मैं समय हूं। अंग्रेजी में मुझे ‘टाइम’ कहते हैं।
इस भौतिक प्रदूषित तनावग्रस्त वातावरण में मेरे लिए भी विकट मंदी का दौर चल रहा है। संजय भैया के पास अपने वृद्ध बीमार पिताजी को डॉक्टर के पास ले जाने के लिए समय नहीं है। कमलाबाई को एक काम और बता दिया, तो ‘अभी टाइम नहीं है, मेमसाहब…’ कहकर चल देगी। रचनाजी के पास भाई की तबियत पूछने के लिए समय नहीं है।
युवराज क्लब-पार्टी से आकर रात को दो बजे नींद की गोली खाकर सोया है, इसलिए उसके पास सुबह प्राणायाम करने के लिए समय नहीं है।
मंझली बेटी सहेलियों से मोबाइल फोन पर इतनी अधिक डूबी रहती है कि उसे पापा के दुखते सिर या मम्मी के घुटने के दर्द से छटपटाने पर भी दो घड़ी बात करने का समय नहीं है। चेतन मोटरबाइक पर लड़कियों के पीछे चक्कर काटने में इतना पागल है कि उसे यह भी ध्यान नहीं है कि सुबह बहन ने शाम को मंदिर जाने के लिए कहा था।
डॉली मेमसाहब को किटी पार्टी में जाना है, इसलिए बच्चों के स्कूल से लौटने वाले समय तक वह नहीं रह सकती!
शेखर साहब आॅफिस में ही डूबे रहते हैं, कि किसी प्रकार इस वर्ष चीफ इंजीनियर बन जाएं, इसलिए उन्होंने एक सप्ताह से अपने बच्चों तक से बात करने का समय नहीं निकाला। बेटा, बहू, पोता भरापूरा परिवार होते हुए भी बूढ़ी मां सबके हाथ जोड़ती रहती है कि किसी के पास समय हो तो उसका टूटा चश्मा ठीक करवा दे!
देखा आपने, सच तो कड़वा लगा न! पर बचपन में स्कूल की किताबों में पढ़ा था कि समय डॉक्टर है, दवा है, मरहम है, मूल्यवान है और बीता हुआ समय लौटकर नहीं आता, भूल गए क्या आप! समय, यानी मैं निरन्तर गतिमान हूं। गांधी, टेरेसा, नेहरू, शिक्षक, गृहिणी, छात्र, पुजारी, बाई, मजदूर, क्लर्क, सी.एम.डी. सभी को प्रकृति समान रूप से प्रतिदिन 24 घंटे ही देती है, एवं देती रहेगी। इस नश्वर संसार में हर व्यक्ति के जीवन में मेरा काल निश्चित है।
मैं सबको सुलभ हूं। यह आप पर निर्भर है कि मेरा सदुपयोग करते हो या दुरुपयोग! मुझ पर (समय पर) कई पुस्तकें लिखी जा रही हैं। मुझ पर लिखी पुस्तकें आजकल ‘हॉट केक’ की तरह खरीदी जा रही हैं पर उन्हें पढ़ने का समय कहां है किसी के पास! वे अलमारी के पिंजड़े में कैद होकर रह जाती हैं।
विद्यार्थियो! समय-सारिणी बनाकर हर विषय को पढ़ो। मेरा दुरुपयोग टी.वी. कम्प्यूटर, गेम, मोबाइल पर मत करो, पढ़ाई पर ध्यान दो, पूरा कोर्स करो, नोट्स बनाओ। मेरा प्रात:काल तुम्हारी पढ़ाई के लिए सर्वश्रेष्ठ है। परीक्षा में भी मेरा पूरा ध्यान रखो। जितना पूछा है, उतना ही लिखोगे तो मेरी कमी कभी महसूस नहीं होगी।
उत्तर एक बार स्वयं चेक कर लो। मुझ पर नियंत्रण अपने पास रखो। सात्विक आहार लो, स्वास्थ्य ठीक रखो, अच्छे कार्यों में मुझे लगाओ, अच्छी पुस्तकें पढ़ो, रचनात्मक कार्य करो, अच्छे गुण सीखो, हर कक्षा में मैं तुम्हें एक वर्ष के लिए ही उपलब्ध हूं। मुझे नष्ट करोगे तो पीछे रह जाओगे। चरित्र, स्वास्थ्य, पढ़ाई इन तीन मुख्य बातों पर ध्यान दोगे तो मैं तुम्हें कम समय में भी अच्छे, मीठे व स्वादिष्ट फल दूंगा।
गृहिणियो! तुम पूरे परिवार की सेवा में डूबी रहती हो, तुम तो अपने लिए कुछ करने का सोचो। अपने लिए अपने स्वास्थ्य के लिए मुझे समझो। आधा घंटा मनपसंद संगीत-साहित्य में डूबो। स्वास्थ्य ठीक रखो, संतुलित आहार लो, तुम्हें भी मैं पूरे 24 घंटे सुलभ हूं। अपने तन-मन को स्वस्थ रखने के लिए अपनी व्यस्त दिनचर्या में एक घंटा मुझे भी तो दो!
कामकाजी महिलाओ! स्कूल एवं घर गृहस्थी की दो नावों पर पैर रखकर तुम निश्चय ही तन से थक जाती हो।
मैं तुम्हारी पकड़ में ही नहीं आ पाता हूं। मेरी कमी का सबसे अधिक रोना तुम ही रोती हो! क्यों इतनी तनावग्रस्त रहती हो? तुम्हें कई काम समानान्तर करने होते हैं, फिर भी स्कूल में भी डांट खाती हो एवं घर में भी आंसू बहाती हो, मन को मारती हो, तन को गलाती हो और तुम्हारे छोटे बच्चे क्रेच में पलते हैं।
तुम्हारी अपनी ही संतान तुम्हें ‘मिस’ करती है। मैं तुम्हारे लिए बहुत मूल्यवान हूं। वेतन के बजट के समान तुम स्वयं मेरा बजट भी बनाओ, सबके साथ स्वयं को भी समय दो, तुम तन-मन से स्वस्थ रहोगी और तभी दोनों नावों को सही मंजिल तक पहुंचा सकोगी। अपने लिए सोचो एवं करो भी।
हे शक्तिमान पुरुष! पत्नी, बच्चों को मेले में ले गए क्या? बच्चों के स्कूल की कापी देखी क्या? युवा पुत्र-पुत्री के मोबाइल में सेव हुए नम्बरों में से तुम उनके कितने साथियों-सहेलियों से परिचित हो? पत्नी के जन्मदिन पर क्या तुम उन्हें मुझे 24 घंटे का उपहार देते हो? क्या रात्रि-भोजन पूरा परिवार एक साथ करता है? घर-परिवार को एक घंटा ही सही, पर समय जरूर दो।
प्रात:काल घूमने जाओ, मैं तो चलता रहता हूं। मुझे बांध नहीं सकते पर संतुलित आहार के समान अपने जीवन में मेरा भी संतुलन रखोे।
श्रद्धेय वृद्धजन! आपकी समस्या अलग है। आपको समझ में नहीं आता कि आप मेरा क्या करें। आप सोचते हैं कि दिन में 24 नहीं 12 घंटे भी बहुत हैं। जीवन की संध्या में आप समाजसेवा करिए, छोटे बच्चों को पढ़ाइए, अच्छी पुस्तकें पढ़िए, लिखने में रुचि हो तो लिखिए, योग-प्राणायाम सिखाइए, बेटे-बहू, पुत्री-दामाद के कुछ काम स्वयं करके उन्हें राहत पहुंचाइए। समर्थ हो, तो परिवार के छोटे बच्चों के लिए ट्यूटर बन जाइए।
गृहस्थ-सेवा-व्यवसाय में जो काम नहीं कर पाए, उन्हें अब करिए, फिर देखिए आप मुझसे ऊबेंगे नहीं! आप मेरा महत्व समझेंगे। मुझे स्वीकार करेंगे। हे पाठक-पाठिकाओ! मैं क्रेडिट कार्ड पर उधार नहीं मिलता! मैं सेल में डिस्काउंट पर भी नहीं मिलता, मैं एक्सचेन्ज आॅफर में भी नहीं मिलता, एक के साथ मैं दूसरा-फ्री नहीं मिलता, अपनी प्राथमिकता एवं आवश्यकतानुसार आप स्वयं मेरा बजट बनाएं।
जीवन को कर्फ्यू मत बनाइए, पर निरर्थक भी मत गंवाइए मुझे।
व्यस्त रहिए, पर अस्त-व्यस्त मत रहिए। चिंतन-मनन करके संतुलित जीवन जीने के लिए मेरा सदुपयोग करेंगे तो मैं जितना आपके हिस्से में आया हूं, जीवन के सूर्यास्त के समय आप यही कहेंगे कि समय को मैंने खोया नहीं, समय से मैंने पाया ही पाया है! मुझे स्वीकार कीजिए। मैं समय (टाइम) तो हमेशा आपके साथ था, हूं व रहूंगा।
– दिलीप भाटिया
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