प्यारी साध-संगत जीओ! हमने आपको दस चिट्ठियां लिखी…
आॅनलाईन गुरुकुल के माध्यम से फरमाए अनमोल वचन
शाह सतनाम जी आश्रम बरनावा(उत्तर प्रदेश) में प्रवास के दौरान पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां साध-संगत से आॅनलाईन गुरुकुल के माध्यम से लाइव कार्यक्रम में रूबरू होकर रूहानी वचनों की बरसात से सबको भरपूर खुशियां लुटाते रहे। पूज्य गुरु जी द्वारा अलग-अलग समय में सत्संग दौरान फरमाए गए वचनों को क्रमबद्ध करने का प्रयास किया गया है।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि समाज का भला करना, हर, धर्म, जात, मज़हब का साथ देना ही आपका काम है और सत्कार करना है, सबकी इज्जत करनी है। ‘‘तैनू यार नाल की तैनूं चोर नाल की, तू अपनी निबेड़ तैनूं होर नाल की’’, सो कहने का मतलब ‘‘इस जन्म में ये दो काम करो एक नाम जपो और प्रेम करो, किसी जीव का दिल न दुखाना कभी, मौत याद रखो मालिक से डरो।’’ हमेशा खुशी से सतगुरु जी के ये वचन माना करो। परम पिता जी के वचन हैं कि जो ये दो लाइनों को मान लेता है, उसे भी खुशियां आनी शुरू हो जाती हैं तो आप जरूर अमल किया करो। किसी से नफरत नहीं करनी, कभी किसी का बुरा नहीं करना, मालिक आपके ऊपर रहमोकरम करे। आप लोगों ने इन पाँच सालों में इतने भलाई कार्य किए हैं। दिन-रात आप लोगों ने अखंड सुमिरन किया है। कुछ लोगों ने कहा कि पिता जी तो अखंड सुमिरन के लिए कहते नहीं थे। अरे हम ही कह कर भेजते थे कि अखंड सुमिरन किया करो, ताकि मानवता का भला हो, आने वाली बुराइयां, आने वाले रोगों से मानवता बची रहे, इन्सानियत बची रहे, इन्सानियत को खुशियां मिलें, वो चीजें साध-संगत ने की हैं। भगवान से यही प्रार्थना है कि आप ऐसा हमेशा करते रहें। उन खुशियों में आपकी, आपके परिवारों की खुशियां भी शामिल हैं।
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प्यारी साध-संगत जीओ ना तो किसी को बुरा कहो, ना तो किसी की निंदा करो, ना किसी भी निंदा करने वाले की हाँ में हाँ मिलाओ, ये हमने चिट्ठियों में डाला, 10 चिट्ठियां आपको लिखकर भेजी हैं। हम भगवान से यही प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु! सारे संसार में शांति दे। हमारे इस देश में शांति रहे। हे प्रभु! हे मेरे मालिक! ये जो तूफान उठ रहे हैं, तू दया का सागर है, तू रहमत का दाता है, इन तूफानों को रोक दे। इन्सान को सोझी दे, क्योंकि ये इन्सानियत के लिए अच्छी चीजें नहीं हैं। रामजी से दुआ कर सकते हैं, शाह सतनाम, शाह मस्तान जी दाता से। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि शाह सतनाम जी दाता रहबर ने रहमत की है, हम थे, हम हैं और हम ही रहेंगे। वो शाह सतनाम जी, शाह मस्तान जी दाता रहबर हम में है, इसलिए उन्होंने एमएसजी बना दिया हमें। हम हमेशा ये कहा करते हैं कि बेपरवाह शाह मस्ताना जी ने इतनी रहमत की है कि हमारे हाथों में उनका नाम है। राम-नाम जपना हमेशा से ही खुशियां लेकर आता है, कभी भी आप टैंशन ना लिया करो, कभी चिंता ना किया करो, कभी किसी की निंदा नहीं करनी, हमने तो राम का नाम जपना है, समाज का भला करना है।
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घर छोड़ना या खुदकुशी समस्या का हल नहीं’
पूज्य गुरु जी ने इंस्टाग्राम पर फरमाया कि कई बार क्या होता है कि घर में कोई परेशानी आ जाती है या बिजनेस में कोई लॉस हो जाता है या संबंध बिगड़ जाते हैं तो आप लोग सोचने लगते हैं कि घर छोड़कर चला जाऊँ, छोड़ना बड़ा आसान है, घर बनाने में पसीने आ जाते हैं, संबंध बिगाड़ना बड़ा आसान है, बनाने में बहुत समय लगता है, कभी इस तरफ ध्यान दिया करें, अपने आप के बारे में सोचें, खुद के बारे में सोचें और ये सोचें कि आप जो कदम उठाने जा रहे हंै वो कितना गलत है, आप सोचते हैं कि मैं छोड़कर चला जाऊंगा सब कुछ ठीक हो जाएगा, आप बर्बाद हो रहे हैं, नहीं सारा परिवार बर्बाद हो रहा है, आप सोचते हैं संबंध तोड़ दे तो कुछ हो जाएगा, क्या हो जाएगा, आप जैसे है वैसे रहेंगे, हो सकता है उससे भी बुरा आपको मिल जाए।
इसलिए आप ये सोचना छोड़ दें कि भई संबंध खराब हो गया या घर में कुछ परेशानी आ गई तो मैंने सुसाइड कर लेना है या घर बार छोड़ देना है, आत्मघाती महापापी, हर धर्म में ये लिखा हुआ है बल्कि अपनी आत्मा को बल दो, राम के नाम से, ओम, हरि, ईश्वर, मालिक, परमात्मा के नाम से, इतना मजबूत कर लो आत्मबल को, इतनी आत्मा को मजबूत कर लो, कि आप इन चीजों से दूर हो जाएं और यकीन मानिये इससे आपको एक संतुष्टि भी मिलेगी। आत्मबल ऐसी चीज है, जो आपको हर गम दु:ख, दर्द, चिंता में रास्ता दिखा सकता है, जरा आत्मबल बढ़ा कर तो देखिए। कई बार ख्यालों में, विचारों में इन्सान से कुछ गलतियां हो जाती हैं तो आपके अंदर शायद ये भावना आती होगी कि क्या करें? हम हमेशा कहा करते हैं कि पाँच मिनट सुमिरन करो, जो भी आपके ख्यालों में, विचारों में कुछ गलत विचार आ जाता है तो पाँच मिनट सुमिरन से वो गलत विचार या सोच का फल खत्म हो जाता है, आपको वो फल नहीं मिलेगा। वो आप ध्यान रखा करो हमेशा।
आत्मबल बढ़ने से चमक जाएगी आपकी किस्मत’
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि मालिक ने लिखा है वो होगा, भगवान ने जो लिखा है वो जरूर होगा। लेकिन उनकी लिखे में एक बात और है कि मनुष्य शरीर जो है, ये खुद मुखत्यार है, मर्जी का मालिक है काफी हद तक, जिसकी वजह से ये अपने अच्छे कर्म नए या बुरे खुद बना सकता है। ये इन्सान के हाथ में भगवान ने ताकत दी है। सो कहने का मतलब भाग्य को कुछ हद तक बदला भी जा सकता है। क्यों? क्योंकि पाँच तत्व होते हैं इन्सान में, पूरी सृष्टि उसी से बनी हुई है, पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और आकाश।
आकाश तत्व बुद्धि देने वाला है और वो इन्सान में सबसे ज्यादा पाया जाता है, इसलिए भगवान ने ये शक्ति दी है कि आप अपने भाग्य को कुछ हद तक बदल सकते हैं और भाग्य बदलने के लिए क्या करना चाहिए? भाग्य बदलने के लिए आत्मबल का होना बड़ा जरूरी है। आत्मबल कब आता है? जब आप कर्म योगी और ज्ञान योगी बनते हैं। जब तक आप कर्मयोगी और ज्ञानयोगी नहीं तो आत्मबल बढ़ेगा नहीं। तो कौन सा कर्म करना चाहिए जिससे आत्मबल बढ़ जाए? एक ऐसा कर्म है जो आत्मबल की स्पेशल खुराक भगवान ने बना रखी है और वो कर्म है ओउम, हरि, अल्लाह, राम, गॉड, खुदा, रब्ब का नाम लेना, उसकी भक्ति इबादत करना, गॉड्स प्रेयर, मैथड आॅफ मेडिटेशन, अगर आप करते हैं, प्रभु का सुमिरन करते हैं, प्रभु का नाम लेते हैं तो आपके अंदर का आत्मबल बढ़ता जाएगा। आत्मबल बढ़ने से आप कर्मयोगी बहुत अच्छे बन जाएंगे। कर्म दो प्रकार के हैं, अच्छे कर्म और बुरे कर्म। बुरे कर्म करने से आपका भाग्य बुरा होता है, आने वाला समय बुरा होता है और अच्छे कर्म करने से आने वाला समय अच्छा हो जाता है।
हर इन्सान में ये दोनों गुण होना बहुत जरूरी है, कर्मयोगी और ज्ञान योगी। क्योंकि अगर आप इनमें से एक हो जाते हैं, सिर्फ कर्म करते हैं और ज्ञान आपको नहीं या ज्ञान है और कर्म आप नहीं करते तो उसका फायदा आपको नहीं होगा। जैसे आपको ये पता है कि धरती में पानी है, लेकिन निकालने की विधि नहीं आती, तो आप धरती के ऊपर आलथी-पालथी मारकर बैठ जाइये और अपने ये सोचते रहिये कि पानी बाहर आएगा या फिर उसे पुकारिये कि हे पानी! बाहर आ जा, पानी बाहर आ जा तो क्या पानी बाहर आ जाएगा? नहीं आएगा। दूध में घी है, लेकिन आप तो कर्म योगी हैं, ज्ञान का आपको पता नहीं है। तो अगर बैठे-बैठे आप ये कहें कि हे घी! मुझे पता है कि तू दूध में छुपा बैठा है, निकल बाहर, बाहर आ जा, तो क्या दूध में से घी निकल कर बाहर आ जाएगा? कभी नहीं आता, उसके लिए ज्ञान योगी होना बहुत जरूरी है।
अगर आप अपना भाग्य बदलना चाहते हैं तो भाग्य बदलने के लिए ये जरूरी है कि आप ये ध्यान रखें कि कर्म करते समय, ज्ञान योगी बनते समय आप हमेशा अच्छे कर्म करें। प्रभु का नाम जपें, सुमिरन करें, लेकिन इसके साथ जरूरी है कि मेहनत भी करें। मेहनत की करके खाएं, हक हलाल की रोजी, हक हलाल की रोजी रोटी खाना, मेहनत की करके खाना, हार्ड वर्क करके खाना, ये आपकी मदद करेगा कि आप प्रभु की तरफ भी जाएंगे और प्रभु मदद करेंगे कि आपके जो दुनियावी कार्य हैं, उनमें आपकी मदद होगी, उनमें आप तरक्की करेंगे। इस तरह से भाग्य बदला जा सकता है। लेकिन उसके लिए साधना तो जरूरी है।
आपको राम का नाम जपना पड़ेगा, प्रभु के नाम का सुमिरन करना पड़ेगा, जो आपको बार-बार हम इसलिए कह रहे हैं कि आप सोचते हैं कि पता नहीं पहाड़ों पर जाना होगा, जंगलों में, उजाड़ों में, पता नहीं कहां जाना है? नहीं…नहीं…कहीं नहीं जाना। धर्म नहीं बदलना, धर्म बदलने से कर्म नहीं बदलते, इसलिए जो आपका धर्म है उसको पकड़कर रखिये, धर्म मत बदलिये, अपने कर्म बदलिए, अपने ज्ञान को बढ़ावा दीजिये। जो भी आपके धर्म में लिखा है, जो आपको अभी बताया कि ज्ञान योगी और कर्म योगी, हर धर्म की ये कुंजी है तो उसको पकड़कर चलते हुए आप दुनिया में बहुत तरक्की कर सकते हैं, अपना भाग्य बदल सकते हैं। कई बार आपके अंदर आता है कि मैं जिस चीज को भी हाथ डालता हूँ वो राख बन जाती है। बहुत बार, बहुत से बहन, भाई, बुजुर्ग कहते हैं कि गुरु जी क्या करें हमने तो कभी कोई बुरा कर्म भी नहीं किया, लेकिन फिर भी हमारा भाग्य इतना बुरा क्यों है? कोई नशा नहीं करते हम, कोई बुरा कर्म नहीं करते, फिर भी हमें फायदा नहीं होता।
किसी बिजनेस में हाथ डालते हैं तो घाटा, यहां तक कह देते हैं कि सोने को हाथ डालते हैं तो राख बन जाता है तो इसका कारण है, हमने जो अपने धर्मों को पढ़ा, सभी धर्मों को देखा, इसका कारण है संचित कर्म, जन्मों-जन्मों के इकट्ठे हुए कर्म, जो वो शरीर नहीं भोग सकते, इसलिए इस शरीर को भोगने पड़ते हैं, वो कर्म कर सकते हैं, लेकिन भोगने की ताकत नहीं होती तो इस शरीर में जब वो कर्म भोगने पड़ते हैं तो आदमी बड़ी मुश्किल में आ जाता है, भाग्य इस तरह का हो जाता है। तो उसको बदलने का तरीका सिर्फ एक ही है, अपने घर-परिवार में रहिये, घूमते, लेटके, बैठके, कहीं भी, अपने धर्म में रहते हुए, बस कुछ नहीं बदलना, ना कोई कपड़ा बदलना है बस अपने कर्म बदल दीजिये, आप कर्मयोगी और ज्ञान योगी बनके प्रभु का नाम जपते रहें, प्रभु की भक्ति करते रहें तो यकीन मानो आपका भाग्य बदल जाएगा और जो आपके अंदर ये बात आ रही है कि मैं हाथ डालता हूँ सोने को तो मिट्टी बनता है, हो सकता है प्रभु जी ऐसे कर्म बना दें मिट्टी को हाथ डालो और वो सोना बन जाए। तो यकीन करके देखियेगा आप, अगर करेंगे तो रिजल्ट 100 पर्सेंट जरूर आएगा।
हौसले बुलंद रखिए
ये कलियुग है, बुराई का समय है। कोई भी बुरा कर्म करता है इन्सान तो यहां पे फलता-फूलता नजर आता है। लेकिन अच्छा कर्म करता है, क्योंकि ये कलियुग है तो काल महाकाल उसे जरूर रोकता है। काल कभी नहीं चाहता कि रूहें, आत्माएं अच्छा कर्म करके ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरू राम में जा विराजे। इसलिए वो ऐसी-ऐसी अड़चनें अड़ाता है, जिससे अच्छाई करने वाले, अच्छाई पर चलने वाले दूर हो जाए। लेकिन बुलंद हौंसला रखिए, राम का नाम जपते रहिए, अपने विल पावर को ऊंचा रखिए तो आप हर मुश्किलों को पार कर सकते हैं। कोई भी बुराई आपको नहीं रोक पाएगी, लेकिन आदमी के अंदर जरूर आता है कि मैं तो हमेशा अच्छे कर्म करता रहा हूँ, मेरे पर बहुत जुल्म हो रहा है, तो ये संचित कर्म भी होते हैं, लेकिन अगर फिर भी आपको लगता है कि ऐसा क्यों हो रहा है तो ये भी हो सकता है, कहते हैं कि शेर जब दो कदम पीछे हटता है तो वो जम्प मार कर बहुत आगे की मंजिल पा जाता है।
तो हो सकता है कि ये बुराई आपको बहुत कुछ सिखा रही हो, ताकि आने वाले समय में आप बहुत आगे निकल जाएं। तो बुराई के समय में घबराइये नहीं अच्छाई कभी मरा नहीं करती और बुराई कभी आसमां नहीं छूती। बुराई एक दिन जरूर खत्म होती है, और अच्छाई एक दिन जरूर ऊंचाईयों पे जाती है, तो इसलिए टेंशन छोड़िये, ये मत सोचिए मेरे साथ क्यूं हुआ, ये सोचिए कि अगर आप भक्ति कर रहे हैं, राम का नाम ले रहे हैं फिर भी आपके साथ बुरा हो रहा है तो अच्छे के लिए हो रहा है, भगवान कभी भी अपने भक्तों के बुरे के लिए कुछ भी नहीं करते, हमेशा अच्छे के लिए करते हैं, उसकी रज़ा में रह के देखिए, जरूर मालिक आपको अच्छाई की तरफ लेकर जाएंगे, तरक्की दिलवाएंगे।
हमारे वेद और पवित्र ग्रंथ 100 प्रतिशत सच हैं’
धर्मों के बारे में कुछ लोगों द्वारा फैलाई जा रही भ्रांतियों को दूर करते हुए आपजी ने फरमाया कि हमने गुरु जी की कृपा से सारे धर्मों को पढ़ा, सुना, महसूस किया। एक बड़ी भ्रांति सी चल रही है। कुछ पढ़े-लिखे लोग ये कहते हैं कि ये जो धार्मिक ग्रंथ हैं, वे कहानियां हैं। कोई कहता है कि सार्इंस सही है, इतिहास सही है। हमारे पवित्र ग्रन्थों को वो लोग बोलते हैं कि ये सही नहीं हैं। तो भाई इतिहास को लिखने वाला इन्सान है और पवित्र ग्रन्थों को लिखने वाले सन्त-महापुरुष हैं। हमें बड़ी हैरानी होती है जब लोग कह देते हैं कि नहीं, इतिहास ये कह रहा है, धर्म ये कह रहा है।
जैसे पवित्र रामायण के बारे में बात कर लीजिये, पवित्र वेदों के बारे में बात कर लीजिये। हम ये आपको गारंटी दिलाते हैं कि हमारे जो धर्म हैं वो जोड़ना सिखाते हैं, तोड़ना नहीं। धर्म बदलना नहीं सिखाते, इस पर चलना सीखना चाहिए। तो आपका जो भी धर्म है, उसी धर्म को पकड़ के रखिये, बदलने से कोई फायदा होने वाला नहीं है, क्योंकि समुद्र हैं हमारे धर्म। हमने जो देखा पवित्र वेद एक ऐसा समुद्र है, जिसमें से बहुत सी नदियां निकली, क्योंकि सेम थिंग मिलती हैं हमें। हमने पवित्र वेदों को पढ़ा और भी बहुत सारे पवित्र ग्रन्थों को पढ़ा तो जो पवित्र वेदों में लिखा है, कई ग्रन्थ उसी को फॉलो कर रहे हैं। पवित्र ग्रन्थ हर धर्म में हैं, बहुत बढ़िया सिखाते हैं। तो इसका मतलब सबसे पहले बने वेद, उस चीज के बाद जो दूसरे जो पवित्र ग्रन्थ आए तो उनमें वैसी ही चीजें लिखी हुई पाई गई।
तो सारे धर्म ही अपनी जगह 100 पर्सेंट सही हैं। कुछ भी गलत नहीं है उनमें। कई बार चर्चाएं हुर्इं इस बात पर कि ये जो सारे हमारे पवित्र ग्रन्थ हैं, ये थे और इनमें जो लिखा है वो ज्यों का त्यों था। तो कहने लगे कि गुरु जी आप कुछ ऐसा बताइए कि जो ये साबित करे कि हाँ, पवित्र वेद, पवित्र ग्रन्थ, जितने भी हैं धर्मों के, वो सही हैं। तो हमने कहा कि हमारे पवित्र वेदों में एक जगह ये जिक्र आता है कि जो सोना, हीरे, मोती, जवाहारात निकाले जाते थे, वो समुद्र की तलहटी से यानि बिल्कुल नीचे जाकर समुद्र से निकाले जाते थे। सुनने को ये बात छोटी सी लगती है, लेकिन गौर कीजिये, इसका मतलब उस समय भी सार्इंस नहीं, धर्म ने इतनी तरक्की कर रखी थी कि वो पनडुब्बी टाइप या आॅक्सीजन सिलेंडर लेकर गए होंगे, उनका कुछ अलग तरीका होगा, लेकिन समुद्र की बिल्कुल तह में नीचे जाकर उन्होंने वो हीरे, मोती या सोना निकाला, जो आज भी निकाला जा रहा है। तो आप उनको झुठला कैसे सकते हैं? उन्हीं की तर्ज पर आप समुद्र से आज भी सोना निकाल रहे हैं और उन्होंने हजारों साल पहले ये चीज सिद्ध कर दी है कि ऐसा हुआ।
हमारे पवित्र वेदों में साफ लिखा है कि कीटाणु, जीवाणु हुआ करते थे, शुद्ध वातावरण होना चाहिए, जैसे हमारे पवित्र यज्ञ वगैरहा किए जाते थे, उसका मुख्य कारण यही था कि वो वातावरण शुद्ध हो जाए, जो आहूतियां दी जाती थीं, जो अग्नि ज्वंलित की जाती थी उससे वायरस बैक्टीरिया जल जाते थे, खत्म हो जाते थे तो उस एरिया से बीमारियां चली जाती थीं। क्योंकि हमने हमारे धर्मों को सार्इंस के नजरिये से पढ़ा तो ये साफ पता चल रहा था कि हाँ, वाकई धर्म महा विज्ञान हैं, महा सार्इंस हैं। बिल्कुल सही है, लेकिन फिर भी लोग कह देते हैं कि धर्मों में ये जो लिखा है ये काल्पनिक चीजें हैं। नहीं, ये गलत है, ये सही नहीं है।