बेटा, यह सचखंड का फल है… :
सत्संगियों के अनुभव पूजनीय परम पिता जी का अपार रहमो करम
प्रेमी राम गोपाल इन्सां सुपुत्र सचखंडवासी श्री के.सी. अरोड़ा (रिटायर्ड एसई) शाह सतनाम जी नगर सरसा (हरियाणा)। प्रेमी जी अपने सतगुरु प्यारे पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के उपरोक्त अनुसार एक बहुत ही मनोरम करिश्मे सतगुरु के अपार रहमो करम का वर्णन लिखित रूप में इस प्रकार बताते हैं।
घटना 1990 की है। उस दिन सुमिरन, मालिक की याद में बैठे हुए को मुझे सतगुरु शाह सतनाम जी महाराज के बहुत ही सुंदर (साक्षात) दर्शन हुए। पूज्य सतगुरु दाता जी ने फरमाया राम गोपाल आज तुझे अपने घर को लेकर जाते हैं।
पूज्य परम पिता जी आगे-आगे चल रहे थे और मैं पीछे-पीछे।
रास्ते में मैंने देखा, बहुत ही खूब सूरत पहाड़ियां, ऊंचे-ऊंचे पर्वत, और बहुत गहरी-गहरी खाईयां थी। एक जगह रूक कर मैंने पूज्य शहनशाह जी से विनती की, पिता जी, मुझे कहां पर ले जा रहे हैं जी! क्योंकि मुझे इस तरह लगा कि पिता जी मुझे हमेशा के लिए यहां से ले जा रहे हैं।
मैंने बार-बार विनती की पिता जी, मैंने नहीं देखना अभी सचखंड।
(मैं इतनी ज्यादा गहराईयों को देखकर घबरा गया था) आप जी मुझे अभी मेरे घर पर वापिस छोड़कर आओ जी, मेरे मम्मी-पापा मेरा इंतजार कर रहे होंगे। मैं अपने मम्मी पापा का इकलौता बेटा हूं।
आगे मैंने देखा, एक सुंदर पहाड़ी पर कुछ लोग (दो तीन) आदमी की शकल में थे, वो समाधि-सुमिरन में बैठे हुए थे। उनमें दो आदमी एक तरफ मुंह किए हुए थे और तीसरे आदमी का मुंह उन दोनों के सामने था, यानि वो तीनों आमने सामने बैठे हुए थे। मैंने उन लोगों को ऐसे बैठा देखकर पूज्य पिता जी से पूछा भी कि ये लोग कौन है।
पूज्य परम पिता जी ने फरमाया कि ये लोग बहुत भक्ति करते थे लेकिन अभी तक इन्हें मोक्ष (मुक्ति) नहीं मिल पाई थी, इसलिए ये यहां बैठकर भक्ति कर रहे हैं मुक्ति पद प्राप्त करने के लिए ।
पूज्य शहनशाह जी बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे थे और मुझे भी उसी तरह अपने साथ ‘ऊपर’ और ऊपर की ओर ले जाए जा रहे थे। फिर एक जगह मैंने देखा, पूज्य शहनशाह जी एक बहुत ऊंचे पहाड़ पर खड़े थे। वह पूरा पहाड़ सोने का था और उसके चारों तरफ भी बहुत ही खूबसूरत सुनहरी छटा थी।
उस पहाड़ पर खड़े हुए पूज्य पिता जी बहुत ही सुंदर लग रहे थे। मैं नीचे, उस पहाड़ के पैरों में, खड़ा सतगुरु-मुर्शिद के दर्शन पाकर बहुत-बहुत खुश था। इतने में पूज्य शहनशाह जी ने वहां से एक फल मेरी तरफ फैंकते हुए फरमाया, ‘‘बेटा! यह सचखंड़ का फल है, इसे खा ले।
वह फल अपने हाथ में लेते हुए मैंने देखा, जो वह गुलाब-जामुन के रंग व आकर का था। वचनानुसार मैंने वह फल तुरंत अपने मुंह में डाल लिया और खा लिया। इस नजारे के बाद मेरी आंख खुल गई।
इससे पहले तो मैं सुमिरन कर लिया करता था, उस दिन से मुझे शंका हो गई कि पूज्य परम पिता जीमुझे अभी से ही हमेशा के लिए अपने साथ ही न ले जाएं, तभी तो मैंने उस अति सुंदर मनोरम रूहानी दृश्य के दौरान सुमिरन करना छोड़ दिया था (कि मैं अभी सचखंड अपने मम्मी पापा को छोड़कर) नहीं जाना चाहता।
तब मैं अनजान था।
इतनी समझ मुझे नहीं हुआ करती थी। मेरे मुर्शिद प्यारे मौजूदा गुरु डॉ. एमएसजी लायन हार्ट से अरदास, गुजारिश है कि पिता जी मुझे क्षमा करना जी, पता नहीं, और कितना कुछ आप जी मुझे दिखाते उस दिन।
प्यारे दाता जी, अपनी अपार रहमत इसी तरह बख्शते रहना जी और साथ में अपनी उन अलौकिक खुशियों को संभालने की शक्ति भी प्रदान करना जी। पिता जी, आप जी का बहुत-बहुत धन्यवाद जी।