सेवा-सुमिरन ही इन्सान के सच्चे रिश्तेदार हैं

सेवा-सुमिरन ही इन्सान के सच्चे रिश्तेदार हैं

पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इस संसार का सबसे बड़ा काम, जो अन्य किसी जून के लिए संभव नहीं है, उसे सिर्फ इन्सान ही कर सकता है, उस काम को इन्सान भुलाए बैठा है। आदमी को अगर कहीं थोड़ा सा सफर करना हो तो वह अपनी सभी तैयारियां करता है। परंतु जहां इन्सान को अंत समय जाना ही पड़ेगा, वहां खाने का सामान क्या होगा, किस मोटर गाड़ी से वहां जाएंगे, इसके बारे में इन्सान नहीं सोचता।

आप जी ने फरमाया कि आने वाला समय यानि काल के गर्भ में क्या छुपा है? इसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता। लेकिन अगर इन्सान सुमिरन करे, भक्ति, परमार्थ, सेवा करे तो मालिक पहाड़ जैसे कर्म को भी कंकर में बदल देते हैं। कई बार तो ऐसा रहमो-कर्म होता है कि उस कंकर का भी अहसास नहीं होता। क्योंकि मालिक अपने भक्तों के कर्म पल-पल काटते रहते हैं।

भयानक से भयानक कर्म मात्र सपने में ही कट जाता है और इन्सान दंग रह जाता है। आप जी ने फरमाया कि साध-संगत बहुत बताती है कि सपने आदि में उनके साथ क्या हुआ और दर्शन हुए। क्योंकि मालिक, सतगुरु, दाता, रहबर पीर-फकीर के रूप में दर्शन तभी देते हैं जब संत उस मालिक से एक हो चुका होता है।

वो मालिक निराकार है, लेकिन वो उस संत यानि पुरुष के रूप में जीव को दर्शन देते हैं। तो जब भी मालिक ऐसे किसी को दर्शन देते हैं तो उसके कर्म कट जाते हैं या नए अच्छे, नेक कर्म बन जाते हैं। दोनों में एक बात जरूर होती है, पर इन्सान को अपने सतगुरु पर दृढ़ विश्वास हो। जो इन्सान सेवा, सुमिरन, वचनों का पक्का होता है, उसे अपने कर्म कटने का अहसास भी होता है। इसलिए इन्सान के लिए वचनों का पक्का होना जरूरी है।

आप जी ने फरमाया कि इन्सान को मालिक से प्यार करना चाहिए। इसका मतलब यह नहीं कि अपने रिश्तेदारों से प्रेम न करो, बल्कि उनसे प्रेम करो, कर्त्तव्यों को निर्वाह करो, उनके प्रति वफादार रहो। लेकिन सबसे बड़ा कर्त्तव्य प्रभु की भक्ति करना है और भक्ति करके आवागमन से आजादी प्राप्त करना है। ताकि आप जीते-जी, गम, चिंता, टेंशन से मोक्ष-मुक्ति मिल सके।

एक सत्संगी का सबसे बड़ा रिश्ता है कि वह सेवा-सुमिरन करे और अपने अल्लाह, वाहेगुरु, राम से ही सर्वोत्तम रिश्ता रखे। क्योंकि वही ऐसा साथी है जो यहां-वहां दोनों जहानों में हमेशा साथ रहता है। उससे रिश्ता रखने का मतलब है कि आप दीन-दुखियों की मदद करो, सेवा करो और राम का नाम जपो। यही एक उपाए है जिसके द्वारा आप मालिक को पा सकते हैं, उसकी दया-मेहर, रहमत के काबिल बन सकते हैं।

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