बेटा! एवल पच्ची लै लै,आराम आ जाएगा … सत्संगियों के अनुभव
पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की दया-मेहर
बहन बलजीत कौर इन्सां पुत्री सचखंडवासी नायब सिंह गांव नटार जिला सरसा(हरियाणा)
जब सन् 1989 में पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के हुक्मानुसार गुरगद्दी बख्शिश संबंधी मीटिंगों का सिलसिला चल रहा था तो एक दिन मैंने अपने घर, परिवार में कहा कि चाहे खुदा भी चल कर क्यों न आ जाए, मुझे परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज जितना प्यार किसी का नहीं आ सकता और न ही कोई परम पिता जितना प्यार अपने को दे सकता है।
तब यह सोच कर दिल कांप उठता था कि सच्चे सौदे की गुरुगद्दी पर कोई और आ जाएगा! परन्तु जिस तरह पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को गुरुगद्दी बख्श कर अपना स्वरूप बना लिया तथा वचन किए कि हम थे (पूजनीय बेपरवाह मस्ताना जी के रूप में) और हम हैं (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज के रूप में) और हम ही रहेंगे(परम पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के रूप में) परन्तु जब हम परम पूज्य हजूर पिता जी के दर्शन करते हैं तो शहनशाह परम पिता जी के उस उपकार के बदले हम धन्य ही कह सकते हैं। उनकी महानता के आगे सिर झुक जाता है। परम पिता जी ने जिस तरह गुरुगद्दी बख्शी, एक मिसाल कायम हो गई कि गुरु अपने शिष्य को बराबर बिठाए तथा पहले ही सब कुछ उन्हें बख्श दे। इस तरह केवल सच्चे सौदे में ही हुआ।
मेरे गले में दर्द था। मैंने किसी को नहीं बताया। मैंने शीशे में देखा तो गले में बेर जितनी बड़ी गांठ थी। दर्द जब बढ़ गया तो मुझ से रोटी भी न खाई जाए तथा बोला भी नहीं जाता था। तकलीफ से 101 डिग्री बुखार हो गया। परन्तु मैंने घर में नहीं बताया कि घर वाले मुझे डेरे(आश्रम) जाने से मना कर देंगे। जब रोटी न खाई गई तो मैंने कहा, गले में दर्द है। डैडी कहने लगे कि कल को गले के विशेषज्ञ डॉक्टर को दिखाएंगे। तो मैंने अपने सतगुरु (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंंह जी महाराज) के स्वरूप पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के चरण-कमलों में अरदास की कि हे सतगुरु आपने मुझे बचाने की कोशिश न करना।
परंतु मेरी विपरीत सोच को न सुनते हुए हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने मुझे अर्द्ध निंद्रा की अवस्था में दर्शन दिए और वचन फरमाया, ‘बेटा! एवल पच्ची लै लै, आराम आ जाएगा।’ मैंने उठकर देखा, उस समय रात का एक बजा था। मैंने गोलियों वाला डिब्बा देखा तो उसमें से एवल पच्ची निकाल कर पानी के साथ ले ली। पूज्य हजूर पिता जी ने स्वप्न में फिर दर्शन दिए और फरमाया, ‘बेटा! कोसे पानी के गरारे करने से गला ठीक हो जाएगा।’ गले वाली गांठ का मुंह बन गया था। जब मैंने गरारे किए तो वह गांठ इस तरह बाहर आ गई जैसे किसी ने आॅपरेशन करके बाहर निकाल दी हो। गले को आराम आ गया। घर वालो ंने मुझे पैसे दिए कि टीके करवा लेना।
परन्तु मैं पूज्य हजूर पिता जी का स्वरूप(फोटो) दरबार में से खरीद लाई। जब मुझे घर वालों ने पूछा कि दवाई ले ली है तो मैंने कहा कि मैं तो डाक्टर ही घर ले आई हूं। पूज्य हजूर पिता जी का स्वरूप मैंने कंस पर रख दिया। चाहे वो शहनशाह परम पिता जी थे, चाहे खुदा था, परन्तु हजूर पिता जी के रूप में थे जिन्होंने मुझे गोली दी। इस तरह सतगुरु ने अपने दर्शानों व वचनों से मेरा रोग काट दिया।