मेरी मां यकीनन मेरी चट्टान है |मातृ दिवस पर विशेष 8 मई
‘‘लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती बस एक मां है जो कभी खफा नहीं होती’’
कवि मुनव्वर राना की इन पक्तियों में मां शब्द का पूरा सार ही निहीत है। महज इस शब्द में ही हर किसी की तो दुनिया समाई है। मां..ये शब्द कहने से ही सबसे बड़ी पूजा हो जाती है और बरसता है भगवान का आशीर्वाद। यूं तो मां से प्यार जाहिर करने के लिए किसी खास वक्त की जरुरत नहीं होती है, लेकिन फिर भी हर साल एक दिन मां के लिए मुकर्रर है, जिसे मदर्स डे कहा जाता है।
मां का प्यार सागर से गहरा और आसमान से ऊंचा होता है जिसे मापना, तौलना मुमकिन नहीं। हम खुशनसीब हैं कि हमें वो प्यार मिल रहा है।
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ऐसे में मां के प्रति अपनी भावनाओं को छिपाने की बजाय खुलकर बताने का ही तो दिन है मां-दिवस ताकि इस भागदौड़, आपाधापी में दो बात हम कहना भूल जाते हैं या कहने से हिचकते हैं वो कह सकें।
धूप में छांव जैसी मां –
सुबह की आरती से लेकर, रसोई की खट-पट, छत पर कपड़े-अचार-पापड़ सुखाते हुए, कढ़ाई-बुनाई करते हुए या फिर बालों में तेल लगाते हुए, रात में लोरी गाते हुए, कहानी सुनाते हुए। खनकती चूड़ियों से सजे हाथों से दिनभर की अपनी तमाम जिम्मेदारियां निभाते हुए बातों-बातों में जीवन की न जाने कितनी गूढ़ बातें सिखा जाना। ये हुनर केवल मां के पास होता है। न कोई क्लासरूम, न कोई किताब, न कोई सवाल-जवाब। वो बस अपने प्यार, अपनी बातों, अपने हाव-भाव से ही इतना कुछ सिखा जाती है कि हम बिना कोई प्रयास किए ही बहुत कुछ सीख जाते हैं, इसीलिए कहा जाता है कि मां हमारी पहली टीचर होती है। अपनी मां के साथ हम सब की ऐसी ही कई बेशकीमती यादें जुड़ी होती हैं, इसीलिए एक मां के रूप में स्त्री की अपनी संतान और समाज के प्रति कई जिम्मेदारियां होती हैं।
मां होना एक बड़ी जिम्मेदारी है-
एक मां के रूप में स्त्री के लिए इतना ही कहना काफी है कि दुनिया के सबसे कामयाब इंसान को जन्म देने वाली भी एक स्त्री ही होती है। अत: एक मां के रूप में नारी की समाज के प्रति एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। स्त्री चाहे तो समाज की रूपरेखा बदल सकती है। वो आने वाली पीढ़ी को अच्छे संस्कार देकर एक नए युग का निर्माण कर सकती है, क्योंकि मां ही बच्चे की पहली टीचर होती है। वो अपने बच्चे को गर्भ से ही अच्छे संस्कार देना शुरू कर देती है। ये बात वैज्ञानिक रूप से भी सिद्ध हो चुकी है कि जब बच्चा मां के गर्भ में होता है, तो मां की मन:स्थिति का बच्चे पर भी असर होता है। अत: मां गर्भावस्था में अच्छे वातावरण में रहकर, अच्छी किताबें पढ़कर, अच्छे विचारों से बच्चे को गर्भ में ही अच्छे संस्कार देने की शुरूआत कर सकती है।
बचपन और मां का साथ-
जन्म लेने के बाद बचपन का ज्यादातर समय बच्चा अपनी मां के साथ बिताता है और सबसे खास बात, जन्म से लेकर पांच साल की उम्र तक इंसान का ग्रास्पिंग पावर यानी सीखने की क्षमता सबसे ज्यादा होती है। इस उम्र में बच्चे को जो भी सिखाया जाए, उसे वो बहुत जल्दी सीख जाता है। अत: हर मां को चाहिए कि वो अपने बच्चे की परवरिश इस तरह करे, जिससे वो एक अच्छा, सच्चा और कामयाब इंसान बने, उसका सर्वांगीण विकास हो। यदि आप अपने बच्चे में अच्छे संस्कार व गुण डालना चाहती हैं, तो उसे तनावमुक्त व सकारात्मक माहौल दें, लेकिन इस बात का भी ध्यान रखें कि उसे किसी बंधन में बांधने की बजाय अपने तरीके से आगे बढ़ने दें। बच्चे को आत्मनिर्भर बनाएं, ताकि बड़ा होकर वो अकेला ही दुनिया का सामना कर सके, उसे आपका हाथ थामने की जरूरत न पड़े। बच्चों की परवरिश के मुश्किल काम को कैसे आसान बनाया जा सकता है? आइए, जानते हैं।
पहले खुद को बदलें-
यदि आप अपने बच्चे को अच्छे संस्कार देना चाहती हैं, तो इसके लिए पहले अपनी बुरी आदतों को बदलें, क्योंकि बच्चा वही करता है जो अपने आसपास देखता है। यदि वो अपने माता-पिता को हमेशा लड़ते-झगड़ते देखता है, तो उसका व्यवहार भी झगड़ालू और नकारात्मक होने लगता है। यदि आप अपने बच्चे को सच्चा, ईमानदार, आत्मनिर्भर, दयालु, अपने आप पर विश्?वास करने वाला और बदलावों के अनुरूप खुद को ढालने में सक्षम बनाना चाहती हैं, तो पहले आपको खुद में ये गुण विकसित करने होंगे।
ना कहना भी जरूरी है-
बच्चे से प्यार करने का ये मतलब कतई नहीं है कि आप उसकी हर अनावश्यक मांग पूरी करें। यदि आप चाहती हैं कि आगे चलकर आपका बच्चा अनुशासित बने, तो अभी से उसकी गलत मांगों को मानना छोड़ दें। रोने-धोने पर अक्सर हम बच्चे को वो सब दे देते हैं, जिसकी वो डिमांड करता है, लेकिन ऐसा करके हम उसका भविष्य बिगाड़ते हैं। ऐसा करने से बड़ा होने पर भी उसे अपनी मांगें मनवाने की आदत पड़ जाएगी और वो कभी भी अनुशासन का पालन करना नहीं सीख पाएगा। अत: बच्चे की गैरजरूरी डिमांड के लिए ना कहना सीखें, लेकिन डांटकर नहीं, बल्कि प्यार से। प्यार से समझाने पर वो आपकी हर बात सुनेगा और आपके सही मार्गदर्शन से उसे सही-गलत की समझ भी हो जाएगी।
बच्चे के गुणों को पहचानें-
हर बच्चा अपने आप में यूनीक होता है। हो सकता है, आपके पड़ोसी का बच्चा पढ़ाई में अव्वल हो और आपका बच्चा स्पोर्ट्स में। ऐसे में कम मार्क्स लाने पर उसकी तुलना दूसरे बच्चों से करके उसका आत्मविश्वास कमजोर न करें, बल्कि स्पोर्ट्स में मेडल जीतकर लाने पर उसकी प्रशंसा करें। आप उसे पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कह सकती हैं, लेकिन गलती से भी ये न कहें कि फलां लड़का तुमसे होशियार है। ऐसा करने से बच्चे का आत्मविश्वास डगमगा सकता है।
प्यार जरूरी है
बच्चे के बात न मानने या किसी चीज के लिए जिद करने पर आम तौर पर डांटा व धमकाया जाता है, लेकिन इसका बच्चे पर उल्टा असर होता है। जब हम जोर से चिल्लाते हैं, तो बच्चा भी तेज आवाज में रोने व चीखने-चिल्लाने लगता है, लेकिन इस स्थिति में गुस्से से काम बिगड़ सकता है। अत: शांत दिमाग से उसे समझाने की कोशिश करें कि वो जो कर रहा है वो गलत है। यदि फिर भी वो आपकी बात नहीं सुनता, तो कुछ देर के लिए शांत हो जाएं और उससे कुछ बात न करें। आपको चुप देखकर वो भी चुप हो जाएगा।