जन्म से पहले धड़कना शुरू कर देने वाला दिल थकता तो नहीं, लेकिन अचानक थम सकता है। Heart Attack ऐसी नौबत आने से पहले ही अपने दिल से दिली जुड़ाव बनाएं और उसे बिगड़ने से बचाएं। आइए, जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण इस अंग की खैर-खबर के बहाने अपनी सेहत और जिंदगी को नए सिरे से संवारें। दिल चार कक्षों का, मांसपेशियों से बना ऐसा अद्भुत अंग है, जो गर्भ में होने के दौरान ही धड़कने लगता है और फिर जीवनपर्यंत धड़कता है।
इसका मुख्य कार्य फेफड़ों से आॅक्सीजन युक्त रक्त लेकर शरीर की प्रत्येक जीवित कोशिका तक पहुँचाना और साथ ही कम आॅक्सीजन वाले रक्त को फेफड़े में पंप करना है ताकि उसमें घुली कार्बन डाइआॅक्साइड बाहर निकल सके। चूंकि यह महत्वपूर्ण अंग है, इसलिए इसकी गड़बड़ियां जीवन की सलामती के लिए घातक साबित होती हैं। हृदयाघात सम्बंधी बीमारियां दुनियाभर में मृत्यु का अहम कारण हैं। अच्छी बात यह है कि हृदय की कार्यप्रणाली की समझ और बीमारियों के इलाज व रोकथाम के मामले में विज्ञान ने पिछले पांच दशकों में बहुत तरक्की की है।
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हार्ट में ब्लॉकेज होने के कारण Heart Attack
ब्लॉक, कोलेस्ट्रॉल, फैट, फाइबर टिश्यू और सफेद रक्त कोशिकाओं के मिश्रण से होता है। Heart Attack यह मिश्रण धीरे-धीरे नसों की दीवारों पर चिपक जाता है। इससे ही हार्ट ब्लॉक होने लगता है। हार्ट में ब्लॉक दो तरह का होता है। जब यह गाढ़ा और सख्त होता है, तो ऐसे ब्लॉक को स्टेबल ब्लॉक कहा जाता है। जब यह मुलायम होता है तो इसे तोड़े जाने के अनुकूल माना जाता है। इसे अनस्टेबल ब्लॉक कहा जाता है।
Heart Attack यूं समझें दिल के इशारे
Heart Attack हृदय की बीमारियां प्रमुखत:
दो प्रकार की होती हैं। पहली जन्मजात और दूसरी अर्जित यानी वातावरण, आदतों, संक्रमण इत्यादि से उत्पन्न। जन्मजात रोगों में अधिकांश हृदय कक्षों के बीच मौजूद वाल्व की संरचना में गड़बड़ी या कक्षों के न बन पाने की गड़बड़ियों वाले होते हैं। इनके लक्षण जन्म के बाद कुछ ही समय में दिखने लगते हैं। दूसरी ओर, हार्ट अटैक अथवा बाहरी वातावरण से उत्पन्न बीमारियों में लक्षण बड़े बच्चों अथवा व्यस्कों में दिखते हैं।
किसी भी उम्र में इस तरह के लक्षण उत्पन्न होने पर डॉक्टर से अवश्य मिलें:
- लेटने में सांस तेज चलना अथवा सांस में दिक्कत महसूस होना, जबकि बैठने पर बेहतर महसूस करना।
- बच्चों के होंठों का नीला पड़ना या फिर उनकी सांस का तेज चलना इत्यादि।
- पहले की तुलना में कम चलने में थकना या सांस का फूलना। दोनों पैरों पर बिना दर्द वाली सूजन आना।
- साइलेंट हार्ट अटैक में पीड़ित और परिजनों को पता ही नहीं चल पाता कि हार्ट अटैक हुआ है, क्योंकि दर्द नहीं होता। ऐसा डायबिटीज के कुछ मरीजों में देखा जाता है। घबराहट, पसीना आना इसके लक्षण हो सकते हैं।
- छाती के बाएं हिस्से में अचानक तेज दर्द का उठना, जिसका असर बाएं हाथ अथवा जबड़े तक हो। यह हार्ट अटैक का लक्षण हो सकता है। ऐसी स्थिति में आपको तुरंत चिकित्सकीय सहायता की आवश्यकता होती है।
- धड़कनों की लय बिगड़ती महसूस होना। एक स्वस्थ हृदय एक नियत दर से धड़कता है। नवजात में यह प्रति मिनट 100 से 160 के बीच, तो बच्चों में 100 से 120 के बीच होता है। किंतु वयस्कों में यह दर 70 से 100 के बीच होती है।
व्यायाम, चिंता इत्यादि से कुछ देर को हमारी धड़कनें बढ़ना सामान्य है, किंतु यह बार-बार हो, और आपको असहज महसूस हो तो डॉक्टर से अवश्य मिल लें।
जो हैं कारण, वही बचाव Heart Attack
हृदय की बीमारियों में आनुवंशिक कारण, उम्र और लिंग (पुरुष अथवा स्त्री होना) ऐसे महत्वपूर्ण कारक हैं, जिन्हें बदला नहीं जा सकता। किंतु बाहरी वातावरण, रहन-सहन और आदतों से उत्पन्न खतरों को नियंत्रित कर हम दिल की बीमारियों से बहुत हद तक बचे रह सकते हैं।
पोषण:
हृदय रोगों से बचाव में पोषण का महत्व शायद सर्वाधिक है। महीनों-वर्षों तक ट्रांसफैट युक्त तली हुई चीजें, बहुत अधिक कैलोरी वाला भोजन, अधिक शक्कर लेना रक्त में खराब कोलेस्ट्रॉल और वसा को बढ़ाकर धमनियों के अवरुद्ध होने का कारण बनता है। स्वाद की खातिर इन्हें कभी-कभार खाया जा सकता है, मसलन सप्ताह में एकाध बार। दूसरी तरफ, रोजाना के खाने में ताजा सब्जियां, फल, अनाज, दालें, दूध, बीन्स, नट्स इत्यादि का सेवन समुचित काबोर्हाइड्रेट, प्रोटीन, खनिज लवण, रेशे एवं विटामिन की मात्रा शरीर को पहुंचाएगा। अखरोट, बादाम जैसे नट्स में अच्छे फैटी एसिड होते हैं, जो दिल के लिए अच्छे हैं।
तनाव:
तनाव और व्यस्तता भरा जीवन हृदय के लिए घातक कॉर्टिसोल, एपिनेफ्री के स्राव का जरिया है, लेकिन इसके निवारण के उपाय भी सरल और सुलभ हैं। अच्छी नींद, ध्यान, खेलकूद, योग, प्रकृति से जुड़ाव, दर्शन, अध्यात्म, अध्ययन, सोशल मीडिया का सीमित उपयोग जैसी आदतें तनाव कम करने में कारगर हो सकती हैं। यह दार्शनिक भाव भी राहत दे सकता है कि हम इस ब्रह्मांड के सूक्ष्मतम हिस्से से अधिक कुछ नहीं, हमारे नियंत्रण में तो हमारे अपने दिल की धड़कन तक नहीं। यह सोच जीवन की हर घटना को अपनी मर्जी के अनुसार नियंत्रित करने के दबाव को कम करेगी।
व्यायाम:
खेलना, कूदना, जिम, साइकिलिंग, योग, तैराकी, नृत्य-जो भी पसंदीदा व्यायाम हो, सप्ताह में पांच से छह दिन अवश्य कीजिए। ये वजन नियंत्रित रखने, खराब कोलेस्ट्रॉल कम करने तथा तनाव घटाने का अहम उपाय है। व्यायाम करने से एंडोर्फिन नामक खुशी के रसायनों का स्राव होता है, जिससे तनाव भागता है और अच्छी नींद आती है। साथ ही व्यायाम से हमारे फेफड़ों और हृदय की क्षमता भी बढ़ती है, जिससे स्टैमिना बेहतर होता है। उम्र अधिक हो या कोई दिक्कत हो, तो चिकित्सक का परामर्श लेकर पैदल चलना, आसान योगासन करना बेहतर होगा। पद, प्रतिष्ठा और पैसे के लिए कवायदों में जुटे हुए भी हमेशा याद रखें- मानव शरीर गतिशील रहने के लिए ही बना है।
स्वास्थ्य की जांच:
पुरुषों में हृदयाघात महिलाओं की तुलना में अधिक होता है। महिलाओं में एस्ट्रोजन हॉर्मोन की मौजूदगी हृदयाघात के खतरे को कम करती है। मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां जोखिम को बढ़ाती हैं। कोविड संक्रमण से ठीक हुए कुछ लोगों में भी हृदय की लय, गति में परिवर्तन अथवा हार्ट अटैक का खतरा बढ़ा है। 45 वर्ष से ऊपर के पुरुष एवं 50 वर्ष से ऊपर की महिला के लिए ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर, लिपिड प्रोफाइल (जिसमें अच्छे एवं खराब कोलेस्ट्रॉल की मात्रा भी दिख जाती है) जैसी जांचें कराना और चिकित्सकीय सलाह लेना अच्छा होगा।
-डॉ. अव्यक्त अग्रवाल