प्रभु के प्यार में समाया है परमानन्द

प्रभु के प्यार में समाया है परमानन्द

पूज्य हजूर पिता संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं परमपिता परमात्मा, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, खुदा, राम का प्यार-मोहब्बत जिसके भाग्य में लिख दिया जाता है, वो इन्सान दोनों जहान में सबसे सुखी हो जाता है। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि प्रभु के प्यार-मोहब्बत में परमानन्द समाया है। वहां गम, दुख, दर्द, चिंता, परेशानी के लिए कोई जगह नहीं होती।

जो इन्सान प्रभु के प्यार के मार्ग पर चलता है, वो दिलो-दिमाग से, अंत:करण से पाक-पवित्र होता जाता है और उसे लज्जतें, नजारें मिलने शुरू हो जाते हैं, जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की होती। आप जी फरमाते हैंं कि जो लोग मालिक के प्यार-मोहब्बत के रास्ते पर चलते हैं, उनके लिए काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया कोई मायने नहीं रखती।

हालांकि से सब बहुत बड़ी शक्तियां हैं। क्योंकि काम-वासना, देव-महादेवों का मन डगमग-डगमग करवा देती है। काम-वासना, बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों को घात में लाकर पटक देती है। क्रोध, ऐसा जालिम है कि पता नहीं दुनिया में कितनी तबाही की है। इसी तरह लोभ-लालच, मन, मोह-माया, ये ऐसी शक्तियां हैं, जो इन्सान को कहीं का नहीं छोड़ते।

इनमें उलझकर इन्सान अपनी औकात प्रभु के प्यार में समाया है परमानन्द हस्ती भूल जाता है और अपने-आपको इतना बड़ा, इतना ऊंचा बना लेता है कि सब कायदे-कानून, इन्सानियत भूल जाता है और वो शैतानियत की तरफ कदम बढ़ा लेता है। ऐसे में प्रभु का प्रेम ही है, जो राक्षसों को देवता बना देता है। प्रभु का प्रेम, तड़पते हुओं को मरहम लगा देता है।

प्रभु का प्रेम, इन्सान को सुखों की खान बख्शता है। आप जी फरमाते हैं कि मालिक के प्यार में चलने के लिए कोई जादू-टोना नहीं करना। कोई पैसे की जरूरत नहीं है। कोई काम-धंधा नहीं छोड़ना।

घर-परिवार नहीं छोड़ना। कोई कपड़ने बदलने का चक्कर नहीं। आपने प्रभु के प्रेम में चलना है, तो बस, सेवा और सुमिरन करना अति जरूरी है।

आप सेवा-सुमिरन, भक्ति-इबादत करते हैं, तो प्रभु के नाम से आपके दिलो-दिमाग का शीशा साफ होता है और आप उसकी दया-मेहर, रहमत के लायक बनते चले जाते हैं। इसलिए प्रभु के नाम का सुमिरन किया करो, परहित, परमार्थ किया करो, ताकि मालिक की तमाम खुशियां आपकी झोली में आ सकें।

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