शाह मस्ताना पिता प्यारा जी… याद-ए-मुर्शिद 62वां पावन स्मृति (18 अप्रैल) विशेष
रूहानियत के बादशाह पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के परोपकारों की गणना सूर्य को दीपक दिखाने के मानिंद है। संत परोपकारी होते हैं।
संसार में आने का उनका मकसद जीवों को जीआदान, नाम, गुरुमंत्र देकर उन्हें परम पिता परमात्माा से मिलाने, उनकी रूह (आत्मा) को जन्म-मरण, आवागमन के चक्कर से आजाद करवाने का होता है।
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यह जीव सृष्टि का सौभाग्य है कि संत-महापुरुष हर युग में हमारे मध्य विराजमान रहते हैं। सृष्टि कभी भी संतों से खाली नहीं रहती, ‘संत न आते जगत में तो जल मरता संसार।’
महान परोपकारी संतों का सृष्टि के नमित परोपकार केवल इस जगत तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि लोक-प्रलोक और उससे भी पार, दोनों जहां तक उनका नाता जीवों से होता है। सच्चे संत खुद सच्चाई से जुड़े रहते हैं और वे लोगों को भी हमेशा सद्मार्ग (सच्चाई) अच्छाई, भलाई के साथ जोड़ते हैं और सच से उन्हें जुड़े रहने के लिए प्रेरित करते हैं। संत हमेशा समस्त समाज का भला चाहते हैं और अपने हरसंभव यत्न द्वारा सबका भला करते हैं। उनका पवित्र जीवन पूरी दुनिया के लिए मिसाल साबित होता है।
ऐसे ही महान परोपकारी परम संत पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने संसार पर अवतरित होकर समूचे जीव-जगत के उद्धार का महान करम फरमाया। ऐसे महान परोपकारी रूहानियत के सच्चे रहबर पूर्ण रब्बी फकीर परम संत बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज को कोटि-कोटि नमन, लख-लख सजदा करते हैं।
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जीवन परिचय:-
पूजनीय बेपरवाह शाह मसताना जी महाराज जी ने सन् 1891 (संवत 1948) की कार्तिक पूर्णिमा को पूज्य पिता श्री पिल्लामल जी के घर पूजनीय माता तुलसां बाई जी की पवित्र कोख से सृष्टि पर अवतार धारण किया। आप जी मौजूदा पाकिस्तान के गांव कोटड़ा तहसील गंधेय रियासत कलायत, बिलोचिस्तान के रहने वाले थे। पूज्य माता-पिता जी के यहां चार बेटियां ही थी। बेटे की ख्वाइश उन्हें हर पल बेचैन रखती थी। एक बार पूज्य माता-पिता जी का मिलाप एक सच्चे फकीर बाबा से हुआ। वह फकीर सार्इं कोई करनी वाला, परमपिता परमात्मा का सच्चा फरिश्ता था।
फकीर बाबा ने पूज्य माता-पिता के ईश्वरीय प्रेम पर खुश होते हुए कहा कि परम पिता परमेश्वर आप की इच्छा जरूर पूरी करेगा। साथ में यह भी कहा कि बेटा तो आपके यहां जन्म ले लेगा, लेकिन वह आपके काम नहीं आएगा, अगर ऐसा मंजूर है तो बोलो? पूज्य माता-पिता जी ने तुरंत अपनी सहमति दी कि हमें ऐसा भी मंजूर है। परमपिता परमेश्वर की दया और उस फकीर बाबा की दुआ से पूज्य माता-पिता जी को पूज्य बेपरवाह शाह मस्ताना जी के रूप में पुत्र-धन, खानदान का वारिस प्राप्त हुआ। आप जी खत्री वंश से संबंध रखते थे। पूज्य माता-पिता जी ने आप जी का नामकरण श्री खेमा मल जी के नाम से किया था, लेकिन जब आप जी अपने सतगुरु हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज के पवित्र चरणों से जुड़े तो पूज्य बाबा जी आप जी के सतगुरु-प्रेम पर खुश होकर आपको मस्ताना बिलोचिस्तानी ही कहा करते और इसीलिए आप जी मस्ताना बिलोचिस्तानी के नाम से ही जाने जाते थे।
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज की पावन स्मृति में 18 अप्रैल को आयोजित नि:शुल्क पोलियो व अपंगता निवारण परमार्थी शिविरों का साल-दर-साल विवरण इस प्रकार है:-
वर्ष | ओपीडी | आॅप्रेशन | फिजियोथेरिपी | कैलीपर |
2010 | 250 | 61 | 57 | 51 |
2011 | 250 | 81 | 51 | 39 |
2012 | 386 | 147 | 97 | 62 |
2013 | 352 | 61 | 77 | 89 |
2014 | 276 | 41 | 49 | 50 |
2015 | 419 | 86 | 76 | 80 |
2016 | 392 | 149 | 60 | 58 |
2017 | 317 | 53 | ||
2018 | 67 | 11 | 17 | |
2019 | 35 | 5 | 9 | |
2021 | 64 | 18 | 31 |
आप जी ने अपने सतगुरु मुर्शिदे-ए-कामिल पूज्य हजूर बाबा सावण सिंह जी महाराज को पहले दिन से ही परम पिता परमात्मा के रूप में निहारा था और हमेशा अपना खुदा और अपना सब कुछ उन्हें मानते थे। अपने सतगुरु जी के प्रति आप जी की अगाध श्रद्धा, दृढ़विश्वास, सच्ची भक्ति, सच्चे प्रेम को देखकर हजूर बाबा जी आप जी पर बहुत ही प्रसन्न व मेहरबान थे। पूज्य बाबा जी ने पहले ही दिन आप जी को नाम-शब्द, गुरुमंत्र के रूप में अपनी अपार दया-मेहर प्रदान की। पूज्य बाबा जी ने आप जी के प्रति वचन फरमाया कि हम तुझे अपनी दया-मेहर देते हैं जो तुम्हारे सारे काम करेगी। डटकर भजन-सुमिरन और गुरु का यश करो।
आप जी ने अपने सतगुरु-मुर्शिद के हुक्मानुसार सिंध, बिलोचिस्तान, पश्चिमी पंजाब आदि इलाकों में जगह-जगह सत्संग कर अपने गुरु के यशगायन के द्वारा अनेक जीवों को अपने साथ ब्यास में ले जाकर अपने सतगुरु हजूर बाबा सावण शाह जी से नाम-शब्द, गुरुमंत्र दिलवाकर उनकी आत्मा का उद्धार करवाया। आपजी जिसे भी नाम-शब्द के लिए लेकर जाते पूज्य बाबा जी बिना छंटनी किए उसे अवश्य नाम-दान बख्श देते। उपरान्त पूज्य बाबा जी ने आप जी को अपनी अपार बख्शिशें प्रदान करके और भरपूर रूहानी ताकत देकर सरसा में भेज दिया कि ‘जा मस्ताना शाह! जा, बागड़ को तार। तुझे बागड़ का बादशाह बनाया।
जा सरसा में कुटिया-आश्रम बना और सत्संग लगाकर रूहों का उद्धार कर।’ आप जी के सहयोग के लिए पूज्य बाबा जी ने अपने कुछ सतसंगी-सेवादारों, सरसा निवासियों की भी ड््यूटी लगाई। तो इस प्रकार अपने सतगुरु मुर्शिद-ए-कामिल के हुक्मानुसार आप जी ने सरसा के नजदीक बेगू रोड (शाह सतनाम जी मार्ग) पर 29 अपै्रल 1948 को डेरा सच्चा सौदा शाह मस्ताना जी धाम की स्थापना की। आप जी ने दिन-रात गुरुयश, रूहानी सत्संग लगाकर नाम-शब्द, गुरुमंत्र प्रदान कर जीवों को भवसागर से पार लगाने का पुण्य कार्य आरंभ किया।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, आज कुछ, कल कुछ और अगले दिन उससे भी बढ़कर लोग सच्चा सौदा में आने लगे। इस प्रकार आप जी की दया-मेहर, रहमत का प्रचार-प्रसार दूर-दूर तक फैलने लगा। आप जी ने लोगों में नोट, सोना, चांदी, कंबल, कपड़े बांटे, गधों बैलों को बूंदी खिलाई और आश्रम में ढाह-बंध (गिराना-बनाना) का अद्भुत कार्य किया। लोग आप जी की महिमा सुनकर दूर-दूर से आते और आप जी के अद्भुत रूहानी खेलों को देखकर राम-नाम से जुड़कर अपना उद्धार करा जाते। इस प्रकार आप जी के द्वारा लगाया सच्चा सौदा का यह रूहानी बाग, राम-नाम का बीज दिन-रात फलने-फूलने लगा, दिन-रात रूहानी खुशबू से महकने लगा।
आप जी ने सन् 1948 से 1960 तक हरियाणा, राजस्थान के अलावा पंजाब, दिल्ली आदि राज्यों के अनेक गांवों, शहरों, कस्बों में जगह-जगह अपने रूहानी सत्संगों के द्वारा हजारों लोगों को नाम-शब्द, गुरुमंत्र देकर उन्हें नशों आदि बुराईयों तथा हर तरह के सामाजिक जंजलों, पाखण्डों व कुरीतियों से मुक्त किया। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, सब हैं भाई-भाई का प्रैक्टीकली स्वरूप आप जी द्वारा स्थापित सर्व धर्म संगम डेरा सच्चा सौदा में आज भी ज्यों का त्यों देखा जा सकता है।
‘इह बाग सजा के टुर चलेआ।’ वर्णनीय है कि ऋषि-मुनि, संत, गुरु, पीर-फकीर, औलिया, पैगंबर जो भी इस संसार में आए उन्होंने अपने अपने समय में तत्कालीन समय व परिस्थितियों के अनुरूप समाज व जीवोद्धार नमित बढ़चढ़ कर कार्य किए और अपनी समयावधि पूरी होने पर यहां से विदा ले गए।
‘शाह मस्ताना पिता प्यारा जी,
इह बाग सजा के टुर चलेआ।
भवसागर ’च डुबदी बेडी नूं,
कंडे पार लगा के टुर चलेआ।।’
प्रकृति के इसी विधान के अनुसार पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज ने भी संसार से अपनी विदायगी लेने का निश्चय कर लिया। आप जी ने अपने अंतिम समय के बारे काफी समय पहले ही इशारा कर दिया था। एक दिन महमदपुर रोही दरबार में साध-संगत में बात की कि ‘ताकत का चोला छुड़ाएं तो तुम सिख लोग तो दाग (संस्कार) लगाओगे और तुम बिश्नोई लोग दफनाओगे।’
पूज्य बेपरवाह जी ने अपनी हजूरी में बैठे प्रेमी प्रताप सिंह, रूपाराम बिश्नोई आदि सेवादारों से पूछा, बात की। फिर स्वयं ही फ रमाया कि ‘यहां तो रौला पड़ जाएगा। यहां पर चोला नहीं छोड़ेंगे।’ इसी प्रकार रानिया दरबार में बात की कि ‘शो’ (चोला छोड़ना, जनाजा निकालना) रानिया से निकालें या दिल्ली से? फिर स्वयं ही फरमाया कि ‘दिल्ली से ठीक रहेगा।’ आप जी ने 28 फरवरी 1960 को अपने जाने से लगभग दो महीने पहले पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज को बतौर दूसरे पातशाह डेरा सच्चा सौदा में स्वयं गद्दीनशीन किया।
सच्चे पातशाह बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज अपने सतगुरु कुल मालिक द्वारा सौंपे जीवोंद्धार के परोपकारी कार्योंं को पूर्ण मर्यादापूर्वक पूर्ण करते हुए 18 अप्रैल 1960 को अपना पंच भौतिक शरीर त्याग कर कुल मालिक की आखण्ड ज्योति में जोती-जोत समा गए।
सेवा में समर्पित:-
पूजनीय बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज के पाक-पवित्र दिन (18 अप्रैल) पावन स्मृति को पूज्य मौजूदा गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने मानवता की सेवा में समर्पित करते हुए डेरा सच्चा सौदा में याद-ए-मुर्शिद नि:शुल्क पोलियो व अपंगता (नि:शक्कता/विकलांगता) निवारण कैंप का आयोजन शुरू करवाया है।
पूज्य गुरु जी की प्रेरणानुसार डेरा सच्चा सौदा में हर साल इस दिन इस परमार्थी कैंप के माध्यम से पोलियो पीड़ित मरीजों की नि:शुल्क जांच की जाती है और चयनित पोलियो मरीजों के आॅप्रेशन से लेकर फिजियोथेरेपी और कैलीपर इत्यादि सभी मेडिकल सेवाएं मुफ्त प्रदान की जाती हैं।