तू तां उन्हां दे मुंह धोंदी ही नी थकेंगी -सत्संगियों के अनुभव – पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज ने की अपार रहमत
प्रेमी गोबिंद सिंह इन्सां सुपुत्र श्री जग्गर सिंह जी गांव भागी बांदर जिला भटिंडा से पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने परिवार पर हुई अपार रहमत का वर्णन इस प्रकार करता है:-
जब भागीबांदर गांव में पूजनीय परमपिता जी का पहला सत्संग हुआ था, तो उस समय मैंने पूजनीय परमपिता जी के दर्शन किए, सत्संग सुना तथा नाम शब्द ले लिया। मुझे तभी से ही अपने सतगुरु जी के प्रति ऐसा प्रेम लग गया कि जब कभी कहीं आस-पास सत्संग होता, तो मैं वहीं पर चला जाता। सत्संग सुनना तथा साध-संगत के साथ यथा-संभव सेवा में सहयोग करता। कई बार सेवा कई-कई दिन तक भी चलती रहती। इसी दौरान मेरे घर एक लड़के का जन्म हुआ।
लेकिन उसकी मृत्यु हो गई। फिर एक लड़की ने जन्म लिया और उसकी भी मृत्यु हो गई। परिवार वाले सभी इस सदमे में थे कि ऐसे तो परिवार बढ़ ही नहीं सकेगा। मेरी माँ को इस बात का भ्रम हो गया कि किसी ने हमारे परिवार पर कोई टोना-टामण या कुछ करवा दिया है, जिस कारण बच्चे नहीं बचते। मेरी माँ और पत्नी इस बात को लेकर बड़ी चिंता करने लगीं कि आपां किसी चेले या ओझा से कोई उपाय करवाएं। लेकिन मैं ऐसे किसी भी आंडबर को नहीं मानता था, क्योंकि सतगुरु परमपिता जी के प्रति मेरा पूर्ण विश्वास था और आज भी ज्यों का त्यों है। मेरे सतगुरु की शिक्षा है कि किसी टोने-टोटके या किसी ऐसे पाखंड में नहीं पड़ना और ना ही इन बातों पर विश्वास करना है।
मैंने उन्हें इस काम से बहुत रोका, लेकिन मेरी माँ जिद्द करने लगी कि कोई उपाय तो करवाना ही पड़ेगा बेटा। मैंने माँ को समझाया कि अगर तुम्हारा ज्यादा ही ख्याल है तो आप डेरा सच्चा सौदा सरसा में मेरे साथ चलो। आपां अपने सतगुरु परमपिता जी से ही प्रार्थना करेंगे और वे जो हुक्म भी करें वो ही मान लेना। कहीं और जाने की जरूरत नहीं है। मेरे कहने पर मेरी माँ और पत्नी दोनों डेरा सच्चा सौदा सरसा दरबार में गई और मौका मिलने पर मेरी माँ ने पूजनीय सतगुरु परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की पावन हजूरी में अर्ज़ कर दी कि पिता जी! मेरे लड़के गोबिंद के बच्चे बचते नहीं हैं। दो बच्चे लड़का व लड़की हुए और दोनों की ही मौत हो गई।
प्यारे दातार जी, एक पुत्र की मेहर करो जी, ताकि घर बसता रह जाए। कुल मालिक दातार जी ने फरमाया, ‘मंग वी मंगी तां की मंगी। तैं कोडियां ही मंगियां हन। पुत्त केहड़ा सुख दिंदे ने। पुत्त तां अपने माँ-बाप नूं कुटदे-मारदे ने।’ मेरी माँ ने फिर अर्ज़ की कि पिता जी, आप जी तो जोत से जोत जगा कर जाते हो। एक पुत्र तो हमें जरूर बख्श दो जी। सर्व सामर्थ सतगुरु जी ने फरमाया, ‘भाई! किसी वहम-भ्रम में नहीं पड़ना। जापा (डिलिवरी) चाहे श्मशान ’च करा लेना। तूं तां उन्हां (बच्चेयां) दे मुंह धोंदी ही नहीं थकेंगी।’ इस प्रकार पूजनीय दया के सागर पिता जी ने एक नहीं, बल्कि बिन मांगे ही एक से भी ज्यादा बेटों का वचन कर दिया।
सतगुरु जी ने रहमत की। उसी वर्ष यानि सन् 1974 में मेरे घर पुत्र ने जन्म ले लिया। उस समय के दौरान पूजनीय परमपिता जी का सत्संग भटिंडा में था। हमारा सारा परिवार बच्चे का नाम रखवाने के लिए पूजनीय परमपिता जी की पावन हजूरी में भटिंडा सत्संग पर पहुंच गया। पूजनीय परमपिता जी ने बेटे का नाम जगसीर रखा और फरमाया, ‘जो और आए, उसका नाम आप खुद ही रख लेना।’ उसके बाद हमारे घर फकीर चंद, भगत सिंह तथा दाता यानि तीन और बेटों ने जन्म लिया। इस तरह प्यारे सतगरु जी ने चार बच्चों की दात बख्शकर परिवार की मनोकामना पूरी की।
पूजनीय परमपिता जी के मौजूदा स्वरूप पूज्य हजूर पिता जी के पवित्र चरण कमलों में दुआ है कि पूरे परिवार को अपने पवित्र चरणों में लगाए रखना जी और परिवार को सेवा-सुमिरन व ता-उम्र अपने प्रति दृढ़-विश्वास का बल बख्शना जी।