बाल कथा इते सारे सांता
हवा में ठंडक बढ़ी हुई थी। चमकीली कंदीलों और झालर वाली रिबनों से सड़कें सजी हुई थीं। छुट्टी जैसा माहौल था, मगर सड़कों और गली-मौहल्लों में अच्छी खासी रौनक थी। एक तो क्रिसमस-डे आ चुका था और ऊपर से नया साल भी बिल्कुल नज़दीक था, इसलिए सबके मन में एक अनूठी-सी उमंग और खुशी का अहसास था। करियाणे की दुकानें हों या कोल्ड ड्रिंक के स्टाल वाले, सब तरह-तरह के केक-पेस्ट्री, टोपियाँ और उपहार के छोटे-मोटे समान बेचने में जुटे हुए थे।
आशीष और उसकी मित्र मंडली जिसमें रौनक, प्रांचल, तितिक्षा, नेहा, अमन और विनीता आदि थे, आज कुछ ज्यादा ही खुश थे। इसकी वजह यह थी कि इनके कुछ फेसबुक फ्रैण्ड, जो इंग्लैंड में रहते थे, इन दिनों भारत में आए हुए थे और आज वे कोलकाता आ चुके थे। लूसी, जान, एमेली, पीटर और जेम्स अपने माता-पिता के साथ इनके घर आ रहे थे। आशीष और उसकी मित्र मंडली ने इनके स्वागत की जोरदार तैयारियाँ कर रखी थी। इसके लिए उन्होंने अपने कॉम्पलैक्स के कम्यूनिटी हाल को सजाया था और भोजन की व्यवस्था की थी।
इस काम में उनके माता-पिता ने भी सक्रिय सहयोग दिया था। जल्द ही विदेशी मेहमान आ गए। उनका शानदार स्वागत किया गया। आपस में एक-दूसरे के माता-पिता का परिचय हुआ, फिर चर्चा छिड़ गई क्रिसमस पर। रौनक ने लूसी से पूछा कि बाकी सब तो ठीक है, पर इस मौके पर क्रिसमस-ट्री सजाने की परंपरा कैसे शुरू हुई? इस पर पीटर के पापा, जो एक कॉलेज में प्रोफेसर थे, बताने लगे कि क्रिसमस-ट्री सजाने की परम्परा हज़ारों साल पुरानी है। उत्तरी यूरोप में इसकी शुरूआत हुई। पहले के समय में क्रिसमस-ट्री गमले में रखने के बजाय घर की छत से लटकाए जाते थे।
फर के अलावा चेरी के वृक्ष को भी क्रिसमस-ट्री के रूप में सजाया जाता था।’ घरों में क्रिसमस ट्री सजाने की शुरूआत 1600 ई़ में मार्टिन लूथर ने की। उन्होंने क्रिसमस की पूर्व संध्या पर फर वृक्ष की डालियों के बीच तारों को टिमटिमाते देखा और इन तारों में उन्हें प्रभु यीशु के जन्म का स्मरण हुआ। घर आकर उन्होंने फर वृक्ष की डाल को मोमबत्तियों से सजाया, ताकि अन्य लोग भी उनके इस अनुभव को महसूस कर सकें। सन् 1605 ई़ में जर्मनी में पहली बार क्रिसमस-ट्री को कागज के गुलाबों, सेब और मोमबत्तियों से सजाया गया। बच्चे उनकी बात ध्यान से सुन रहे थे।
तभी एमेली की मम्मी, जो एक लेखिका थी, बताने लगी, ‘इस संदर्भ में दो कहानियां भी कही जाती हैं, एक कहानी संत बोनिफेस की है, जिन्होंने फर का पौधा लगवाया और उसे प्रभु यीशु के जन्म का प्रतीक माना। तब से उनके अनुयायी इसे क्रिसमस ट्री के रूप में सजाने लगे। दूसरी कहानी एक छोटे बच्चे की है, जिसने ठंड के दिनों में भटक जाने के कारण एक लकड़हारे के यहाँ शरण ली। क्रिसमस के दिन उस बालक ने धन्यवाद के तौर पर एक वृक्ष की एक डाल तोड़कर उस परिवार को दी। तभी से इस रात की याद में हर परिवार में क्रिसमस-ट्री सजाया जाता है।’
तभी तीसरी कक्षा में पढ़ने वाली मिन्नी, जो अब तक चुप थी, ने एक मासूम सवाल किया। उसने पूछा कि लेकिन दादा जी मुझे एक बात समझ में नहीं आई कि इत्ते सारे सांता कहाँ से आ जाते हैं जो पूरी दुनिया के बच्चों को उपहार बाँट देते हैं?
मिन्नी का सवाल सुनकर सबको हंसी आ गयी। पीटर के पापा बोले, ‘बेटी! हम सबके बीच ही एक सांता छुपा होता है, पर हम उसे पहचान नहीं पाते। सांता बिना किसी स्वार्थ के सबके जीवन में खुशियाँ ले आता है। हमें भी उनसे सबक लेना चाहिए कि कैसे हम किसी भी तरह अगर एक इंसान को खुशी दे सकें, तो शायद हम भी क्रिसमस को सही मायने में मनाने में कामयाब हो सकेंगे।’
अब तक रात गहरा चुकी थी। विदेशी मेहमानों ने जाने की इजाजत चाहते हुए उठने का उपक्रम किया। सभी बच्चों के दिल भारी हो गए। भरे मन से विदेशी मेहमानों को विदा करते हुए बच्चों ने कहा, ‘ऐसा क्रिसमस डे हमने पहले कभी नहीं मनाया।’ विदेशी बच्चों ने कहा, ‘सेम हियर फ्रैण्ड्स। हमारे लिए भी यह क्रिसमस जिंदगी-भर खास रहेगा।’ -शिखर चंद जैन

































































