुंह में डाली, दवाई सारी की सारी मेरे अंदर चली गई। इसके करीब आधे घंटे के बाद अचानक मुझे होश आ गया। मैं पूरी तरह से सजग हो उठ बैठा।

उपरोक्त घटना के बारे मैंने अपने बापू जी व परिवार में सभी के सामने इस वास्तविकता के बारे बताया कि मैं तो प्यारे सतगुरु, पूज्य परम पिता जी के पास चला गया था। परंतु सतगुरु प्यारे ने मुझे वापिस भेज दिया है। पूज्य दाता प्यारे ने मुझे एक कटोरी भर के बूंदी का प्रसाद भी खिलाया और ये वचन भी फरमाया कि ‘बेटा, तेरे से अभी बहुत काम लेना है।’ उसके बाद मैं तो सो गया और मेरी आंख अब, यानि दो बजे खुली है।

अब मैं बिल्कुल ठीक-ठाक स्वस्थ हूं।
इस घटना के कुछ ही दिनों के बाद हमारा सारा परिवार पूज्य मौजूदा गुरु जी संत डॉ. एमएसजी (हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) के दर्शन करने के लिए डेरा सच्चा सौदा शाह मस्ताना जी धाम के तेरावास में गए और पूज्य गुरु जी से भी मिले।

(शाह सतनाम जी धाम की स्थापना तो अक्तूबर 1993 में हुई है।) मेरे बापू जी ने पूज्य पावन हजूरी में मेरे साथ हुई उपरोक्त घटना के बारे अर्ज की कि पिता जी, सुखतेज के साथ पिछले दिनों ये-ये कुछ हुआ था। इस पर सर्व-सामर्थ पूज्य परम पिता जी के मौजूदा साक्षात स्वरूप पूज्य हजूर पिता जी ने भी वो ही वचन दोहराएं, ‘बेटा, मालिक जो चाहे सो कर सकता है। दवाई तो एक बहाना है।

’ सच्चे पातशाह जी ने अपने इन वचनों से भी जाहिर कर दिया कि मैं सचमुच में ही मर गया था और स्वयं सतगुरु जी ने ही मुझे दोबारा जीवन बख्शा है। मैं, मेरा परिवार और हम सभी पूज्य सतगुरु दाता प्यारे पूज्य परम पिता जी व पूज्य मौजूदा गुरु जी डॉ. एमएसजी का तहेदिल से धन्यवाद करते हैं। प्यारे शहनशाहों के शहनशाह जी, अपना अपार प्रेम हमें बख्शते रहना जी।

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