नौकरों पर ही न रहें निर्भर
आधुनिक युग में अच्छे खाते-पीते घरों में नौकर-नौकरानी एक जरूरत बन गए है। मध्यम परिवारों में मजÞबूरी होने पर पूर्णकालिक नौकर नहीं तो पार्ट टाइम मदद तो हर परिवार की आवश्यकता है परन्तु किसी ने यह नहीं सोचा कि हम घर के छोटे मोटे काम स्वयं न कर अपने आपको और बच्चों को पंगु बना रहे हैं। शरीर में काम करने की क्षमता ही खत्म होती जा रही है। कुछ दिन यदि काम वाली काम छोड़ जाये या किसी कारणवश छुट्टी पर चली जाये तो परिवार के लिए एक बहुत बड़ा सिरदर्द बन जाता है कि उन दिनों में घर को कैसे चलाया जाये।
आइए देखें हम कितने पराश्रित या पंगु बन चुके हैं। घर में नौकर, नौकरानी के होने पर बच्चे कोई भी काम करना पसन्द नहीं करते। छोटे-छोटे कामों के लिए उनको बुलाते हैं और काम करवाते हैं। इससे स्वयं कार्य करने की प्रवृत्ति शुरू से ही खत्म हो जाती है और पराश्रित होने के संस्कार बचपन से ही घर कर जाते हैं। इससे बच्चों के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
नौकरों के घर पर रहने से बच्चे शुरू से अपने से गरीब लोगों पर रौब मारना सीख जाते हैं और स्वयं को ऊंचा समझने लगते हैं जो मनोवृत्ति को बिगाड़ने में सहायक होता है। नौकरों के घर होने पर घर की गोपनीयता भी समाप्त हो जाती है जिससे नौकर, नौकरानियां आपकी मजबूरियों का पूरा लाभ उठाते हैं।
हमारे शरीर की चुस्ती फुर्ती भी खत्म हो जाती है। शरीर को चुस्त रखने के लिए हमें फिर से बाहर ‘जिम’ का रास्ता ढूंढना पड़ता है। पैसों की बर्बादी तो होती ही है। घर के सामान की तोड़ फोड़ भी बढ़ जाती है। कुछ सूझबूझ से मिल-जुल कर परिश्रम करने से हम अपने आप को पंगु होने से बचा सकते हैं।
- स्वयं कार्य करने से काम के सही ढंग से होने का जो संतोष मिलता है, वह वैसे कभी नहीं मिलता।
- बच्चों में तथा पति में जिम्मेदारी की भावना बनी रहती है।
- परिवार के सभी सदस्यों के शरीर चुस्त-दुरुस्त बने रहते हैं।
- घर की गोपनीयता बरकरार रहती है जो नौकरों के होते भंग हो जाती है।
- समय की बचत होती है। पार्ट-टाइम नौकरानी के देर से आने पर पहले इन्तजार में समय व्यर्थ, फिर दिन-भर स्वयं खुद को सुव्यवस्थित नहीं कर पाते हैं।
- स्वयं काम करने से घर की गरिमा भी बढ़ती है। आप अन्दर से गर्व महसूूस करती हैं कि यह काम अपने हाथों से किया गया है या नये तरीके का खाना स्वयं बनाया है।
- इससे घर खर्च की बचत भी होती है क्योंकि सामान नष्ट या खराब नहीं होता।
- घर के छोटे-मोटे नुकसानों व चोरी से घर बचा सकते हैं।
- हमारी मजबूरी का लाभ भी कोई नहीं उठा सकता।
- इस प्रकार मजबूरी या वास्तविक आवश्यकता पड़ने पर ही नौकरों पर आश्रित बनें।