बेटा! दिन-रात सुमिरन व दीन-दुखियों की मदद करना -सत्संगियों के अनुभव
पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की दया-मेहर
सेवादार प्रेमी पुरुषोतम लाल टोहाना इन्सां पुत्र श्री पूर्ण चंद निवासी शाह सतनाम जी नगर जिला सरसा से पूजनीय परमपिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज की अपने पर हुई अपार रहमतों का वर्णन करता है:-
सन् 1980 की बात है कि मैं एक निर्दयी व क्रूर आदमी था जो हमेशा गंदगी में लिप्त यानि मांस-मिट्टी खाता था और पापों व गुनाहों से भरा हुआ था। मैं दिन-रात शराब पीता, शराब से ही कुरला करता, जो भी रिश्तेदार या मित्र आता, उसकी मेहमान नवाजी के लिए भी शराब की बोतल खोल देता। खूब पीता और पिलाता। मेरा शरीर अपने आप हिलने लग गया था, फेफडेÞ गल गए थे, शक्ल से बेशक्ल हो गया था। डाक्टरों ने कह दिया था कि यह बड़ी मुश्किल से छ:महीने निकालेगा, किसी भी समय इसकी मौत हो सकती है।
यह सब मालूम होने के बावजूद भी इतनी शराब पीता कि जहां पर भी पीता वहीं लुढक जाता। रात को घर वाले मुझे उठा कर लाते। मैं अक्सर एक गाना गुनगुनाता रहता था, ‘पंडित जी मेरे मरने के बाद बोतल शराब की अर्थी पर रख देना कि धर्मराज के पास जाते-जाते शराब खत्म न हो। मुझ से मेल-मिलाप रखने वाले लोग मुझे कहा करते कि आप शराब न पिया करो, मांस मिट्टी न खाया करो। इसका हिसाब धर्मराज के पास जाकर देना पड़ेगा। तो मैं कहा करता कि धर्मराज या भगवान मुझ से कैसे हिसाब लेगा। वह तो मेरी बात सुनकर चक्कर में पड़ जाएगा। जब मैं कहूंगा भगवान, धर्मराज जी, आपने तो मुझे शराब के ठेकेदारों के घर जन्म दिया है।
जहां शराब का ही व्यापार होता है, शराब से ही कमाई होती है। जब मेरा जन्म हुआ था तो उस समय मुझे शराब की ही गुड़ती दी गई थी। फिर मैं इस बुराई से कैसे निकल सकता हूं? कई बार मैं अपने दिल में यह बात सोचा करता था कि कभी कोई ऐसा आएगा जो मुझे इस गंदगी की दलदल से निकालेगा। मैं अपनी अर्न्तात्मा से गाना गाया करता, जिसके बोल थे:- ‘कभी न कभी तो कोई आएगा, अपना मुझे बनाएगा और दिल से मुझे लगाएगा। जिन्दगी का कोई रास्ता बताएगा, गले से लगाएगा और दिल से डर भगाएगा।’
जब दिल से सच्ची अरदास होती है तो उसे परम पिता परमात्मा जरूर सुनता है। टोहाना की अनाज मण्डी में हमारी आढ़त की दुकान थी। 22 अप्रैल 1980 के दिन भाई भागीरथ लाल व भाई जोगराज शराब बर्फ में लगाकर ठण्डी करके पी रहे थे। श्याम सिंह रत्ता खेड़ा और उसका लड़का गुरचरण सिंह सरपंच अपनी गेहूँ बेचने के लिए हमारी दुकान पर आए। मैंने गुरचरण सिंह सरपंच के पास जाकर कहा कि सरदार जी, आप भी पैग-शैग लगा लो। तो वह बोला हम शराब नहीं पीते। हम तो डेरा सच्चा सौदा सरसा जाते हैं। मैंने उसे कहा कि पीते तो आप जरूर होंगे। हम तो शरेआम पी रहे हैं, आप लुक-छिप के पीते होंगे। उसके इस बात से सख्त इन्कार करने पर फिर मैंने उसे कहा कि ऐसे संत-महात्मा के हमें भी दर्शन करवाओ। वह बोला कि हम आपको अवश्य सरसा दरबार लेकर चलेंगे। इस महीने के आखिरी रविवार का वहां पर सत्संग है, हम आपको साथ लेकर चलेंगे।
जब सत्संग का दिन आया तो वह मुझे लेने नहीं आए तो मेरे दिल को धक्का लगा। मेरे पूछने पर श्याम सिंह ने बताया कि हम भूल गए थे। अब की बार मई महीने के सत्संग पर आप को साथ लेकर जाएंगे। मई के आखिरी रविवार के सत्संग पर भी वह मुझे लेकर नहीं गए। मेरे अन्दर बहुत तड़प थी कि संत-महात्मा, गुरु जी के दर्शन करूँ। यह तड़प तो गुरु जी ने ही जगा रखी थी। मेरे मन में अनेक बातें आने लगी। मेरे ख्याल में आया कि मुझे इसलिए नहीं लेकर गए कि मैं शराबी-कबाबी हूं। उनको यह डर होगा कि मैं उनके मिशन को बदनाम न कर दूं। अगले महीने जून में हमारे एरिये में एक जगह डेरा सच्चा सौदा वालों की नामचर्चा हो रही थी, मैं उसमें पहुंच गया। मैंने नामचर्चा में सरेआम बोल दिया कि आप सारे प्रेमी झूठे होते हैं।
वह बोले क्या बात हो गई बाबू जी! मैंने बताया कि आप के जो प्रेमी श्याम सिंह रत्ता खेड़ा और उनका बेटा गुरचरण सिंह सरपंच है, मैंने उनको बोला था कि मुझे डेरा सच्चा सौदा सरसा ले चलो ताकि हम भी आप जी के गुरु जी के दर्शन कर लें। परन्तु वह मुझसे वादा करके मुझे सरसा नहीं लेकर गया। तो बताओ हम कैसे प्रेमियों पर विश्वास करेंगे। मेरी बात सुनकर सभी प्रेमी चुप हो गए। प्रेमियों ने उसी वक्त श्याम सिंह को बुलाया और उनको सब के सामने कहा कि आप को इनके साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था। जब इनको इतनी लग्न व तड़प है तो इनकों क्यों नहीं डेरा सच्चा सौदा लेकर जाते, इतना कहने पर श्याम सिंह 27 जून 1980 को मुझे लेने के लिए अनाज मण्डी टोहाना में हमारी दुकान पर आ गया।
उसी दिन सरसा में आखिरी हफ्ते का सत्संग था। मैं सत्संग पर जाने के लिए तैयार हो गया। घरवाले तथा भाई भागीरथ व जोगराज मुझे कहने लगे कि तुम कहां जा रहे हो? मैंने कहा कि मैं डेरा सच्चा सौदा सरसा में सत्संग सुनने जा रहा हूं। मेरे भाई कहने लगे कि पक्के रहना, आकर फिर से शराब न पीना शुरू कर देना और इस मिशन को बदनाम न करने लग जाना। मैंने कहा कि मैं जाऊँगा और नामदान थोड़े ही लेकर आऊँगा। मैं तो सत्संग सुन कर आऊँगा। फिर मैं श्याम सिंह के साथ डेरा सच्चा सौदा के लिए चल पड़ा। दिल में खुशियों के फुव्वारे चलने लगे। दोपहर 12 बजे हम डेरा सच्चा सौदा सरसा पहुंचे। उस समय दोपहर का लंगर चल रहा था।
सेवादार भाई प्रेमी जी, प्रेमी जी कहकर बड़े प्यार से लंगर बांट रहे थे। लंगर का साइज बहुत बड़ा था। हम छोटी-छोटी रोटियां खाने वाले थे। जब लंगर खाना शुरू किया तो पहले एक लंगर लिया, फिर दूसरा लंगर लिया। लंगर बहुत ही स्वादिष्ट था। फिर मैंने तीसरा लंगर और लिया तथा वह भी खा गया। लंगर खाकर अंदर बड़ी खुशी आई, मन प्रसन्नचित हो गया। मैं बार-बार परम पिता परमात्मा का शुक्राना करने लगा। गर्मियों के दिन थे। श्याम सिंह मुझे आराम करने के लिए शाह मस्ताना जी धाम में सामने जो बड़े पेड़ थे उनकी छाया में ले गया। जब हम पेड़ के नीचे लेटे पड़े थे, प्रेमी आपस में गुरु जी के चमत्कारों की बातें सुना रहे थे।
एक प्रेमी कह रहा था कि एक सत्संगी बहन बहुत सेवा करती थी और उसका पिता जी (परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज) से बहुत ज्यादा प्यार था। उसका पति शराबी-कवाबी था। वह उससे मार-पीट करता था। फिर उसने बताया कि एक रात परम पिता जी लाठी लेकर आए और उसको बहुत पीटा। पिता जी कहने लगे कि बेटी कितनी सेवा करती है और तू उसे दु:ख देता है। जब उसकी काफी पिटाई हुई तो उसने परम पिता शाह सतनाम जी महाराज से माफी मांगी और कहा कि मैं आगे से कभी भी ऐसा गल्त काम नहीं करूंगा। उसने सुबह अपनी पत्नि को रात की आप बीती सारी बात बताई। वह बहुत खुश हुई और उसने परम पिता जी का शुक्राना किया।
उसके उपरान्त उसका पति देवता प्रेमी बन गया। जो प्रेमी वहां लेटे पड़े थे, वह आपस में पूछ रहे थे कि तुमने कितने सालों से नाम लिया है। कोई कह रहा कि बीस साल हो गए, कोई दस साल और कोई कह रहा था कि आठ साल हो गए हैं। मैंने सोचा कि अपनी यहां पर दाल नहीं गलेगी। क्योंकि मैं तो रात ही शराब की चार-पांच बोतलें खाली करके आया हूं। मेरे मन में यह विचार था कि हम सत्संग सुन लेंगे, गुरु जी के दर्शन कर लेंगे और चले जाएंगे। शाम को 5 बजे मजलिस थी। हमने मजलिस सुनी परन्तु मुझे कुछ समझ नहीं आया। जब रात का सत्संग शुरू हुआ तो परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज स्टेज पर आ कर विराजमान हो गए और दर्शन किए तो मुझे अलौकिक नजारे दिख रहे थे। परम पिता जी के बॉडी स्वरूप से बहुत ही तेज प्रकाश की किरणें निकल रही थी।
मैं यह देखकर चकाचौंध हो गया कि यह तो वही किरणें हैं जो पूर्ण फकीरों के चित्रों में देखते हैं। दिल करता था कि एक टक देखता ही जाऊँ। ऐसे दर्शन करके मैं पूर्ण आनंदित हो गया। परम पिता जी ने सत्संग शुरू किया। शब्द की पहली कड़ी थी,- ‘की भरोसा इस दम दा करें। दम आवे-आवे ना आवे।’
परम पिता जी ने फरमाया कि ‘इन स्वासों का क्या भरोसा दोबारा आएं या न आएं। हे इन्सान तू किस बात पर मान करता है। तू अगला कदम उठा सके या ना उठा सके। काल ठोकर मार जाए, झपट मार जाए। एक कदम का भी भरोसा नहीं है। शहनशाह जी ने आगे फरमाया कि आप ने जो काम किए हैं, अपनी शोहरत के लिए किए हैं, अपने पेट के लिए किए हैं, परन्तु अपनी आत्मा के लिए कुछ नहीं बनाया।
सारा समय कारोबार में ही लगा दिया है।’ जब यह शब्द सुने तो मन को बहुत ठोकर लगी और दिल में हो गया कि कब गुरु जी का नाम दान मिले और मेरी आत्मा की मुक्ति हो। मेरा दिल मान गया कि यही सबसे बड़ी ताकत है जिसके सहारे खण्ड ब्रह्मण्ड खड़े हैं। सारी दुनिया के मुक्ति के दाता यही महाराज जी हैं। मैं अपने साथी प्रेमी श्याम सिंह से कहने लगा कि नामदान कहां मिलेगा, तो श्याम सिंह कहने लगा कि आपको क्या हो गया! मैंने कहा कि जो गुरु महाराज जी स्टेज पर बैठे हैं, उन्होंने मुझे सब कुछ दिखा दिया है और मेरी रूह-आत्मा मान गई है। मैंने नाम-दान लेना है।
श्याम सिंह कहने लगा कि नाम दान ऐसे थोड़े ही मिल जाएगा। पहले दो चार सत्संगों में आओ,
ध्यान से सत्संग सुनो, वचनों पर अमल करो, फिर नाम दान मिलता है। मेरे दिल में आया कि प्रेमी श्याम सिंह डर गया है कि यह शराबी-कवाबी बंदा है, फिर पीने लग-जाएगा, डेरे को बदनाम करेगा। मैंने कहा कि चलो कोई बात नहीं। श्याम सिंह ने कहा कि अभी तो सत्संग की एक कड़ी भी पूरी नहीं हुई, आप को क्या हो गया! मैं उसे क्या बताता कि जो मेरे अंदर बैठा है, वह बार-बार कह रहा है कि अब समय है, फिर समय नहीं मिलेगा। मैं थोड़ा आगे सरकता हुआ एक और प्रेमी के पास हो गया। मैंने उससे पूछा, प्रेमी जी, नाम दान कहां मिलेगा।
मैंने चुपके से पूछा कि श्याम सिंह सुन न ले। उस प्रेमी ने बताया कि नाम दान सामने गुफा (तेरावास) में मिलता है। मैंने उससे विनती की कि प्रेमी जी, मुझे नाम दान दिला दोगे? वह प्रेमी बोला, क्यों नहीं? मैं अवश्य ही आप को नाम दान दिला दूंगा। सत्संग के आखिर में जब बहनों का शब्द शुरू होगा तो मैं तुझे उठाकर ले जाऊँगा। मेरे दिल में बार-बार आ रहा था कि कब सत्संग समाप्त हो और कब नाम मिले। मेरे दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी कि हम आज नईं जिन्दगी में प्रवेश हो जाएंगे और हमारी जिन्दगी का बीमा हो जाएगा। सचखण्ड का सीधा टिकट मिल जाएगा, मुक्ति पद मिल जाएगा।
मुझे यह डर था कि कहीं श्याम सिंह को पता न चल जाए।
थोड़ी देर बाद प्रेमी जी मुझे गुफा के पास ले गए जहां परम पिता जी ने नाम देना था। सेवादार प्रेमी वहां पर पहले ही खड़े थे जो नाम लेने वालों को एक-एक करके गुफा (तेरावास) के अन्दर भेज रहे थे। मैं भी गुफा में चला गया। कुछ समय पश्चात परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज आकर सामने सजी कुर्सी पर विराजमान हो गए। पहले परम पिता जी ने नाम के बारे विस्तार से समझाया और तीन परहेज जैसे मांस-अण्डा नहीं खाना, शराब नहीं पीना, पुरुषों ने पर-स्त्री और स्त्री ने पर-पुरुष को उम्र के लिहाज से बड़े हैं तो माता-पिता के समान, बराबर के हैं तो बहन-भाई के समान और छोटे हैं तो बेटा-बेटी के समान मानना है।
इस उपरान्त परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने अपने ऊपर सफेद चादर ओढ़ कर थोड़ा समय अन्तरध्यान होने के बाद फरमाया, आज हमने तुम्हारी आत्मा की तस्वीर सतलोक में मालिक के दरबार में भेज दी है। आज तुम्हारा नया जन्म हो गया है। अब तुम्हें नामदान बताते हैं। तुम सभी ने हमारे पीछे-पीछे बोलना है। परम पिता जी नाम शब्द बोलने लगे और हम सभी पीछे-पीछे बोलने लगे। नाम दान देकर हमें कहने लगे कि तुम सब को नाम याद हो गया है तो हाथ खड़े करो। सभी ने हाथ खड़े करके कहा, हां जी! याद हो गया है। नाम शब्द पाकर मेरा दिल आनंद से भर गया। और ऐसे लगा कि आज मुझे दुनिया की सबसे प्यारी दौलत मिल गई है। मैंने भी नाम याद कर लिया था।
पिता जी ने सभी को अशीर्वाद दिया और गुफा के ऊपर अपने कमरे में चले गए। उस समय सेवादार हमारी गिनती भी कर रहे थे। मुझे कोई जल्दी नहीं थी क्योंकि परम पिता जी ने असली काम कर दिया था। नाम-दान देकर दुनिया भर की खुशी मेरी झोली में डाल दी थी। जब मैं नाम दान लेकर गुफा (तेरावास) से बाहर निकलने लगा तो सामने प्रेमी श्याम सिंह और वो प्रेमी खड़ा था। श्याम सिंह जी बड़े हैरान हुए और मुझे कहने लगे कि प्रेमी जी, आप ने नामदान ले लिया? मैंने कहा, प्रेमी जी, आपने तो आगे की तारीख रख दी थी, मगर पिता जी ने मुझे इशारा करके अन्दर गुफा (तेरावास) में बुला लिया और नामदान दे दिया।
फिर प्रेमी श्याम सिंह ने मुझे गले से लगा लिया और कहने लगा कि आप पिता जी की कितनी प्यारी रूह हैं। पिता जी ने आप पर कितनी बड़ी कृपा कर दी आपको साथ मिला लिया। श्याम सिंह और वो प्रेमी कहने लगे कि अब खाना खाएंगे और चाय-पानी पिएंगे, उसके बाद सोएंगे। उस समय रात के अढाई बजे थे। मैंने कहा कि मैं नहीं सोऊँगा, क्योंकि अगर मैं सो गया तो मैं नाम भूल जाऊँगा। साथ वाले प्रेमी बड़े हैरान थे कि इसको क्या हो गया। मैंने बाकी रात पिता जी का बख्शा नामदान याद किया। जब साथी प्रेमी सुबह उठे तो मुझे ऐसे लगा जैसे मैंने 5-6 बोतलें शराब की पी रखी हों। इतना नशा था कि मेरे पांव धरती पर नहीं लग रहे थे। पिता जी ने अंदर से इतनी खुशी दी थी कि आंखों में नाम का सरूर था।
सुबह चाय-पानी पिया और नाश्ता लिया। पे्रमी श्याम सिंह कहने लगे कि साध-संगत के घरों को जाने से पहले परम पिता जी सारी साध-संगत को मिलते हैं। तो वह भी समय आ गया, जब शहनशाह परम पिता जी 10 बजे गुफा (तेरावास) से बाहर आ गए। सेवादारों ने सारी साध-संगत को गोल दायरे में खड़ा कर लिया। इस दायरे में कोई भी प्रेमी भाई-बहन किसी भी तरह की बात कर सकता है, चाहे राम-नाम की, चाहे परमार्थ की, चाहे अपने सुख-दु:ख की। इतने में परम पिता जी गोल दायरे में आ गए और सभी की बातें सुनने लगे। प्रेमी श्याम सिंह मुझे कहने लगे कि सेठ साहिब, आप भी परम पिता जी से कोई बात कर लो। आप शराब के इतने बड़े ठेकेदार हैं।
मैंने हाथ जोड़ कर कहा कि प्रेमी जी, जब इतना बड़ा नाम-दान, मुक्ति का मार्ग मिल गया है तो और क्या चाहिए। मैंने कहा कि अब मैंने कोई बात नहीं करनी। मैं शहनशाह परम पिता जी के दर्शन करता हुआ हाथ जोड़े खड़ा था। परम पिता जी ने सारी साध-संगत पर दृष्टि डालने के उपरांत मेरे पर दृष्टि डालते हुए वचन फरमाया, ‘बेटा! दिन रात सुमिरन व दीन-दुखियों की मदद करना।’ मैने सोचा कि गुरु जी यह क्या कह गए। डाक्टरों ने तो मेरी जिन्दगी छ: महीने बताई है और गुरु जी कह रहे हैं कि दिन-रात गरीबों की मदद करनी है। मुझे सतगुरु ने अंदर से ख्याल दिया कि संत वचन पलटे नहीं, पलट जाए ब्रह्माण्ड। फिर क्या हुआ कि परम पिता जी ने अपनी रहमत से तीन महीने दिन-रात सुमिरन करवाया। आगे क्या हुआ कि मेरा चेहरा बिल्कुल काला पड़ गया। शरीर से चमड़ी उतरनी शुरू हो गई।
मैं दिन में दो बार नहाता था कि जिससे चमड़ी साफ होती रहे और किसी को पता न चले कि कोई तकलीफ आई है। अंदर पिता जी के नाम की खुशी चली हुई थी। मेरे दोस्त या रिश्तेदारों को ऐसे लगने लगा कि अब पुरुषोत्तम लाल महीना या दो महीने ही निकालेगा, ज्यादा समय नहीं निकालेगा। क्योंकि डाक्टरों ने तो बोल ही दिया था कि शराब से इसके फेफड़े गल चुके हैं, छ: महीने मुश्किल से निकालेगा। सभी रिश्तेदार, भाईचारा इकट्ठा हुआ कि इसको डाक्टरों के पास लेकर चलो। डाक्टरों को सारी बात बताई तो डाक्टर चैक-अप करने लगे। डाक्टरों ने काफी देर लगा दी तो मैं बड़े डाक्टर से बोला कि आप जल्दी बताओ जो भी रिपोर्ट है, सबके सामने बताओ।
डाक्टर बोले, पुरुषोत्तम लाल, आपके साथ तो चमत्कार हो गया आपके साथ तो चमत्कार हो गया! आपके तो फेफड़े सही होने शुरू हो गए हैं। आपको परमात्मा ने नई जिन्दगी दे दी है। यह तो कमाल हो गया है। मैं बोला कि यह कमाल तो मेरे सतगुरु डेरा सच्चा सौदा सरसा वाले का है। आप डाक्टरों ने तो कह दिया था कि यह छ: महीने बड़ी मुश्किल से निकालेगा। यह नई जिन्दगी परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महराज की दी हुई है। इस उपकार को हमारी आने वाली पीढियां भी नहीं भुला सकेंगी। आज इस घटना को 42 वर्ष हो गए हैं।
गुरु जी आज भी मुझे 18-20 वर्ष का नौजवान बना कर सेवा ले रहे हैं। दिन-रात एक करके परम पिता जी मानवता की सेवा करवा रहे हैं। यह उनकी कृपा है और उसी कुल मालिक ने आगे करवानी है। मेरी आयु करीब 70 साल है। मैं शहनशाह जी की कृपा से आज भी दौड़ लगाता हूं, सैर करता हूं। किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं है न ही कभी थकावट होती है। यह सब कुल मालिक परम पिता जी की कृपा है। मंै यह बात दावे से कहता हूं कि जो इस दर (डेरा सच्चा सौदा) पर मिलता है, दुनिया में और कहीं नहीं मिलेगा।
जो दृढ़ निश्चय से यहां आता है, इस दर पर आता है, दृढ़ विश्वास रखता है, उसकी सभी मुरादें पूरी होती हैं। पूज्य एम.एस.जी. की कृपा से आज तक कोई भी इस दर से निराश होकर नहीं गया। जो दृढ़ विश्वास करता है, वह सारी दुनिया की खुशियां अपनी झोली भर कर ले जाता है।
इस करिश्मे से यह स्पष्ट है कि मैं कौन हूं, कहां से आया हूं और मेरे जीवन का मकसद क्या है, इस बात की समझ पूर्ण सतगुरु के सत्संग से ही आती है।