Editorial -sachi shiksha hinid

नहीं बदलती हकीकी मय -सम्पादकीय

पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज सच्चे रहबर द्वारा रचित ग्रंथों में दर्ज एक कव्वाली में आता है, ‘बदलदी मय हकीकी नहीं, पैमाना बदलदा रहिंदा। सुराही बदलदी रहिंदी मयखाना बदलदा रहिंदा।’ इस पंक्ति के गूढ़ रूहानी अर्थों को स्पष्ट करते हुए पूजनीय परमपिता जी ने संगत में समझाया कि हकीकी मय (रूहानियत, परमपिता परमेश्वर की भक्ति, राम-नाम का नशा) कभी बदलने वाली वस्तु नहीं है।

भले ही सुराही बदल जाए और पैमाना भी बदल सकता और यहां तक कि मयखाना भी बदल सकता है, लेकिन युगों-युगों से चली आ रही राम-नाम की खुमारी, वो अलौकिक नशा, सतगुरु-मालिक का हकीकी प्यार कभी बदलने वाला नहीं है। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने अपने उपरोक्त वचनों को साकार करते हुए अपने रूहानी प्यार से ओत-प्रोत करने के लिए, साध-संगत की सेवा व अपने इलाही प्यार से संभाल करने के लिए पूज्य मौजूदा गुरु हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को 23 सितम्बर 1990 को डेरा सच्चा सौदा सर्वधर्म संगम रूपी रूहानी मयखाने में अपना पावन स्वरूप बख्शकर बतौर तीसरे गुरु के रूप में गुरगद्दी पर विराजमान किया।

रूहानियत के लिए ऐसा समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और यह एक बहुत बड़े परिवर्तन का संकेत होता है। ऐसा महान दिन और वो पल एक नए युग का सूत्रपात करने वाले सिद्ध होते हैं। ये परिवर्तनशीलता कुछ नया तथा बेहतर करने वाली व राजभरी (रहस्यभरी) होती है। सतगुरु महान हैं, अपनी साध-संगत के साथ-साथ समूची मानवता तथा देश व दुनिया के समाज का भला करना ही हमेशा उनका उद्देश्य रहता है। अपने इसी मकसद को ध्यान में रखते हुए पूर्ण सतगुरु हमेशा ऐसा परिवर्तन करते हैं। समय परिवर्तनशील और हमेशा गतिमान रहता है। परिवर्तन कुदरत का अटूट नियम भी है। समयानुसार हर शै में हमेशा नयापन लाजिमी होता है और यह एक बदलाव से ही शुरू होता है।

प्रकृति के इसी नियमानुसार जब रूहानियत में तब्दीली का समय आया तो पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने डेरा सच्चा सौदा में 23 सितम्बर 1990 को अपने-आपको पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के जवां रूप में प्रकट किया। आप जी ने पूज्य गुरु जी को डेरा सच्चा सौदा में तीसरे गुरु के रूप में अपना जानशीन बनाकर विराजमान किया। पूजनीय परमपिता जी ने साध-संगत में भी इस अलौकिक तब्दीली के बारे वचन फरमाया, ‘साध-संगत जी, हम कहीं जा नहीं रहे, अब हम इस नौजवान बॉडी (पूज्य गुरु जी के रूप) में स्वयं काम करेंगे।’ 23 सितम्बर 1990 का यह समय एक ऐतिहासिक रूहानी तब्दीली का माना गया है।

ऐसी बड़ी तब्दीली जिसे सच्चे पूर्ण सतगुरु के बिना और कोई नहीं जान व कर सकता। पूर्ण सतगुरु के वचन सदा-सदा अटल रहते हैं और यही नहीं, वो सौ प्रतिशत ज्यों के त्यों पूरे भी होते हैं। पूजनीय सच्चे रहबर ने ये भी फरमाया कि ‘साध-संगत व नाम वाले दोगुना-चौगुना बढ़ेंगे, डेरा सच्चा सौदा और तरक्की करेगा, साध-संगत की संभाल भी पहले से बढ़कर होगी।’ इन बेपरवाही वचनों की सार्थकता आज हम सबके सामने है।

पूज्य मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां अपने पूजनीय सच्चे रहबर परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के हुक्मानुसार जब से डेरा सच्चा सौदा गुरगद्दी पर विराजमान हुए हैं, डेरा सच्चा सौदा जहां रूहानियत में दिन-रात तरक्की की ओर अग्रसर है, वहीं पूज्य गुरु जी के पावन मार्गदर्शन में मानवता व समाज भलाई कार्यों में भी पूरे विश्व में अपनी पहचान बनाए हुए है। अत: डेरा सच्चा सौदा के इतिहास में 23 सितम्बर का दिन साध-संगत के दिलों में एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस दिन की पावन महत्ता डेरा सच्चा सौदा के हर श्रद्धालु के अंत:करण, दिलो-दिमाग में हमेशा तरोताजा रहती है। साध-संगत इस पवित्र दिन को ‘पावन एमएसजी महापरोपकार दिवस’ के नाम से हर साल पवित्र एमएसजी भण्डारे के रूप में मनाती है।

पावन महा-परोपकार दिवस 23 सितम्बर की बहुत-बहुत बधाई हो जी। -सम्पादक

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