स्वदेश लौटकर शुरू किया गुड़ बनाने का कारोबार, हुआ मालामाल
अमेरिका में 5 साल बीताए, लेकिन राजविंद्र धालीवाल के मन से कम नहीं हुआ देशप्रेम
“मैं किसान परिवार से संबंध रखता हूं, लेकिन मैंने पहले कभी भी खेती नहीं की थी। विदेश जाने के बाद कहीं न कहीं मेरे मन में खेती को लेकर बात आती थी। मैंने भी सोचा कि अब खेती को बचाने के लिए सबको साथ आना होगा। आखिर में वो यही कहते हैं कि हम किसानों को नई खेती को अपनाना होगा।
आज के दौर में ज्यादातर युवा विदेशों में रहकर पूरे ऐशो-आराम से जिंदगी जीना पसंद करते हैं और वहां रहकर उनका मकसद अच्छी कमाई करना भी होता है लेकिन बहुत कम लोग ऐसे देखने को मिलते हैं, जो विदेश से लौटकर कृषि करना पसंद करते हैं। इन्हीं चंद लोगों में पंजाब के मोगा जिला स्थित लोहारा गांव के रहने वाले राजविंदर सिंह धालीवाल भी शामिल हैं, जिन्होंने अमेरिका छोड़ भारत में रहने का फैसला किया और महज कुछ ही एकड़ में खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
अमेरिका से भारत लौटे रजविंदर अपने आठ एकड़ की जमीन पर गन्ना, आलू, हल्दी, सरसों जैसे फसलों को प्राकृतिक तरीके से उगा रहे हैं और इन फसलों को प्रोसेस कर गुड़, शक्कर और हल्दी पाउडर भी बनाते हैं। इसके अलावा उन्होंने अपने फार्म में आम, अमरूद, चीकू, अनार जैसे फलों के पेड़ भी लगाए हैं और आज उन्हें पारंपरिक खेती करने वाले किसानों के मुकाबले प्रति एकड़ एक लाख रुपए का अधिक मुनाफा हो रहा है। आज उनका फार्म हाउस लोहारा फार्म हाउस के नाम से प्रसिद्ध है।
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राजविंदर अमेरिका में पांच सालों तक रहे और उन्होंने वहां ट्रक चलाने से लेकर होटल लाइन तक में काम किया। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें इस बात का एहसास होने लगा कि जीवन में अपने गांव-देश से बढ़कर कुछ नहीं है। इसके बाद उन्होंने 2012 में अमेरिका छोड़ भारत आने का फैसला किया। भारत लौटने के बाद उन्होंने अपना होटल बिजनेस शुरू किया लेकिन कुछ हीं समय बाद उन्हें खेती करने की ख्वाइश जगी। इसके बाद उन्होंने ‘किसान विरासत मिशन’ नाम के एक एनजीओ से खेती से जुड़ी जानकारियों को प्राप्त करना शुरू कर दिया। साथ हीं खेती करने वाले कई किसान दोस्तों से सोशल मीडिया के जरिए बात हुई और वर्ष 2017 में उन्होंने अपने छह एकड़ जमीन पर पूरी तरह से प्राकृतिक खेती करनी शुरू कर दी।
राजविंदर ने सबसे पहले अपनी आठ एकड़ जमीन पर केवल हरी खाद दी और कोई फसल नहीं लगाई, क्योंकि इससे पहले इस खेत में रसायन का इस्तेमाल हुआ करता था। इसलिए उन्होंने अपने खेत में हरी खाद का छिड़काव किया ताकि खेत नैचुरल फार्मिंग के लिए तैयार हो सके। उसके बाद वर्ष 2017 में उन्होंने करीब पांच एकड़ में सबसे पहले गन्ना लगाया तथा खेतों की सीमाओं पर 3000 से अधिक फलदार पेड़ भी लगाए हैं। यहां राजविंदर का मानना है कि यदि कोई किसान नैचुरल फार्मिंग कर रहा है, तो बिना वैल्यू एडिशन के अधिक लाभ नहीं कमाया जा सकता है। इसलिए उन्होंने खुद ही गुड़ और हल्दी पाउडर जैसे उत्पादों के बनाने के लिए एक एकड़ में मशीनें लगाई हुई हैं। उन्होंने अपने उत्पादों को रखने और काम के बाद आराम करने के लिए खेत में ही मिट्टी के घर भी बनाए हैं।
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कई तरह से गुड़ बनाते हैं रजविंदर
रजविंदर की सबसे बड़ी विशेषता ही यही है कि वो अपने गन्ने को बाजार में बेचते नहीं, बल्कि गन्नों से खेत में ही खुद शक्कर व गुड़ बनाते हैं।
बता दें कि, साधारण गुड़ बनाने के अलावा हल्दी, सौंफ, अजवाइन, तुलसी, ड्राइफ्रूट इत्यादि मिलाकर कई प्रकार के मसाला गुड़ भी बनाते हैं। साथ हीं आपको बता दें कि, इनके यहां साधारण गुड़ को प्रति किलो 110 रुपए में बेचा जाता है और मसाला गुड़ 170 रुपए प्रति किलो तक बिकता है।
इसके अलावा शक्कर को 140 रुपये किलो के रेट पर बेच रहे हैं। वे बताते हैं कि, गन्ने की सरकारी दर आज 360 रुपए प्रति क्विंटल है लेकिन एक क्विंटल गन्ने से 10 किलो गुड़ आसानी से बन जाता है। यदि अपने द्वारा बनाए गए गुड़ को कम से कम 110 रुपए किलो की दर पर बेचें, तो भी कमाई में तीन गुना फर्क है। गुड़ और शक्कर बनाने के लिए उनके यहां सीओजे-64, सीओजे- 85, सीओजे-88 जैसी किस्म की गन्नों का इस्तेमाल किया जाता हैं तथा हर साल कम से कम उनके पास 10 टन गुड़ का उत्पादन होता है, जिससे 8 लाख की कमाई होती है।
कैसे करते हैं मार्केटिंग?
रजविंदर अधिकतर अपने उत्पादों की मार्केटिंग सोशल मीडिया के जरिए करते हैं। वे अपने उत्पादों को कभी थोक में नहीं बेचते हैं ताकि खेती में बिचौलियों की संभावना कम हो और उन्हें अधिक लाभ मिले। उनकी कोशिश सीधे ग्राहकों को बेचने की होती है। इसके अलावा वे अपने खेतों में प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करते हैं और ग्राहकों को अपना थैला खुद ले जाना होता है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के अलावा उनका गुड़, शक्कर हैदराबाद, लखनऊ, झारखंड, महाराष्टÑ तक भी सप्लाई होता है। इनका सलाना टर्नओवर 12 लाख रुपये का है।
सब्जियों तथा फलों की भी करते हैं खेती
राजविंदर अपने खेतों में गन्ने के अलावा हल्दी, सरसों, प्याज और अन्य सब्जियों की भी खेती करते हैं तथा खाद के तौर पर वे एग्रीकल्चर वेस्ट के अलावा गाय के गोबर का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा अब वे मवेशी पालन भी करते हैं ताकि गोबर कहीं से खरीदना न पड़े और दूध बेचकर भी अच्छी कमाई की जा सके। रजविंदर ने अपने खेतों की साइड में भी कुछ ऐसे पेड़ लगाए हैं जिनके फल बेचकर भी पैसा कमाया जा सकता है।
आलू उगाने की अनोखी तकनीक
राजविंदर अपने खेतों में एक खास तरीके से आलू भी लगाते हैं। वे आलू को मिट्टी में नहीं लगाते बल्कि जमीन के ऊपर ही वे आलू को उगाते हैं। इसके लिए वे पहले बेड बनाते हैं और उस पर आलू बिछाने के बाद पराली से ढक देते हैं। इस प्रक्रिया में पानी की खपत भी कम होती है और इसे उखाड़ना भी आसान होता है। जिससे मजदूरी भी बचती है और अन्य प्रक्रिया के मुकाबले इसमें केवल 20-25 फीसदी पानी की खपत होती है।