‘बेटा! फिक्र्र ना कर’ सत्संगियों के अनुभव
परम पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपार रहमत
माता सुषमा इन्सां पत्नी सचखण्डवासी श्री यशपाल इन्सां एस.डी.ओ बिजली बोर्ड हरियाणा निवासी कल्याण नगर सरसा जि ला सरसा(हरियाणा)
सन् 1978 की बात है। उस समय मेरे पति श्री यशपाल जी बिजली बोर्ड में जे.ई. थे। उनकी ड्यूटि तलवाड़ा होशियारपुर के नजदीक लगी हुई थी और हम सपरिवार वहीं रहते थे। एक दिन हम डेरा सच्चा सौदा सरसा से पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज का सत्संग सुनकर वापिस लौट रहे थे। हमने जालंधर बस स्टैंड से दसुआ की बस पकड़ी। श्री यशपाल जी हमें बस में बिठा कर बच्चों के लिए खाने-पीने का सामान लेने चले गए। इतने में बस चल पड़ी। मैंने बस रुकवाने के लिए बहुत शोर मचाया क्योंकि मेरे पास दोनों छोटे-छोटे बच्चे और काफी सामान था।
कुछ सामान बस की छत्त पर भी था। मेरे पास न तो टिकटें थी और न ही कोई पैसा था। परन्तु कंडक्टर ने बस न रुकवाई तो मैं बहुत परेशान हो गई। मैंने एकदम सहायता के लिए अपने सतगुरु परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को याद किया। इतने में एक आवाज आई, ‘बेटा! फिक्र ना कर।’ यह आवाज परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की थी। एक लम्बे कद के बुजुर्ग मेरे सामने आकर खडेÞ हो गए।
उनका कद-काठ तो परम पिता जी की तरह था परन्तु चेहरा वैसा नहीं था। वह मेरे साथ आकर बैठ गए और बड़े बच्चे को गोदी में ले लिया। जब बस दसुआ पहुंची तो वह बुजुर्ग भी मेरे साथ उतर गए। उन्होंने मेरा सारा सामान उतरवाया और सामान उतारने वाले को पैसे भी दिए। बुजुर्ग करीब आधे घंटे तक मेरे साथ बस स्टैंड पर खड़े रहे। इस समय के दौरान उन्होंने बच्चों को मूंगफली भी लेकर दी। जब दूसरी बस से श्री यशपाल जी बस स्टैण्ड पर पहुंचे तो उनको देखकर मेरे बेटे देवेंद्र ने कहा कि डैडी आ गए। इतने में वह बुजुर्ग एकदम अदृश्य हो गए।
हमने उनका धन्यवाद करने के लिए उनको देखने की कोशिश की, परन्तु वह कहीं भी दिखाई ना दिए। इस प्रकार मेरे सतगुरु परम पिता जी ने एक अजनबी बुजुर्ग का रूप धार कर उस मुसीबत में मेरी हर संभव मदद की और अपने हाजिर नाजिर होने का अहसास करवाया।