पूजनीय सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज का रहमो-करम
‘‘सच्चा सौदा सतगुरु के हुक्म से बना है…’’ “The true deal is made by the command of the Satguru …”
सत्संगियों के अनुभव
मास्टर लीला कृष्ण उर्फ लीलाधर नानकनगरी मोगा (पंजाब) से पूज्य शहनशाह मस्ताना जी महाराज के एक अलौकिक करिश्मे का इस प्रकार वर्णन करता है:- करीब 1958 की बात है, उस समय डेरा सच्चा सौदा सरसा में शहनशाह मस्ताना जी महाराज बड़ी-बड़ी इमारतें बनवाते, जब बिल्डिंग बन कर पूरी तैयार हो जाती तो दूसरे दिन ही उस बिल्डिंग को गिराने का हुक्म दे देते।
हुक्म मिलते ही साध-संगत उस बिल्डिंग को गिराने लग जाती। ऐसा कार्य डेरा सच्चा सौदा सरसा में ही नहीं, बल्कि सच्चा सौदा के सभी आश्रमों में चल रहा था। नए जीवों को डेरे में बुलाने का यह निराला ही ढंग था। कभी-कभी कोई नया जीव बेपरवाह मस्ताना जी के आगे अर्ज करता कि सार्इं जी! आप हजारों रुपये खर्च करके मकान बनवाते हो ।
बाद में उसको गिराने का हुक्म क्यों देते हो? इस तरह कितना धन, कितनी मेहनत व्यर्थ चली जाती है। इस पर बेपरवाह जी फरमाते, यह धन व्यर्थ नहीं जाता। यह डेरा सच्चा सौदा एक रूहानी कालेज है, यहां पर लोगों को आत्मा की तालीम दी जाती है। इस तालीम के लिए लाखों रुपये खर्च होते हैं। असीं यह रुपये किसी से मांगते नहीं, किसी से दान नहीं लेते। यह तो सावण शाही अखुट खजाना है जो कभी खुटने वाला नहीं है।
उन दिनों में सीमेन्ट पर कन्ट्रोल था, खुली मार्किट में नहीं मिलता था, बल्कि तहसीलदार के परमिट द्वारा सीमेन्ट मिलता था। सरसा में उस समय का तहसीलदार साहिब डेरा सच्चा सौदा का श्रद्धालु था। इसलिए जब भी डेरा सच्चा सौदा के प्रबन्धक सीमेन्ट लेने जाते तो तुरन्त ही परमिट मिल जाता। डेरा सच्चा सौदा में मकान बनाने व गिराने का काम दिन-रात पूरे जोरों पर चलता रहता था। सीमेन्ट का बहुत ही ज्यादा प्रयोग हो रहा था।
कुछ सरकारी अफसर ये एतराज भी करते थे कि सच्चा सौदा वाले ईंटों व सीमेन्ट को व्यर्थ में नाश कर रहे हैं। इसलिए इनको सीमेन्ट का परमिट नहीं मिलना चाहिए। उनका विचार था कि सच्चा सौदा वाले बाबा जी कोई मन्दिर, गुरुद्वारा या स्कूल बनवाएं लेकिन बनवाने के बाद उसे गिरायें ना फिर तो ठीक है, परन्तु सच्चा सौदा वाले गुरु जी तो इतनी सुन्दर बिल्डिंगें बनाते हैं फिर गिरवा देते हैं।
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फिर बनवाते हैं, फिर उसे गिरा देते हैं। इस प्रकार सीमेन्ट का व्यर्थ में नाश करते हैं। सीमेन्ट का कन्ट्रोल है, लोगों को तो आवश्यकता के अनुसार सीमेन्ट पूरा मिल नहीं रहा, लेकिन सच्चा सौदा वाले हजारों थैले परमिट पर ले लेते हैं, उसको फिजूल में गंवा रहे हैं।
कुछ समय के बाद वह तहसीलदार सरसा से बदल कर कहीं और चला गया और उसकी जगह नया तहसीलदार आ गया। उसका विचार था कि डेरा सच्चा सौदा वालों को सीमेन्ट का परमिट नहीं दिया जाना चाहिए। जब डेरे के प्रबन्धक नए तहसीलदार साहिब से सीमेन्ट का परमिट लेने गए तो उसने स्पष्ट जवाब दे दिया। प्रबन्धकों ने तहसीलदार से दो-तीन बार विनती भी की, पर वो नहीं माना। उसने कहा कि डेरा सच्चा सौदा के सिवाय सब को सीमेंट का परमिट मिल सकता है।
जब प्रबन्धकों ने उपरोक्त बातें शहनशाह मस्ताना जी के चरणों में अर्ज की तो उस समय मैं भी वहीं बैठा हुआ था। रविवार का दिन था। सुबह नौ बजे का समय था। सर्व सामर्थ सतगुरु जी ने वचन फरमाए, ‘पुट्टर! फिक्र ना करो, सच्चा सौदा सतगुरु सावण शाह सार्इं ने बनाया है। वो ही हमें सीमेन्ट भी देंगे। यह सच्चा सौदा तहसीलदार की मां ने नहीं बनवाया। यहां पर सीमेन्ट का कारखाना भी लग सकता है। सच्चा सौदा सतगुरु के हुक्म से बना है।
उसी के हुक्म से चल रहा है और हमेशा उसी के हुक्म से ही चलता रहेगा। अभी भी सीमेन्ट सतगुरु ही देवेगा।’ बेपरवाह मस्ताना जी के वचन सुन कर सब चुप हो गए तथा अपने-अपने काम में लग गए। स्टोर में सीमेन्ट के काफी थैले अभी पड़े हुए थे जिनसे चिनाई का काम लगातार चलता रहा।
उपरोक्त घटना के तीन हफ्ते के बाद रविवार का ही दिन था और मैं भी बेपरवाह जी के चरणों में बैठा हुआ था। सुबह दस बजे का समय था। एक सेवादार जिसके हाथ में अखबार था, उसने बेपरवाह जी के चरणों में खबर सुनाई कि सरकार के हुक्म द्वारा सीमेन्ट का कंट्रोल खत्म कर दिया गया है। अब सीमेन्ट खुले बाजार में बिना परमिट के बिका करेगा। खबर सुन कर बेपरवाह जी ने प्रबन्धकों को हुक्म फरमाया, अभी-अभी सरसा शहर में जाओ और दुकानदारों को रुपये जमा करवा दो कि जब भी सीमेन्ट आए उसी समय ही डेरा सच्चा सौदा के लिए सीमेन्ट दे देवें।
चार-पांच दुकानदारों को दो हजार थैलों के पैसे जमा करवा दो। क्या पता सीमेन्ट कब बन्द हो जाए। उस दिन रविवार होने के कारण पैसे जमा न हो सके, अगले दिन प्रबन्धकों ने अलग-अलग दुकानदारों के पास जाकर पैसे जमा करवा दिए जिनके पास सीमेन्ट आना था। उसके कुछ दिन बाद सरसा शहर में सीमेन्ट आ गया और बिना परमिट के बिकना शुरू हो गया। डेरा सच्चा सौदा वालों ने एक ही बार में चार-पांच डीलरों से दो हजार थैले सीमेन्ट खरीद लिया।
डेरे में सीमेन्ट पहुँच गया। सभी साध-संगत बहुत खुश थी। इसके कुछ दिन बाद अखबार में फिर खबर आई कि सरकार अनुभव करती है कि अभी सरकार के पास सीमेन्ट की प्रोडक्शन इतनी अधिक नहीं है कि सीमेन्ट को खुली मार्केट में बेचा जा सके। सरकार का विचार है कि कन्ट्रोल बिना सब लोगों को सीमेन्ट प्राप्त नहीं हो सकेगा।
इसलिए सरकार ने आदेश दिया है कि सीमेन्ट का पहले की तरह ही कन्ट्रोल रहेगा तथा परमिट पर ही मिला करेगा। जब यह खबर बेपरवाह जी के चरणों में पढ़ कर सुनाई गई तो बेपरवाह जी बहुत हँसे और वचन फरमाया, ‘भाई! सतगुरु सर्व सामर्थ है, उसने अपनी दया मेहर से सीमेन्ट का कन्ट्रोल करवा दिया। असीं तो कुछ नहीं किया जो कुछ किया है सतगुरु सार्इं सावण शाह ने ही किया है।’
तहसीलदार साहिब जिस ने डेरे को सीमेन्ट के लिए जवाब दिया था, एक दिन वह डेरा सच्चा सौदा में बेपरवाह मस्ताना जी से माफी मांगने आया। दरबार के प्रबन्धकों ने बेपरवाह जी के चरणों में विनती की कि सार्इं जी सीमेन्ट वाला अफसर आया है। पूज्य बेपरवाह जी ने फरमाया, अच्छा सीमेन्ट वाला आया है तो बुलाओ। जब वह तहसीलदार मस्ताना जी के पास आया तो बेपरवाह जी ने वचन फरमाया, अच्छा, तू इतना सोचता है तो तेरे को धर्मराज से माफी दिलवाएंगे।
वह खुश था। अब उस तहसीलदार साहिब के दिल में मालिक के प्रति श्रद्धा-प्रेम भाव पैदा हो गया था। अब वही तहसीलदार डेरा सच्चा सौदा को फौरन सीमेन्ट का परमिट बनाकर दे देता था। उपरोक्त साखी से स्पष्ट है कि पूर्ण सन्त फकीर स्वयं ही परमात्मा होते हैं, वे सर्व सामार्थ होते हैं। वे कुल मालिक के सिवाए और किसी के अधीन नहीं होते। जैसा वे चाहें कानून बनवा कर अपना काम करवा लेते हंै।