‘बेटा दिखाना! कहां पर फोड़ा है…’ -सत्संगियों के अनुभव
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत
प्रेमी कैलाश चंद इन्सां पुत्र श्री नन्हे सिंह ऐम 160 सी महेन्द्रा एनक्लेव गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) से लिखते हैं:-
मेरा नाम कैलाश चंद इन्सां है। मेरे पर पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार कृपा हुई। सन् 1991 में मैंने पूज्य गुरु जी से नाम की अनमोल दात ग्रहण की। मेरे कर्म के अनुसार मुझे एक भयानक बीमारी ने घेर लिया, वो बीमारी छाती में कैंसर था।
मैंने बहुत दवाई खाई, मगर आराम नहीं आया। इस समय के दौरान मेरी नाौकरी भी छूट गई। मैं गुरु जी से इस बीमारी से छुटकारे के लिए अरदास करता व रोता रहता। मैं डेरा सच्चा सौदा बरनावा यू.पी. में सेवा करने के लिए गया तो वहां के जिम्मेवार सेवादार ने मुझे कहा कि तुम सरसा जाओ, पूज्य गुरु जी से अशीर्वाद लेना, तुम ठीक हो जाओगे और श्री गुरुसर मोडिया के अस्पताल से दवाई भी मिल जाएगी। उस सेवादार की बात मान कर मैं सरसा चला गया। जब मैं आश्रम के गेट पर था तो पूज्य गुरु जी मजलिस कर रहे थे। पूज्य गुरु जी ने वचन किए कि जो भी बीमार चलकर आया है, वह नाम जपे और दवाई खाए, वह ठीक हो जाएगा।
वचन तो हो चुके थे, पर मन ने विश्वास नहीं किया और सोच दी कि पिता जी से मिलकर अपनी बीमारी की सारी बात बताऊं। मुझे पिता जी से मिलने का समय मिल गया और वचन मान कर श्री गुरुसर मोडिया दवाई लेने पहुंच गया। मुझे वहां से मुफ्त दवाई मिली और वहां पृज्य बापू जी नम्बरदार सरदार मग्घर सिंह जी (हजूर पिता जी के पूज्य जन्म दाता) के दर्शन किए। जैसे मैं दवाई लेकर बस में बैठा तो मैं पूज्य गुरु जी की याद में फूट-फूट कर रोने लगा और अपनी बीमारी के बारे में वलाप कर रहा था कि हे मेरे सतगुरु, मेरे दाता, मेरे रहबर, मेरे पीया तेरे बिना मेरा कोई भी सहारा नहीं है। आप ही मुझे इस भयानक बीमारी से निजात दिला सकते हो। आगे जनवरी का भण्डारा था।
जब से मैंने पूज्य गुरु जी से नाम गुरुमंत्र लिया तब से ही मुझे आश्रम में सेवा मिल गई थी। जब पूज्य गुरु जी सेवादारों को दातें बख्श रहे थे तो मेरा भी नम्बर आया तो मैंने अरदास की कि हे मेरे दाता, मेरे शहनशाह जी, अगर मुझे दात ही देनी है तो मुझे ठीक कर दो, मेरे लिए यह ही सब से बड़ी दात है। क्योंकि मैं बीमारी से इतना परेशान था कि सुबह, दोपहर व शाम को दर्द की गोली लेता था, हर वक्त दर्द होता रहता था। मेरी छाती में कैंसर का बहुत बड़ा फोड़ा बन गया था और उसमें से मुवाद बहती रहती थी तो मैं अपने सतगुरु से अरदास करता कि हे मेरे दाता, जब से मैंने नाम लिया है, ये सिर आप के आगे ही झुक सकता है, किसी और के आगे नहीं।
आप जैसा भी रखो, आप की मर्जी। मुझे सतगुरु ने ख्याल दिया कि तेरा आॅप्रेशन करना पड़ेगा तो मैंने सतगुरु के दिए ख्याल अनुसार आॅप्रेशन करवाने का मन बना लिया। मैं आॅपरेशन करवाने के लिए मुजफ्फर नगर गया तो वहां पर मुझे एक सत्संगी बहन मिली जो कि बरनावा आश्रम में पक्की सेवा करती है और मेरी जान पहचान की है। उसने मुझसे पूछा कि भाई, कहां से आए हो और कहां जा रहे हो? तो मैंने उसको बीमारी वाली पूरी बात बताई। उसने मुझे कहा कि भाई, तू चिंता मत कर। तुझे सतगुरु जी बगैर आॅपरेशन के ही ठीक कर देंगे।
तुम मेरे साथ दवाई लेने सहारनपुर चलना। मैंने कहा कि मैंने बहुत दवाई खाई, ठीक नहीं हुआ। वह बहन कहने लगी कि मुझे विश्वास है कि भाई एक बार तुम सहारनपुर दवाई लेने चलो, तुम ठीक हो जाओगे। उस बहन ने कहा कि मुझे अपने सतगुरु पर पूर्ण विश्वास है क्योंकि उसने ही तो तुम्हें मुझसे मिलवाया है। तो वह बहन मुझ से कहने लगी कि भाई तुम मेरे घर चलो, सुबह मैं तुम्हें दवाई दिलवाकर लाऊंगी। तो मैंने कहा, बहन जी, मैं नाम चर्चा सुन कर फिर आप के साथ चलूंगा। तो मैं नाम चर्चा सुनकर बहन जी के घर पहुंच गया।
खाना व दवाई खाकर नाम का सुमिरन करता हुआ सो गया। रात को सुपने में मुझे पूज्य गुरु जी (संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) ने दर्शन दिए और कहने लगे, ‘बेटा! दिखाना कहां पर फोड़ा है?’ तो मैंने अपनी कमीज उठा कर पूज्य गुरु जी को फोड़ा दिखाया। तो हजूर पिता पूज्य गुरु जी ने अपने सीधे हाथ का अंगूठा जख्म वाली जगह पर रख दिया। उस समय मुझे इतनी खुशी हुई जिसे लिखने के लिए शब्द नहीं हैं। जब मैंने उठकर पिता जी को देखना चाहा तो पिता जी अदृश्य हो गए। मैं बहुत खुश था। मैंने इस दृष्टांत के बारे में किसी को भी नहीं बताया क्योंकि ऐसा हुक्म नहीं था। सुबह बहन जी मुझे सहारनपुर लेकर गई।
मैं बहन जी का कहना नहीं मोड़ सका परन्तु मुझे विश्वास हो गया था कि मेरे सतगुरु ने मेरा रोग काट दिया है और सचमुच ही कट गया। मैनें बहन जी का मन रखने के लिए सहारनपुर वैद्य से दवाई ले ली। दर्द तो मेरा पहले ही हट चुका था। मैं बलिहारी जाऊं उस सतगुरु पर जिसने इतनी भयानक बीमारी से मेरा छुटकारा करवा दिया। अब मैं सतगुरु पूज्य हजूर पिता जी की कृपा से वर्षाें से स्वस्थ जीवन जी रहा हूं। ऐ मेरे सतगुरु, मेरी आप से ओड़ निभ जाए, मेरी यही अरदास है जी।